विशेष
अभी संयुक्त राष्ट्र विकास परिषद की देखरेख में तैयार की गयी वैश्विक भूख सूचकांक, यानी ग्लोबल हंगर इंडेक्स और इसमें भारत की खराब स्थिति पर खूब चर्चा हो रही है। विपक्ष मोदी सरकार को इस मुद्दे पर लगातार घेर रहा है, जबकि केंद्र सरकार ने इस रिपोर्ट को यह कह कर खारिज कर दिया है कि यह बहुत कम आबादी के सैंपल पर आधारित है। इसलिए इसकी विश्वसनीयता संदिग्ध है। लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि इस रिपोर्ट में भारत सरकार द्वारा इस दिशा में किये जा रहे प्रयासों और अभियानों के बारे में कोई चर्चा तक नहीं की गयी है। यह किसी के लिए भी सोचनेवाली बात हो सकती है कि करीब 65 लाख करोड़ रुपये की दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था, जहां प्रति व्यक्ति आय 91 हजार रुपये से अधिक है और जिसका सकल घरेलू उत्पाद 32.4 फीसदी की दर से बढ़ रहा है, वहां के लोगों को भूखे रहना पड़ता है। क्या यह मानने वाली बात हो सकती है कि जिस देश की सरकार मनरेगा जैसी रोजगार गारंटी योजना पर 98 हजार करोड़ रुपये खर्च करती है, 80 करोड़ लोगों को पिछले दो साल से मुफ्त अनाज दे रही है और करीब 60 करोड़ किसानों को हर महीने दो हजार रुपये का भुगतान किया जा रहा हो, वहां इतनी बड़ी संख्या में लोग भूखे रह सकते हैं। तो फिर इस तरह की रिपोर्ट को जारी करने और फिर इस पर हाय-तौबा मचाने का एक ही मकसद नजर आता है और वह है भारत को बदनाम करने की अंतरराष्ट्रीय साजिश। इस तरह की रिपोर्ट से लगातार ताकतवर होते भारत की छवि को खराब करने की सुनियोजित साजिश की जा रही है। आखिर क्या है यह भुखमरी रिपोर्ट, जिसमें भारत को श्रीलंका और पाकिस्तान और बांग्लादेश से भी पीछे बताया गया है, यह जानना बहुत जरूरी है। इस रिपोर्ट के तमाम पहलुओं को सामने लाते हुए भारत की स्थिति का विश्लेषण कर रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
क्या कोई सामान्य व्यक्ति आज के जमाने में खुद भूखे रह कर दूसरों का पेट भरने का संकल्प लेगा! इस सवाल का जवाब जितना आसान है, उतना ही साफ भी। यह सवाल संयुक्त राष्ट्र विकास परिषद की देखरेख में तैयार ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत की कमजोर स्थिति के आलोक में महत्वपूर्ण हो जाता है। वैश्विक महामारी के दौर में जिस भारत ने दुनिया के 33 देशों को गेहूं का और 55 देशों को चावल, दलहन और अन्य खाद्यान्नों का निर्यात किया, वहां के लोग भूखे रह सकते हैं, यह माननेवाली बात हो ही नहीं सकती। लेकिन फिर आखिर इस रिपोर्ट में भारत को उसके लगभग दिवालिया हो चुके पड़ोसियों, पाकिस्तान और श्रीलंका से भी पीछे क्यों बताया गया है, यह सोचनेवाली बात है।
भारत सरकार ने खारिज की रिपोर्ट
भारत सरकार ने हालांकि इस रिपोर्ट को खारिज कर दिया है। सरकार का कहना है कि यह सरकार को बदनाम करने की साजिश का हिस्सा है। केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने इसे गलतियों का पुलिंदा करार दिया है। उसका कहना है कि यह रिपोर्ट गलत और भ्रामक सूचनाओं पर आधारित है। सूचकांक के मापदंड और कार्यप्रणाली भी वैज्ञानिक नहीं हैं। मंत्रालय का कहना है कि इसके चार संकेतकों में से तीन बच्चों से जुड़े हैं, जो संपूर्ण आबादी की जानकारी नहीं देते हैं। मंत्रालय के मुताबिक चौथा और सबसे अहम सूचकांक कुल जनसंख्या में कुपोषित आबादी का है। यह केवल तीन हजार लोगों के बहुत ही छोटे सैंपल पर किये गये जनमत सर्वेक्षण पर आधारित है। इसलिए इसे विश्वसनीय नहीं माना जा सकता है।
