“10 करोड़ की जमीन ले ली मात्र “20 लाख में
करोड़ों की जमीन के मालिक राजू उरांव का परिवार दाने-दाने को मोहताज
रांची। यह दास्तान रांची के एक आदिवासी परिवार की है। इस परिवार का आरोप है कि इनकी जमीन कौडि़यों के भाव पूर्व सीएम हेमंत सोरेन ने हथिया ली। परिवार का एक पूर्वज झारखंड आंदोलन का सिपाही भी था, ऐसा इस परिवार का दावा है। इस परिवार के लोगों ने अपनी पीड़ा कई लोगों के सामने रखी, लेकिन मदद के लिए कोई आगे नहीं आया। अपनी जमीन की वाजिब कीमत पाने के लिए हर दरवाजा खटखटा कर थक चुका यह परिवार करीब एक हμते से आजाद सिपाही के संपर्क में था। इसके बाद आजाद सिपाही की टीम ने स्थल का निरीक्षण किया और पीडि़त परिवार के लोगों से बातचीत की। पीडि़तों की बातचीत की वीडियो रिकॉर्डिंग के आधार पर इस समाचार को तैयार किया गया है। इसमें मामले से संबंधित जो कागजात आजाद सिपाही को हाथ लगे, उसी के आधार पर तथ्यों को सामने लाने की कोशिश की गयी है। राजू उरांव का परिवार किस आर्थिक संकट से गुजर रहा है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उसने टीम से भोजन करने के लिए 100 रुपये लिये।
48 डिसमिल आदिवासी जमीन कौड़ी के भाव ले ली :
आदिवासियों के हित की बात कर सीएनटी- एसपीटी एक्ट में संशोधन का विरोध करनेवाले झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पर एक आदिवासी परिवार ने गंभीर आरोप लगाये हैं। आरोप है कि उन्होंने अरगोड़ा जैसे पॉश इलाके में उनकी 48 डिसमिल जमीन कौड़ी के भाव ले ली। यह आदिवासी परिवार कहता है, ‘एक समय हेमंत आदिवासियों का हितैषी बनकर हमारी मदद करने आये थे। हमसे सहानुभूति दिखायी। बहलाया-फुसलाया और 48 डिसमिल जमीन कौडि़यों के भाव अपनी पत्नी कल्पना मुर्मू के नाम करवा ली है।’ अरगोड़ा के प्लॉट नंबर 1975 और खाता नंबर 233 की 48 डिसमिल जमीन पर हेमंत सोरेन मैरेज हॉल बनवा रहे हैं। निर्माण कार्य प्रगति पर है। करीब 70 फीसदी काम पूरा हो चुका है। वहीं जमीन के असली मालिक गरीबी और बदहाली में अपनी जिंदगी गुजार रहे हैं। राजू उरांव और राजन उरांव समेत कुल 7 भाइयों की अगर मानें, तो इस प्रॉपर्टी पर हेमंत सोरेन की नजर साल 2004 में पड़ी थी। उसके बाद इस प्लॉट को हथियाने के लिए उन्होंने कई तरीके अपनाये। आखिरकार रैयतों को मजबूर कर कम कीमत पर जमीन की रजिस्ट्री करवा ली गयी।
मात्र “20 लाख में खरीद ली जमीन :
साल 2009 में इस जमीन की रजिस्ट्री हेमंत सोरेनकी पत्नी कल्पना मुर्मू के नाम पर की गयी है। यह संयुक्त आदिवासी परिवार अरगोड़ा के ढेला टोली में रहता है। जमीन कौडि़यों के भाव बिकने के बाद यह परिवार दर-ब-दर है। परिवार के तमाम सदस्यों के सामने फाकाकशी के हालात हैं। परिवार के लोग बेबस आंखों से अपनी ही जमीन पर दूसरे का मैरेज हॉल खड़ा होते देख रहे हैं। जमीन की कीमत करीब दस करोड़ रुपये है। इसके कुल 4 दावेदार थे। इनमें से दो की मौत हो चुकी है। दो रैयत