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    Home»विशेष»झारखंड की जनता मांगे फुल प्रूफ प्लान
    विशेष

    झारखंड की जनता मांगे फुल प्रूफ प्लान

    shivam kumarBy shivam kumarOctober 5, 2024No Comments9 Mins Read
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    विशेष
    दलों के सामने मुद्दों की हकीकत बताने की चुनौती
    सत्ता पक्ष के काम दिख रहे धरातल पर, विपक्ष को जल्द लाना होगा फुल प्रूफ प्लान

    नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
    15 नवंबर, 2000 को दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के राजनीतिक नक्शे पर 28वें राज्य के रूप में उभरा झारखंड इस समय विधानसभा चुनाव की दहलीज पर खड़ा है। राज्य विधानसभा की 81 सीटों पर चुनाव की घोषणा कभी भी हो सकती है और लोकतंत्र के इस सबसे बड़े अनुष्ठान में आहुति देने के लिए सभी राजनीतिक दल तैयार हैं। झारखंड का यह सियासी युद्ध कितना भीषण होनेवाला है, इसका अंदाजा विभिन्न राजनीतिक दलों की तैयारियों को देख कर ही लगाया जा सकता है। राज्य में सत्तारूढ़ झामुमो-कांग्रेस-राजद का गठबंधन और विपक्षी भाजपा-आजसू की तरफ से इस्तेमाल किये जानेवाले हथियारों, यानी चुनावी मुद्दों की रूपरेखा तय कर ली गयी है। यह तय हो गया है कि झारखंड विधानसभा के आसन्न चुनाव में सत्ता पक्ष की तरफ से आदिवासी अस्मिता और पांच साल के दौरान किये गये कार्यों के साथ केंद्र सरकार द्वारा झारखंड के प्रति किये गये सौतेले व्यवहार जैसे मुद्दे उठाये जायेंगे। जबकि भाजपा-आजसू की तरफ से घुसपैठ, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, बालू-कोयले की तस्करी और गठबंधन सरकार की वादाखिलाफी जैसे मुद्दों पर वोट मांगा जायेगा। चुनावी मुद्दों के इस शोर में झारखंड का मतदाता किस तरफ झुकता है, यह तो चुनाव परिणाम के बाद ही पता चलेगा, लेकिन अभी इतना तय है कि दोनों पक्ष अपने-अपने मुद्दों को अंतिम रूप दे चुके हैं और दावे-प्रतिदावे भी कर रहे हैं। एक तरफ जहां सत्ता पक्ष के मुद्दे धरातल पर दिखने लगे हैं, वहीं विपक्षी दलों के मुद्दे भी हुंकार लेने लगे हैं, लेकिन अब इन मुद्दों को आकार देने का भी वक्त आ चुका है। भाजपा के सामने यह सबसे बड़ी चुनौती है कि वह अपने मुद्दों के समर्थन में आम लोगों के सामने कुछ तथ्य प्रस्तुत करे, क्योंकि अब केवल बयानबाजी से काम चलनेवाला नहीं है। भाजपा को जल्द ही अपना घोषणा पत्र जारी कर जनता के समक्ष अपना एजेंडा रखना होगा। सत्ता पक्ष अपना विजन रख चुका है, वहीं एनडीए को भी झारखंड और उसकी जनता के समक्ष अपना विजन रखने की जरूरत है। प्रत्याशियों को लेकर भी मंथन का दौर सभी दलों में चल रहा है। इसमें जो बाजी मारेगा, उसके पास एक एज रहेगा। क्या हैं दोनों पक्षों के चुनावी मुद्दे और क्या है उनकी हकीकत, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

    देश के राजनीतिक नक्शे पर 28वें राज्य के रूप में 15 नवंबर, 2000 को उभरा झारखंड, जिसे कभी राजनीति की प्रयोगशाला कहा गया था, इस समय अपनी छठी विधानसभा चुनने के लिए तैयार बैठा है। राज्य की 81 सदस्यीय विधानसभा के चुनाव के लिए बिगुल किसी भी वक्त बज सकता है। लोकतांत्रिक व्यवस्था के इस सबसे बड़े आयोजन में भागीदारी निभाने और अगले पांच साल तक झारखंड की सवा तीन करोड़ आबादी की नुमाइंदगी करने का जनादेश हासिल करने की जद्दोजहद भी जारी है। राजनीतिक दलों के बीच मतदाताओं को अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए तरह-तरह के कार्यक्रम चल रहे हैं, मुद्दे उछाले जा रहे हैं और वादों-घोषणाओं का दौर जारी है। इन राजनीतिक परिस्थितियों में एक बड़ा सवाल यह पैदा होता है कि आखिर इन चुनावी मुद्दों का असर क्या हो सकता है और राजनीतिक दलों के लिए इनका क्या मतलब होता है।

