Close Menu
Azad SipahiAzad Sipahi
    Facebook X (Twitter) YouTube WhatsApp
    Monday, June 16
    • Jharkhand Top News
    • Azad Sipahi Digital
    • रांची
    • हाई-टेक्नो
      • विज्ञान
      • गैजेट्स
      • मोबाइल
      • ऑटोमुविट
    • राज्य
      • झारखंड
      • बिहार
      • उत्तर प्रदेश
    • रोचक पोस्ट
    • स्पेशल रिपोर्ट
    • e-Paper
    • Top Story
    • DMCA
    Facebook X (Twitter) Instagram
    Azad SipahiAzad Sipahi
    • होम
    • झारखंड
      • कोडरमा
      • खलारी
      • खूंटी
      • गढ़वा
      • गिरिडीह
      • गुमला
      • गोड्डा
      • चतरा
      • चाईबासा
      • जमशेदपुर
      • जामताड़ा
      • दुमका
      • देवघर
      • धनबाद
      • पलामू
      • पाकुर
      • बोकारो
      • रांची
      • रामगढ़
      • लातेहार
      • लोहरदगा
      • सरायकेला-खरसावाँ
      • साहिबगंज
      • सिमडेगा
      • हजारीबाग
    • विशेष
    • बिहार
    • उत्तर प्रदेश
    • देश
    • दुनिया
    • राजनीति
    • राज्य
      • मध्य प्रदेश
    • स्पोर्ट्स
      • हॉकी
      • क्रिकेट
      • टेनिस
      • फुटबॉल
      • अन्य खेल
    • YouTube
    • ई-पेपर
    Azad SipahiAzad Sipahi
    Home»Top Story»कांग्रेस में छटपटा रहे हैं सुबोधकांत सहाय
    Top Story

    कांग्रेस में छटपटा रहे हैं सुबोधकांत सहाय

    azad sipahi deskBy azad sipahi deskOctober 12, 2019No Comments7 Mins Read
    Facebook Twitter WhatsApp Telegram Pinterest LinkedIn Tumblr Email
    Share
    Facebook Twitter WhatsApp Telegram LinkedIn Pinterest Email

    चोट लगी हो तो कराह के स्वर स्वभाविक हैं। झारखंड कांग्रेस में कुछ ऐसी ही हालत पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेसी नेता सुबोधकांत सहाय की है। पार्टी में तवज्जो नहीं मिलने से सुबोधकांत कभी तृणमूल कांग्रेस के मंच पर जा रहे हैं तो कभी मीडिया को दिये गये बयानों में अपनी पीड़ा जाहिर कर रहे हैं। पर न तो उनकी पुकार प्रदेश कांग्रेस में कोई सुन रहा है और न राष्टÑीय स्तर पर, क्योंकि दोनों ही स्तरों पर कांग्रेस की स्थिति डावांडोल है। करीब चालीस साल लंबा राजनीतिक करियर समेट कर चल रहे सुबोधकांत सहाय ने बीते लोकसभा चुनावों में संजय सेठ के हाथों पराजित होने के बाद बड़ी मुश्किल से खुद को टूटने से बचाया है। इससे पहले वर्ष 2014 के लोकसभा चुनावों में जब वह भाजपा के रामटहल चौधरी के हाथों हारे थे, तो उन्हें उतना झटका नहीं लगा था, पर संजय सेठ जैसे अपेक्षाकृत न्यूकमर के हाथों पराजय मिलने के बाद उनका आत्मविश्वास डोल गया है। इससे उबरने के बाद जब वे कांग्रेस को झारखंड में दिल्ली से कठपुतली की तरह संचालित होता देख रहे हैं तो उनसे रहा नहीं जा रहा और मुखर होकर वे बयान दे रहे हैं। सुबोधकांत सहाय की राजनीति के साथ देशभर में कांग्रेस के खिलाफ पार्टी नेताओं के असंतोष पर नजर डालती दयानंद राय की रिपोर्ट।

