चौतरफा घिरी केंद्र सरकार के लिए मूडीज द्वारा अर्थव्यवस्था का दर्जा बढ़ाना चुनाव में मददगार हो सकता है, मगर घरेलू आर्थिक दिक्कतें 2019 तक दूर होती नहीं दिख रहीं। मूडीज ने भारतीय अर्थव्यवस्था को सकारात्मक करार दिया है। जबकि स्टैडर्ड ऐंड पुअर्स ने रेटिंग में कोई बदलाव नहीं किया है। ताज्जुब यह है कि मूडीज को हमारी औकात सुधरने का तमगा देने की तभी सुध आई, जब अर्थव्यवस्था पिछली छह तिमाही से लगातार ढलान पर है। अब यहां निवेशकों के हित भी सुरक्षित बताए गए हैं। तो क्या पिछले तेरह साल में मूडीज के तमगे के बगैर भी भारत में विदेशी कारोबारियों द्वारा लगाए 250 अरब डॉलर में से किसी की रकम डूब गई? उल्टे हमारे शेयर और ऋण बाजार में मुनाफाखोरी के लिए 225 अरब डॉलर की विदेशी पूंजी लगी हुई है। हमारी अर्थव्यवस्था भी पौने चार गुना बढ़कर 2.3 खरब डॉलर हो गई। यह 13 साल पहले महज 620 अरब डॉलर मूल्य की थी।
मूडीज का असर देश से ज्यादा विदेशी कारोबारियों और वित्तीय संस्थाओं के भारत के प्रति मूड पर पड़ना बताया जा रहा है, जबकि वे हमारे प्रति पहले ही सुर्खरू हैं। इसके बावजूद सरकारी बैंकों का न तो एनपीए (डूबत कर्ज) कम होगा और न हमारे किसानों का संकट दूर होने वाला है। उसके लिए सरकार को कर्जदार धन्नासेठों की ही मुश्कें कसनी पड़ेंगी, जिसकी पिछले साढ़े तीन साल में तो कोई बानगी नहीं दिखी। किसानों का महाराष्ट्र में गन्ने के सरकारी दाम पाने के लिए आजकल भी आंदोलन चल रहा है। अफसोस कि उन्हें अब अपनी हर फसल के लिए आंदोलन करना पड़ता है।

इसलिए रेटिंग बढ़ने को सरकार अपनी छवि में चार चांद लगाने के लिए भले इस्तेमाल करे, पर तमाम निवेशक देश तो हमसे कारोबार बढ़ा ही रहे हैं। जापान और चीन की हमारी बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में मोटी रकम लगाने की तैयारी इसकी मिसाल हैं। अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी और इस्राइल को भी देर-सबेर हमारे यहां रक्षा प्रौद्योगिकी में मोटी रकम लगानी ही पड़ेगी। मूडीज द्वारा हमारी सुध लेने के पीछे ब्रिक्स की अपनी रेटिंग एजेंसी बनाने पर भारत का जोर देना भी बड़ा कारण है।

हमारी असली चुनौती घरेलू मोर्चा है। नोटबंदी और जीएसटी के कारण बेरोजगारी की दर बढ़कर 5.7 फीसदी पर है। किसान, दुकानदार, व्यापारी और लघु एवं मझोले उद्योगों का कारोबार एक तिहाई ही बचा है। कच्चे तेल का दाम 48 डॉलर प्रति बैरल से बढ़कर 60 डॉलर हो चुका है। तैयार माल का व्यापार घाटा पिछले साल से 32.34 अरब डॉलर बढ़कर अप्रैल-अक्तूबर में 86.15 अरब डॉलर पर पहुंच चुका। अप्रैल-सितंबर के बीच सुस्त रहा औद्योगिक उत्पादन महज ढाई प्रतिशत बढ़ पाया। अक्तूबर में खुदरा महंगाई की दर भी 3.6 फीसदी तक चढ़ गई। डॉलर के मुकाबले रुपये का दाम 90 पैसे गिर चुका। अगला बजट सिर पर है, पर सरकारी राजस्व की वसूली डांवाडोल है।

अरुण जेटली राजकोषीय घाटे के बजट अनुमान से अधिक रहने का इशारा कर रहे हैं। आधा दर्जन राज्यों के बजट भी कर्ज माफी के कारण लड़खड़ा रहे हैं। इसलिए वे भी अतिरिक्त मदद के लिए केंद्र का मुंह जोह रहे हैं। जीएसटी से राजस्व बढ़ने का फायदा जब केंद्र सरकार के खजाने को होगा, तब तक 2019 का चुनाव आ जाएगा। रेटिंग बढ़ने से कॉरपोरेट को ​सस्ती दर पर विदेशी कर्ज मिलने के आसार हैं। उससे सरकारी बैंकों से कर्ज का उठान घटेगा, जिससे उनकी ब्याज की कमाई मारी जाएगी। ऊपर से उनकी डूबी रकम निकलनी और कठिन हो जाएगी।

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