कोलकाता। भारतीय जनता पार्टी ने शनिवार को पश्चिम बंगाल पुलिस पर आरोप लगाया कि वह दुर्गापुर में ओडिशा की छात्रा के साथ हुए सामूहिक दुष्कर्म मामले की जांच उसी तरह गड़बड़ तरीके से कर रही है, जैसे गत वर्ष अगस्त में कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज की छात्रा के साथ हुए बलात्कार और हत्या के मामले में की गयी थी।

भाजपा के सूचना प्रौद्योगिकी प्रकोष्ठ के प्रमुख और पश्चिम बंगाल के सह प्रभारी अमित मालवीय ने सोशल मीडिया पर दो पोस्ट जारी कर राज्य सरकार को कठघरे में खड़ा किया। उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा कि आरजी कर मामले में कोलकाता पुलिस ने राज्य सरकार के दबाव में जांच को गलत दिशा में मोड़ा था। मालवीय ने उम्मीद जताई कि दुर्गापुर कांड की जांच पारदर्शी और निष्पक्ष तरीके से होनी चाहिए ताकि दोषियों को कानून के तहत सख्त सजा मिले।

भाजपा के सह प्रभारी मालवीय ने कहा, “ममता बनर्जी के शासन में कानून-व्यवस्था की लगातार विफलता बेहद चिंताजनक है। पश्चिम बंगाल पुलिस को इस बार पारदर्शी जांच सुनिश्चित करनी चाहिए, जैसा कि आरजी कर बलात्कार और हत्या मामले में नहीं किया गया था। तब कोलकाता पुलिस ने सरकारी निर्देशों के तहत जांच में हेरफेर की थी।”

मालवीय ने बताया कि दुर्गापुर सामूहिक दुष्कर्म मामले में वासिफ अली और उसके सहयोगियों के खिलाफ शिकायत दर्ज की गई है। उन्होंने कहा कि राज्य की तृणमूल कांग्रेस सरकार को इस मामले में जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए। उन्होंने कहा, “पश्चिम बंगाल महिलाओं के लिए असुरक्षित राज्य बन गया है। जब तक तृणमूल कांग्रेस सरकार को जवाबदेह नहीं ठहराया जाएगा, तब तक महिलाएं भय के माहौल में जीती रहेंगी। ममता बनर्जी को वर्ष 2026 में जाना ही होगा।”

इस बीच राज्य के पूर्व भाजपा अध्यक्ष और केंद्रीय शिक्षा राज्यमंत्री सुकांत मजूमदार ने भी कहा कि दुर्गापुर की घटना यह साबित करती है कि पूरे पश्चिम बंगाल में महिलाएं असुरक्षित हैं। उन्होंने कहा, “मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के असफल और कानूनविहीन शासन में पश्चिम बंगाल महिलाओं की सुरक्षा के लिए सबसे खतरनाक जगह बन चुका है। गांव से लेकर शहर तक, अस्पताल से लेकर घर तक, हर जगह महिलाएं असुरक्षित हैं। तुष्टीकरण की राजनीति ने पुलिस जांच को पंगु बना दिया है, जिससे अपराधियों को खुली छूट मिल गई है। ममता बनर्जी ने राज्य को अपराधियों और बलात्कारियों का सुरक्षित ठिकाना बना दिया है।”

उल्लेखनीय है कि आरजी कर मामले की प्रारंभिक जांच कोलकाता पुलिस ने की थी, लेकिन बाद में कलकत्ता उच्च न्यायालय के आदेश पर सीबीआई ने जांच अपने हाथ में ले ली। उस समय कोलकाता पुलिस पर साक्ष्य से छेड़छाड़ और जांच को प्रभावित करने के आरोप लगे थे।

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