- भाजपा ने अपनी शीर्ष टीम को उतार दिया है प्रचार अभियान में, कांग्रेस और दूसरी पार्टियां अभी ग्राउंड वर्क में ही व्यस्त
2024 के आम चुनाव से पहले छह राज्यों में विधानसभा चुनाव होना है और इसके लिए माहौल बनना शुरू हो गया है। तमाम राजनीतिक दल अपनी चुनाव मशीनरी को सक्रिय करने से लेकर रणनीति बनाने और प्रचार अभियान में जुट गये हैं। अब तक जो हकीकत धरातल पर नजर आ रही है, उससे पता चलता है कि इन छह राज्यों, हिमाचल प्रदेश, गुजरात, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और तेलंगाना में भाजपा ने विपक्षियों पर चुनावी प्रचार में बढ़त बना ली है। भाजपा ने चुनावी रणनीति बनाते हुए प्रधानमंत्री से लेकर गृह मंत्री और राष्ट्रीय अध्यक्ष से लेकर तमाम दूसरे बड़े नेताओं और मंत्रियों को उतार कर विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से जनता से सीधा संवाद करना शुरू कर दिया है। फिलहाल इन छह राज्यों में से राजस्थान, तेलंगाना और छत्तीसगढ़ में भाजपा का शासन नहीं है, लेकिन जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहा है, इन तीन राज्यों की भी तस्वीर साफ होती जा रही है। इन तीन राज्यों में से खासकर राजस्थान में तो माहौल भाजपा के अनुकूल है, बाकी दोनों राज्यों के लिए भी भाजपा ने जोर लगा दिया है। भाजपा की कार्यप्रणाली को नजदीक से जाननेवाले जानते हैं कि यह पार्टी किसी भी चुनाव को हल्के ढंग से नहीं लेती है और इसकी चुनाव मशीनरी हमेशा तैयार रहती है। इसलिए इन चार राज्यों में भी भाजपा कोई रिस्क लेने के मूड में नहीं है। दूसरे दल जहां अभी इन राज्यों में ग्राउंड वर्क करने में व्यस्त हैं, वहीं भाजपा ने पहला चक्र पूरा कर लिया है और आगामी चुनाव में इसका लाभ उसे निश्चित तौर पर मिलेगा। इन छह राज्यों में चल रही राजनीतिक गतिविधियों में भाजपा और दूसरे दलों की तुलना कर रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
18वीं लोकसभा के लिए 2024 में होनेवाले आम चुनाव से पहले जिन छह राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं, वहां का राजनीतिक तापमान बढ़ने लगा है। इन छह राज्यों में से सबसे पहले हिमाचल प्रदेश में चुनाव नवंबर में होगा। गुजरात, राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में अगले साल विधानसभा चुनाव होगा। लेकिन इन राज्यों में माहौल अभी से ही चुनावी हो चला है। छत्तीसगढ़ और तेलंगाना को छोड़ बाकी चार राज्यों में एक तरफ जहां भाजपा के सामने सत्ता बचाने की चुनौती है, वहीं विपक्ष के लिए ये चुनाव करो या मरो की तरह हैं। इसलिए यह जानना दिलचस्प है कि इन राज्यों में राजनीतिक गतिविधियां कैसी चल रही हैं और प्रचार अभियान के पहले चरण में कौन आगे है।
इन राज्यों में चुनाव प्रचार भाजपा के नेता भी कर रहे हैं और कांग्रेस और दूसरे दलों के भी। बस अंतर इतना है कि भाजपा विधानसभा चुनावों को लेकर संबंधित राज्यों में अपनी पूरी ताकत से जुटी है, जबकि कांग्रेस के नेता अगले हफ्ते होने वाले राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के चुनाव के लिए प्रचार करने में अपनी पूरी ताकत झोंक रहे हैं। दूसरे विपक्षी दल भी अभी ग्राउंड वर्क ही कर रहे हैं। इसलिए यह कहा जा सकता है कि विधानसभा चुनाव के नजरिये से कांग्रेस और दूसरे दल फिलहाल प्रचार के लिहाज से अभी भी बैकफुट पर ही हैं। हालांकि कांग्रेस के नेताओं का कहना है कि जिसे विरोधी बैकफुट पर कह रहे हैं, दरअसल कांग्रेस की वही सबसे बड़ी ताकत हैं और वही उसकी तुरूप की चाल भी है।
