दीपेश कुमार
रांची। झारखंड में लोकसभा और विधानसभा चुनाव को अब गिनती के कुछ माह रह गये हैं। इसके साथ ही झारखंड में सियासी पारा गरम होने लगा है। टिकट पक्का कराने के लिए रांची से लेकर दिल्ली तक दावेदारी की दौड़ शुरू हो चुकी है। इसमें खालिस नेता तो हैं ही। दावेदारों की भीड़ में सरकारी सेवा छोड़कर राजनीति का मेवा खाने की इच्छा रखने वाले नौकरशाह भी शामिल हैं।
राजनीति में भाग्य आजमाने के लिए अफसर इस्तीफा तक देने से पीछे नहीं हटते। पहले से ही इस्तीफा देकर किस्मत आजमा रहे अधिकारियों के साथ कुछ ऐसे भी हैं, जो अपना राजनीतिक भविष्य का आकलन करने में जुटे हैं। कुछ अधिकारी पर्दे के पीछे रह कर राजनीतिक हवा भांपने की कोशिश कर रहे हैं। इधर, रिटायर्ड आइएएस और आइपीएस भी टिकट की दावेदारी में पीछे नहीं हैं। कई नौकरशाहों को राजनीतिक आॅफर का इंतजार है। जाहिर सी बात है, आॅफर मिलने पर वे नौकरी से इस्तीफा देने से भी पीछे नहीं हटेंगे।
जितनी तेजी से इंट्री, उतनी ही जल्दी खत्म हुआ क्रेज
हाल के दिनों में झारखंड में आइएएस और आइपीएस अफसरों की राजनीति में तेजी से इंट्री हुई है। यहां नौकरशाहों की राजनीतिक महत्वाकांक्षा की पराकाष्ठा दिखती है। यही कारण है कि खुद को तीसमार खां समझनेवाले ये अधिकारी यह भूल कर बैठते हैं कि जिस प्रकार उन्होंने पूरी जिंदगी नौकरी मेंं दबंगई की, उसी तरह राजनीतिक मैदान में भी वे सिक्के गाड़ लेंगे।
चुनावी नतीजे उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा की सूरत बिगाड़ते रहे हैं। एक बार फिर चुनावी जंग शुरू होने से पहले ही इन नौकरशाहों ने राजनीति गतिविधियों पर टकटकी गड़ा दी है और खुद के लिए संभावनाएं तलाशने में जुट गये हैं। कई अधिकारी जो नौकरी में हैं, वे भी अवसर तलाश रहे हैं, ताकि वे भी इस्तीफा देकर राजनीतिक पैंतरा आजमा सकें। हालांकि जिस तेजी से इन अधिकारियों की राजनीति में इंट्री हुई है, उसी तेजी से जनता का भी उनसे मोहभंग हुआ है। कई ऐसे नौकरशाह नेता हैं, जिन्हें जनता ने मौका तो दिया, पर वे छाप नहीं छोड़ सकें। कांग्रेस अध्यक्ष डॉ अजय कुमार, भाजपा प्रवक्ता जेबी तुबिद, पूर्व डीएसपी शीतल उरांव, सुबोध कुमार, बीसीसीआइ प्रभारी सचिव अमिताभ चौधरी और पूर्व केंद्रीय मंत्री रामेश्वर उरांव इसके उदाहरण हैं, जिन्हें चुनावी जंग में जनता ने नकार दिया।
आधा दर्जन से ज्यादा अधिकारी चुनावी मैदान में आजमा चुके हैं दांव
झारखंड के कई ब्यूरोक्रेट्स राजनीतिक रसूख पाने को मचल रहे हैं। यही वजह है कि राज्य के वरिष्ठ नौकरशाह अब राजनीतिक मुकाम पाने की जुगत में है। राज्य में पिछली बार चुनावी मैदान में एक आइएएस अधिकारी के अलावा पांच पूर्व आइपीएस अफसरों ने किस्मत आजमायी थी। झारखंड विकास मोर्चा के टिकट पर पूर्व आइजी और राज्य क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष अमिताभ चौधरी ने रांची लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा था। अमिताभ ने चुनाव विकास के मुद्दे पर लड़ा पर जनता ने उन्हें नकार दिया। पूर्व डीजीपी भाजपा के टिकट पर सांसद जरूर बने, पर वह भी ऐसा कुछ खास नहीं कर पाये, जिससे जनता के बीच उनकी कोई पहचान बनी हो। जनता के बीच उनका भी मोहभंग हो चुका है।