    10अक्टूबर को रांची में पत्रकारों से बात करते हुए वरिष्ठ कांग्रेसी नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री सुबोधकांत सहाय ने कहा कि दिल्ली के लोग झारखंड में कांग्रेस को कठपुतली की तरह न चलायें। इससे पहले सहाय तृणमूल कांग्रेस के कार्यक्रम में शामिल हुए थे और मंच शेयर किया था। उनके कठपुतली वाले बयान से यह साबित हो गया कि सहाय को पीड़ा प्रदेश संगठन की कार्यशैली से नहीं है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डॉ रामेश्वर उरांव से भी उन्हें कोई दिक्कत नहीं है, उन्हें दिक्कत इससे है कि झारखंड में कांग्रेस दिल्ली से रिमोट कंट्रोल के जरिये संचालित हो रही है और कामकाज का यह तरीका सहाय को पसंद नहीं आ रहा। एक सच्चाई यह भी है कि सुबोधकांत सहाय पार्टी में तवज्जो नहीं मिलने से असहज महसूस कर रहे हैं। इसलिए मुखर भी हो रहे हैं और बयान भी दे रहे हैं। ऐसा वे क्यों कर रहे हैं, इस सवाल पर सहाय ने बताया कि जहां तक तृणमूल कांग्रेस के कार्यक्रम में मंच शेयर करने का सवाल है, तो वह लंबे समय से राज्य की रघुवर और भाजपा सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए विपक्ष को एकजुट करने का काम कर रहे हैं।
    उन्होंने बताया कि उन्होंने विपक्ष को झारखंड में मजबूत और एकजुट करने के लिए झाविमो सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी से मुलाकात की है और यह उनकी राजनीति की स्वाभाविक कड़ी है। वहीं दिल्ली से झारखंड कांग्रेस को संचालित किये जाने पर उन्होंने कहा कि झारखंड के लोग कठपुतली नहीं हैं। उन्हें कठपुतली की तरह नचाया नहीं जाना चाहिए। झारखंड के संगठन से कोई बहस नहीं है, पर दिल्ली के लोग झारखंड में कांग्रेस को कठपुतली की तरह न चलायें और यहां के स्थानीय नेतृत्व की पार्टी के संचालन में भूमिका का ध्यान रखें। हालांकि सुबोधकांत सहाय के बयान से पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष डॉ रामेश्वर उरांव इत्तेफाक नहीं रखते। श्री उरांव ने कहा कि उनके बयान से झारखंड के कांग्रेसजन सहमत नहीं है। झारखंड में पार्टी का संचालन कठपुतली की तरह नहीं हो रहा है। इस बयान से सुबोधकांत सहाय की कुंठा जाहिर होती है। उन्हें ध्यान रखना चाहिए कि पार्टी सिस्टम से चलती है और चुनावों से पहले इस तरह के बयान से विरोधियों को मौका मिलता है। यदि उन्हें दिल्ली के पार्टी नेतृत्व से तकलीफ है, तो दिल्ली जाकर उचित फोरम में अपनी बात रखें। कांग्रेस भवन में बयान देकर यह समस्या कैसे सुलझेगी।
    स्थानीय नेतृत्व का हाथ-पांव बांध कर रख दिया गया है
    कांग्रेस की झारखंड की राजनीति की गहरी समझ रखनेवाले जानकारों ने बताया कि सुबोधकांत सहाय इस तरह का बयान दे रहे हैं तो इसमें कहीं न कहीं कुछ सच्चाई तो है। पांच कार्यकारी अध्यक्ष और एक अध्यक्ष वाली कांग्रेस में स्थानीय नेतृत्व पंगु हो गया है। चुनाव नजदीक हैं और न तो चुनावों के लिए स्टीयरिंग कमिटी का गठन हुआ है और न कार्यकर्ताओं में उत्साह भरने के लिए कोई काम हो रहा है। ऐसे में वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं में नाराजगी स्वभाविक है। कांग्रेस में तो अभी यह भी तय नहीं हुआ है कि जिले में और बूथ स्तर पर कमान किसे दी जाये। हालांकि प्रदेश अध्यक्ष डॉ रामेश्वर उरांव कहते हैं कि रांची मेंं बैठकर कांग्रेस में क्या काम हो रहा है यह नहीं दिखाई देगा। लातेहार जाइये, गुमला जाइये, सिमडेगा जाइये और चाईबासा जाइये तब पता चलेगा कि कांग्रेस किस शिद्दत से चुनाव की तैयारियों में जुटी हुई है। असल में सुबोधकांत सहाय जैसे नेताओं की दिक्कत जिसे कुंठा बताया जा रहा है, कांग्रेस के सिस्टम की दिक्कत है और इसे दूर करने के लिए कांग्रेस के सिस्टम में कोई मैकेनिज्म नहीं है। कांग्रेस की कार्य संस्कृति की तुलना अगर भाजपा से की जाये, तो भाजपा में वरीय नेताओं का ध्यान रखने की बेहतर संस्कृति है। उदाहरण के लिए जब अर्जुन मुंडा खरसावां से विधानसभा चुनाव हारे थे, तो उन्हें पार्टी ने राष्टÑीय टीम में जगह दी थी। बीते लोकसभा चुनावों में गीता कोड़ा के हाथों सिंहभूम में पराजित होने के बाद भी पार्टी ने लक्ष्मण गिलुवा को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर उनका मान-सम्मान बरकरार रखा। यशवंत सिन्हा के राष्टÑीय नेतृत्व के खिलाफ लगातार मुखर होने के बावजूद पार्टी ने न सिर्फ उनके बेटे को दुबारा टिकट देकर जितवाया बल्कि उन पर कोई कार्रवाई भी नहीं की।
    वहीं वर्ष 2014 के विधानसभा चुनावों में बिशुनपुर से चमरा लिंडा के हाथोें पराजित होने के बाद समीर उरांव को भाजपा ने राज्यसभा का टिकट देकर उनका कद बढ़ाया। ठीक ऐसी ही कोई मुकम्मल व्यवस्था कांग्रेस में नहीं है। और यदि है तो शायद वह कांग्रेसी नेताओं की जरूरत पूरी करने में सक्षम नहीं है।
    पूरे देश में फूट रहे असंतोष के स्वर
    दरअसल, कांग्रेस के राष्टÑीय अध्यक्ष के पद से राहुल के इस्तीफे और सोनिया गांधी के स्टीयरिंग संभालने के बाद कांग्रेस में असंतोष के स्वर तेज हो गये हैं। चाहे वह संजय निरुपम हों या ज्योतिरादित्य सिंधिया या फिर सलमान खुर्शीद, सभी पार्टी में रहकर कहीं न कहीं दिक्कत महसूस कर रहे हैं। सिंधिया ने कहा है कि कांग्रेस को इंट्रोस्पेक्शन की जरूरत है। इससे पहले सलमान खुर्शीद ने कहा था कि पार्टी में लीडरशिप वैक्यूम की स्थिति है। जाहिर है कि कहीं न कहीं तो कोई दिक्कत तो पार्टी में है, जिससे पार्टी के नेता असहज महसूस कर रहे हैं और सुबोधकांत सहाय की पीड़ा भी उसी कड़ी का हिस्सा है, जिसे सुनकर प्रदेश नेतृत्व लगभग अनसुना कर रहा है। आखिर कांग्रेस में लंबा वक्त गुजारने और पार्टी को अपने खून-पसीने से सींचनेवाले सुबोधकांत सहाय बचकाना बयान देंगे इसकी संभावना बहुत कम है। पार्टी के सुनहरे अतीत पर नजर डालें तो कांग्रेस की स्थापना वर्ष 1885 में एक अंग्रेज एओ ह्यूम ने की थी। बाद में देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, राष्टÑपिता महात्मा गांधी और इंदिरा सरीखे दिग्गज नेताओं ने इस पार्टी को गरिमा तो दी ही मजबूत और कद्दावर नेतृत्व भी दिया, जिसमें विपक्ष के लिए राजनीति का स्थान बहुत कम बचता था। ऐसे नेताओं की लीडरशिप मेें एक लंबे अरसे तक पूरा देश कांग्रेसमय रहा। पर वर्ष 2014 के बाद नरेंद्र मोदी के राष्टÑीय पटल पर छाने के बाद पूरे देश में राजनीतिक समीकरण बदल गये हैं और कांग्रेस हाशिये पर चली गयी है। झारखंड में भी कांग्रेस की यही स्थिति है। साफ है कि कांग्रेस को अपने उज्ज्वल अतीत से सबक लेकर गौरवशाली वर्तमान की रचना के लिए कमर कसकर खड़ा होना होगा, पर ऐसा तब होगा जब राष्टÑीय स्तर हो या स्थानीय स्तर, दोनों ही स्तरों पर मजबूत, काबिल और प्रखर नेतृत्वकर्ताओं को पार्टी की कमान दी जायेगी। कार्यकर्ताओं का मनोबल मजबूत किया जायेगा और वरिष्ठ नेताओं की समस्याएं सुनकर उनके समाधान का प्रयास होगा। जब तक ऐसा नहीं होता है, कांग्रेस की स्थिति में सुधार की गुंजाइश कम है।

