अजय शर्मा
रांची। झारखंड में सरेंडर कर चुके नक्सलियों के परिवारों के एक-एक सदस्य को अब सरकारी नौकरी देने की तैयारी चल रही है। अधिकांश जिलों के उपायुक्तों ने अपनी अनुशंसा गृह विभाग को भेज दी है। जिन नक्सलियों के परिजनों को नौकरी दी जानी है, उन पर हत्या, पुलिस संहार जैसे बड़े जघन्य अपराध के आरोप हैं। इन नक्सलियों के परिजनों को अगर नौकरी दी गयी, तो झारखंड में दम तोड़ रहे नक्सलवाद को मजबूती मिल सकती है।
झारखंड में 70 नक्सलियों के परिवारों के आश्रितोें ने नौकरी के लिए आवेदन दिया है। इसमें कुंदन पाहन, नकुल यादव, लाल बिहारी सिंह, जोसेफ पूर्ति, एनुल मियां, ओंकार यादव समेत अन्य नक्सलियों के परिवारों के नाम शामिल हैं। इनका आवेदन भी नौकरी के लिए गृह विभाग पहुंचा है। पलामू में सरेंडर कर चुके नक्सली संजय सिंह उर्फ विश्वनाथ सिंह की बेटी कुमारी सरिता सिंह ने अनुकंपा पर नियुक्ति के लिए आवेदन सौंपा था। संजय सिंह पर कई बड़े आपराधिक मामले दर्ज हैं। समर्पण के बाद उनकी मौत हो गयी है। पलामू के उपायुक्त ने इस संबंध में 31 जुलाई को अनुशंसा पत्र गृह विभाग को भेज दिया है। गृह विभाग ने नौ अक्टूबर को विशेष शाखा के एडीजीपी अजय कुमार सिंह को पत्र लिख कर यह जानना चाहा है कि सरेंडर कर चुके नक्सली के परिवार वालों को अनुकंपा के आधार पर नौकरी दी जानी है या नहीं। उपायुक्त ने किस स्तर पर अनुशंसा की, किस पद पर नौकरी दी जानी है, इन सभी बिंदुओं पर विस्तृत रिपोर्ट मांगी गयी है।

क्या जायेगा संदेश
जानकार बताते हैं कि अगर समर्पण करनेवाले नक्सलियों के परिवारों के एक-एक सदस्य को सरकारी नौकरी दी गयी, तो नक्सली संगठन की ओर युवाओं का झुकाव बढ़ सकता है। साथ ही पुलिस परिवार के वैसे सदस्य दुखी होंगे, जिनकी नक्सलियों ने हत्या की थी। इस निर्णय से नक्सली अभियान को बड़ा झटका लगने का खतरा है। सरेंडर कर चुके नक्सली कुंदन पाहन पर 87 लोगों को मारने का आरोप है। इसी ने पांच करोड़ रुपये की लूट भी करायी थी। बुंडू के डीएसपी प्रमोद कुमार, पूर्व मंत्री रमेश सिंह मुंडा की हत्या में भी कुंदन पाहन शामिल रहा है। नकुल यादव भी बड़ा नक्सली था। गुमला, लातेहार में बड़े नरसंहार की अगुवाई उसने की है। अब उसके परिवार के एक सदस्य को भी नौकरी मिलेगी।

उत्पन्न हो सकती है अजीबोगरीब स्थिति
नक्सली हिंसा में मारे गये पुलिसकर्मियों के आश्रितों को पहले से ही नौकरी देने का प्रावधान है। अब तक नक्सली हिंसा में मारे गये पुलिसकर्मियों के परिजन नौकरी भी कर रहे हैं। अगर नक्सलियों के आश्रित को नौकरी मिलने लगेगी, तो अजीबोगरीब स्थिति पैदा हो जायेगी। कहीं एक ही शाखा, विभाग में नक्सली हिंसा में मारे गये पुलिसकर्मी के आश्रित और मारनेवाले नक्सली के परिजन की ड्यूटी लग गयी, तो विचित्र स्थिति होगी।

ये बड़े नक्सली सरेंडर कर चुके हैं
जीतेंद्र गंझू, सुखराम खेरवार, शिवम खेरवार, शिवशांति उरांव, ब्रह्मदेव खेरवार, अजय उरांव, सुखलाल नगेशिया, कलेश्वर खेरवार, मनोज किस्कू, अंजली हेंब्रम, मेघनारायण सिंह, हिरा यादव, कुंदन पाहन, नकुल यादव, जीतन हांसदा समेत 270 नक्सली अब तक सरेंडर कर चुके हैं।

मारे गये अमरेश सिंह पर रिपोर्ट दे रांची प्रशासन
उग्रवादी अगर आम नागरिक की हत्या करते हैं, तो उसके परिवार के एक सदस्य को नौकरी देने का प्रावधान है। झारखंड मेें 1100 आम नागरिक नक्सली हिंसा के शिकार हुए। वहीं 460 पुलिसकर्मी भी मारे गये। लापुंग के तमकारा गांव निवासी अमरेश सिंह की हत्या 30 मार्च 2007 को की गयी थी। अब तक उसकी पत्नी शकुंतला देवी को सरकारी नौकरी नहीं मिल पायी है। नौ अक्टूबर को इस संबंध में गृह विभाग ने रांची के डीसी से रिपोर्ट मांगी है। इसमें कहा गया है कि अमरेश की हत्या का आरोप पीएलएफआइ के उग्रवादी करमा उरांव पर है। वह अभी जेल में है, लेकिन जिस समय घटना हुई है, उस समय वह उग्रवादी नहीं अपराधी था। अमरेश की मौत पर गृह विभाग ने डीसी से विस्तृत रिपोर्ट मांगी है।

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