नक्सलियों के गढ़ माने जाने वाली पलामू लोकसभा सीट से राज्य के पूर्व डीजीपी बीडी राम भाजपा के टिकट पर चुनावी मैदान में उतरे और मोदी लहर में जीतने में भी कामयाब रहे। जबकि नक्सल प्रभावित गुमला से कांग्रेस के टिकट पर पूर्व एडीजीपी रामेश्वर उरांव ने अपनी किस्मत आजमायी, पर नाकाम रहे। पूर्व डीआइजी सुबोध कुमार आजसू के टिकट पर गोड्डा से चुनाव लड़े, पर हारने के बाद राजनीतिक पटल से गायब हो गये।
उधर, जमशेदपुर से दोबारा पूर्व आइपीएस और पूर्व सांसद अजय कुमार जेवीएम के उम्मीदवार थे, पर जनता ने उन्हें भी नकार दिया। अब वह बतौर कांग्रेस अध्यक्ष पार्टी को आगे बढ़ाने में जुटे हैं, पर उनके ही दल के अंदर वह किसी को पच नहीं रहे हैं। उन पर आयातित नेता का ठप्पा लग चुका है।
नौकरी छोड़ राजनीति में आये पूर्व आइपीएस अधिकारी डॉ अरुण उरांव ने पहले तो भाजपा से टिकट की दावेदारी मजबूती से पेश की, पर अंतिम समय में टिकट कटने पर उन्होंने कांग्रेस का दामन थाम लिया और आज राजनीतिक हाशिये पर चले गये हैं। कांग्रेस में ही उनका कोई नामलेवा नहीं दिखता।
आइएएस से इस्तीफा देकर चाईबासा से बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़नेवाले पूर्व गृह सचिव जेबी तुबिद को भी जनता ने नकार दिया। हालांकि चुनाव हारने के बाद भी भविष्य की आस में वह पार्टी के अंदर सक्रिय रहे। आज वह पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता का पद संभाल जरूर रहे हैं, लेकिन उस मुकाम तक पहुंचते नहीं दिख रहे कि चुनावी बाजी जीत सकें।
नौकरशाहों के लिए निराशाजनक रहा पिछला विस चुनाव
पिछले विधानसभा चुनाव का रिजल्ट पूर्व नौकरशाहों के लिए काफी निराशाजनक रहा था। एसी कमरों में रहने वाले इन पूर्व नौकरशाहों को अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत में ही मुंह की खानी पड़ी, जिससे इन नये राजनेताओं को काफी उम्मीदें थीं। कोई सीएम पद का दावेदार माना जा रहा था, तो कोई अपनी जीत पक्की बता रहा था। लेकिन, जनता ने उनके अरमानों पर पूरी तरह पानी फेर दिया। पिछली बार एक भी पूर्व नौकरशाह विधायक नहीं बन पाया। आइये जानते हैं इन नौकरशाह राजनीतिज्ञों को आज राजनीतिक हाशिये पर हैं।
सचिव पद से दिया इस्तीफा, सीएम की रेस में भी थे
चाईबासा सीट से बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ने के लिए रेवेन्यू और इनर्जी सेक्रेट्री के पद से रिजाइन कर जेबी तुबिद चुनाव मैदान में उतरे थे। वोटिंग खत्म होने के बाद से ही इनका नाम सीएम पद के दावेदारों में उछला और काफी चचार्एं भी हो रही थीं। लेकिन जैसे ही वोटों की गिनती शुरू हुई, सबसे पहली हार की घोषणा इन्हीं की हुई। इन्हें जेएमएम के प्रत्याशी निरल पूर्ति ने हरा दिया।
डीएसपी पद से दिया इस्तीफा, चर्चा में भी काफी रहे
एजाज बोदरा झारखंड विकास मोर्चा के प्रत्याशी के तौर पर सिसई विधानसभा क्षेत्र से चुनाव मैदान में उतरे थे। वह इस्तीफा देकर सियासी पारी खेलने उतरे और उन्हें बीजेपी के दिनेश उरांव से हार का सामना करना पड़ा।
न रही रेवेन्यू सर्विस, न कर पाये राजनीति
गुमला विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के प्रत्याशी विनोद किस्पोट्टा भी चुनाव लड़ने से पहले इंडियन रेवेन्यू सर्विस में थे। चुनाव लड़ने के लिए उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दिया था और सियासी मैदान में उतरे थे। लेकिन गुमला से बीजेपी प्रत्याशी शिवशंकर उरांव ने विनोद किस्पोट्टा को हरा दिया।