तीन दिन पहले बड़े तामझाम के साथ भाजपा में शामिल होनेवाले बरही के विधायक मनोज यादव को लेकर राजनीति तेज हो गयी है। टिकट पाने की गारंटी के साथ ही मनोज यादव भाजपा में शामिल हुए हैं। लेकिन बरही में एक कटु सवाल अभी से तैरने लगा है कि मनोज यादव को बरही के भाजपाई कितना पचा पायेंगे! कुछ भाजपाइयों की उनसे पुरानी अदावत रही है। चुनाव में दो-दो हाथ होते भी रहे हैं। उन भाजपाइयों के जेहन में मनोज यादव सहज तरीके से नहीं उतरे पायेंगे, यह कटु सच्चाई है। ऐसे में उनके भाजपा में आने का उद्देश्य किस हद तक पूरा हो पायेगा, यह समय के गर्भ में है। वैसे मनोज यादव के भाजपा में आने के बाद बरही का राजनीतिक परिदृश्य बदला जरूर है, लेकिन पुराने भाजपाई अब भी दुविधा में हैं। छह साल पहले जिस अकेला को भाजपाइयों ने नेता माना था, वह हाशिये पर आ गये हैं। इधर भाजपा की एक स्तंभ साबी देवी भी छिटक गयी हैं और उनके पुत्र कांग्रेस में शामिल हो गये हैं। मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य पर आजाद सिपाही पाॉलिटिकल ब्यूरो की रिपोर्ट।

बहुत दिन नहीं हुए, जब मनोज यादव कांग्रेस में थे और पार्टी ने लोकसभा चुनाव में उन्हें चतरा संसदीय सीट से उम्मीदवार बनाया था। वह हजारीबाग से लड़ने का मन बना चुके थे, लेकिन कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति ने उन्हें चतरा की हारी हुई लड़ाई लड़ने के लिए भेज दिया। लोकसभा चुनाव में मनोज यादव ने भाजपा के खिलाफ खूब कैंची चलायी थी। उधर जब चुनाव परिणाम आया, तो साफ हुआ कि मनोज यादव चतरा से तो हारे ही, हजारीबाग में भी अपने विधानसभा क्षेत्र में अपनी पार्टी को बढ़त नहीं दिला सके। इतना ही नहीं, पूरे हजारीबाग संसदीय क्षेत्र में कांग्रेस को सबसे कम वोट बरही से ही मिले। खैर, यह कहानी अब पुरानी पड़ चुकी है। मनोज यादव ने कांग्रेस का हाथ छोड़ दिया है और भाजपा में शामिल हो गये हैं। भाजपा ने उन्हें बरही से टिकट देने का भरोसा भी दिया है। इसी गारंटी पर वह भाजपा के साथ आये हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि कांग्रेस अब झारखंड में नहीं चल पायेगी।

