विशेष
रोटेशनल सीएम जैसी बात कह कर झामुमो के साथ बिगाड़ लिया रिश्ता
झामुमो की प्रतिक्रिया के बाद डैमेज कंट्रोल में जुटे गुलाम अहमद मीर
नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
झारखंड में आसन्न विधानसभा चुनाव की गहमा-गहमी के बीच प्रदेश कांग्रेस के प्रभारी गुलाम अहमद मीर के एक बयान से जहां राज्य का सियासी पारा अचानक से चढ़ गया है, वहीं इससे कांग्रेस को होनेवाले नुकसान का आकलन भी किया जाने लगा है। दरअसल मीर ने झारखंड में रोटेशनल सीएम की बात कह कर एक तरह से हेमंत सोरेन के नेतृत्व को चुनौती दे दी। उन्होंने कह दिया कि यदि कांग्रेस को 25 से 30 सीटें मिल गयीं, तो वह सीएम पद पर दावा कर सकती है। उनके इस गैर-जरूरी और राजनीतिक रूप से अपरिपक्व बयान ने एक तरफ झामुमो को नाराज करने के साथ उसके साथ रिश्तों में खटास पैदा कर दी है, तो दूसरी तरफ प्रदेश प्रभारी विरोधी मोर्चा सक्रिय हो गया है। हालांकि झामुमो द्वारा इस बयान पर तीखी प्रतिक्रिया आने के बाद कांग्रेस प्रभारी डैमेज कंट्रोल में जुट गये हैं और कहा है कि उनका इरादा महज अपने कार्यकर्ताओं को मोरल बूस्टअप करना था और उनका इरादा कहीं से भी रोस्टर के आधार पर सीएम बनाने का नहीं है, लेकिन इसका कोई असर होता नहीं दिख रहा है। झारखंड कांग्रेस में मीर विरोधी खेमा सक्रिय हो गया है और उसके नेता कहने लगे हैं कि प्रदेश प्रभारी के इस बयान ने पार्टी की चुनावी संभावनाओं पर ग्रहण लगा दिया है। वैसे भी झारखंड कांग्रेस अकेले बिना बैसाखी के चुनाव मैदान में उतरने में सक्षम नहीं है, तो फिर झामुमो जैसे मजबूत दोस्त से रिश्ता बिगाड़ने की यह कोशिश उसके प्रदेश प्रभारी ने क्यों की, इसके सियासी मायने बहुत दूर की कहानी कहते हैं। झारखंड कांग्रेस के प्रभारी के इस बयान की पृष्ठभूमि में क्या है इसका सियासी मतलब और क्या हो सकता है संभावित परिणाम बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
चर्चित शायर महताब राय तांबा का एक शेर है
दिल के फफूले जल उठे सीने के दाग से
इस घर को आग लग गयी घर के चराग से।
झारखंड कांग्रेस में यही हो रहा है। विधानसभा चुनाव की गहमा-गहमी के बीच कांग्रेस के प्रभारी गुलाम अहमद मीर ने कांग्रेसी कार्यकर्ताओं के साथ एक बैठक के दौरान कहा था कि यदि कांग्रेस के हिस्से 30 या उससे अधिक सीटें आती हैं, तो झारखंड में रोस्टर के आधार पर सीएम बनाया जा सकता है। उनके इस बयान ने राज्य का सियासी पारा अचानक से बढ़ा दिया। राज्य में सत्तारूढ़ महागठबंधन का सबसे बड़ा और मजबूत दल झामुमो स्वाभाविक रूप से इस बयान पर बिफर पड़ा। उसके महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य ने मोर्चा खोलते हुए कांग्रेस को उसकी सियासी जमीन का आइना दिखा दिया। गुलाम अहमद मीर और सुप्रियो भट्टाचार्य के बीच छिड़े इस वाक्युद्ध ने झारखंड के राजनीतिक तापमान को बढ़ा दिया है। तरह-तरह की चर्चाएं होने लगी हैं और कयासों का बाजार गर्म है। सुप्रियो भट्टाचार्य का मीर के बयान पर प्रतिवाद करना इसलिए जरूरी था, क्योंकि अभी तो मीर के हाथ सिर्फ हाथ तक पहुंचे हैं, प्रतिवाद नहीं होता, तो कलाई तक पहुंच जाते। दरअसल मीर को यह पता ही नहीं है कि झारखंड में कांग्रेस को झामुमो की कितनी जरूरत है। चुनावी नैया पार करने के लिए उसे झामुमो की जरूरत है। झामुमो खुद में इतना सक्षम है कि अगर अकेले चुनाव लड़ जाये, तब भी वह दो दर्जन से अधिक सीटें लायेगा। वहीं कांग्रेस चार-पांच सीट पर सिमट जायेगी।