    झारखंड भ्रमण के दौरान मैंने पाया कि झारखंड की जनता बहुत जागरूक है। उसे अब मुद्दों की समझ है। खासकर ग्रामीण राजनीतिक मुद्दों और उससे लाभ-हानि पर ज्यादा सजग हो चुके हैं। संथाल से लेकर कोल्हान तक जहां भी मैं गया, पाया कि जनता अब राजनीतिक दलों से यह उम्मीद कर रही है कि उनके लिए दलों के पिटारे में क्या है। अगर कोई दल, कुछ वादा करता है, तो उसे वह कैसे पूरा करेगा, जनता अब राजनीतिक दलों से फुल प्रूफ प्लान की उम्मीद कर रही है। अगर सत्ता पक्ष चुनाव के समय कोई योजना ला रहा है तो वह भी जनता समझ रही है। अगर विपक्ष सत्ता पक्ष की योजना पर उंगली उठा रहा है तो उससे भी जनता क्रॉस क्वेश्चन कर रही है कि आप क्या देंगे। अगर देंगे तो कैसे भरोसा दिलायेंगे कि आपकी योजना ज्यादा कारगर होगी। क्योंकि झारखंड में सभी दल ट्राइड एंड टेस्टेड हैं। उनके कामों के बारे में भी जनता को पता है। कौन नेता कैसा है, उसके पास कितना विजन है, उसका भी अंदाजा जनता को है। कौन झूठ बोल रहा है, कौन बरगला रहा है, कौन सच्चा बोल रहा है, कौन सही मायनो में झारखंड के लिए सोच रहा है, जनता सब जानती है। झारखंड की जनता सबको बारी-बारी मौका देते आयी है। अब जो इसमें अच्छा परफॉर्म करेगा, उसके सिर पर सेहरा सजेगा।

    राजनीतिक दलों को भी जनता के सामने अपने उस चेहरे को लेकर आना पड़ेगा, जिसके सहारे उसकी नींव पड़ी हो। अगर भाजपा भ्रष्टाचार का मुद्दा उठा रही है तो उसे यह भी देखना होगा कि उसके मंच पर कोई ऐसा चेहरा तो नहीं है, जिसके कारण लोग उस पर भी उंगली उठायें। अगर भाजपा झारखंड में कोयला चोरी का मुद्दा उठा रही है, तो उसे सतर्क रहना होगा कि क्या कोई कोयला चोर उसकी टीम में तो नहीं है। अगर भाजपा महिलाओं के खिलाफ दुराचारियों को सबक सिखाने की बात कर रही है, तो उसे अपने दल के अंदर भी उन लोगों के खिलाफ भ् एक्शन लेना पड़ेगा, जिनके ऊपर यौन शोषण का आरोप हो। अगर बांग्लादेशी घुसपैठ का मुद्दा भाजपा उठा रही है तो उसे घुसपैठियों के ठिकानों, चंद नाम उसे देंगे भी होंगे। भाजपा दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी है। भाजपा के पास अपना विजन है। लेकिन भाजपा को यह भी ध्यान रखना होगा कि केवल चंद लम्हो की खुशी के लिए पार्टी की अस्मिता पर दाग न लग जाये। भाजपा को पहले अपना एजेंडा क्लियर करना होगा। जो मुद्दे वह उठा रही है, उसे धरातल पर कैसे लायेगी, उसका फुल प्रूफ प्लान जनता को बताना पड़ेगा।

    सत्ता पक्ष के सामने यह प्लस होता है कि वह योजनाओं को धरातल पर उतार सकता है। लेकिन उसे भी यह ध्यान देने की जरूरत है कि कोई योजना जो धरातल पर लायी जा रही है या लायी गयी है, उसे महज चुनावी लाभ के लिए लोगों के सामने प्रस्तुत करना उचित नहीं। सिर्फ चुनाव के वक्त धड़ाधड़ योजनाओं के लाने से जनता को आंशिक लाभ हो सकता है, लेकिन दल को इससे कोई फायदा नहीं मिलनेवाला। जनता अब सब समझती है। उनके पारंपरिक वोटर्स को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, लेकिन जो वोटर्स शिफ्ट होते हैं, उनमे तो पड़ता है भाई।

    वैसे झारखंड में एक तरफ सत्तारूढ़ गठबंधन है, जिसमें झामुमो, कांग्रेस, राजद और वाम दल हैं, तो दूसरी तरफ विपक्ष में भाजपा और आजसू है। जहां तक चुनावी मुद्दों की बात है, तो दोनों ही तरफ से अपने-अपने मुद्दे जनता के सामने रख दिये गये हैं। लेकिन जनता इस पर फैसला सुनाये, इससे पहले उसे इन मुद्दों को तौलना है। हालांकि दोनों ही पक्ष अपने-अपने मुद्दों को वजनदार बताने में लगे हुए हैं, लेकिन जनता तो जमीन पर है। वह हवाई बातों पर कम भरोसा करने लगी है। इसलिए मुद्दों को वजनदार साबित करने की चुनौती दोनों के सामने है।

