विशेष
निजी आरोप-प्रत्यारोप की जगह रचनात्मक मुद्दों पर रहते हैं एक्टिव
आजसू के महाधिवेशन ने साबित किया अंतिम लक्ष्य के प्रति पार्टी का नजरिया
पार्टी का एक-एक कार्यकर्ता झारखंडी हितों के लिए है सजग
22 जून 1986 को सोनारी, जमशेदपुर में जिस आजसू पार्टी की नींव पड़ी, आज वह एक विशाल पेड़ बन चुका है। रांची के मोरहाबादी मैदान में संपन्न पार्टी के महाधिवेशन में कुछ ऐसा ही नजारा था। लेकिन सबसे रोचक यह जानना है कि स्थापना काल से ही राजनीति की प्रयोगशाला के रूप में दुनिया भर में चर्चित झारखंड की सियासत में आजसू पार्टी की इतनी चर्चा क्यों होती है। पारंपरिक राजनीति के रास्ते पर चल रहे झारखंड के राजनीतिक दल अपनी-अपनी रणनीति के अनुसार बयानबाजी में उलझे तो हैं, लेकिन आजसू पार्टी भीड़ से अलग नजर आती है। आजसू पार्टी का झारखंड की राजनीति में अलग स्थान इसलिए बन गया है, क्योंकि इसके नेता न तो अनर्गल बयानबाजी करते हैं और न ही आरोप-प्रत्यारोप में अपना समय जाया करते हैं। पार्टी अध्यक्ष सुदेश महतो और दूसरे नेता रचनात्मक कार्यक्रमों के जरिये हर दिन आम लोगों से जुड़ रहे हैं और ऐसे मुद्दे उठाते हैं, जिनका सरोकार सीधे जनता से है। सुदेश ने महाधिवेशन में जो कुछ कहा, उसका लब्बो-लुआब यह है कि चुनाव में पार्टी के प्रदर्शन से आजसू पार्टी बहुत कुछ सीख चुकी है और अब वह अपने किस्म की सियासत कर रही है, ताकि उसकी खोयी हुई जमीन दोबारा हासिल हो सके। यह सुदेश और आजसू पार्टी की रणनीति का ही परिणाम है कि आज झारखंड की करीब साढ़े चार हजार पंचायतों में पार्टी का संगठन बाकायदा सक्रिय है और लगातार लोगों से जुड़ कर काम कर रहा है। समाज के हर वर्ग में पार्टी की पैठ बन गयी है। सुदेश की इस रणनीति ने भारत की पारंपरिक राजनीतिक सोच और तरीके को झकझोर कर रख दिया है। आजसू पार्टी ने वास्तव में झारखंड में हमेशा अलग किस्म की राजनीति की है। इसका लाभ भी आजसू को होता दिख रहा है। यह सुदेश महतो की सकारात्मक सोच और मुद्दा आधारित राजनीति का ही असर है कि झारखंड के बड़े दलों के नेताओं के साथ ही वह भी पहली पंक्ति में शुमार हैं, भले ही उनके विधायकों की संख्या कम है, लेकिन नेता के रूप में सुदेश महतो ने अपनी एक अलग पहचान बनायी है।
आक्रामक राजनीति के इस दौर में आजसू पार्टी को इस मुद्दा आधारित राजनीति से कितना चुनावी लाभ होगा, यह तो अभी नहीं कहा जा सकता, लेकिन झारखंड की राजनीति में नयी लकीर खींचने का श्रेय तो हमेशा उसे मिलेगा ही। सुदेश महतो की इसी राजनीति के संभावित परिणाम का विश्लेषण कर रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
यदि आज झारखंड के संदर्भ में किसी से पूछा जाये कि आज राज्य का सबसे बड़ा राजनीतिक मुद्दा क्या है, तो उसे उत्तर सोचने में कुछ देर लगेगी, लेकिन यही सवाल यदि आजसू पार्टी के अध्यक्ष सुदेश महतो या उनकी पार्टी के किसी नेता से पूछा जाये, तो उन्हें जवाब देने में तनिक भी देर नहीं लगेगी, क्योंकि उनके लिए संसाधनों में हिस्सेदारी, नीति-निर्णय में भागीदारी और सबके लिए समान अवसर सृजित करना ही झारखंड का सबसे बड़ा मुद्दा है। आजसू पार्टी का यही नजरिया उसे दूसरे राजनीतिक दलों से अलग करता है, क्योंकि वह हमेशा ही अलग किस्म की राजनीति पर भरोसा करती है। यह अलग बात है कि इसका चुनावी लाभ उसे मिलता है या नहीं, लेकिन आजसू पार्टी और उसका एक-एक नेता पार्टी के उद्देश्यों को लेकर स्पष्ट है।
