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140 करोड़ लोगों का देश और दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र अपनी संसद के निचली सदन, यानी लोकसभा के लिए चुनाव की तैयारी में जुट गया है। हालांकि इसमें अभी डेढ़ साल से अधिक का वक्त है, फिर भी राजनीतिक दलों के भीतर माहौल चुनावी होने लगा है। इन तमाम चुनावी और राजनीतिक हलचलों के बीच एक बात ध्यान देने की है। यह बात है राजनीति की धारा में आये बदलाव की। यह बदलाव 2014 के बाद आया, जब भारतीय जनता पार्टी पहली बार प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में आयी और प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र दामोदर दास मोदी ने पदभार संभाला। उस समय मोदी मैजिक को कांग्रेस या यूपीए के खिलाफ नकारात्मक माहौल का परिणाम बताया गया, लेकिन पांच साल बाद 2019 में जब यह मैजिक बरकरार रहा, तब राजनीतिक पंडितों को यह कहने पर मजबूर होना पड़ा कि भारत का राजनीतिक परिदृश्य सचमुच में बदल रहा है। उसके करीब साढ़े तीन साल बाद, यानी आज यदि इस पूरे परिदृश्य पर नजर दौड़ायी जाये, तो एक बात शीशे की तरह साफ हो जाती है कि भारत के राजनीतिक क्षितिज का अप्रत्याशित रूप से ध्रुवीकरण हुआ है। इसके एक ध्रुव पर नरेंद्र मोदी हैं और दूसरे ध्रुव पर तमाम दूसरे विपक्षी दल। आजादी के बाद या फिर 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस की प्रचंड लोकप्रियता के दौर में भी ऐसा ध्रुवीकरण नहीं हुआ था। आज हालत यह है कि हर विपक्षी दल के हर नेता-कार्यकर्ता के निशाने पर प्रधानमंत्री मोदी हैं और हर कोई सीधे उनसे ही सवाल कर रहा है। राजनीति का यह ध्रुवीकरण भले ही लोकतांत्रिक व्यवस्था के अनुकूल नहीं हो, लेकिन इससे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार मजबूत होते दिख रहे हैं। उनके नेतृत्व में भाजपा चुनाव-दर-चुनाव अपनी विजय पताका फहराती जा रही है। मोदी की बढ़ती लोकप्रियता के इसी पहलू को रेखांकित कर रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
दुनिया में दूसरी सर्वाधिक आबादी वाले देश भारत का राजनीतिक माहौल इन दिनों गर्माता जा रहा है। 18वीं लोकसभा के लिए चुनाव होने में हालांकि अभी डेढ़ साल से अधिक का वक्त है, लेकिन राजनीतिक दलों की गतिविधियां हर दिन तेज हो रही हैं। विधानसभा चुनावों के नाम पर ही चुनावी मशीनरी को चुस्त-दुरुस्त बनाया जा रहा है। इन तमाम हलचलों के बीच एक बात ध्यान देने लायक है कि एक व्यक्ति, जिसके कंधे पर पिछले साढ़े आठ साल से देश का नेतृत्व करने की जिम्मेवारी है, अपने कर्तव्य पथ पर निर्विकार भाव से आगे बढ़ता जा रहा है। इस व्यक्ति का नाम है नरेंद्र दामोदर दास मोदी, जिसे अब न तारीफों से कोई फर्क पड़ता है और न आरोपों-आलोचनाओं से कोई अंतर पड़ता है। लेकिन बहुत कम लोग यह जानते और समझते हैं कि यही निर्विकार भाव मोदी की ताकत है।
भारत की राजनीति आजादी के बाद 1952 के पहले आम चुनाव से लेकर अब तक विविधता से भरी रही है। इसके कई रंग सामने आये हैं, लेकिन 2014 के बाद इसमें एक खास बदलाव आया है। यह बदलाव सकारात्मक है या नकारात्मक, यह बहस का मुद्दा हो सकता है, लेकिन इस बदलाव के केंद्र में पीएम मोदी हैं, इस पर कोई विवाद नहीं है। यह मोदी की राजनीति और उनके व्यक्तित्व का ही कमाल है कि भारत की राजनीति आज विविधता से भरी नहीं, बल्कि पूरी तरह ध्रुवीकृत हो गयी है। इसमें एक ध्रुव पर मोदी हैं, तो दूसरे पर बाकी सभी विपक्षी दल। इस परिस्थिति में स्वाभाविक है कि विपक्षी दलों के निशाने पर मोदी रहें, लेकिन यह मोदी की राजनीतिक शैली है कि उन्होंने इसी परिस्थिति को अपनी ताकत बना लिया है।