लेकिन सरकार के इस नजरिये से विपक्ष को कोई मतलब नहीं है। उसने इस झूठ के पुलिंदे को ही विश्वसनीय मान लिया है और सरकार को घेर रहा है, जबकि उसके पास इन तर्कों का कोई जवाब नहीं है कि भारत सरकार पिछले दो साल से अपने 80 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन दे रही है। यह दुनिया की सबसे बड़ी मुफ्त खाद्यान्न योजना है। ऐसे में इतनी बड़ी संख्या में भारतीय भूखे कैसे रह सकते हैं।
कैसी है भारत की अर्थव्यवस्था
वैसे भी यदि भारतीय अर्थव्यवस्था पर नजर दौड़ायी जाये, तो यह कहीं से भी पाकिस्तान, श्रीलंका, नेपाल और बांग्लादेश से खराब नहीं है। भारत की वर्तमान अर्थव्यवस्था का आकार करीब 65 लाख करोड़ रुपये है, जबकि यहां की प्रति व्यक्ति आय 91 हजार 481 रुपये है। भारत का सकल घरेलू उत्पाद 32.4 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है और यह दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। यह भी ध्यान देनेवाली बात है कि जिस देश में 98 हजार करोड़ रुपये मनरेगा जैसी रोजगार गारंटी योजना पर प्रति वर्ष खर्च किये जा रहे हों और 60 करोड़ किसानों को हर महीने दो-दो हजार रुपये दिये जा रहे हों, वहां कोई व्यक्ति, चाहे वह किसी भी सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि का हो, भूखा कैसे रह सकता है।
क्या है भारत की स्थिति
वैश्विक भूख सूचकांक यानी जीएचआइ में भारत 107वें स्थान पर खिसक गया है। पिछली बार के मुकाबले भारत छह पायदान नीचे है। जीएचआइ के लिए दुनिया के 136 देशों से आंकड़े जुटाये गये। इनमें से 121 देशों की रैंकिंग की गयी। बाकी 15 देशों से समुचित आंकड़े नहीं होने के कारण उनकी रैंकिंग नहीं की जा सकी। इस रैंकिंग में भारत अपने लगभग सभी पड़ोसी देशों से पीछे है। केवल अफगानिस्तान से ही भारत की स्थिति थोड़ी सी बेहतर है। अफगानिस्तान इस सूची में 109वें स्थान पर है। 29.1 स्कोर के साथ जीएचआइ के प्रकाशकों ने भारत में ‘भूख’ की स्थिति को गंभीर बताया है।
क्या है भुखमरी रिपोर्ट या जीएचआइ
सन 2000 से लगभग हर साल जीएचआइ जारी होता है। इस रिपोर्ट में जितना कम स्कोर होता है, उस देश का प्रदर्शन उतना बेहतर माना जाता है। कोई देश भूख से जुड़े सतत विकास लक्ष्यों को कितना हासिल कर पा रहा है, इसकी निगरानी करने का साधन वैश्विक भूख सूचकांक (ग्लोबल हंगर इंडेक्स) यानी जीएचआइ है। इसका इस्तेमाल अंतरराष्ट्रीय रैंकिंग के लिए किया जाता है। जीएचआइ किसी देश में भूख के तीन आयामों को देखता है। पहला, देश में भोजन की अपर्याप्त उपलब्धता, दूसरा, बच्चों की पोषण स्थिति में कमी और तीसरा, बाल मृत्यु दर (जो अल्पपोषण के कारण है)।
जीएचआइ रैंकिंग दी कैसे जाती है?
जहां तक रैंकिंग दिये जाने की बात है, तो यह चार पैमानों पर दी जाती है। कुल जनसंख्या में कुपोषितों की आबादी कितनी है, पांच साल से कम उम्र के बच्चों में समुचित शारीरिक विकास नहीं होने की समस्या कितनी है, पांच साल से कम उम्र के बच्चों में लंबाई नहीं बढ़ने की समस्या कितनी है और पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर कितनी है। इन मानकों पर अलग-अलग देशों को 100-बिंदु पैमाने पर रैंक किया जाता है। इसमें शून्य और 100 क्रमश: सर्वश्रेष्ठ और सबसे खराब संभव स्कोर हैं। नौ या नौ से कम स्कोर का मतलब उस देश में स्थिति बेहतर है। भूख की समस्या कम है। 10 से 19.9 तक के स्कोर वाले देशों में भूख की समस्या नियंत्रित स्थिति में मानी जाती है। 20.0 से 34.9 के बीच वाले स्कोर वाले देशों में भूख की समस्या गंभीर मानी जाती है। वहीं, 35.0 से 49.9 के बीच स्कोर वाले देशों में भूख की समस्या खतरनाक, तो 50 से ज्यादा बेहद खतरनाक मानी जाती है।
इस बार सबसे बेहतर रैंकिंग किन देशों की है?