भाजपा ने शुरू किया संवाद बनाना
इस साल से लेकर अगले साल तक देश के अलग-अलग अहम राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने हैं। भाजपा नेतृत्व ने योजनानुसार चुनावी रणनीति बनाते हुए गुजरात, राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश और तेलंगाना में चुनावी रणनीति के तहत प्रधानमंत्री से लेकर गृह मंत्री और राष्ट्रीय अध्यक्ष से लेकर तमाम दूसरे बड़े नेताओं और मंत्रियों के कार्यक्रमों का आयोजन कर जनता से सीधा संवाद करना शुरू कर दिया है। भाजपा के बड़े नेता लगातार इन राज्यों में जाकर बड़ी-बड़ी रैलियां, बड़े-बड़े कार्यक्रम और आयोजनों के माध्यम से शिरकत कर रहे हैं। जबकि कांग्रेस और दूसरे दलों के नेता भी इन राज्यों में पहुंच रहे हैं, लेकिन उनका मकसद थोड़ा बदला हुआ है। सियासी गलियारों में चर्चा इस बात की हो रही है कि जिन राज्यों में चुनाव अगले कुछ महीनों में होने हैं, वहां पर तो कम से कम पार्टी के दिग्गज नेताओं को जाकर रैलियां और चुनावी जनसभाएं करनी ही चाहिए। केवल गुजरात अपवाद है, जहां आम आदमी पार्टी ने पूरी ताकत झोंक रखी है और वह दूसरा स्थान हासिल करने की होड़ में कांग्रेस से आगे निकल चुकी है। अब कांग्रेस को इस बात के लिए जरूरत से ज्यादा ध्यान देने की आवश्यकता है कि वह अपना चुनाव प्रचार राज्यों में होने वाले विधानसभा के चुनावों के लिए कर रही है या अगले हफ्ते होने वाले कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के चुनावों के लिए। अभी तो ऐसा लग रहा है कि अभी पार्टी के चुनिंदा नेता राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के चुनावों के लिए ज्यादा तैयारियों में लगे हैं।
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि बीते कुछ हफ्ते का अगर भाजपा का रिपोर्ट कार्ड उठा कर देखा जाये, तो साफ होता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर गृह मंत्री अमित शाह और राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से लेकर तमाम अन्य बड़े नेता और मंत्री राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, हमाचल प्रदेश और तेलंगाना समेत पूर्वांचल के राज्यों पर फोकस करते हुए अपनी चुनावी जनसभाओं को लगातार बढ़ा रहे हैं। भाजपा की आक्रामक रणनीति ही पार्टी को कई मामलों में आगे खड़ा करती है, जबकि कांग्रेस और दूसरी पार्टियों को भी उसी आक्रामकता के साथ अलग-अलग राज्यों में चुनाव प्रचार रैलियों और जनसभाओं के माध्यम से जनता से संवाद करना चाहिए। हालांकि ऐसा नहीं है कि विपक्षी दलों, खास कर कांग्रेस के नेता इन राज्यों में चुनाव प्रचार नहीं कर रहे हैं, लेकिन जिस कद के नेताओं को चुनावी राज्यों में प्रचार करना चाहिए, वे अभी राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के चुनाव में व्यस्त हैं।
भारत जोड़ो यात्रा में व्यस्त कांग्रेस
