भौगोलिक क्षेत्रफल के हिसाब से भारत की लगभग 14 फीसदी भूमि पर बाढ़ का खतरा बना रहता है और हर साल इस क्षेत्र के 15 फीसदी से अधिक पर बाढ़ आता है। 1953 से बाढ़ के कारण हर साल औसतन 1600 जिंदगियों का नुकसान हुआ है।
फिर भी, केंद्र सरकार ने अप्रैल, 2007 और मार्च, 2016 के बीच बाढ़ प्रबंधन के लिए दिए गए निधियों का 61 फीसदी जारी नहीं किया है, और अनुमोदित 517 कामों में से 43 फीसदी पूरा नहीं हुआ है, यह जानकारी हाल ही में भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक ( कैग ) की रिपोर्ट में सामने आई है।
कैग ने वर्ष वर्ष 2007 से 2017 के बीच 206 बाढ़ प्रबंधन कार्यक्रमों , 38 बाढ़ पूर्वानुमान केंद्रों, 49 नदी प्रबंधन गतिविधियों और सीमा क्षेत्र परियोजनाओं से संबंधित कार्यों का एक नमूना और 17 चयनित राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों (यूटी) के बीच 68 बड़े बांध का अध्ययन किया है।
रिपोर्ट कहती है कि,17 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में से आठ में, बाढ़ प्रबंधन कार्यक्रम (एफएमपी) ‘एकीकृत तरीके’ में नहीं लिया गया था, जो पूरे नदी या उपनदी को कवर करेगा, और एफएमपी कार्यों के पूरा होने में 10 से 13 वर्ष तक की देरी हो सकती है।
कुल मिलाकर, बाढ़ के नुकसान को कम करने के लिए किए गए उपाय अप्रभावी थे।
भारत में बाढ़ का खतरा
सीएजी रिपोर्ट में सरकार के आंकड़ों के मुताबिक 45.64 मिलियन हेक्टेयर या भारत के भू-भाग के 14 फीसदी पर बाढ़ का जोखिम है। औसतन, 7.55 मीटर हेक्टेयर (कुल बाढ़ प्रवण क्षेत्र का 16 फीसदी) हर साल बाढ़ से प्रभावित होता है।
वर्ष 1991 और 2015 के बीच, भारत ने आपदाओं के कारण मौतों की सूचना पांचवी सबसे ज्यादा दी है, जिनमें से एक तिहाई (35,325 या 36.1 फीसदी) बाढ़ के कारण हुई है। आपदा जोखिम न्यूनीकरण ( यूएनआईडीआर) के लिए संयुक्त राष्ट्र कार्यालय के आंकड़ों के मुताबिक, इस अवधि के दौरान, 97,691 लोगों की मौत हुई, जो केवल हैती, इंडोनेशिया, म्यांमार और चीन की तुलना में कम है।
वर्ष 2015 की यूएनआईएसडीआर की रिपोर्ट कहती है, पिछले दस वर्षों से 2015 तक देशों ने प्रति बाढ़ से मारे गए लोगों की संख्या के आंकड़े आधे किए हैं। यह आंकड़े प्रति बाढ़ की घटना पर औसतन 68 से कम होकर 34 हुई है।
यह कमी मोटे तौर पर बांधों और डाइक जैसे वहन करने योग्य प्रौद्योगिकियों और बेहतर पूर्वानुमान को अपनाने के कारण हुई है।
इसके विपरीत, भारत में बाढ़ की मृत्यु दर बढ़ रही है।
चीन के साथ तुलना में पता चलता है कि वर्ष 1996-2015 के बीच चीन ने 182 बाढ़ का अनुभव किया, जबकि भारत ने 167 बाढ़ का सामना किया था। इन दो दशकों के दौरान, चीन में 1996-2005 के दौरान बाढ़ के कारण 14,400 लोगों की मौत दर्ज की गई और 2006-2015 के दौरान यह संख्या कम होकर 6,600 हुई । लेकिन भारत में, मुत्यु की संख्या 1996-2005 के दौरान 13,660 से बढ़ कर 2006-2015 में 15,860 हुई है।
वर्ष 1953 से 2016 तक, हर साल भारत में बाढ़ की वजह से औसतन 1,626 जीवन का नुकसान हुआ है। और औसत वार्षिक नुकसान 4,282 करोड़ रुपए के बराबर था।
बाढ़ को कम करने के लिए संरचनात्मक उपायों में आम तौर पर जलाशयों, तटबंधों, नदी के किनारों और नालियों के निर्माण, जल निकासी और चैनलों में सुधार, और वाटरशेड प्रबंधन और बाढ़ मोड़ शामिल हैं।
गैर-संरचनात्मक उपायों में बाढ़ की भविष्यवाणी, बाढ़ की चेतावनी, बाढ़ के मैदानों की ज़ोनिंग, और आपदा तैयारियों शामिल हैं।
बाढ़ प्रबंधन कार्यक्रम
वर्ष 2004 में असम, बिहार और पश्चिम बंगाल में घातक बाढ़ के को देखते हुए मंत्रियों के संघीय कैबिनेट की ओर से टास्क फोर्स की सिफारिश में, 2007 में 8,000 करोड़ रुपए (2007-12) और 10,000 करोड़ रुपए (2012-17) फ्लड मैनेजमेंट प्रोग्राम (एफएमपी) के लिए मंजूरी दी थी।
इन उपायों में नदी प्रबंधन, जल निकासी प्रबंधन, और बाढ़ और क्षरण नियंत्रण के लिए कार्यक्रम शामिल होंगे।
वर्ष 2007 और मार्च 2016 के बीच इन आबंटित राशियों के 61 फीसदी जारी नहीं किए गए थे, जैसा कि कैग ऑडिट में पाया गया है।
स्वीकृत 517 कार्यों में से 297 (57 फीसदी) पूरा किया गया।