इस बार की रैंकिंग में 17 देशों का जीएचआइ स्कोर 5 से कम है। इन सभी देशों को अलग-अलग रैंकिंग नहीं देकर सभी को एक से 17 की रैंकिंग दी गयी है। जीएचआइ की ओर से कहा गया है कि इन देशों के बीच आंकड़ों में अंतर बहुत कम है। इन 17 देशों में बेलारूस, बोस्निया और हर्जेगोविना, चिली, चीन, क्रोएशिया, एस्टोनिया, हंगरी, कुवैत, लातविया, लिथुआनिया, मोंटेनेग्रो, उत्तरी मैसेडोनिया, रोमानिया, सर्बिया, स्लोवाकिया, तुर्की और उरुग्वे शामिल हैं।
सबसे खराब रैंकिंग वाले देश कौन से हैं?
दुनिया के नौ देश ऐसे हैं, जहां भूख की समस्या खतरनाक स्तर पर है। यानी इन देशों का जीएचआइ स्कोर 35.0 से 49.9 के बीच है। इन देशों में चाड, कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य, मेडागास्कर, मध्य अफ्रीकी गणराज्य, यमन, बुरुंडी, सोमालिया, दक्षिण सूडान, सीरियाई अरब गणराज्य शामिल हैं। इनमें चाड, कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य, मेडागास्कर, मध्य अफ्रीकी गणराज्य और यमन को क्रमश: 117 से 121 तक की रैंकिंग मिली है। बाकी देशों को डाटा कम होने के कारण रैंकिंग नहीं दी गयी है।
भारत और उसके पड़ोसी देशों का क्या हाल है?
भारत के पड़ोसी देशों की बात की जाये, तो पाकिस्तान, श्रीलंका, बांग्लादेश, नेपाल, म्यांमार की स्थिति इससे बेहतर है। 121 देशों की सूची में श्रीलंका 64वें, म्यांमार 71वें, नेपाल 81वें, बांग्लादेश 84वें और पाकिस्तान 99वें स्थान पर है। भारत से पीछे सिर्फ अफगानिस्तान है। अफगानिस्तान 109वें नंबर पर है। चीन की बात करें, तो चीन दुनिया के उन देशों में शामिल है, जहां इसकी समस्या कम है। चीन एक से 17 की रैंकिंग पाने वाले देशों में शामिल है। वहीं, भूटान उन देशों में शामिल है, जहां ये रैंकिंग नहीं निकाली गयी है।
अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस जैसे देशों में क्या स्थिति है?
जीएचआइ में 136 देशों का सर्वे किया गया है। 2021 में 116 देशों के मुकाबले इस बार देशों में इजाफा हुआ है। इसके अलावा कई देश ऐसे हैं, जो इसमें शामिल नहीं हैं। इनमें अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस जैसे कई देश शामिल हैं। भारत का पड़ोसी देश भूटान भी ऐसे देशों में शामिल है।
बीते दो दशक में भारत की रैंकिंग और जीएचआइ स्कोर कितना सुधरा या बिगड़ा है?
2000 से इस रैंकिंग की शुरूआत हुई। इसका उद्देश्य 2030 तक दुनिया भर में भुखमरी की समस्या को खत्म करना था। तब भारत का जीएचआइ स्कोर 38.8 था, जो 2007 आते-आते घट कर 36.3 हो गया। 2014 में यह स्कोर खतरनाक स्तर से नीचे आया। 2014 में यह स्कोर 28.2 था। तब भारत गंभीर श्रेणी के देशों में शामिल था। यह अभी भी गंभीर स्तर पर बरकरार है, हालांकि इस स्कोर में इजाफा (29.1) हुआ है।
जिन चार संकेतकों के आधार पर यह रैंकिंग तैयार की जाती है, उनमें दो में भारत लगातार सुधार कर रहा है। इनमें बच्चों की मृत्यु दर और लंबाई नहीं बढ़ने की समस्या शामिल है। इसके बाद भी बीते आठ साल में भारत के जीएचआइ स्कोर में इजाफा हुआ है। इसकी वजह बच्चों के समुचित शारीरिक विकास में कमी के मामले बढ़ने और कुल जनसंख्या में कुपोषित आबादी की समस्या बढ़ने को बताया गया है।
इस साजिश को समझने की जरूरत है
अब इस रिपोर्ट के बहाने भारत की छवि को बिगाड़ने की कोशिश को समझने की जरूरत है। पिछले आठ सालों में दुनिया भर में भारत की स्थिति बहुत बेहतर हुई है। अब दुनिया का कोई भी देश भारत की उपेक्षा करने या इसका कूटनीतिक विरोध करने की स्थिति में नहीं है। यहां तक कि चीन और पाकिस्तान जैसे स्वाभाविक शत्रु देश भी भारत की आर्थिक ताकत को मानने लगे हैं और इसकी मुखालफत का खतरा मोल नहीं ले सकते। इसलिए इस तरह की अधूरी और निराधार जानकारी से भरी हुई रिपोर्ट के जरिये भारत को कमजोर करने की कोशिश की जा रही है। भारत के विपक्षी दलों को इसे समझने की जरूरत है।