एक बार फिर वित्तमंत्री ने सेवा एवं वस्तु कर के ढांचे में बदलाव का इरादा जताया है। पहले ही जीएसटी लागू होने के बाद से तीन-चार बैठकों में करीब सौ वस्तुओं के कर ढांचे में बदलाव किया जा चुका है। इस बार अट्ठाईस फीसद के दायरे में आने वाली वस्तुओं की समीक्षा की जाएगी। वित्तमंत्री ने खुद माना है कि अट्ठाईस फीसद के दायरे में कई ऐसी वस्तुओं को रखा गया है, जिन्हें पहले ही नहीं रखा जाना चाहिए था। यानी एक बार फिर यही जाहिर हुआ है कि जीएसटी लागू करते समय सरकार को जो सावधानियां बरतनी और जैसी तैयारी करनी चाहिए थी, वह नहीं की गई थी। हालांकि जीएसटी का प्रारूप यूपीए सरकार के समय ही काफी हद तक अंतिम रूप ले चुका था। बस कुछ राज्य सरकारों की आपत्तियों के चलते कुछ बिंदुओं पर चल रहे मतभेद को दूर करना बाकी था। उसी ढांचे को मोदी सरकार ने नए ढंग से तैयार किया और कर ढांचे की जो अधिकतम सीमा अठारह फीसद तक रखी जानी थी, उसे बढ़ा कर कई गुना कर दिया। फिर राज्य और केंद्र द्वारा लिए जाने वाले करों का भेद भी बनाए रखा। उसी का नतीजा है कि बार-बार सरकार को जीएसटी की समीक्षा करनी पड़ रही है।

जीएसटी लागू होने के बाद वस्तुओं की कीमतों में कमी आने और व्यापारियों को सुविधा होने का दावा किया गया था। मगर इसके लागू होते ही व्यापारियों की परेशानियां बढ़ गर्इं। पहले उन्हें हर महीने रिटर्न फाइल करने का प्रावधान किया गया, फिर व्यापारी संगठनों के विरोध के मद्देनजर यह अवधि बढ़ा कर तीन महीने कर दी गई। हालांकि इससे भी व्यापारियों को बहुत सुविधा नहीं हुई। बहुत सारे छोटे कारोबारियों को कंप्यूटरीकृत व्यवस्था रास नहीं आई। इसका नतीजा यह हुआ कि बहुत सारे लोगों ने अपने रोजगार बंद कर दिए। इसके चलते लाखों लोगों की नौकरियां चली गर्इं। सबसे अधिक विरोध गुजरात के सूरत में कपड़ा व्यापारियों ने किया, क्योंकि पहले कपड़े पर कोई कर नहीं लगता था। इसके अलावा हस्तशिल्प पर कर की अतार्किक दर रखी गई, जिसका चौतरफा विरोध हो रहा है। अभी चूंकि गुजरात में विधानसभा चुनाव की सरगर्मी है, सरकार जीएसटी की दरों में एक बार फिर कटौती कर जाहिर करने का प्रयास करेगी कि वह व्यापारियों की हितैषी है।

मगर सवाल है कि इस तरह कितने समय तक जीएसटी की दरों की समीक्षा चलती रहेगी! अगर यही काम पहले ही तार्किक ढंग से कर लिया गया होता, तो न आज इस तरह व्यापारियों को परेशानियों का सामना करना पड़ता और न लोगों के रोजगार छिनते। महंगाई पर काबू पाना सरकार के सामने बड़ी चुनौती है। वह थोक व्यापार के आंकड़ों के जरिए बार-बार यह साबित करने का प्रयास करती रही है कि केंद्र में भाजपा की सरकार आने के बाद महंगाई की दर काफी नीचे आई है। मगर हकीकत यह है कि आम उपभोक्ता को पेट्रोलियम पदार्थों सहित खुदरा बाजार में हर चीज की कीमत पहले से ज्यादा चुकानी पड़ रही है। जीएसटी का खुदरा बाजार में कोई असर नजर नहीं आ रहा। मगर विचित्र है कि इस मामले में सत्ता पक्ष और विपक्ष में सिर्फ आरोप-प्रत्यारोप चलते रहते हैं और कोई व्यावहारिक कदम उठाने की पहल नहीं होती। अट्ठाईस फीसद के दायरे में आने वाली वस्तुओं को ही क्यों, पूरे जीएसटी कर ढांचे पर एक बार फिर से व्यावहारिक विश्लेषण कर इसे संतोषजनक स्वरूप देने का प्रयास होना चाहिए।

Share.

Comments are closed.

Exit mobile version