झारखंड में 1746 दिन के बाद एक राजनीतिक घटना दोहरायी गयी। इन दोनों में केवल एक अंतर रहा और वह यह कि 11 फरवरी 2015 को नयी दिल्ली में एक दल के छह विधायकों ने एक साथ भाजपा का दामन थामा था, जबकि 23 अक्टूबर 2019 को अलग-अलग दलों के पांच विधायकों ने भगवा चोला ओढ़ लिया। झारखंड की पांचवीं विधानसभा के लिए होनेवाले चुनाव से ठीक पहले भाजपा के इस जबरदस्त राजनीतिक मूव ने जहां झामुमो का किला हिला दिया है, वहीं कांग्रेस की नींव धंसा दी है। कांग्रेस के दो विधायक और एक राष्टÑीय सचिव तथा झामुमो के दो विधायकों ने औपचारिक रूप से भाजपा की सदस्यता ले ली है। इस बड़े राजनीतिक घटनाक्रम पर राजीव और दयानंद राय का खास विश्लेषण।

वह 11 फरवरी, 2015 का दिन था, जब दिल्ली में भाजपा के मुख्यालय में झारखंड की चौथी विधानसभा के लिए चुने गये छह विधायकों ने भाजपा की सदस्यता ग्रहण की थी। इसके ठीक 1746 दिन बाद दिल्ली से 12 सौ किलोमीटर दूर झारखंड की राजधानी में भाजपा के प्रदेश मुख्यालय में पांच विधायक औपचारिक रूप से भाजपा में शामिल हो गये। भाजपा के इस धमाकेदार राजनीतिक कदम ने जहां सत्ता हासिल करने की जद्दोजहद में जुटे झामुमो के किले को जबरदस्त नुकसान पहुंचा दिया है, वहीं लगातार कमजोर होती कांग्रेस की नींव को ही धंसा कर रख दिया है। विधानसभा चुनाव से पहले विपक्ष को करारा झटका देते हुए भाजपा ने महामिलन समारोह आयोजित किया।
इसमें पांच विधायक, एक पूर्व आइएएस और दो पूर्व आइपीएस को पार्टी में शामिल करा लिया। भाजपा की सदस्यता लेनेवालों में बरही से कांग्रेस विधायक मनोज यादव, लोहरदगा विधायक सुखदेव भगत, झामुमो के बहरागोड़ा विधायक कुणाल षाडंÞगी, भवनाथपुर विधायक भानु प्रताप शाही, मांडू से विधायक जेपी पटेल, पूर्व डीजीपी डीके पांडेय, पूर्व आइपीएस और कांग्रेस के राष्टÑीय सचिव डॉ अरुण उरांव, पूर्व आइएएस अधिकारी सुचित्रा सिन्हा और पूर्व स्वास्थ्य मंत्री तथा बहरागोड़ा विधायक कुणाल षाडंगी के पिता दिनेश षाडंÞगी शामिल हैं।

