बिहार के पूर्व मु्ख्यमंत्री जीतनराम मांझी ने जमशेदपुर में कहा कि संविधान में आरक्षण का प्रावधान किया गया था कि सामाजिक और शैक्षणिक दृष्टिकोण से जो समाज पिछड़ा रहेगा उसे आरक्षण दिया जाएगा. लेकिन 10 वर्ष बाद उस आरक्षण की समीक्षा की जानी थी. 1952 में आरक्षण को लागू किया गया था. आज 67 साल बीत गए हैं. मगर मैं देख रहा हूं कि शिक्षा के क्षेत्र में कोई विशेष प्रगित नहीं हुई है. यही कारण है कि शैक्षणिक और सामाजिक दृष्टिकोण से समाज पिछड़ा है. इसीलिए आरक्षण की मांग हो रही है.
उन्होंने कहा कि आरक्षण से पिछड़ी जातियों को कोई खास लाभ नहीं हुआ. अगर राष्ट्रपति से लेकर एक आम आदमी तक, सबके बच्चों की शिक्षा एक समान स्तर पर कर दी जाए तो फिर आरक्षण की जरूरत ही नहीं पड़ेगी. बच्चे अपनी मेधा के अनुसार अपना कैरियर चुन लेंगे. आरक्षण को लेकर लोहिया के मार्ग पर चलकर ये देश आरक्षण की मांग की समस्या से निजात पा सकता है.
जीतन राम मांझी खुद पिछड़े तबके से आते हैं और ऐसे में उनका ये बयान काफी मायने रखता है. उन्होंने कहा कि काफी विश्लेषण के बाद वे इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि तमाम दावों के बावजूद आरक्षण से पिछड़ी जातियों के शैक्षणिक स्तर पर खास प्रभाव नहीं पड़ा. अलबत्ता पिछड़ों में जो क्रीमी लेयर हैं वे ही लाभ लेते हैं.