क्या दोनों राज्यों में होनेवाले विधानसभा चुनाव ने डाले हैं रोड़े
आखिर एक भी मौका नहीं छोड़ने वाली कांग्रेस पीछे क्यों हट गयी
नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली है। सीएम के तौर पर उन्होंने दूसरी बार शपथ ली है। जम्मू-कश्मीर के केंद्रशासित प्रदेश बनने के बाद वह सूबे के पहले मुख्यमंत्री बने हैं। लेकिन उनकी सरकार में सहयोगी कांग्रेस शामिल नहीं हुई। इस घटनाक्रम के बाद सियासत में अलग-अलग मायने निकाले जा रहे हैं। अटकलों के बाजार में अपने-अपने आकलन भी निकाले जा रहे हैं। आखिर क्या कारण है कि कांग्रेस के समर्थन के बावजूद राज्य में इंडी गठबंधन की सरकार नहीं बनी! वैसे चुनाव के दौरान तो दोनों पार्टियां साथ मिल कर चुनाव लड़ी थीं, तो फिर कांग्रेस सरकार में क्यों शामिल नहीं हुई। कांग्रेस की तरफ से अब्दुल्ला कैबिनेट में कोई भी मंत्री नहीं बना। वो भी तब, जब कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी खुद श्रीनगर जाकर सरकार के शपथग्रहण में शामिल हुए हैं। आखिर क्यों कांग्रेस अब्दुल्ला सरकार में नहीं शामिल हुइध््र इसका कारण टटोलने की कोशिश कर रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
झारखंड और महाराष्ट्र में चुनाव तो कहीं कारण नहीं
उमर अब्दुल्ला ने जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली है, लेकिन देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस उनकी सरकार में शामिल नहीं हुई, जबकि दोनों दलों ने साथ मिल कर चुनाव लड़ा था। वैसे जानकार तो कई तरह के तर्क दे रहे हैं, लेकिन एक बिंदु पर जहां ध्यान केंद्रित हो रहा है वह है आनेवाले दो राज्यों में चुनाव। दरअसल, हरियाणा चुनाव में हार के झटके से उबरने में लगी कांग्रेस नहीं चाहती कि महाराष्ट्र और झारखंड में वह बीजेपी को कोई ऐसा मुद्दा थमा दे, जिस पर वह आक्रामक घेरेबंदी कर सके। उमर अब्दुल्ला के शपथ से पहले जबरदस्त सस्पेंस बना हुआ था। सस्पेंस इस बात पर कि कांग्रेस सरकार में शामिल होगी या नहीं। छन-छन कर खबरें आने लगीं कि पार्टी सरकार में शामिल नहीं होगी। अटकलें लगने लगीं कि नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस में शायद सब कुछ ठीक नहीं है। शपथ समारोह होते ही सब कुछ शीशे की तरह साफ हो गया। कांग्रेस उमर अब्दुल्ला सरकार में शामिल नहीं हुई। आखिर इसके पीछे वजह क्या है? कांग्रेस उमर अब्दुल्ला सरकार का हिस्सा नहीं बनी, उसकी वजह पार्टी चाहे जो बताये, लेकिन हकीकत में वजह महाराष्ट्र और झारखंड के विधानसभा चुनाव हैं। हो सकता है कि बाद में पार्टी सरकार में शामिल हो जाये, लेकिन दो अहम राज्यों के चुनाव से पहले नहीं। कारण यह कि अगर वह सरकार का हिस्सा बनती है तो दोनों राज्यों के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को नेशनल कॉन्फ्रेंस के चुनाव घोषणा पत्र के बहाने से उसे घेरने का बड़ा मौका हाथ लग सकता है। कांग्रेस नहीं चाहती कि नेशनल कॉन्फ्रेंस के चुनावी वादों की सीधी आंच उसे महाराष्ट्र और झारखंड में झेलनी पड़े।
कांग्रेस हरियाणा चुनाव में हार के झटके से नहीं उबरी है!
