रांची। निश्चित तौर पर पारा शिक्षकों का सफरनामा जान कर आप आश्चर्य में पड़ जायेंगे कि क्या राजनीतिक पार्टियां सिर्फ पारा शिक्षकों के बहाने राजनीतिक रोटी सेंक रही है, वोट बैंक की राजनीति हो रही है या फिर कुछ और बात है। यह जानने के लिए हम आपको कुछ साल पहले ले चलते हैं। हमेशा से पारा शिक्षकों की हितैषी रहीं गीताश्री उरांव को जब शिक्षा मंत्रालय का कार्यभार मिला, तो पारा शिक्षक काफी उत्साहित थे।
इनके उत्साह को भी गीताश्री उरांव ने घोषणा कर और बढ़ा दिया। बिना किसी होमवर्क के घोषणा कर दी कि पारा शिक्षकों के मानदेय में पांच-पांच हजार की वृद्धि होगी। इसके बाद जब अधिकारी इस पर मंथन करने लगे, तो उनका माथा ठनक गया। इस बढ़ोत्तरी से 500 करोड़ का अतिरिक्त भार सरकार पर पड़ता। इसे लेकर खूब मंथन का दौर चला। अंतत: यह घोषणा मात्र मुंगेरी लाल के हसीने सपने के सिवा कुछ नहीं रहा। उस वक्त कांग्रेस पार्टी को भी स्थायीकरण का खयाल दिल में नहीं आया।
एक और वाकया का पारा शिक्षकों से संबंधित है। जब बंधु तिर्की शिक्षा मंत्री थे। उस वक्त आज का समूचा विपक्ष सत्ता में था। हड़ताल के बाद बंधु तिर्की ने पारा शिक्षकों के कल्याण के लिए गिरिनाथ सिंह की अध्यक्षता में कमेटी बनायी। कमेटी ने कई राज्यों का दौरा किया। रिपोर्ट भी सौंपी, लेकिन जब इसे लागू करने की बारी आयी, तो इस रिपोर्ट को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया।
बिहार से अलग होने के साथ ही पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के शासनकाल में पारा शिक्षकों को ग्राम शिक्षा समिति के जरिये प्राथमिक और मिडिल स्कूलों में नियुक्त किया गया था। 500 रुपये के मानदेय पर पारा शिक्षक नियुक्त हुए थे। सर्व शिक्षा अभियान शुरू होने के बाद 2003 में पारा शिक्षकों का मानदेय बढ़ा कर एक हजार कर दिया गया। 2004 में दो हजार कर दिया गया। 2005 में पारा शिक्षक आंदोलन पर उतरे। इसके बाद उनके मानदेय को तीन स्लैब में बांट दिया गया। मानदेय 2500, 3000 और 3500 रुपये दिया जाने लगा। 2009 में इसे बढ़ा कर 5000, 5500 और 6000 रुपये कर दिया गया। 2012 में आंदोलन के बाद पारा शिक्षकों का मानदेय 5700, 6200 और 6700 हो गया। राज्य में पारा शिक्षकों के मानदेय में हजार-पांच सौ की वृद्धि को लेकर किचकिच होती रही है। जब-जब पारा शिक्षकों ने आंदोलन किया, मानदेय में 500 से एक हजार तक की वृद्धि हुई। 10 वर्ष में पारा शिक्षक के मानदेय में कभी भी एकमुश्त 1500 से अधिक की बढ़ोतरी नहीं हुई है।
संख्या और प्रभाव के कारण सेंकी जा रही राजनीतिक रोटी
प्राथमिक शिक्षा की रीढ़ माने जानेवाले पारा शिक्षक एक बार हॉट केक बने हुए हैं। संख्या और गांव में प्रभाव के कारण राजनीतिक दल लाठीचार्ज के बहाने राजनीतिक रोटी सेंक रहे हैं। राज्य में लगभग 67 हजार पारा टीचर हैं, जो प्रदेश की आबादी का वह बड़ा हिस्सा हैं। यह ग्रामीण इलाकों में रहता है। गांव में पारा शिक्षकों की पैठ भी है। इनकी नियुक्ति शिक्षकों की कमी को दूर करने के लिए की गयी थी। डेढ़ दशक पहले ग्राम शिक्षा समिति के द्वारा इन्हें नियुक्त किया गया। समय के साथ सरकारी शिक्षक रिटायर होते गये और पारा शिक्षक की संख्या बढ़ती चली गयी। आंकड़ों पर गौर करें, तो सबसे अधिक पारा टीचर गिरिडीह जिले में हैं। वहां करीब 7000 पारा टीचर हैं। दरअसल, पारा शिक्षकों की इलाके में स्थिति काफी मजबूत है। एक तो स्थानीय होने के नाते और दूसरे स्कूल में शिक्षक होने के नाते कहीं न कहीं से अपने इलाके में इनका अच्छा खासा प्रभाव है। वहीं इनसे प्रभावित होनेवालों लोगों की जमात भी बड़ी है।
2015 में समझौता : मिलीं सुविधाएं
2015 में हुए समझौते के आधार पर महिला पारा शिक्षकों को अन्य सरकारी शिक्षकों की तरह मातृत्व और विशेष अवकाश दिया जा रहा है। प्राथमिक शिक्षकों की नियुक्ति में 50 फीसदी पद पारा शिक्षकों के लिए आरक्षित है। मुख्य सचिव ने पारा शिक्षकों के साथ हुई वार्ता में शिक्षक पात्रता परीक्षा के प्रमाणपत्रों की मान्यता पांच वर्ष से बढ़ा कर सात वर्ष करने का वादा किया है।
पारा शिक्षकों के मानदेय में 20 फीसदी वृद्धि करने पर भी सहमति दी गयी है। इसके तहत टेट पास स्नातक प्रशिक्षित पारा शिक्षकों को 12 हजार तथा प्राथमिक स्कूलों में कार्यरत टेट पास प्रशिक्षित पारा शिक्षकों को 11 हजार रुपये मासिक मानदेय मिलेगा। पारा शिक्षकों के लिए कल्याण कोष का गठन किया जा रहा है। इससे किसी पारा शिक्षक के आकस्मिक निधन पर उनके आश्रित को ढाई लाख रुपये सहायता राशि मिलेगी। कल्याण कोष की राशि भी पांच करोड़ से बढ़ा कर दस करोड़ करने पर सहमति दी गयी है। साथ ही सेवा संतोषप्रद होने पर 60 वर्ष की उम्र तक की जा सकती है।