रांची। पलामू जिला के सतबरवा थाना क्षेत्र के बकोरिया में एक नक्सली और 11 निर्दोष लोगों की कथित पुलिस मुठभेड़ में मारे जाने के मामले में सीबीआइ ने 19 नवंबर को प्राथमिकी दर्ज कर ली है। इसकी संख्या आरसी 4 (एस)/2018/एससी-1/सीबीआइ/नयी दिल्ली है। प्राथमिकी भादवि की धारा 147, 148, 149, 353, 307, आर्म्स एक्ट की धारा 25(1-बी) ए/26/27/35 और एक्सप्लोसिव सब्सटांस एक्ट की धारा 4/5 के तहत दर्ज की गयी है। सूत्रों के मुताबिक बकोरिया कांड की जांच सीबीआइ की स्पेशल क्राइम ब्रांच-एक करेगी अगले एक-दो दिन के भीतर सीबीआइ की टीम के रांची पहुंचने की संभावना है।
यह टीम सबसे पहले मामले की जांच पूरी कर चुकी राज्य सरकार की एजेंसी सीआइडी से संबंधित कागजात हासिल करेगी। फिर अपना काम शुरू करेगी। उल्लेखनीय है कि सीआइडी ने मुठभेड़ को सही बताया है और झारखंड पुलिस के अफसरों को क्लीनचिट दे दिया है। पिछले महीने की 22 तारीख को झारखंड हाइकोर्ट ने मामले की सीबीआइ जांच के आदेश दिये थे। हाइकोर्ट के जस्टिस रंगन मुखोपाध्याय ने टिप्पणी की थी कि सीआइडी ने सही दिशा में जांच नहीं की है। इससे लोगों का जांच एजेंसी पर से भरोसा उठ गया है। लोगों का भरोसा कायम रखने के लिए मामले की सीबीआइ जांच जरूरी है।
दरअसल, इस मामले में शुरू में तो राज्य पुलिस ने मुख्यमंत्री को अंधेरे में रखा, जिसके कारण मुख्यमंत्री की तरफ से घटना के बाद झारखंड पुलिस को बधाई संदेश दिया गया। फिर उन्हें अंधेरे में ही रख कर और गलत सूचनाएं देकर तीन सीनियर आइपीएस अफसरों का तबादला करा दिया गया, लेकिन जब मामले को लेकर मीडिया में खबरें आने लगीं, एडीजी एमवी राव ने जांच में तेजी लायी, फिर जांच में गलत करने के लिए डीजीपी ने उन पर दबाव बनाया, तब यह मामला विधानसभा में उठा। तब मुख्यमंत्री को भी घटना की सच्चाई बतायी गयी।
पुलिस नहीं चाहती थी कि जांच सही दिशा में हो
बकोरिया कांड की जांच में शुरू से ही अनुसंधान को प्रभावित करने की कोशिश की गयी। आरोप है राज्य पुलिस के वरीय अधिकारी इस मामले की त्वरित और निष्पक्ष जांच नहीं चाहते थे। पुलिस मुठभेड़ में हुई मौत के मामलों की सीआइडी जांच का नियम बना हुआ है, लेकिन इस मामले की जांच शुरू करने में सीआइडी ने करीब छह महीने तक इंतजार किया। इतना ही नहीं, सीआइडी ने करीब ढाई साल तक सिर्फ खानापूर्ति की। यहां तक कि घटना से जुड़े महत्वपूर्ण लोगों और मृतकों के परिजनों तक का बयान दर्ज नहीं किया। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के आदेश और निर्देश का पालन भी सही तरीके से नहीं किया।