कर्ज के दबाव में फल विक्रेता ने पत्नी और चार बच्चों संग खा लिया जहर : बिखरते सामाजिक ताने-बाने का सबसे विद्रूप स्वरूप है यह घटना
बिहार के नवादा में कर्ज से परेशान एक फल विक्रेता केदारनाथ गुप्ता ने पत्नी और चार बच्चों के साथ जहर खाकर आत्महत्या कर ली। इन छह लोगों की मौत कोई सामान्य घटना नहीं है। जिस बिहार में राजनीतिक भावनाएं अक्सर हिलोरें मारती हैं, जहां का सामाजिक ताना-बाना आज भी प्रशंसनीय स्तर तक मजबूत माना जाता है, वहां कर्ज से परेशान एक परिवार के मुखिया ने पत्नी और चार बच्चों के साथ जीवन खत्म करने का फैसला किस मानसिक दवाब में लिया होगा, इसकी कल्पना मात्र ही किसी संवेदनशील व्यक्ति को झकझोर सकती है। वैसे नवादा की यह घटना न पहली है और न अंतिम। इससे पहले जून में समस्तीपुर में भी आर्थिक तंगी से परेशान एक युवक ने परिवार के पांच सदस्यों के साथ आत्महत्या कर ली थी। इन घटनाओं से अब साफ हो चला है कि कभी सामाजिक रूप से बेहद सुगठित बिहार के लोग भी अब इस हद तक निराश होने लगे हैं कि वे सामूहिक आत्महत्या जैसा खौफनाक कदम उठाने से भी परहेज नहीं कर रहे हैं। बिहार समेत हिंदी पट्टी के दूसरे राज्यों के बारे में कहा जाता है कि यहां आत्महत्या जैसी घटनाएं देश के दूसरे हिस्सों के मुकाबले कम होती हैं, क्योंकि यहां के लोग नकारात्मक सोच के नहीं होते। लेकिन पहले समस्तीपुर और अब नवादा और इससे पहले 2018 में झारखंड के हजारीबाग और रांची में हो चुकी इस तरह की घटनाओं ने इस स्थापित विश्वास को हिला कर रख दिया है। नवादा की घटना ने ऐसे ही कुछ अहम सवाल समाज के सामने उठा दिये हैं, जिनका जवाब तलाशा जाना बेहद जरूरी है। नवादा की घटना की पृष्ठभूमि में सामूहिक आत्महत्या और बिखरते सामाजिक ताने-बाने के खतरनाक रूप से फैलते असर का विश्लेषण कर रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राहुल सिंह।
बिहार के नवादा में एक फल विक्रेता केदारनाथ गुप्ता ने परिवार के पांच सदस्यों के साथ जहर खा लिया और इस कारण उन सभी की मौत हो गयी। यह मान लेना असंभव है कि एक वाक्य की यह सूचना खबरों के महासमुद्र और सूचना क्रांति के इस दौर में उस समाज का ध्यान खींच लेगी, जो सोशल मीडिया को ही अपना समाज मान चुका है। लेकिन यह सूचना किसी भी संवेदनशील मनुष्य और उससे भी आगे बढ़ कर समाज के चेहरे पर करारा तमाचा है। केदारनाथ गुप्ता और उनके परिवार के पांच सदस्य तो कर्ज के बोझ से मुक्त हो गये, लेकिन इनकी मौत ने इस समाज के सामने एक साथ कई सवाल खड़े कर दिये हैं। इन सवालों की तह में जाने पर उस सड़ चुके सामाजिक ताने-बाने के साक्षात दर्शन होते हैं, जिस पर हमने सुनहरा मुलम्मा चढ़ा रखा है।
मौत का दसवां सबसे बड़ा कारण है आत्महत्या
यदि दुनिया की बात करें, तो आत्महत्या दुनिया में मौत का दसवां सबसे बड़ा कारण है। इतना ही नहीं, 1958 में अमेरिका में हुए एक शोध के अनुसार किशोर और 35 साल से कम उम्र के युवा सबसे अधिक आत्महत्या करते हैं। दुनिया भर में 2021 में करीब दो करोड़ लोगों ने आत्महत्या की और यह संख्या साल-दर-साल बढ़ती ही जा रही है। अकेले भारत में 2021 में कुल 33 हजार लोगों ने आत्महत्या की, यानी हर दिन करीब 10 लोगों ने अपना जीवन खत्म किया।
