महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (एमजीएनआरईजीए यानी मनरेगा) के तहत 31 अक्टूबर, 2017 को 19 राज्यों में मजदूरी का भुगतान रोक दिया गया था। यह जानकारी आधिकारिक डेटा से मिली है।
हरियाणा में, 31 अगस्त, 2017 से मजदूरी का भुगतान नहीं किया गया है। झारखंड, कर्नाटक और केरल सहित 12 राज्यों में भुगतान सितंबर 2017 से नहीं किया गया है। महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश सहित छह राज्यों में अक्टूबर 2017 से कोई भुगतान नहीं किया गया है।
जमीनी स्तर पर कार्य करने वाले संगठनों के नेटवर्क, नरेगा संघर्ष मोर्चा के एक बयान के अनुसार, 9.2 करोड़ से अधिक सक्रिय श्रमिकों को उनकी मजदूरी समय पर मिलने की संभावना नहीं है और देरी से भुगतान वाली मजदूरी की रकम करीब 3,066 करोड़ रुपये है।
ग्रामीण विकास मंत्रालय की ओर से 27 अक्टूबर, 2017 को दिए गए बयान के अनुसार, “मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, राजस्थान, छत्तीसगढ़, जम्मू और कश्मीर की ओर से अभी तक दिए गए प्रस्तावों पर तुरंत कार्रवाई की गई है और प्रस्तावों पर कार्य किया गया है।”
केंद्र सरकार की ओर से फंड के दूसरे चरण को जारी करने के लिए राज्यों की ओर से प्रत्येक वर्ष 30 सितंबर के बाद पिछले वित्त वर्ष की ऑडिटेड रिपोर्ट भेजना अनिवार्य है।
ग्रामीण विकास मंत्रालय के बयान में बताया गया है कि इस वित्त वर्ष में अभी तक 40,480 करोड़ रुपये जारी किए गए हैं, जो पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि के दौरान जारी की गई रकम से करीब 4,500 करोड़ रुपये अधिक हैं। मंत्रालय ने अतिरिक्त आवश्यक्ताओं को पूरा करने के लिए वित्त मंत्रालय से फंड की मांग भी की है।
केंद्र भुगतान नहीं कर रहा
केंद्र सरकार ने मार्च-अप्रैल 2017 में 20 दिनों तक अधिकांश भुगतानों को स्वीकृति नहीं दी है, और मई 2017 में मजदूरी के 80% भुगतानों को जारी करने के लिए कार्रवाई नहीं हुई है। नरेगा संघर्ष मोर्चा की सह-संयोजक, अंकिता अग्रवाल के अनुसार, “केंद्र सरकार ने समय पर ऑडिटेड रिपोर्ट जमा नहीं करने वाले राज्यों के लिए फंड को स्वीकृति नहीं दी है, और केंद्र सरकार के पास इन आठ राज्यों के लिए फंड नहीं हैः गुजरात, हरियाणा, कर्नाटक, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, मिजोरम, नागालैंड और जम्मू और कश्मीर।”
मिजोरम, नागालैंड और जम्मू और कश्मीर की ओर से लंबित एफटीओ का कोई रिकॉर्ड नहीं है, लेकिन इन तीनों राज्यों के वित्तीय विवरणों में नकारात्मक शेष राशि है।
15 दिनों के अंदर करना होता है भुगतान, नहीं दिया गया हर्जाना
मनरेगा के दिशानिर्देशों के तहत मस्टर रोल बंद होने के 15 दिनों के अंदर श्रमिकों को भुगतान मिल जाना चाहिए। अगर मजदूरी का भुगतान नहीं किया जाता, तो श्रमिकों को देरी की अवधि के दौरान एक प्रति दिन की दर पर हर्जाना मांगने का अधिकार है।
भुगतान में इस देरी के लिए किसी कानूनी हर्जाने की गणना नहीं की गई है।
स्क्रॉल की अगस्त 2017 की रिपोर्ट में बताया गया था कि वित्त वर्ष 2016-17 के दौरान, केंद्र सरकार ने हर्जाना केवल 519 करोड़ रुपये होने का अनुमान लगाया था, जो 1,208 करोड़ रुपये की वास्तविक बकाया राशि का 43 प्रतिशत था।
रिपोर्ट में कहा गया था कि ग्रामीण विकास मंत्रालय केवल राज्य सरकार की ओर से हुई देरी के आधार पर हर्जाने का हिसाब लगाता है। केंद्र सरकार की ओर से श्रमिकों को भुगतान करने में देरी पर विचार नहीं किया जाता।
एकाउंटेबिलिटी इनिशिएटिव की ओर से 2017-18 की बजट की जानकारी के अनुसार, बकाया हर्जाने में से लगभग 94फीसदी को 13 जनवरी, 2017 तक स्वीकृति नहीं दी गई थी। स्वीकृति वाले 6फीसदी में से, केवल 61फीसदी (8.7 करोड़ रुपये) का भुगतान किया गया था।
नरेगा संघर्ष मोर्चा का दावा है कि वर्तमान वित्त वर्ष के लिए भुगतान किए जाने वाले 34.7 करोड़ रुपये के हर्जाने में से, केवल 3.6 करोड़ रुपये या 10फीसदी का भुगतान किया गया है।
ग्रामीण विकास मंत्रालय ने बताया है कि हर्जाने का प्रावधान लागू होने के बाद से स्वीकृत किए गए 80.58 करोड़ रुपये के हर्जाने में से, 51.4 करोड़ रुपये (64 प्रतिशत) का भुगतान किया गया है।
वर्तमान वित्त वर्ष में मनरेगा के लिए बजट आवंटन 48,000 करोड़ रुपये का है, जो योजना के तहत अभी तक की सबसे अधिक रकम है। 27 अक्टूबर, 2017 तक, 40,725 करोड़ रुपये, बजट आवंटन का करीब 85 प्रतिशत खर्च किया गया था।
3 नवंबर, 2017 को वित्तीय विवरणों के अनुसार 11 राज्यों की नकारात्मक शेष राशि (बकाया भुगतान सहित) है।
यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 06 नवंबर, 2017 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।