2014 के मई महीने में आम चुनावों का परिणाम घोषित होने के बाद कहा गया था कि भाजपा की जीत दरअसल कांग्रेस और यूपीए के खिलाफ नकारात्मक वोटिंग का परिणाम है। लेकिन 2019 के चुनाव में प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में भाजपा की वापसी के समय ही मोदी की इस राजनीतिक शैली की धमक महसूस की जाने लगी थी। यही कारण है कि कांग्रेस के अलावा तृणमूल कांग्रेस, बीजू जनता दल, जनता दल (यूनाइटेड), एआइएडीएमके, डीएमके, वामपंथी दल, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, आम आदमी पार्टी जैसे मजबूत क्षेत्रीय दल और उनके बड़े नेता आज भी नरेंद्र मोदी को कई सारे मौजूं सवालों पर कड़ी चुनौती नहीं दे पा रहे हैं।
क्या बदलाव किया पीएम मोदी ने
पीएम मोदी ने राजनीतिक धारा में जो बदलाव किया है, उसका उदाहरण इन दिनों अकसर देखने को मिल जाता है। आज विपक्ष का हर नेता, चाहे वह छोटा हो या बड़ा, सीधे मोदी पर ही निशाना साधता है। 2014 से पहले की राजनीति में होता यह था कि स्थानीय स्तर का नेता स्थानीय समस्याओं की बात करता था और यह क्रम शीर्ष स्तर तक पहुंचता था। मसलन पंचायत का नेता पंचायत की समस्याओं को लेकर आवाज उठाता था, तो जिला स्तर का नेता अपने जिले के मुद्दे को लेकर मुखर होता था। प्रदेश स्तर का नेता प्रादेशिक मुद्दों को उठाता था, जबकि केंद्रीय स्तर का नेता केंद्र सरकार के कामकाज पर नजर रखता था। इससे आम लोग भी संतुष्ट थे, क्योंकि उनकी समस्याओं, उनकी बातों और उनके मुद्दों को मुख्य धारा की राजनीति में पर्याप्त जगह मिल जाती थी। लेकिन आज स्थिति यह है कि पंचायत स्तर का नेता भी सीधे पीएम मोदी पर ही निशाना साधता है। इन नेताओं के पास अब स्थानीय स्तर की समस्याओं और मुद्दों को उठाने के लिए न वक्त है और न नजरिया। उन्हें लगने लगा है कि सीधे प्रधानमंत्री मोदी पर निशाना साधने से स्थानीय लोगों के साथ उनके दलों में भी उनका कद बढ़ेगा। यह उनकी खुशफहमी ही है, क्योंकि इस तरह की राजनीति का सीधा परिणाम यह हुआ है कि अब लोगों के सामने केवल मोदी का नाम ही गूंजता है, चाहे भाजपाई के मुंह से हो या विपक्ष के मुंह से। देश के किसी भी हिस्से में होनेवाली किसी भी घटना के लिए सीधे पीएम मोदी को जिम्मेदार ठहराया जाने लगा है। इसी ध्रुवीकृत राजनीति को पीएम मोदी ने अपनी ताकत बना ली है।
आज पीएम मोदी यदि दुनिया के सबसे लोकप्रिय नेता हैं, तो इसके पीछे यही राजनीतिक ध्रुवीकरण है। आज हर वाक्य, हर वाकये और हर विवाद में मोदी का नाम लिया जाता है, तो लोगों को लगने लगा है कि यह ऐसा कोई करिश्माई नेता है, जो हर काम कर सकता है। शायद यही कारण है कि पीएम मोदी विपक्ष की आलोचनाओं से न तो विचलित होते हैं और न आरोपों का कोई जवाब देते हैं। उनका निर्विकार रहना ही उनका सबसे बड़ा हथियार बन गया है और राजनीतिक जीवन के लिए टॉनिक भी। उनके लिए रक्षा कवच बनते हैं आम लोग, जो पिछले साढ़े आठ साल से उनके पीछे चट्टान की तरह खड़े हैं।