क्या कहा गुलाम अहमद मीर ने
गुलाम अहमद मीर ने रांची में पार्टी के संवाद कार्यक्रम में 35 से 40 सीटों पर चुनाव लड़ने की बात कही थी। उन्होंने मंच से यह भी कह दिया था कि अगर कांग्रेस 25-30 सीट जीत जाती है, तो अगला मुख्यमंत्री रोटेशन के तहत कांग्रेस का होगा। उन्होंने कहा कि झारखंड में होने वाले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस इस बार ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है। पार्टी ने अपनी तैयारियां भी शुरू कर दी हैं। पिछले चुनाव में कांग्रेस को गठबंधन में 31 सीटें मिली थीं, जिनमें से 17 पर जीत हासिल हुई थी। इस बार कांग्रेस की नजर कुछ और सीटों पर है। इसके लिए पार्टी ने अभी से माहौल बनाना शुरू कर दिया है। उन्होंने कहा कि अगर आप गठबंधन के तहत चुनाव लड़ते हैं और महज 10 से 12 सीटों पर सिमट जाते हैं, तब ऐसे में कोई भी आपको सीएम नहीं बनायेगा। आप 25 से 30 सीटें लाकर दिखायें, तब रोटेशन के तहत कांग्रेस का सीएम जरूर बनेगा और कार्यकर्ताओं के काम ज्यादा तेजी से होंगे।
झामुमो का पलटवार, हेमंत का नेतृत्व स्वीकार नहीं, तो अकेले सक्षम
कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी के इस बयान पर झामुमो की तरफ से तीखी प्रतिक्रिया आयी। पार्टी प्रवक्ता सुप्रियो भट्टाचार्य ने पलटवार करते हुए कहा कि किसी को अगर हेमंत सोरेन का नेतृत्व मंजूर नहीं है, तो हमारी पार्टी भी सभी 81 सीटों पर चुनाव लड़ने को तैयार है, जिसमें हम 55 सीट जीतने में सक्षम हैं। हमारे ऊपर भी पार्टी कार्यकर्ताओं का दबाव है। हम चाहते हैं कि इंडिया गठबंधन मजबूती के साथ चुनाव लड़े, मगर कोई भी झामुमो को कमजोर समझने की भूल न करे। कांग्रेस को 2009, 2014 और 2019 नहीं भूलना चाहिए। यह सरकार गठबंधन के तहत अच्छा काम कर रही है।
कम हो सकती हैं कांग्रेस की सीटों की संख्या
गुलाम अहमद मीर के इस गैर-जरूरी और अपरिपक्व बयान ने झामुमो और कांग्रेस के बीच के रिश्ते में खटास पैदा कर दी है। इसका पहला असर यह हुआ है कि झामुमो अब कांग्रेस को पहले के मुकाबले कम सीट देने पर अड़ गया है। कुछ दिन पहले गुलाम अहमद मीर, रामेश्वर उरांव और केशव महतो कमलेश ने सीएम हेमंत से मुलाकात की थी। उस दौरान भी सीट शेयरिंग को लेकर चर्चा हुई थी, लेकिन अंतिम फैसला नहीं बन सका था। वर्ष 2019 में कांग्रेस 33, राजद सात और झामुमो ने 41 सीटों पर चुनाव लड़ा था। इस बार माले और मासस भी इंडिया गठबंधन का हिस्सा है, तो कुछ सीटें उसके हिस्से जाना भी तय है। झामुमो ने तय कर लिया है कि इसकी भरपाई कांग्रेस और राजद की सीटों में कटौती कर ही की जायेगी।
अड़ गया झामुमो, तो कांग्रेस को होगी मुश्किल