आजसू पार्टी की अलग किस्म की राजनीति की स्पष्ट झलक एक दिन पहले संपन्न पार्टी के महाधिवेशन से भी मिलती है। रांची के मोरहाबादी मैदान में आयोजित इस महाधिवेशन के जरिये आजसू पार्टी ने साफ कर दिया कि वह लंबे राजनीतिक संघर्ष के लिए न सिर्फ तैयार है, बल्कि उसके पास झारखंड के प्रति एक दृष्टिकोण भी है। महाधिवेशन में पारित दो दर्जन राजनीतिक प्रस्तावों से साफ हो गया है कि आजसू पार्टी केवल सत्ता परिवर्तन की बात नहीं करती है, बल्कि विकल्प भी देती है। इसलिए आजसू पार्टी मानती है कि झारखंड की माटी के प्रति प्रेम जगाने का समय आ गया है। वह झारखंड को संवारने की तरफ आगे बढ़ रही है। पार्टी महाधिवेशन में पारित राजनीतिक प्रस्तावों पर नजर दौड़ाने से साफ हो जाता है कि आजसू पार्टी को केवल झारखंड से मतलब है। इसलिए वह पांच किलो चावल और धोती-साड़ी देकर झारखंडियों को हाशिये पर रखने के आदिवासी दर्शन के खिलाफ है। आजसू पार्टी का आदिवासी दर्शन क्रांतिकारी सिदो-कान्हू, वीर बिरसा, बुधू भगत, जयपाल सिंह, टाना भगत आदि हैं। पार्टी का एजेंडा गांव, चौपाल और पंच हैं। इसलिए आजसू पार्टी मानती है कि अलग राज्य का बंटवारा भौगोलिक हिस्सेदारी नहीं, बल्कि झारखंडी अस्मिता, वजूद, जल, जंगल, जमीन की रक्षा और मूलवासियों के हितों को सुरक्षित करना था।
आजसू पार्टी की राजनीति जनता के सवालों और विषयों पर चर्चा के साथ सुलझाना और विकास है। वह केवल वोट की राजनीति नहीं करती है। समाज के सभी वर्गों को साथ लेकर चलने की आजसू पार्टी की नीति के कारण उसे अपेक्षित चुनावी सफलता भले नहीं मिल रही है, लेकिन पार्टी का जनाधार लगातार बढ़ रहा है।
शायद यही वजह है कि आजसू पार्टी का राजनीतिक महत्व लगातार बढ़ता ही जा रहा है। भाजपा जैसी दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी भी आजसू पार्टी को सहयोगी के रूप में साथ लेने को उत्सुक ही नहीं रहती है, हमेशा तरजीह देती है।
सुदेश महतो और उनकी पार्टी हमेशा झारखंड के गांवों से जुड़ कर काम कर रहे हैं, इसलिए झारखंड की साढ़े चार हजार के करीब ग्राम पंचायतों में उसका संगठन सक्रिय है और आम लोग सीधे पार्टी के नेताओं से जुड़ कर अपनी बात करते हैं और सुनते हैं।
आजसू पार्टी का यही नजरिया सुदेश महतो को झारखंड की राजनीति का ‘डार्क हॉर्स’ बनाता है। सुदेश महतो ने झारखंड बनने के बाद से एक कुशल राजनीतिज्ञ के रूप में अपनी अलग पहचान स्थापित की है। अपने गृह क्षेत्र सिल्ली से लगातार दो बार विधानसभा का चुनाव हारने के बावजूद उन्होंने पार्टी के साथ-साथ अपना हौसला भी बनाये रखा। उन्होंने यह स्थापित किया है कि सांसद और विधायक कोई भी बन सकता है, लेकिन नेता वही बनता है, जिसमें नेतृत्व क्षमता होती है। सांसद-विधायक नेता नहीं बनाते, बल्कि नेता सांसद और विधायक बनाता है। सुदेश महतो ने हमेशा मुद्दों की राजनीति की है और गंभीरता से अपनी पार्टी की रणनीति निर्धारित की है। विधानसभा में भी उनकी बात सभी पक्ष के सदस्य गंभीरता से सुनते हैं। अपने एक-एक कार्यकर्ता के साथ कंधे से कंधा मिला कर खड़ा रहना सुदेश के विशिष्ट गुणों में शामिल है। उनकी यही कार्यशैली उन्हें दूसरे