सुप्रीम कोर्ट ने रेप मामलों में पुष्टि के लिए पीड़िता का टू फिंगर टेस्ट कराने की कड़ी निंदा की है. कोर्ट ने कहा कि यह पितृसत्तात्मक सोच का नतीजा है. ऐसा कराने वालों पर कानूनी कार्रवाई की जानी चाहिए.

वर्तमान में भारत की कानून व्यवस्था के अंतर्गत रेप केस की पुष्टि के लिए पीड़िता का टू फिंगर टेस्ट कराया जाता है. टू फिंगर टेस्ट का सहारा लेने वाले लोगों को सुप्रीम कोर्ट ने फटकार लगायी है. कोर्ट ने कहा कि जो ऐसा करता है, उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए क्योंकि इस तरह का टेस्ट पीड़िता को दोबारा यातना देने जैसा है.
बता दें इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में इस टेस्ट को असंवैधानिक करार दिया था. कोर्ट ने टू-फिंगर टेस्ट की जगह वैकल्पिक तरीके अपनाने को कहा था. 2014 में केंद्र सरकार की तरफ से बनाए गए दिशानिर्देश में भी इसकी मनाही की गई थी. कोर्ट ने कहा यह टेस्ट अवैज्ञानिक है. इससे महिला को दोबारा परेशान किया जाता है. क्या ऐसी महिला जो अपनी इच्छा से शारिरिक संबंध बनाती हो, उसका बलात्कार नहीं हो सकता?”

 

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