महादेव उरांव और महली उरांव के वंशजों की यह जमीन थी। कानूनन महादेव उरांव के पांच और महली उरांव के दो पुत्रों के बीच इस राशि का बंटवारा होना चाहिए था। अगर पैसे का बंटवारा होता, तो महादेव उरांव के बेटे बिरसा उरांव, लालू गाड़ी, महेश उरांव, मातून गाड़ी और शीतल गाड़ी के हिस्से में करीब 4.80 करोड़ रुपये आते और इतनी ही राशि महली उरांव के पुत्र राजू उरांव और राजन उरांव को मिलती। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। परिवार ने आरोप लगाया, भय और लालच दिखाकर हमारी जमीन कम कीमत में खरीद ली गयी।’ जमीन गंवाने वाले परिवार के लोगों को अब तक मात्र 20 लाख रुपये मिले हैं। राजू उरांव ने बताया कि किस्तों में उसे पैसे दिये गये। कभी एक लाख रुपये, कभी 50 हजार रुपये और कभी चेक से पेमेंट किया गया।
कल्पना मुर्मू के नाम से बनी डीड में पति की जगह पिता का है नाम :
जमीन की दो डीड बनायी गयी है। पहली डीड में खरीदार कल्पना मुर्मू हैंं और जमीन के विक्रेता बिरसा उरांव, लालू गाड़ी, महेश उरांव, मोतुन गाड़ी और शीतल उरांव हैं। दूसरी डीड में भी खरीदार कल्पना मुर्मू हैं और जमीन के विक्रेता राजू उरांव और राजन उरांव हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि डीड में कहीं भी हेमंत सोरेन का नाम नहीं है। जबकि हेमंत से शादी के बाद यह जमीन खरीदी गयी है। इस आधार पर डीड में पति हेमंत सोरेन का नाम होना चाहिए था, लेकिन उसमें कल्पना के पिता अम्पा मांझी का नाम है।
[su_box title=”जमीन खोकर टूट चुका है आदिवासी परिवार “]अपने पूर्वजों की जमीन लुटते देख सभी रैयत मायूस और आक्रोशित हैं। इस आदिवासी परिवार के सभी सदस्य पूरी तरह टूट चुके हैं, लेकिन जमीन बचाने के लिए ये लोग कर भी क्या सकते हैं। राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री और झामुमो के इतने बड़े नेता से यह गरीब परिवार आखिर कैसे लड़े। महादेव और महली उरांव के वंशजों ने कई बार विरोध भी किया, लेकिन इनके विरोध को हर बार दबा दिया गया। राजू उरांव, राजन उरांव, बिरसा उरांव और लालू गाड़ी समेत सभी लोग रिक्शा-ठेला चलानेवाले और मजदूरी करनेवाले हैं। कहने को तो ये करोड़ों की जमीन के असली मालिक थे, लेकिन अब इनके घरों में कई शाम चूल्हा तक नहीं जलता है। गरीबी, मुफलिसी और बेरोजगारी की चक्की में पिस रहे इन गरीबों को बुरी तरह से लूट लिया गया है। पूर्वजों की पूंजी, जिससे ये लोग अपनी जिंदगी सुधार सकते थे, अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दे सकते थे, अपने घर को बनवा सकते थे, उस जमीन पर हेमंत सोरेन की नजर लग गयी। राजू उरांव कहते हैं, ‘सुनते हैं, सड़क से लेकर सदन तक हेमंत सोरेन आदिवासियों की आवाज को बुंलद करते नजर आते हैं। आदिवासियों के हितों की रक्षा के लिए किसी भी हद तक जाने की बात करते हैं, लेकिन हमलोगों के मामले में उनका एक दूसरा ही चेहरा सामने आया है।'[/su_box]