    ये हैं झारखंड के चुनावी मुद्दे
    जहां तक झारखंड का सवाल है, तो इस बार सत्ता पक्ष की तरफ से आदिवासी अस्मिता, विकास, कल्याणकारी योजनाएं और झारखंड के प्रति केंद्र सरकार के कथित सौतेले व्यवहार को मुद्दा बनाया जा रहा है। उधर भाजपा-आजसू की तरफ से घुसपैठ, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, कानून-व्यवस्था और सत्ताधारी दलों की वादाखिलाफी को अपना मुख्य मुद्दा बनाया गया है। दोनों ही पक्ष अपने-अपने मुद्दों को जनता की अदालत में पेश कर चुके हैं। जनता अब क्या फैसला लेती है, यह तो चुनाव परिणाम ही बतायेगा, लेकिन फिलहाल इस मोर्चे पर सत्ताधारी गठबंधन आगे दिखाई दे रहा है।

    सत्ता पक्ष के मुद्दे धरातल पर दिखते हैं
    सत्ता पक्ष के चुनावी मुद्दे धरातल पर दिखने लगे हैं। चाहे आदिवासी अस्मिता का मुद्दा हो या फिर विकास का या कल्याणकारी योजनाओं का, हरेक का क्रियान्वयन या तो हो गया है या फिर उन्हें लागू करने की प्रक्रिया जारी है। सरना धर्म कोड, स्थानीयता नीति, विस्थापन आयोग और झारखंड आंदोलनकारियों को सम्मान जैसे भावनात्मक मुद्दों पर राज्य सरकार अपना कदम उठा चुकी है, भले नतीजा जो हो। पिछले दो महीने में विकास योजनाओं की जितनी सौगात झारखंड सरकार ने दी है, वैसा पहले कभी नहीं देखा गया। मंईयां सम्मान योजना से लेकर सावित्रीबाई फुले किशोरी समृद्धि योजना और सर्वजन पेंशन योजना का लाभ लोगों को मिलने लगा है। किसान ऋण माफी योजना और बिजली बिल माफी योजना का लाभ भी लोग उठाने लगे हैं। । ढांचागत विकास की बात की जाये, तो आज ही राजधानी रांची को 24 साल बाद पहला फ्लाई ओवर नसीब हुआ है, जबकि कई अन्य पर काम तेजी से चल रहा है।

    भाजपा के सामने मुद्दों को साबित करने की चुनौती
    दूसरी तरफ भाजपा के सामने उसके द्वारा उठाये गये मुद्दों को जनता की कसौटी पर साबित करने की चुनौती है। पार्टी ने लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद से झारखंड में विधानसभा चुनाव की तैयारियां शुरू कर दी थीं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर गृह मंत्री अमित शाह और दूसरे केंद्रीय नेताओं ने झारखंड के दौरे के दौरान पार्टी के मुद्दों को खूब हवा दी है। बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठ से आदिवासियों की आबादी घटने के अलावा भ्रष्टाचार और झामुमो-कांग्रेस की वादाखिलाफी का भी मुद्दा पार्टी ने उठाया है। पार्टी ने हाल ही में अपनी राज्यव्यापी परिवर्तन यात्रा के माध्यम से इन मुद्दों को जनता के सामने रख तो दिया, लेकिन अब इन मुद्दों की ठोस हकीकत का इंतजार है। घुसपैठ के मुद्दे पर भाजपा आक्रामक हो रही है। लेकिन लोगों को तब विश्वास होगा, जब भाजपा घुसपैठी वाले गांव और घुसपैठ करनेवाले लोगों के नाम लेकर सामने आयेगी।

    इसी तरह भ्रष्टाचार का मुद्दा भी भाजपा के लिए शायद उतना बड़ा अस्त्र साबित नहीं होनेवाला। भाजपा ने झामुमो-कांग्रेस के खिलाफ भ्रष्टाचार का आरोप तो लगाया है, लेकिन अब मधु कोड़ा, हरिनारायण राय और कमलेश सिंह सरीखे नेताओं को अपने खेमे में लेने के बाद भ्रष्टाचार पर उसके स्टैंड को लेकर सवाल उठने लगे हैं। इसी तरह कानून-व्यवस्था और कोयला तस्करी जैसे मुद्दों को लेकर भी भाजपा के सामने बड़ा सवाल खड़ा किया जाने लगा है। धनबाद में हाल के दिनों में जिस तरह कोयला तस्करों ने भाजपा की भी छतरी ओढ़ी है, उसमें भाजपा पर सवाल उठना लाजिमी है। कुल मिला कर चुनावी मुद्दों की शोर में असली चुनौती विपक्षी भाजपा के सामने है, क्योंकि उसने शोर तो खूब मचाया है, लेकिन यह शोर हवा में खो जाये, इससे पहले भाजपा इन्हें धरातल पर साबित कर दे, तो फिर बात बन सकती है।

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