राजनेताओं से अलग करती है। उन्होंने पिछले पांच-छह साल में अपनी पार्टी का जिस रफ्तार से विस्तार किया है, वह किसी अचंभे से कम नहीं है। आज की तारीख में आजसू का संगठन झारखंड के हरेक गांव में है और यह केवल नाम के लिए नहीं है, बल्कि पूरी तरह सक्रिय है। यह सुदेश महतो की रणनीति का ही असर है कि भाजपा के साथ रहने के बावजूद आज झारखंड का मुसलमान भी आजसू का समर्थक है, उसकी नीतियों से प्रभावित है। अभी हाल ही में ए अली ने आजसू का दामन थामते वक्त जो कुछ कहा, वह सुदेश महतो की कार्यशैली की विशिष्टता को उजागर करता है।
सुदेश महतो ने अपनी राजनीति के लिए जो धारा तय की है, वह इसलिए अनोखी है, क्योंकि इसमें न आरोप-प्रत्यारोप है और न बयानबाजी। जमीन पर रह कर काम करना और सीधे जनता से जुड़ाव ही इस राजनीति का आधार है।
तभी तो पार्टी आक्रामक राजनीति के इस दौर में धीर-गंभीर मुद्दों को तरजीह दे रही है, पिछड़े वर्ग का सम्मेलन आयोजित करती है, झारखंड के हितों की बात करती है। एक तरफ दूसरे दल सामान्य मुद्दों पर आरोप-प्रत्यारोप कर रहे हैं, तो सुदेश महतो राज्य के संसाधनों में हिस्सेदारी, नीति-निर्णय में भागीदारी और सबके लिए समान अवसर सृजित करने जैसी बात कर रहे हैं। वह सामाजिक न्याय के मुद्दे पर संघर्ष करनेवाले संगठनों को गोलबंद कर एक मंच पर लाने और झारखंड के हितों के लिए लगातार संघर्ष करने की बात कह रहे हैं।
दरअसल, आजसू सुप्रीमो सुदेश महतो हमेशा से ऐसे मुद्दों की तलाश में रहते हैं, जिन पर काम कर पार्टी को लगातार विस्तार दिया जा सके। 2019 के विधानसभा चुनाव से पहले भी सुदेश महतो लगातार पदयात्रा कर आम लोगों से जीवंत संपर्क में रहे थे। यही कारण है कि आजसू का संगठन आज झारखंड के हर गांव में है। सुदेश की दूर की राजनीति की रणनीति ने कई बार साबित किया है कि आजसू लीक से हट कर चलती है। इस बार आरक्षण और नियोजन जैसे मुद्दे उठा कर सुदेश ने एक बार फिर यही बात साबित की है और उनके फैसले ने बाकी दलों को पीछे छोड़ दिया है।
आजसू को इन मुद्दों पर आंदोलन करने का दोहरा लाभ मिलेगा और इसका असर अगले चुनाव में देखने को मिल सकता है। पहला लाभ तो यह होगा कि पार्टी केवल इन दो मुद्दों को जीवित रख कर ही सत्ताधारी गठबंधन को ही नहीं, विपक्षी दल को भी घेर सकती है। झामुमो और कांग्रेस के साथ भाजपा को चुनाव से पहले किये गये वादे की याद दिला कर आजसू पार्टी अपने लिए बड़े ठोस जनाधार का पक्का इंतजाम कर सकती है।
यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि पिछले 23 साल में केवल आजसू ने ही राजनीति की अलग लकीर खींची है और कदम-दर-कदम चल कर इसने अपना स्थान हासिल किया है। आगे का समय भी आजसू का हो सकता है, लेकिन उसके लिए उसे लंबा सफर तय करने को तैयार रहना होगा। आजसू के लिए सुकूद देनेवाली बात यह है कि सुदेश महतो राजनीतिक हड़बड़ी में नहीं हैं और वह किसी शार्टकट रास्ते से ऊंची उड़ान भरना नहीं चाहते। वह जानते हैं कि इससे तात्कालिक लाभ तो मिल सकता है, लेकिन उसके खतरे ज्यादा हैं। यही कारण है कि कई अवसरों पर सुदेश महतो ने सिर्फ कुर्सी के लिए समझौता नहीं किया। वह चाहते तो उन्हें हर सरकार में कुर्सी मिल सकती थी, लेकिन उन्होंने स्व लाभ के लिए मÞुद्दों और विचारों की राजनीति को तिलांजलि नहीं दी।