रांची। कांग्रेस के अचानक मधु कोड़ा के प्रति दिल पसीजने के दो ही कारण हो सकते हैं। पहला यह कि तमाम राजनीतिक झंझावातों को झेलने के बाद भी कोल्हान में मधु कोड़ा की राजनीतिक धरातल कमजोर नहीं हुई है। वह आज भी वहां की जनता के दिलों में राज कर रहे हैं। उनकी लोकप्रियता के कारण ही कांग्रेस कोल्हान से जमींदोज हो गयी है। दूसरा 4000 करोड़ के घोटाले का आरोप आहिस्ता-आहिस्ता कमजोर पड़ रहा है।

उस आरोप की सच्चाई पर से परदा उठने लगा है। लोगों को लगने लगा है कि उस आरोप में मधु कोड़ा को अकेले बलि का बकरा बनाया गया। जनता इसी नाइंसाफी के कारण आज भी मधु कोड़ा परिवार के साथ पूरी मजबूती से जुटी हुई है। कारण चाहे जो भी, लेकिन अब यह सच्चाई है कि पहले पत्नी गीता कोड़ा, फिर मधु कोड़ा ने कांग्रेस का दामन थाम लिया है। अपनी पार्टी का भी विलय कांग्रेस में कर दिया है। इसे लेकर राजनीतिक घमासान मचा हुआ है। कांग्रेस सफाई देती फिर रही है कि कोड़ा की पार्टी का विलय हुआ है, कोड़ा का नहीं। कभी उसके नेता यह भी कहते हैं कि कोड़ा के आने से कोल्हान में पार्टी मजबूत होगी।

बताते चलें कि मधु कोड़ा निर्दलीय विधायक रहते हुए वर्ष 2006 में कांग्रेस के समर्थन से मुख्यमंत्री बने थे। वह 14 नवंबर 2006 से 2008 यानी दो साल तक मुख्यमंत्री रहे। बाद में 2009 में वह सिंहभूम से अपनी पार्टी जय भारत समानता पार्टी के टिकट पर सांसद चुने गये। वर्ष 2009 में ही उन्हें कोयला घोटाला में जेल जाना पड़ा। तब उनकी पत्नी गीता कोड़ा पश्चिमी सिंहभूम के जगन्नाथपुर से विधानसभा चुनाव लड़ीं और जीतीं। गीता कोड़ा अभी भी जगन्नाथपुर से विधायक हैं। वहीं मधु कोड़ा 2014 का लोकसभा चुनाव हार गये थे।

इधर, कांग्रेस ने मधु कोड़ा को पार्टी में शामिल करा कर भाजपा और झारखंड मुक्ति मोर्चा दोनों को मैसेज दिया है। झारखंड में राजनीतिक रूप से चार हिस्से हैं। एक संथालपरगना, दूसरा छोटानागपुर, तीसरा कोल्हान का और चौथा बिहार से लगते इलाकों का। इनमें कोल्हान के इलाके में हो आदिवासियों की मजबूत स्थिति है, जिसके सबसे बड़े नेता मधु कोड़ा हैं।

चाईबासा, जमशेदपुर आदि इस इलाके में आते हैं। पहले इस इलाके में भाजपा की मजबूत स्थिति थी, पर अब झारखंड मुक्ति मोर्चा ने इसमें अपनी पैठ बनायी। पिछले विधानसभा चुनाव में हेमंत सोरेन की पार्टी जेएमएम के उम्मीदवार दशरथ गागराई ने खरसावां से पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा को हरा दिया। यही नहीं, जेएमएम ने पूर्व आइएएस अधिकारी जेबी तुबिद को भी चाईबासा से पटकनी दे दी।

मधु कोड़ा की मजबूत पकड़ के कारण ही भाजपा भी उन पर डोरा डाल रही थी। कारण राज्यसभा चुनाव में भाजपा ने गीता कोड़ा का समर्थन भी लिया था। इसके बाद से इस चर्चा को बल मिला कि कोड़ा दंपति भाजपा में जा सकते हैं। हालांकि इसके कुछ महीने के बाद इन अटकलों पर विराम लगाते हुए कोड़ा दंपति ने कांग्रेस का दामन थामा।

एक और बड़ी वजह लोग इसे भी मान रहे हैं कि शायद कांग्रेस को लगने लगा था कि उस वक्त सरकार में सबने मलाई खायी, लेकिन कोड़ा खाने के लिए मधु कोड़ा को अकेले छोड़ दिया गया। हर दल ने न सिर्फ किनारा कर लिया, बल्कि बयानों का कोड़ा लगातार चलाते रहे। बावजूद इसके मधु कोड़ा ने इन झंझावातों को झेला। उस वक्त देश ही नहीं, विदेश तक में मधु कोड़ा लूट कांड की चर्चा हुई। आज एक बार फिर मधु कोड़ा चर्चा में हैं। भले ही उस वक्त राजनीतिक दलों के सहयोगियों ने मधु कोड़ा को खलनायक बना दिया, लेकिन कोल्हान की जनता मधु कोड़ा को नायक मानती रही।

वहां की जनता आज तक यह मानने को तैयार नहीं है कि मधु कोड़ा घोटालेबाज हैं। यही कारण है कि मधु कोड़ा की कोल्हान में मजबूत पकड़ हो गयी। इसी का नतीजा है कि आज कांग्रेस ने अपना हाथ बढ़ाया। इससे यह भी स्पष्ट हो गया है कि न्यायिक प्रक्रिया चाहे जो हो, लेकिन जनता की अदालत ने मधु कोड़ा को कभी भी अकेले गुनहगार नहीं माना। राजनीतिक अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे कोड़ा को गले लगाया। अब तो धीरे-धीरे जांच एजेंसी भी मधु कोड़ा के मामले में प्रमाण जुटा पाने में असमर्थ हो रही हैं। यही कारण है कि राजीव गांधी विद्युतीकरण में हुए घोटाले में मधु कोड़ा को संभवत: क्लीन चिट मिल गयी है। वहीं पॉल्यूशन बोर्ड के मामले में भी कोड़ा को राहत मिली है।

निश्चित तौर पर चर्चा चाहे जो हो, लेकिन मधु कोड़ा के कांग्रेस में शामिल हो जाने से कांग्रेस की स्थिति मजबूत हुई है। इससे तालमेल होने की स्थिति में जेएमएम के मोलभाव करने की क्षमता कम होगी। पहले जेएमएम कांग्रेस को कमजोर बता कर इस इलाके में ज्यादा सीट झटकना चाहता था, पर अब उसे कांग्रेस के लिए ज्यादा सीटें छोड़नी होंगी। कोड़ा दंपति सिंहभूम और जमशेदपुर दोनों जिलों में असर डालेंगे। इस नये समीकरण के बाद भाजपा को भी अपने सबसे बड़े आदिवासी नेता अर्जुन मुंडा को राजनीतिक तरजीह देनी ही होगी। ऐसा करके ही वह साझा विपक्ष का मुकाबला कर पायेगी। अगर विपक्ष का महागठबंधन नहीं बना और त्रिकोणात्मक लड़ाई हुई, तो भाजपा इसका फायदा भी उठा सकती है।

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