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    Home»Jharkhand Top News»अनुप के लिए बड़ा चैलेंज है बेरमो का अखाड़ा
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    अनुप के लिए बड़ा चैलेंज है बेरमो का अखाड़ा

    azad sipahi deskBy azad sipahi deskOctober 16, 2020No Comments5 Mins Read
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    झारखंड विधानसभा में कोयला क्षेत्र की महत्वपूर्ण सीट बेरमो में तीन नवंबर को होनेवाले उप चुनाव में सत्तारूढ़ महागठबंधन की ओर से कांग्रेस ने कुमार जयमंगल उर्फ अनुप सिंह को मैदान में उतारा है। यह सीट दिग्गज कांग्रेसी राजेंद्र प्रसाद सिंह के निधन के कारण खाली हुई है। अनुप सिंह राजेंद्र बाबू के बड़े पुत्र होने के साथ-साथ उनके राजनीतिक उत्तराधिकारी भी हैं। राजेंद्र बाबू ने अपने जीवन काल में ही अनुप सिंह को राजनीति का पाठ पढ़ाना शुरू कर दिया था। इसलिए जब बेरमो सीट के लिए कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में उनके नाम का एलान हुआ, तो किसी को आश्चर्य नहीं हुआ। अनुप सिंह का चुनाव मैदान में उतरने का यह पहला अनुभव है और यही उनकी सबसे बड़ी राजनीतिक परीक्षा भी है। अनुप दिसंबर में हुए विधानसभा चुनाव में अपने पिता के सबसे सक्रिय सहायक थे और इसलिए न तो बेरमो का इलाका उनके लिए अपरिचित है और न ही कोयला क्षेत्र की राजनीति। अनुप ने कई साल तक प्रदेश युवा कांग्रेस की कमान संभाली है, इसलिए राजनीतिक दांव-पेंच भी वह खूब समझते हैं। लेकिन चुनाव मैदान में उतरना इन सबसे अलग होता है। अनुप के कंधे पर अपने पिता की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी तो है ही, उनके द्वारा स्थापित आदर्शों को सहेजने की चुनौती भी है। अपने पिता के निधन के कारण खाली हुई जगह को अनुप सिंह ने जिस संजीदगी से भरने की कोशिश की है, उससे उनकी राजनीतिक समझ का अंदाजा लग गया है। इस उप चुनाव में अनुप सिंह की चुनौतियों और संभावनाओं को टटोलती आजाद सिपाही पॉलिटिकल ब्यूरो की खास रिपोर्ट।