भाजपा का मास्टर स्ट्रोक
झामुमो और कांग्रेस के दो-दो विधायकों को अपने पाले में करने के इस कदम को राजनीतिक हलकों में भाजपा का मास्टर स्ट्रोक कहा जा रहा है। विधानसभा चुनाव में 65 प्लस का लक्ष्य हासिल करने में जुटी पार्टी को इन पांच विधायकों के क्षेत्रों में जबरदस्त ताकत हासिल होगी। भाजपा के इस बड़े धमाके का जवाब विपक्षी दल कैसे देते हैं, यह देखनेवाली बात होगी। झामुमो के दो विधायक, जयप्रकाश भाई पटेल और कुणाल षाड़ंगी पार्टी के दो मजबूत स्तंभ थे। दोनों ने झारखंड के दो प्रवेश द्वारों पर झामुमो का झंडा थाम रखा था, जो अब भगवा रंग का हो गया है। इसी तरह मनोज यादव कांग्रेस के पुराने नेताओं में शुमार थे। बरही विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करनेवाले इस दिग्गज कांग्रेसी ने हमेशा मुखरता के साथ पार्टी के नजरिये को रखा। दूसरी तरफ प्रशासनिक सेवा से इस्तीफा देकर कांग्रेस में आये सुखदेव भगत ने प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी भी संभाली। विधायक भी बने। वह झारखंड कांग्रेस के मजबूत आधार स्तंभ थे।
मांडू विधायक जयप्रकाश भाई पटेल झामुमो से नाराज चल रहे थे। लोकसभा चुनाव में भी उन्होंने भाजपा के लिए काम किया था। इसके बाद उन्होंने कह दिया कि झामुमो अब पार्टी नहीं प्राइवेट लिमिटेड कंपनी बन गयी है। इसके बाद से वह लगातार भाजपा के संपर्क में थे। कुणाल षाडंÞगी का बैकग्राउंड भाजपा का रहा है। वह हाल के दिनों में झामुमो में सहज महसूस नहीं कर रहे थे। इसलिए उन्होंने भाजपा की सदस्यता ली।
सुखदेव भगत लोकसभा चुनाव में अपनी हार के लिए पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष डॉ रामेश्वर उरांव को बहुत हद तक जिम्मेवार मानते हैं। उनके अध्यक्ष रहते हुए वह पार्टी में असहज महसूस कर रहे थे। इसलिए उन्होंने भाजपा की सदस्यता ली, जबकि मनोज यादव पार्टी में अपनी उपेक्षा से बेहद नाराज थे। वह कांग्रेस में प्रदेश अध्यक्ष पद के दावेदार थे, पर उनके नाम पर विचार नहीं हुआ। लोकसभा चुनाव में भी राजद के दोस्ताना फाइट में उतरने के बाद चुनाव में उनकी करारी हार हो गयी। इसके बाद उन्होंने भाजपा का दामन थाम लेना बेहतर समझा।
पूर्व आइपीएस डॉ अरुण उरांव कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी के बेहद करीबी माने जाते हैं। राहुल ने ही उन्हें राष्टÑीय सचिव बनाया और छत्तीसगढ़ में तैनात किया। डॉ उरांव ने पिछले साल दिसंबर में छत्तीसगढ़ में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत सुनिश्चित करने के लिए जमकर काम किया। वह कांग्रेस की जीत के नायक बने, लेकिन झारखंड में पार्टी ने उन्हें कोई अवसर नहीं दिया। इसके बाद झारखंड की अपनी माटी के लिए काम करने को बेचैन डॉ अरुण उरांव को भाजपा में अपना भविष्य दिखा।
पूर्व डीजीपी डीके पांडेय पुलिसिंग के बाद अपना जलवा राजनीति में दिखाना चाहते हैं। भाजपा इसके लिए उन्हें पसंदीदा प्लेटफॉर्म लगा। पूर्व आइएएस अधिकारी सुचित्रा सिन्हा प्रशासनिक सेवा में उल्लेखनीय प्रदर्शन के बाद अब राजनीति में अपनी किस्मत आजमाना चाहती हैं। इसके लिए भाजपा उन्हें मुफीद लगी। इसलिए वह पार्टी में शामिल हुर्इं।
दिनेश षाडंÞगी बहरागोड़ा विधायक कुणाल षाडंगी के पिता हैं। वह पुराने भाजपाइ रहे हैं। पुत्र के पार्टी ज्वाइन करने के बाद उनके लिए भाजपा में आना उचित अवसर महसूस हुआ।
गढ़वा के भवनाथपुर विधानसभा क्षेत्र के विधायक भानु प्रताप शाही की अपनी अलग पहचान है। वह बेलाग बोलने के लिए जाने जाते हैं। अपनी पार्टी नौजवान संघर्ष मोर्चा चला कर वह देख चुके हैं कि संघ में ही शक्ति है और भाजपा वर्तमान में झारखंड की सबसे कद्दावर पार्टी है।
इन विधायकों के आ जाने से निश्चित रूप से भाजपा अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में एक कदम आगे बढ़ चुकी है, जबकि विपक्ष के सामने इन विधायकों का विकल्प चुनने की चुनौती है। देखना है कि वह खाली हुई राजनीतिक जमीन को कैसे भरती है।

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