अभी दिवाली आने में कुछ दिन बाकी हैं, लेकिन दिल्ली में पर्यावरण प्रदूषण बढ़ने की शिकायतें मिलने लगी हैं। पिछले साल इस बार दिल्ली में दिवाली की रात दमघोटू बन गई थी। हालात सामान्य होने में एक सप्ताह लग गया था। इसी अनुभव के तहत सुप्रीम कोर्ट ने दिवाली पर दिल्ली महानगर समेत एनसीआर क्षेत्र में पटाखों की बिक्री पर प्रतिबंध का आदेश जारी किया है। यह प्रतिबंध एक नवंबर तक रहेगा। दिल्ली प्रदूषण से बची रहे और दिल्ली वासी खुली सांस ले सकें, इस लिहाज से तो दिल्ली वालों को अदालत के आदेश का स्वागत करना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट आखिर इस बात का आंकलन करना चाहता है कि पटाखों से वायु की गुणवत्ता किस स्तर तक प्रभावित होती है। देखें और गौर करें तो सुप्रीम कोर्ट का फैसला उचित है, लेकिन फैसले पर अमल आसान नहीं होगा। अब फैसले को लेकर सवाल भी खड़े हो रहे हैं। फैसले पर अमल संभव नहीं होगा तो फिर फैसले के औचित्य पर सवाल और आलोचनाएं स्वाभाविक ही है। वायु प्रदूषण को ध्यान में रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने पिछले वर्ष ही आदेश जारी किया था कि दिल्ली एनसीआर में पटाखे नहीं बिकेंगे। फिर विचारार्थ आई याचिका के तहत 12 सितंबर को अदालत ने कुछ शर्तों के साथ प्रतिबंध को वापस ले लिया था। अब इस साल अदालत ने फिर से प्रतिबंध लागू कर दिया है। आमतौर पर सर्दी के मौसम में प्रदूषण बढ़ता है। फिर इन्हीं दिनों में किसान खेतों में पराली जलाते हैं, गाड़ियों से निकलने वाला धुंआ और फिर पटाखे मिलकर प्रदूषण को बढ़ा देते हैं। बेशक, पर्यावरण प्रदूषण एक बड़ी समस्या और संकट है, जिसके परिणाम हम भोग भी रहे हैं।
अन्तरराष्ट्रीय जगत तक इससे चिंतित है और भारत सरकार भी। पर्यावरण प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए कई योजनाएं व परियोजनाएं घोषित हैं, लेकिन कामकाज के मामले में गंभीरता कहीं भी देखने को नहीं मिलती। पटाखों की बिक्री पर प्रतिबंध के बाद पर्यावरण विशेषज्ञ व पर्यावरण प्रदूषण प्राधिकरण फैसले का स्वागत कर रहे हैं जो उचित है, लेकिन प्राधिकरण व सरकारें प्रदूषण को लेकर कितनी गंभीर हैं, यह भी देश को पता चलना चाहिए। दिल्ली सरकार ने वाहनों से होने वाले प्रदूषण पर अंकुश लगाने के लिए कुछ प्रयोग किए थे आखिर नतीजा क्या निकला? ऐसे ही एनसीआर में शामिल राज्यों की सरकारों को भी पर्यावरण पर अपने रिपोर्ट कार्ड पर गौर करना चाहिए। कहीं भी किसी सरकार ने प्रदूषण से निपटने के लिए कोई ठोस एक्शन प्लान नहीं बना रखा है। अब जहां तक पटाखों का सवाल है तो अदालत का फैसला अच्छा होते हुए भी यह नहीं कहा जा सकता कि प्रदूषण किस हद तक रूक पाएगा? फिर सबसे बड़ा सवाल यह है कि आदेश की अनुपालना कैसे संभव हो पाएगी? क्या दिवाली पर लोग पटाखों को नहीं बजाएंगे? आज दिवाली के पर्व की पहचान ही पटाखे बनकर रह गए हैं। अदालत के प्रतिबंध के बाद दिल्ली में पटाखों की बिक्री अचानक बढ़ गई है। दुकानदार कह रहे हैं कि अभी आदेश नहीं आएं हैं। आएंगे तो दुकानें बंद कर देंगे। फिर दिल्ली की दुकानें बंद हो गई तो आसपास के राज्यों से पटाखे लोग ले आएंगे। जाहिर है कि दिवाली पर लोग पटाखे छोड़े बिना मानेंगे नहीं और पटाखे चलेंगे। साफ है कि लोग मानेंगे नहीं और पटाखों का करोड़ों का व्यापार भी चौपट हो जाएगा। मानवीय दृष्टिकोण से सुप्रीम कोर्ट का फैसला जायज है और इससे कोई इंकार नहीं पर सकता, लेकिन यह मामला संवेदनशील भी है। धर्म, पर्व व सांस्कृतिक परम्परा से भी जुड़ा है तो पटाखे चलेंगे, क्योंकि प्रतिबंध बिक्री पर है, पटाखे चलाने पर नहीं है। लेकिन सवाल बढ़ते प्रदूषण का है, जिस पर दिल्ली व एनसीआर के वासियों के अलावा पूरे देश को ही विचार करना चाहिए। पटाखे चलाने का समय व अनुपात तय किया जा सकता है।