कांग्रेस अभी हरियाणा चुनाव में हार के झटकों से भी नहीं उबरी है। आखिर कांग्रेस को नेशनल कॉन्फ्रेंस के चुनावी वादों का चुनाव में नुकसान का डर क्यों सता रहा है? जवाब उसी में छिपा है यानी चुनावी वादों में। नेशनल कॉन्फ्रेंस ने आर्टिकल 370 और 35 ए की बहाली की कोशिश का वादा किया है। वादा किया है कि राजनीतिक कैदियों की रिहाई होगी। वादा किया है सार्वजनिक सुरक्षा कानून (पीएसए) को रद्द करने का। भारत और पाकिस्तान के बीच बातचीत आगे बढ़ाने का। जम्मू-कश्मीर के लिए अलग से ध्वज और संविधान की बहाली का। एक वादा ये भी कि शंकराचार्य पर्वत और हरि पर्वत किला के बीच रोपवे चलाया जायेगा। अब रोपवे चलाने में क्या बुराई है लेकिन विवाद नाम का है। नेशनल कॉन्फ्रेंस ने अपने मैनिफेस्टो में शंकराचार्य पर्वत को तख्त-ए-सुलेमान और हरि पर्वत किला को कोह-ए-मारन नाम दिया है। जम्मू-कश्मीर चुनाव के दौरान भी बीजेपी ने नेशनल कॉन्फ्रेंस के मैनिफेस्टो को लेकर कांग्रेस को घेरा था। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी रैली में कहा था कि उनका घोषणापत्र देख कर पाकिस्तान बहुत खुश है। पीएम ने पाकिस्तान के मंत्री ख्वाजा आसिफ के उस बयान का जिक्र किया था, जिसमें उन्होंने कहा था कि आर्टिकल 370 की बहाली के मुद्दे पर नेशनल कॉन्फ्रेंस-कांग्रेस गठबंधन का रुख एकदम पाकिस्तान वाला है। अब अगर कांग्रेस उमर अब्दुल्ला सरकार में शामिल होती तो बीजेपी को उसे महाराष्ट्र और झारखंड चुनाव में भी नेशनल कॉन्फ्रेंस के चुनाव घोषणा पत्र के बहाने से घेरने का मौका मिल जाता। हरियाणा चुनाव में हार के बाद कांग्रेस फूंक-फूंक कर कदम रखना चाहती है। वह बीजेपी को ऐसा कोई मौका नहीं देना चाहती। यही वजह है कि वह उमर अब्दुल्ला सरकार में फिलहाल शामिल नहीं हुई।
राजनीति के जानकारों के अन्य तर्क
राजनीति के जानकारों के अन्य तर्कों के अनुसार जम्मू कश्मीर के चुनावी इतिहास में पहली बार कांग्रेस का प्रदर्शन काफी खराब है। पार्टी छह सीटों पर सिमट गयी है। ऐसे में कहा जा रहा है कि कांग्रेस हाइकमान ने पार्टी के किसी विधायक को कैबिनेट में न शामिल कर स्थानीय नेताओं को जमीन पर मेहनत करने का संदेश दिया है। जम्मू कश्मीर में कांग्रेस कोटे से एक भी हिंदू विधायक नहीं जीता है। ऐसे में पार्टी के सियासी समीकरण सध नहीं रहे थे। कश्मीर का मुस्लिम वोट बैंक पीडीपी और नेशनल कॉन्फ्रेंस के पक्ष में रहा है। उमर अब्दुल्लाह और उनकी पार्टी 370 को वापस लाने के पक्ष में है। कांग्रेस स्टेटहूड की सिर्फ मांग कर रही है। सरकार में पार्टी अगर शामिल होती तो अन्य राज्यों में उसके लिए सियासी बैकफायर कर जाता, इसलिए भी पार्टी ने सरकार में शामिल न होने का फैसला किया है। नेशनल कॉन्फ्रेंस कांग्रेस के एक-दो मंत्री पद देना चाह रही थी। कांग्रेस के दिल्ली में बैठे नेता सांकेतिक भागीदारी नहीं चाहते थे।