प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अपील पर सत्ताधारी दल बुधवार को जहां नोटबंदी की बरसी पर कालाधन विरोधी दिवस मना रहे हैं, वहीं इसके एन एक दिन पहले कालाधन से जुड़ें मामलों पर एक बड़ा खुलासा पैराडाइज पेपर्स के रूप में सामने आया है। कालाधन विरोधी दिवस पर सरकार से पूछा जा सकता है कि एक साल पहले आए ‘पनामा पेपर्स’ के खुलासे के बाद सरकार ने क्या-क्या किया और अब नए खुलासे के बाद क्या-क्या किया जाएगा। ‘पनामा पेपर्स’ के खुलासे से कई देशों में खलबली मची थी। आइसलैंड के प्रधानमंत्री ने तुरंत इस्तीफा दिया तो पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की कुर्सी भी नहीं बची और अब तो उनका राजनीतिक भविष्य ही अधरझूल में लटकता नजर आ रहा है। पनामा पेपर्स लीक के बाद हमारे देश में कुछ राजनीति होकर रह गई, लेकिन कार्रवाई को लेकर कुछ देखने को नहीं मिला। कर बचाने के लिए टैक्स हैवन देशों में पैसा ले जाने, वहां कंपनी बनाने, उन कंपनियों के जरिए भारत में निवेश में निवेश कराने जैसी घटनाएं नई नहीं है। कई सरकारों ने इसे रोकने के लिए कई उपाय किए, लेकिन दोहरे कराधान संधि वाले देशों या टैक्स हैवन देशों में लिफाफा कंपनियों के जरिए भारत में पैसा लाना बंद नहीं हुआ।

पनामा पेपर्स लीक के बाद अब जो पैराडाइज पेपर्स लीक हुआ है इसमें बरमूडा की एक कानून कंपनी के दस्तावेज जारी हुए हैं, जिनमें भारत की 714 कंपनियों के नाम दर्ज हैं। इनमें से कई कंपनियां ऐसी भी हैं, जो भारत में किसी न किसी घोटाले में शामिल हैं और केन्द्रीय जांच एजेंसियां उनकी जांच कर रही है। पैराडाइज पेपर्स से पहले पनामा पेपर्स खुलासे में भारतीयों के साथ-साथ दुनिया के कई नामचीन राजनीतिज्ञों व बड़े लोगों के नाम शामिल थे नए खुलासे में भी ब्रिटेन की महारानी सहित कई बड़े-बड़े लोगों के नाम शामिल हैं। पैराडाइज पेपर्स में शामिल 714 ऐसी कंपनियां व भारतीय लोग शामिल हैं जिन्होंने विदेशी वित्तीय सरल नियमों के तहत वे वहां कंपनियां बनाकर उनकी मार्फत अपना धन जमा किया। बरमूडा और सिंगापुर की एपलबाई व एशियासिटी के फर्मों की मार्फत दुनिया के 19 टैक्स हैवंस समझे जाने देशों में विश्व के धनी व प्रभावशाली लोगों ने अपने कारोबार के जरिए कालाधन जमा किया। आश्चर्यजनक रूप से ऐसे लोगों में कांग्र्रेस व भाजपा दोनों ही पार्टियों के कुछ नेताओं के नाम हैं। फिल्म स्टार आदि लोगों के अलावा कई कार्पोरेट जगत की कंपनियां हैं, जिन्होंने अपने वाणिज्य विस्तार के लिए ऐसे देशों की कंपनियों की मार्फत निवेश किया और मुनाफा विदेशों में ही जमा किया ताकि भारत की सरकार को कर न देना पड़े।

दरअसल बरमूडा की ‘एपलबाई’ कानूनी सलाहकार फर्म विदेशों में खासतौर पर टैक्स हैवंस देशों में कंपनियां स्थापित करने में मदद करती है और बैंकों में खाते खुलवाने में मदद करती है। यह फर्म स्थानीय स्तर पर ऐसी खोली गई कंपनियों का कारोबार देखने के लिए व्यक्तियों का भी प्रबंध कर देती हैं तथा बैंकों से कर्ज दिलाने या शेयरों की बदली की भी व्यवस्था कर देती है। यह सारा काम टैक्स हैवंस कहे जाने वाले देशों में करती हैं। दरअसल, पैराडाइज पेपर्स से यह खुलासा हुआ है कि किस प्रकार भारतीय कंपनियां अपने विदेशी कारोबारी सम्पर्क का लाभ कालाधन कमाने में करती हैं। अब यहां मूल प्रश्न यह है कि विदेशों में कारोबार शुरू करके दुनिया के बड़े-बड़े लोग व कंपनियां किस प्रकार अपने मूल देश की अर्थव्यवस्था को कमजोर करने पर तुले हैं। अपनी सरकार को कर न चुकाना और उसकी नजरों से बचाकर धन शोधन करना अपराध की श्रेणी में ही आता है। वैसे भी कर चोरी के मामले में बड़े लोग ही शामिल होते हैं, जिनके खिलाफ विस्तुनिष्ठ जांच नहीं होती है। तभी यह माना जा रहा है कि पनामा पेपर्स की तरह ही भारत में पैराडाइज पेपर्स खुलासे की बात भी थोड़े दिनों में आई-गई हो जाएगी। हालांकि जांच तो पनामा पेपर्स की भी चल रही है और नए खुलासे की जांच के आदेश भी दे दिए गए हैं।

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