    घटना पिछले साल अक्टूबर की है। दिल्ली से मीडियाकर्मियों की एक टीम झारखंड विधानसभा चुनाव के पहले के माहौल का अध्ययन करने यहां आयी थी। टीम बेरमो पहुंची, जहां उसने दिग्गज श्रमिक नेता राजेंद्र प्रसाद सिंह से मुलाकात की। टीम में शामिल एक मीडियाकर्मी राजेंद्र बाबू का पुराना परिचित था। राजेंद्र बाबू का स्वास्थ्य काफी गिर गया था। उस मीडियाकर्मी ने उनसे इस बाबत सवाल किया, तो उन्होंने जवाब दिया, मैं मजदूरों के लिए राजनीति करता हूं। आजकल मैं बहुत अधिक सक्रिय नहीं रह पाता। इसलिए मैंने अपने पुत्र अनुप को उनकी सेवा में लगा रखा है। अनुप बहुत संवेदनशील हैं। वह चीजों को समझते हैं। इस बार चुनाव का काम भी वही देख रहे हैं। राजेंद्र बाबू की यह बात उस जिम्मेदार पिता की भावना थी, जिसे अपने गिरते स्वास्थ्य का अंदाजा था। यह उस पिता का गर्व भी था, जो अपने बेटे को कामयाब और संवेदनशील होता देख रहा था।
    इसलिए मई में जब बीमारी के कारण राजेंद्र बाबू का निधन हुआ, तभी से कयास लगाये जाने लगे थे कि अनुप सिंह को ही कांग्रेस का टिकट मिलेगा। अपने पिता से राजनीति का ककहरा सीखनेवाले अनुप सिंह पहली बार सीधे चुनाव मैदान में उतरे हैं। इसलिए उनमें खासा जोश तो है, लेकिन चुनाव में जोश के साथ-साथ होश की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। अनुप सिंह के लिए राजनीति नयी चीज नहीं है। वह शुरू से ही इसमें हाथ आजमाने लगे थे। इसलिए वह झारखंड प्रदेश युवा कांग्रेस के पहले निर्वाचित अध्यक्ष बने थे।
    लेकिन विधानसभा का चुनाव अलग किस्म की राजनीति की डिमांड करता है। यह बात अनुप सिंह भी अच्छी तरह जानते हैं। वह पिछले चार महीने से बेरमो समेत पूरे कोयलांचल में जिस तरह अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं, उससे साफ जाहिर होता है कि वह कितनी संजीदगी से चीजों को ले रहे हैं। राजेंद्र बाबू को जाननेवाले अक्सर कहते हैं कि अनुप सिंह में वही जीवंतता और संवेदनशीलता दिखती है। अनुप सिंह के सामने सबसे बड़ा चैलेंज अपने पिता की राजनीतिक शैली को जीवित रखते हुए उसे आगे ले जाने का है। अपने 30 साल के राजनीतिक जीवन में राजेंद्र बाबू ने कभी किसी को नाराज नहीं किया। यह गुण बहुत कम राजनेताओं में दिखाई देता है। लोग इस बात के गवाह हैं कि राजेंद्र बाबू के चेहरे से मुस्कान कभी हटी नहीं। अनुप सिंह को लोगों को भरोसा दिलाना होगा कि वह अपने पिता से अलग नहीं हैं।
    अनुप सिंह के सामने एक बड़ी चुनौती बेरमो में न केवल अपने पिता की, बल्कि कांग्रेस पार्टी और झारखंड में सत्तारूढ़ सरकार की प्रतिष्ठा को बनाये रखने की है। दिसंबर में हुए चुनाव में उनके पिता ने भाजपा प्रत्याशी को 25 हजार से अधिक वोटों के अंतर से हराया था। इस अंतर को यदि इस बार भी अनुप सिंह बरकरार रख पाये, तो यह उनके लिए बड़ी उपलब्धि होगी। उनके सामने दूसरी बड़ी चुनौती कोयला मजदूरों की समस्याओं से दो-दो हाथ करने की होगी। राजेंद्र बाबू जीवन भर कोयला मजदूरों की लड़ाई लड़ते रहे और हर परिस्थिति में उनके साथ खड़े रहे। अनुप सिंह हालांकि इस मोर्चे पर बेहद सक्रिय दिख रहे हैं, लेकिन पांव जमाने में उन्हें वक्त लगेगा। इस वक्त को वह कितनी जल्दी पूरा कर पाते हैं, यह देखना दिलचस्प होगा। बेरमो विधानसभा क्षेत्र की आम समस्याओं के प्रति अनुप सिंह की संवेदनशीलता पहले से ही दिख रही थी। इस चुनाव में उन्हें लोगों के सवालों का सामना करना पड़ेगा। यह देखना होगा कि वह लोगों को कितना भरोसा दिला पाते हैं।
    अनुप सिंह के लिए राहत की बात यही है कि उन्हें न केवल कांग्रेस का, बल्कि झामुमो के प्रत्येक नेता और कार्यकर्ता का सक्रिय सहयोग मिल रहा है। उनकी उम्मीदवारी को लेकर कहीं कोई विवाद नहीं है। इसलिए उनके नामांकन में सीएम हेमंत सोरेन और कांग्रेस के तमाम छोटे-बड़े नेता शामिल हुए। अनुप सिंह के समर्थन में हुई सभा में उमड़ी भीड़ ने साबित कर दिया है कि बेरमो का मूड क्या है। यह सभा अनुप सिंह के युवा जोश को नयी ऊर्जा दे गयी है और इसका असर दिखने भी लगा है। बेरमो विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस और झामुमो समर्थक जी-जान से प्रचार में जुट गये हैं। अब इंतजार तीन नवंबर के मतदान और 10 नबंवर के परिणाम का है, जब यह साबित होगा कि अनुप सिंह का राजनीतिक कौशल कितना परिपक्व है। कोरोना काल में हो रहे इस चुनाव का अंतिम परिणाम सचमुच दिलचस्प ही होनेवाला है।

    Bermo's arena is a big challenge for Anup
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