दरअसल कांग्रेस के चुनावी राज्यों में बड़े नेताओं की शिरकत न कर पाने के पीछे बहुत बड़ी वजह कांग्रेस की चल रही भारत जोड़ो यात्रा भी है। कांग्रेस के जिन बड़े चेहरों को इस वक्त गुजरात, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना या पूर्वोत्तर के राज्यों में होना चाहिए, वे इस वक्त राहुल गांधी के साथ कांग्रेस जोड़ो यात्रा में मौजूद हैं। कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता इस पर सवाल उठाते हुए कहते हैं कि आप बीते कुछ दिनों का दौरा ही देख लीजिए, तो आपको पता चल जायेगा कि कांग्रेस के जिन नेताओं की उत्तर भारत में अच्छी पकड़ है, वे दक्षिण भारत में राहुल गांधी के साथ पदयात्रा कर रहे हैं। जबकि रणनीतिक तौर पर ऐसे नेताओं को चुनावी राज्यों की कमान संभालनी चाहिए और वहां पर धुआंधार तरीके से प्रचार करना चाहिए, जैसा कि भाजपा और गुजरात में आप के नेता कर रहे हैं।
हालांकि कांग्रेस से जुड़े सूत्रों का कहना है कि बकायदा चुनावी राज्यों में बड़े नेताओं की जनसभाओं और रैलियों और कार्यक्रमों का कार्यक्रम तय किया जा रहा है। चुनावी रणनीति के लिहाज से सब कुछ हो भी रहा है। हालांकि दबी जुबान से पार्टी के एक नेता कहते हैं कि जब तक राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव नहीं हो जाता., तब तक विधानसभा चुनावों में इन बड़े नेताओं की सक्रियता नहीं दिख सकती। पार्टी से जुड़े एक वरिष्ठ पदाधिकारी कहते हैं कि कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के दावेदारों में शामिल मल्लिकार्जुन खड़गे दो दिन पहले चंडीगढ़ में थे। उन्होंने वहां पर बैठक की और हिमाचल प्रदेश, जो चुनावी राज्य है, वहां के नेताओं से भी मुलाकात की। पार्टी के नेताओं का कहना है कि जब पार्टी के नेता ऐसे माहौल में चुनाव प्रचार करने जाते हैं, तो वे विधानसभा चुनावों की भी पूरी रणनीति को समझते हैं और दिशा निर्देश भी देते हैं।
कांग्रेस कार्यकर्ता हैं उत्साहित
हालांकि इन सबसे इतर कांग्रेस के वरिष्ठ पदाधिकारी का कहना है कि जिसे लोग कांग्रेस चुनाव प्रचार के लिहाज से बैकफुट पर मान रहे हैं, दरअसल वह कांग्रेस की रणनीति को समझ नहीं पा रहे हैं। पार्टी के वरिष्ठ पदाधिकारी लगातार चुनावी राज्यों में न सिर्फ संपर्क कर रहे हैं, बल्कि अपनी चुनावी रणनीति के लिहाज से पूरी योजना को आगे बढ़ा भी रहे हैं। इसके अलावा वरिष्ठ नेता का कहना है कि राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के माध्यम से जो करंट पूरे देश में कांग्रेसी कार्यकतार्ओं और चुनावी राज्यों में पहुंच रहा है, वही पार्टी के लिए एक बड़ी तुरूप की चाल सरीखा है। इसके पीछे वह तर्क देते हुए कहते हैं कि पार्टी के कई बड़े नेता राष्ट्रीय अध्यक्ष के होने वाले चुनाव के माध्यम से सिर्फ चुनावी राज्य ही नहीं, बल्कि देश के अलग-अलग राज्यों के कार्यकतार्ओं पदाधिकारियों और डेलीगेट से संपर्क स्थापित कर रहे हैं, जो विधानसभा चुनावों के साथ-साथ लोकसभा चुनावों की तैयारियों के लिहाज से भी मुफीद है। उनका कहना है कि भाजपा सत्ता में है, इसलिए उनके चुनावी कार्यक्रम और बड़ी-बड़ी योजनाओं के शुभारंभ और उद्घाटन दिख जाते हैं, जबकि कांग्रेस उनसे ज्यादा मेहनत करके जनता के बीच पहुंच रही है।
लेकिन जमीनी हकीकत तो फिलहाल यही बताती है कि भाजपा ने चुनाव प्रचार अभियान में विपक्षियों पर भारी बढ़त बना ली है। अब विपक्षी दल जब वास्तविक चुनाव प्रचार में उतरेंगे, तब तक भाजपा दूसरे चक्र का अभियान शुरू कर चुकी होगी और यही रणनीति उसे विधानसभा चुनावों में सफलता की राह पर आगे बढ़ायेगी।