थोक मूल्य सूचकांक के आधार पर जब थोक मूल्य सूचकांक कम होता है तो सरकार महंगाई को काबू होने का दावा पेश करके अपनी पीठ थपथपाने लग जाती है। जबकि हकीकत यह होती है कि खुदरा व्यापार में रोजमर्रा इस्तेमाल होने वाली वस्तुओं की कीमतें काफी बढ़ी होती हैं। अभी भी देखें तो थोक बाजार की कीमतों में भी महंगाई का स्तर पिछले छह महीनों के रिकार्ड स्तर पर पहुंचा हुआ है। सितंबर में महंगाई की दर 2.60 फीसद थी, जो अक्टूबर में बढ़कर 3.59 फीसद तक पहुंच गई है। तमाम आर्थिक विशेषज्ञों और कारोबारी संगठनों की राय पर गौर करें तो पता चलता है कि पेट्रोल-डीजल की कीमतों में अतार्किक वृद्धि के चलते थोक बाजार में महंगाई की दर बढ़ी है।

जब अन्तरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें सबसे निचले स्तर पर थी, तब भी सरकार रोज पेट्रोल- डीजल के दाम बढ़ा रही थी। इस पर आर्थिक विशेषज्ञ सवाल उठाते रहे, लेकिन सरकार अतार्किक तर्क देकर मूल्य वृद्धि को जायज ठहराती रही है। अब कारोबारी इस बात से चिंतित हैं कि यदि महंगाई दर इसी तरह बढ़ती रही तो इसका सीधा असर उत्पादन और सकल घरेलू उत्पाद की दर पर पड़ेगा। आज सब कुछ ठीक होने के बावजूद खाने-पीने की वस्तुओं के दाम सामान्य नहीं हो रहे हैं। जिस मौसम में साग-सब्जियों का उत्पादन ज्यादा होता है तो कीमतें कम होने की उम्मीद की जाती है, लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है। पिछले दो साल से मानसून भी अच्छा रहा और पैदावार भी ज्यादा हुई, लेकिन मूल्य नहीं गिरे। सरकार को यह अच्छी तरह पता है कि थोक मूल्य सूचकांक चाहे घटे हों, लेकिन खुदरा मूल्यों में कई गुना का अंतर रहता है।

सब कुछ जानते हुए भी सरकार थोक मूल्य को आधार बनाकर महंगाई को काबू में होने का दावा कर देती है और उपभोक्ता महंगाई की मार झेलता रहता है। सरकार महंगाई की दर नापने का अपना पैमाना बदलना नहीं चाहती, जबकि कारोबारी जगत उसे बदलने पर जोर देता रहता है। जीएसटी लागू करने के बाद दावा किया गया था कि इससे खुदरा बाजार में कीमतें नीचे आएंगी। लेकिन यह दावा सही साबित नहीं हो रहा है। सरकार हर बार जीएसटी परिषद की बैठक में बार-बार टैक्स की दरों को घटा रही है, मगर उसका लाभ फिर भी उपभोक्ताओं को नहीं मिल रहा है।

माना कि जीएसटी का असर जल्दी असर नहीं दिखा सकता, इसमें कुछ वक्त लग सकता है। लेकिन यह तो जाहिर हो रहा है कि सरकार ने जीएसटी लागू करने में जल्दबाजी दिखाई और उसमें तय दरों को लेकर बार-बार उठाई गई आपत्तियों के मद्देनजर दरों को घटाने का फैसला लिया जा रहा है, जो उचित तो है, लेकिन इसका लाभ भी उपभोक्ताओं को मिलना चाहिए। हकीकत से वाकिफ सरकार ने अब जीएसटी व्यवस्था के तहत राष्ट्रीय मुनाफाखोरी-रोधी प्राधिकरण के गठन को मंजूरी दी है। इस प्राधिकरण के गठन के पीछे सरकार का मकसद जीएसटी की घटी दरों का लाभ उपभोक्ताओं तक पहुंचाना है। प्राधिकरण में व्यवस्था है कि अगर किसी ग्र्राहक को लगता है कि उसे घटी दरों का लाभ नहीं मिल रहा है तो वह प्राधिकरण में इसकी शिकायत दर्ज करा सकता है।

यह एक प्रकार का निगरानी तंत्र होगा, लेकिन इसे व्यवस्थित करने में और ग्र्राहकों को लाभ दिलाने में अभी काफी वक्त लगेगा। असली सवाल महंगाई का है और सरकार ने महंगाई पर काबू पाने में गंभीरता नहीं दिखाई है। महंगाई बढ़ने के कई कारण हैं। सिर्फ उत्पादन की दर बढ़ाने से महंगाई पर काबू नहीं पाया जा सकता। आम उपभोक्ता वस्तुओं की कीमतें बढ़ रही उसके पीछे की बड़ी वजह ढुलाई वगैरह का खर्च बढ़ना है। फिर भण्डारण की सुविधा पर्याप्त नहीं है। किसानों से खरीद की नीति भी व्यावहारिक नहीं है। सरकार महंगाई पर काबू पाना चाहती है उसे कुछ नीतिगत नए कदम उठाने होंगे।

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