भाजपा में मनोज को लेकर खुसफुसाहट
लेकिन भाजपा के भीतर अभी से इस बात का हिसाब-किताब लगाया जाने लगा है कि आखिर मनोज यादव के लाने का कितना लाभ पार्टी को होगा। बरही के पुराने भाजपाई अब भी इस बात को लेकर दुविधा में हैं कि पार्टी में अब उनका क्या होगा। वे अब उस मनोज यादव को अपना नेता कैसे मान लें, जिन्हें मनोज यादव कभी सबक सिखाते थे। बरही में तो दबी जुबान यह भी चर्चा है कि पिछले चुनाव में मनोज यादव को तगड़ी टक्कर देनेवाले उमाशंकर अकेला को जेल भिजवाने की साजिश भी खुद मनोज यादव ने ही रची है।
क्या है बरही का चुनावी इतिहास
बरही विधानसभा क्षेत्र का इतिहास बताता है कि यहां भाजपा कभी मजबूत स्थिति में नहीं रही। 2004 के चुनाव में मनोज यादव ने उमाशंकर अकेला को हराया था। उस समय उमाशंकर अकेला समाजवादी पार्टी में थे और बहुत मामूली अंतर से हारे थे। उस समय उमाशंकर अकेला की झारखंड में खूब चर्चा हुई थी। भाजपा ने उन्हें अपने पाले में किया और 2009 के चुनाव में उन्होंने मनोज यादव को नौ हजार से अधिक मतों के अंतर से पराजित कर अपनी हार का बदला लिया था। 2014 में मनोज यादव ने सात हजार से कुछ अधिक मतों के अंतर से उमाशंकर अकेला को हरा दिया था। यानी चार चुनावों में इन दोनों के बीच ही मुकाबला रहा, जिसमें तीन बार मनोज यादव और एक बार उमाशंकर अकेला ने बाजी मारी।
विपक्ष एक हुआ, तो मनोज को होगी मुश्किल
अब जबकि मनोज यादव भाजपा में आ गये हैं, चर्चा है कि इस बार भी मुकाबला इन दोनों के बीच ही होगा, क्योंकि उमाशंकर अकेला बागी तेवर अपना सकते हैं। जहां तक पिछले चुनाव की बात है, तो मनोज यादव को 57 हजार से अधिक वोट मिले थे, जबकि अकेला को 50 हजार मत से संतोष करना पड़ा था। पिछले चुनाव में साबी देवी झामुमो की प्रत्याशी थीं और उन्हें 39 हजार से अधिक वोट मिले थे, जबकि झाविमो ने योगेंद्र प्रताप को टिकट दिया था और उन्हें 58 सौ मत मिला था। माना जाता है कि यादव बहुल बरही में भाजपा का कोई बड़ा वोट बैंक नहीं है। उमाशंकर अकेला को मिले 50 हजार वोटों में भी एक हिस्सा उनका अपना था। लेकिन मनोज को अपने 36 हजार वोटरों के साथ कांग्रेस के परंपरागत वोटरों का समर्थन मिला था। उस समय साबी देवी को कांग्रेस से नाराज वोटरों के साथ उनके जातीय वोटरों का समर्थन मिला था।
कैसे होगा मनोज का बेड़ा पार
इस बार यदि भाजपा ने मनोज यादव को टिकट दिया, तो इस बात की पूरी संभावना है कि पिछली बार कांग्रेस में रहते हुए उन्हें मिले 57 हजार वोटों का अधिकांश हिस्सा उनसे बिदक जाये। लोकसभा के पिछले चुनाव में यह बात साफ हो चुकी है, जब बरही से कांग्रेस प्रत्याशी को केवल 36 हजार वोट ही मनोज दिला सके थे, जबकि उमाशंकर अकेला और साबी देवी ने मिल कर भाजपा को एक लाख 24 हजार वोट दिला दिया। इसका सीधा मतलब यही है कि मनोज यादव के पास बरही का सिर्फ 36 हजार वोट है, जबकि उमाशंकर अकेला और साबी देवी ने यदि बगावत कर दी, तो इन दोनों का वोट भाजपा को नहीं मिलेगा। उस स्थिति में भाजपा के लिए मुश्किल स्थिति पैदा हो जायेगी।
नुकसान की आशंका अधिक
हालांकि इस बात का पूर्वानुमान लगाना मुश्किल है कि मतदान केंद्रों पर वोटरों का मिजाज कैसा रहेगा, लेकिन इतना तय है कि मनोज यादव के साथ बरही में भाजपा का रास्ता बहुत आसान नहीं है। मुख्यमंत्री रघुवर दास की लोकप्रियता निस्संदेह चरम पर है और भाजपा को निश्चित रूप से इसका लाभ मिलेगा, लेकिन बरही की राजनीति में भाजपाई मनोज यादव कितना और क्या असर दिखायेंगे, यह देखना दिलचस्प होगा।
वैसे भी बरही में मनोज यादव की दबंग छवि को लेकर भाजपाइयों में खुसफुसाहट जारी है। पार्टी के पुराने लोग उन्हें पचा नहीं पा रहे हैं। आज की स्थिति में तो केवल इतना ही कहा जा सकता है कि कांग्रेस के मनोज यादव और भाजपा के मनोज यादव में बहुत बड़ा फर्क है।

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