रायपुर से हरिनारायण सिंह
रायपुर। छत्तीसगढ़ चुनाव की रणभूमि सज चुकी है। लगातार चौथी बार सत्ता में वापसी की उम्मीदों के साथ भाजपा जहां चुनावी रणनीति में भारी पड़ रही है, वहीं विपक्षी कांग्रेस लगातार चुनाव प्रबंधन में पिछड़ती नजर आ रही है। भाजपा ने ग्रास रूट स्तर पर तैयारी की है, जबकि कांग्रेस आज भी अपने अंतर्द्वंद्व से जूझ रही है। उसके समर्थक भी नहीं समझ पा रहे हैं कि पार्टी की यह हालत क्यों है।
कांग्रेस का पूरा चुनाव प्रबंधन नेतृत्व की कमी से जूझ रहा है। पार्टी के प्रत्याशी केवल एक नेता पर पूरी तरह आश्रित हो गये हैं। मध्यप्रदेश के नेता, जो छत्तीसगढ़ में कुछ प्रभाव रखते हैं, अपने ही राज्य में जूझ रहे हैं। इसलिए उनके पास छत्तीसगढ़ के लिए समय ही नहीं है।

टिकट बंटवारे के बाद सामने आया कांग्रेस का अंतर्विरोध
गुरुवार को कांग्रेस के प्रत्याशियों की सूची जारी होने के साथ ही पार्टी का अंतर्विरोध खुल कर सामने आ गया। राज्य के पहले मुख्यमंत्री और कभी कांग्रेस का चेहरा रहे अजीत जोगी की पत्नी रेणु जोगी का टिकट काटना पार्टी के लिए महंगा पड़ गया। कई अन्य नेताओं को टिकट नहीं देकर पार्टी ने असंतोष की आग में घी डालने का काम किया है। रेणु जोगी ने शुक्रवार को पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी को एक पत्र लिखा है। इसमें उन्होंने कहा कि उन्होंने केवल सोनिया गांधी से अपने रिश्ते की वजह से अपने पति के साथ जाने से इनकार कर दिया था। पार्टी और अध्यक्ष के प्रति इस प्रतिबद्धता का पुरस्कार उन्हें टिकट से वंचित कर दिया गया। यह अच्छी बात नहीं है। इससे पार्टी के निचले स्तर के कार्यकर्ताओं में गलत संदेश जायेगा और यह गलत परंपरा की शुरुआत होगी।

कांग्रेस ने पांच विधायकों का टिकट काट दिया है। पार्टी ने 90 विधानसभा क्षेत्रों में अपने 30 विधायकों को फिर से मैदान में उतारा है। पार्टी छोड़कर गये विधायक रामदयाल उइके, आरके राय, सियाराम कौशिक और निष्कासित विधायक अमित जोगी की सीट पर नये उम्मीदवारों को मौका दिया गया है। पार्टी ने 38 नये चेहरों पर दांव लगाया है। बस्तर संभाग में अभी कांग्रेस के पास आठ और भाजपा के पास चार सीट है। कांग्रेस ने यहां अपने एक विधायक शंकर धु्रवा का टिकट काट कर पूर्व आइएएस शिशुपाल सोरी को उतारा है। वह पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं। सोरी अदिवासी कांग्रेस प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं। पार्टी ने पैराशूट लैंडिंग से पहरेज किया है, लेकिन कोटा विधानसभा क्षेत्र में मजबूत विकल्प नहीं होने के कारण कांग्रेस को पैराशूट लैंडिंग करानी पड़ी है। वहां से डीएसपी के पद से इस्तीफा देकर तीन माह पहले कांग्रेस में शामिल होने वाले विभोर सिंह को प्रत्याशी बनाया गया है।

टिकट बंटवारे के बाद उभरे असंतोष ने पार्टी की चुनावी संभावनाओं पर कुठाराघात किया है। जाहिर तौर पर भाजपा इस असंतोष का लाभ उठाने में पीछे नहीं रही है। छत्तीसगढ़ की सत्ता में वापसी की कांग्रेस की उम्मीदों को उस समय भी करारा झटका लगा, जब भाजपा ने उसके वोटरों को अपने पक्ष में मोड़ने में काफी हद तक सफलता हासिल कर ली। छत्तीसगढ़ के जनजातीय समाज में भाजपा की पैठ अब तक नहीं के बराबर थी, क्योंकि यह समाज थोक में कांग्रेस का समर्थन करता था। प्रदेश भाजपा के लोग तो यहां तक कहते थे कि कांग्रेस जहां 26 प्रतिशत वोट के साथ अपना चुनावी अभियान शुरू करती है, वहीं भाजपा की शुरुआत शून्य से होती है। यह 26 प्रतिशत वोट जनजातीय समाज का होता था।

इस बार हालत यह है कि कांग्रेस अपने इस वोट को भी संगठित नहीं रख पा रही है। जनजातीय समाज में यह चर्चा आम है कि जो पार्टी चुनावी रेस शुरू होने से पहले ही हांफने की स्थिति में है, वह असरदार शासन कैसे देगी। भाजपा यह धारणा बनाने में सफल होती दिख रही है।

पांच बनाम पांच सौ की चर्चा जोरों पर
रायपुर, बिलासपुर और अंबिकापुर जैसे शहरों में लोग चुनाव की चर्चा के दौरान पांच बनाम पांच सौ की चर्चा करते हैं। यह नारा यहां बेहद प्रभावी हो गया है। लोग कहते हैं कि भाजपा के लोग जहां हर दिन कम से कम पांच सौ लोगों से संपर्क करते हैं, वहीं कांग्रेस के लोग पांच लोगों से संपर्क कर रहे हैं। चुनाव प्रचार में यह फासला बहुत मायने रखता है। कांग्रेस के पिछड़ने का दूसरा सबसे बड़ा कारण रणनीतिकारों की कमी है। भाजपा के पास सौदान सिंह जैसा रणनीतिकार है, जिसने राज्य उत्सव जैसे अवसर को भी पार्टी के लिए लाभकारी बना दिया, जबकि कांग्रेस इसका जवाब भी तलाश नहीं सकी।

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