यदि 2019 के चुनाव का रिकॉर्ड देखें, तो सबसे शानदार प्रर्दशन झामुमो का रहा था। पिछले पांच वर्षों में झामुमो के सामाजिक आधार में भी विस्तार हुआ है। उसके पास आज कल्पना सोरेन और हेमंत सोरेन जैसा प्रभावशाली चेहरा है और इसी चेहरे के बूते इंडिया गठबंधन को नैया पार लगानी है। झामुमो किसी भी कीमत पर अपनी सीटों की संख्या में कटौती नहीं चाहता। झामुमो महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य ने कहा है कि यदि हम साझा सरकार चला रहे हैं, तो हमारी जुबान भी साझा होनी चाहिए। किसी भी घटक दल को कोई भी बयान देने से पहले उसके फलाफल पर विचार करना होगा।
डैमेज कंट्रोल में जुटी कांग्रेस
प्रदेश प्रभारी के बयान ने जो सियासी तूफान पैदा किया, उसके असर का अनुमान कांग्रेस को है। पार्टी के वरिष्ठ नेता और छत्तीसगढ़ के पूर्व सीएम भूपेश बघेल ने इस बयान पर यह कहते हुए टिप्पणी से इनकार कर दिया कि यह केंद्रीय नेतृत्व का मसला है। कांग्रेस आलाकमान की तरफ से भी गुलाम अहमद मीर के बयान पर अब तक कोई प्रतिक्रिया नहीं आयी है। उधर विवाद बढ़ने पर गुलाम अहमद मीर ने सफाई देते हुए कहा कि उन्होंने कार्यकर्ताओं की कोर ग्रुप की बैठक में मोरल बूस्टअप के लिए कहा था कि आप 25-30 सीटें जीत कर लाइए, तो रोटेशनल सीएम होगा। मेरे बयान को पॉजिटिव रूप से लेना चाहिए था। झामुमो भी ज्यादा सीट जीतने का प्रयास कर रहा है। इसका फायदा इंडिया गठबंधन को मिलेगा। उसी तरह से कांग्रेस भी कार्यकर्ताओं में ऊर्जा भर रही है, ताकि ज्यादा से ज्यादा सीटें जीती जा सके। यह कोई फॉर्मूला नहीं है। यह बात सुप्रियो भट्टाचार्य को समझनी चाहिए। सुप्रियो ने जल्दबाजी में बयान दे दिया है। आगे इससे बचना चाहिए। सीटें जीत कर आने पर ही कोई बात हो सकती है। आखिर कार्यकर्ताओं को बूस्ट कैसे किया जा सकता है। यह बात आउट आॅफ कांटेस्ट है।
प्रभारी का विरोधी खेमा हुआ सक्रिय
प्रदेश प्रभारी के बयान के बाद झारखंड कांग्रेस ही नहीं, सत्तारूढ़ गठबंधन में भी खलबली मच गयी। कांग्रेस द्वारा हाल ही में प्रदेश अध्यक्ष को बदले जाने और राजेश ठाकुर की जगह केशव महतो कमलेश को कमान सौंपने से जिस राजनीतिक लाभ का अनुमान लगाया गया था, वह खतरे में पड़ती दिखाई देने लगी है। इस स्थिति में बड़ा सवाल यह है कि आखिर झारखंड की राजनीति को कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी कितना समझ पाये हैं। झारखंड कांग्रेस में गुलाम अहमद मीर विरोधी खेमे के नेताओं का कहना है कि 2019 के विधानसभा चुनाव में शानदार जीत हासिल करने के बाद झारखंड कांग्रेस की स्थिति जिस तरह कमजोर हुई है, वह किसी से छिपी नहीं है। पार्टी का संगठन किसी भी मुद्दे पर स्टैंड लेने में असमंजस में दिखाई देता है। इसका कारण यही है कि पार्टी के भीतर अब पुरानी बात नहीं रही। समर्पित नेताओं और कार्यकर्ताओं की उपेक्षा के कारण संगठन कमजोर होता जा रहा है। प्रदेश प्रभारी के बयान ने उनके विरोधी खेमे के इस आरोप की पुष्टि की है कि कश्मीर के नेता से यह उम्मीद करना बेमानी है कि वह झारखंड में पार्टी संगठन को मजबूत कर सकेगा। उनका कहना है कि जो नेता अपने राज्य में एक विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए झारखंड के नेताओं को ऐसे समय में आमंत्रित करता हो, जब खुद झारखंड में चुनाव है। समझा जा सकता है कि झारखंड के नेताओं को वहां क्यों बुलाया गया था। यहां के नेता कश्मीर में कितना प्रभावी होंगे। वही नेता अब झारखंड के नेताओं-कार्यकर्ताओं को संगठनात्मक मजबूती का पाठ पढ़ा रहा है, यह बात कुछ हजम नहीं हो रही।