हर साल बाढ़ का सामना करने वाले राज्य, असम के लिए केंद्र सरकार ने 60 फीसदी आवंटित राशि जारी नहीं किया है। राज्य सरकार ने बजट में आबंटित राशि का 84 फीसदी भी जारी नहीं किया है। रिपोर्ट कहती है कि,”फंड के अपर्याप्त प्रवाह ने योजनाओं के कार्यान्वयन पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है।”
पूर्वानुमान
सेंट्रल वाटर कमीशन (सीडब्ल्यूसी) बाढ़ की भविष्यवाणी से जुड़े 221 केंद्रों का एक नेटवर्क चलाता है, जो हर साल औसतन 6,000 बाढ़ चेतावननियां जारी करता है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक,इन चेतावनियों में से 98 फीसदी से अधिक सटीक होते हैं।
कैग रिपोर्ट कहती है कि, पूर्वानुमान को बाढ़ का प्रबंधन करने और कमजोर क्षेत्रों को अग्रिम चेतावनी प्रदान करने के लिए एक महत्वपूर्ण गैर-संरचनात्मक उपाय माना जाता है।
हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि, इन पूर्वानुमानों को जोखिम क्षेत्र की आबादी को पर्याप्त रुप से संचारित नहीं किया जाता है।
गुवाहाटी विश्वविद्यालय में पर्यावरण विज्ञान विभाग के सेवानिवृत्त प्रमुख डीसी गोस्वामी ने इंडियास्पेंड को बताया कि, “ज्यादातर मामलों में हम लगभग अनजान रहते हैं। नागरिक प्रशासन को लोगों को एहतियाती उपायों के लिए सक्षम बनाने के लिए एक निर्बाध संचार प्रणाली बनाना चाहिए। इसके बिना, लोगों का कष्ट बढ़ जाती है, और नुकसान में वृद्धि होती है। ”
पूर्वानुमान के संचार को स्वचालित करने के लिए, सीडब्ल्यूसी ने मौजूदा बुनियादी ढांचे के आधुनिकीकरण, 219 पुराने स्टेशनों में स्वचालित उपकरण प्रदान करने और 2007-12 के दौरान 222 नए टेलीमेट्री स्टेशन स्थापित करने की योजना बनाई है।
कैग ने पाया कि 222 नए स्टेशनों की स्थापना केवल दो साल (26 महीने) की देरी के बाद जून 2013 में पूरी हो गई थी।
इसके अलावा, सीएजी द्वारा जांच की गई टेलीमेट्री स्टेशनों में से 375 (59.2 फीसदी) में से 222 विभिन्न कारणों से काम नहीं कर रहे थे। जिनमें उपकरणों की चोरी, रडार सेंसर जैसे भागों की स्थापना, और खराब उपकरण जैसे कारण थे।
शहरों के संसाधनों की कमी
‘नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ अर्बन अफेयर’ के सितंबर 2016 की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि हाल के वर्षों में आबादी के विस्तार, ड्रेनेज चैनलों पर अतिक्रमण, अपशिष्ट के अपर्याप्त निपटान के कारण भारत के शहरों में बहुत ज्यादा बाढ़ आ गई है।
इस तबाही में जब जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को भी जोड़ दिया जाए तो भारतीय शहर इसका सामना करने के लिए स्पष्ट रूप से अयोग्य हैं, जैसा कि इंडियास्पेंड ने अगस्त 2017 की रिपोर्ट में बताया है।
मुंबई में वर्ष 2005 के बाढ़ के कारण दो दिनों में 550 करोड़ रुपए के नुकसान हुए थे, जबकि श्रीनगर में बाढ़ में अनुमानित रूप से 6,000 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है। चेन्नई की 2015 की बाढ़ सबसे ज्यादा विनाशकारी थी, जिसमें 50,000 रुपए से 100,000 करोड़ रुपए का नुकसान और 1,000 लोगों की मौत हो गई थी।
शहरी प्रशासन की स्थिति पर एक गैर-लाभकारी संस्था द्वारा एक अध्ययन, द एनुअल सर्वे ऑफ इंडियाज सिटी सिस्टम ( एएसआईसीएस ) में शहरी नियोजन और डिजाइन, और शहरी क्षमताएं और संसाधनों सहित मापदंडों पर 21 भारतीय राज्यों का मूल्यांकन किया गया है। सभी शहरों ने 2.1 और 4.4 के बीच स्कोर प्राप्त किया है जो लंदन और न्यूयॉर्क जैसी शहरों की तुलना में कम हैं।
इन शहरों का स्कोर 9.3 और 9.8 है।
राष्ट्रीय राजधानी, दिल्ली का मुंबई और चेन्नई की तुलना में कम स्कोर रहा है, जिसने विनाशकारी बाढ़ का सामना किया है।
अधिकांश शहरों में सेवा वितरण प्रणाली बदतर है। आदर्श रूप से, 100 फीसदी शहरी परिवारों में जल निकासी कनेक्टिविटी होना चाहिए, लेकिन वास्तव में 55 फीसदी में नहीं है, जैसा कि एएसआईसी की रिपोर्ट से पता चलता है। 20 फीसदी से कम सड़क नेटवर्क ‘स्टार्म वाटर च्रेन नेटवर्क’ से जुड़ी हैं, जो अच्छी शहर योजना की पूर्ण आवश्यकता है।