कांग्रेस पार्टी की शीर्ष नीति निर्धारक इकाई कांग्र्रेस कार्य समिति ने तमाम कवायदों और अटकलों को विराम लगाते हुए अगले पार्टी अध्यक्ष के लिए चुनाव कार्यक्रम को अंतिम रूप दे दिया है। तय कार्यक्रमों के अनुसार चुनाव की प्रक्रिया एक दिसंबर से शुरू होगी। यानी इस रोज चुनाव की अधिसूचना जारी होगी। चार दिसंबर तक नामांकन पत्र भरे जा सकेंगे। पांच दिसंबर को नामांकन पत्रों की जांच होगी। ग्यारह दिसंबर तक नामांकन पत्रों को वापस लिया जा सकेगा। यदि मतदान की स्थिति आई, तो सोलह दिसंबर को मतदान कार्य संपादित कराया जा सकेगा। मतगणना उन्नीस दिसंबर को होगी। पार्टी अध्यक्ष मय निर्वाचित पदाधिकारियों की सूची चुनाव आयोग को इकत्तीस दिसंबर तक भेज दी जाएगी। चुनाव कार्यक्रमों की घोषणा के साथ यह भी तय है कि उन्नीस साल बाद कांग्र्रेस के अध्यक्ष पद पर राहुल गांधी नया चेहरा होंगे। सिर्फ औपचारिकता बतौर चुनाव कार्यक्रमों की घोषणा हुई है।
राहुल गांधी के नए अध्यक्ष चुने जाने से पूर्व इस स्थिति का अहसास तो विभिन्न राज्यों के प्रादेशिक कार्यालयों के बाहर कार्यकर्ताओं द्वारा उनके समर्थन में की गई नारेबाजी, आतिशबाजी के साथ बांटी गई मिठाइयों से लगाया जा सकता है। आज से चार वर्ष पूर्व जयपुर में कांग्र्रेस के सम्पन्न हुए अधिवेशन में जब राहुल गांधी को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष चुना गया था, तब ही दबी जुबां से उन्हें अध्यक्ष बनाने की कांग्र्रेस के भीतर ही चर्चाएं शुरू हो गई थीं। उस वक्त के भावुक क्षणों में तब मंच से राहुल गांधी ने कहा था कि रात को उनकी मां सोनिया गांधी ने आकर कहा था कि राजनीति और सत्ता एक जहर का प्याला है। राहुल गांधी का जवाब था कि जनता और देश की सेवा के लिए यदि उन्हें यह जहर भी पीना पड़े, तो वे इसके लिए तैयार हैं। खैर, इस पृष्ठ भूमि से इतर सोचें, तो कांग्र्रेस विरोधी दलों द्वारा सदैव उस पर यह आरोप जड़े जाते रहे हैं कि कांग्र्रेस पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र नहीं बचा बल्कि वह एक परिवार तक सीमित हो गई है।
वंशवाद के आरोपों को खारिज करते हुए राहुल गांधी ने अपने राजनीतिक कॅरियर के तेरह सालों में पार्टी के भीतर लोकतांत्रिक परम्परा को अपनाने के लिए कुछ प्रयास किए, लेकिन वे उतने सफल नहीं हो पाए जितनी अपेक्षा थी। जैसी कि यह प्रबल संभावना कहें या पूर्व निश्चित निर्णय के अनुसार वे पार्टी के नए अध्यक्ष बनने जा रहे हैं। उनके नेतृत्व में यह अपेक्षा तो की ही जा सकती है कि वे पार्टी के भीतर लोकतांत्रिक परम्परा को मजबूती से प्रतिष्ठापित करेंगे। क्योंकि देश की आजादी से पूर्व तथा कुछ अर्से तक पार्टी में राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव सदस्यों के मतों से होता था। जिसे बड़े से बड़े नेताओं को स्वीकारना पड़ता था। लेकिन उन्नीस सौ सत्तर के बाद पार्टी वंशवाद के दायरे में घिर गई। आरोप भी लगे कांग्र्रेस नेहरू- गांधी परिवार तक सीमित हो गई है।
मोतीलाल नेहरू, जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, श्रीमती सोनिया गांधी और अब राहुल गांधी। लेकिन विपक्षी तर्कों को पार्टी के अधिकांश नेता और कार्यकर्ता यह कहकर खारिज करते रहे कि इस परिवार के बलिदान और योगदान के आगे यह आरोप कहीं टिकते नहीं हैं। खैर, कांग्र्रेस में राहुल गांधी का नए अध्यक्ष के रूप में चुना जाना, नई ऊर्जा को संचारित करने वाला माना जा रहा है। लेकिन इसमें कोई दोराय नहीं है कि राहुल को पिछले लोकसभा विधानसभा चुनावों में कांग्र्रेस को मिली करारी हार से उपजी घोर निराशा के भंवर से बाहर निकालना होगा। पार्टी में व्याप्त गुटबाजी को समाप्त करने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ेगी।