    Subodh Kant Sahay is flirting in Congress
    Share. Facebook Twitter WhatsApp Telegram Pinterest LinkedIn Tumblr Email
    Previous Article इथियोपिया के PM अहमद को मिला शांति का नोबेल
    Next Article प्रदेश अध्यक्ष ने ठोका 35 सीटों पर दावा
    azad sipahi desk

      Related Posts

      पंचायत सेवक खुदकुशी मामले में जांच का आदेश, डीसी ने जांच कमेटी का किया गठन

      June 15, 2025

      भूमि विवादों के समाधान को लेकर सोशल मीडिया से शिकायत भेजें लोग : मंत्री

      June 15, 2025

      पंचायत सेवक ने बीडीओ सहित चार लोगों पर मानसिक प्रताड़ना का आरोप लगाकर की खुदकुशी

      June 15, 2025
      Add A Comment

      Comments are closed.

      Recent Posts
      • पंचायत सेवक खुदकुशी मामले में जांच का आदेश, डीसी ने जांच कमेटी का किया गठन
      • भूमि विवादों के समाधान को लेकर सोशल मीडिया से शिकायत भेजें लोग : मंत्री
      • केदारनाथ हेलिकॉप्टर हादसे में जयपुर के रिटायर्ड लेफ्टिनेंट कर्नल पायलट की मौत
      • पंचायत सेवक ने बीडीओ सहित चार लोगों पर मानसिक प्रताड़ना का आरोप लगाकर की खुदकुशी
      • स्लम बस्तियों में पुस्तक पढ़ने की संस्कृति को जगा रही है संस्कृति फाउंडेशन
      Read ePaper

      City Edition

      Follow up on twitter
      Tweets by azad_sipahi
      Facebook X (Twitter) Instagram Pinterest
      © 2025 AzadSipahi. Designed by Microvalley Infotech Pvt Ltd.

      Type above and press Enter to search. Press Esc to cancel.

      Go to mobile version