बहुत मार्मिक है केदारनाथ गुप्ता की कहानी
नवादा की घटना की ओर लौटते हैं। बिहार जैसे संवेदनशील समाज में इस तरह की घटना इसलिए भी आश्चर्यजनक है, क्योंकि देश के दूसरे हिस्सों की अपेक्षा बिहार और हिंदी पट्टी के राज्यों का सामाजिक ताना-बाना बेहद मजबूत माना जाता है। लेकिन केदारनाथ गुप्ता और उनके परिजनों ने जब आत्महत्या का फैसला किया होगा, तो वे किस मानसिक स्थिति से गुजर रहे होंगे, इसकी केवल कल्पना ही की जा सकती है। इस परिवार के बारे में जो सूचनाएं सामने आ रही हैं, वे किसी भी संवेदनशील इंसान के अंतरमन को झकझोरने के लिए काफी हैं। केदारनाथ गुप्ता किराये के मकान में रहते थे, लेकिन उन सभी ने उस मकान में केवल इसलिए आत्महत्या नहीं की, क्योंकि वे नहीं चाहते थे कि मकान मालिक को कोई परेशानी हो। इतना ही नहीं, केदारनाथ गुप्ता का किशोर पुत्र प्रिंस अंतिम समय तक अपने पिता से लिपटा रहा। उसने जहर खाने से पहले फेसबुक पर आखिरी पोस्ट लिखा था, आइ लव माइ फैमिली, यानी मैं अपने परिवार से प्यार करता हूं। यही नहीं, उसने और भी बहुत सारे उदास वाले पोस्ट और पारिवारिक फोटो भी शेयर की थी। इन सभी पोस्ट को देख कर ही समझा जा सकता है कि सभी परिवार के सदस्यों में आपस में कितना प्रेम था और किन परिस्थितियों में परिवार के सदस्यों ने आत्महत्या जैसा बड़ा कदम उठाया होगा। केदारनाथ ने मरने से पहले बताया कि उन पर 12 लाख रुपये का कर्ज हो गया था और वह नहीं चुका पा रहे थे। इसकी वजह से महाजन बार-बार उन्हें तंग करता था। केदारनाथ की बेटी साक्षी और मरते हुए परिवार के सदस्यों ने कुछ ऐसी बातें बतायी हैं, जिनको सुन कर हर आदमी मार्मिक हो सकता है।
बिहार के बिखरते समाज पर सवाल
राजनीतिक रूप से बेहद संवेदनशील और सामाजिक रूप से बेहद जीवंत माने जानेवाले बिहार में इस तरह की घटना इसलिए बड़ी मानी जाती है, क्योंकि हिंदी पट्टी के राज्यों में अब भी सामाजिक संरचना मजबूत बनी हुई है। जिस राज्य में समाज अपने किसी सदस्य के लिए कुछ भी करने को तैयार हो, वहां किसी परिवार की आत्महत्या उसे अक्सर झकझोरती है। लेकिन इसी साल जून में जब समस्तीपुर में आर्थिक तंगी से परेशान एक युवक ने अपने परिवार के साथ आत्महत्या कर ली, तो न कोई राजनीतिक संगठन सामने आया और न कोई सामाजिक संगठन। इससे पहले 2018 में दिल्ली के बुराड़ी में 11 लोगों के परिवार ने आत्महत्या कर ली थी। उसके फौरन बाद झारखंड के हजारीबाग में परिवार के पांच लोगों की हत्या करने के बाद परिवार के मुखिया ने आत्महत्या कर ली थी। इसी तरह रांची के कांके में अरसंडे इलाके में भी एक ही परिवार के छह सदस्यों ने आत्महत्या कर ली थी। इससे पहले रांची में ही कोलकाता के एक प्रतिष्ठित परिवार ने कोकर स्थित एक बहुमंजिली इमारत के फ्लैट में आत्महत्या कर ली थी। हाल के दिनों की इन घटनाओं से साबित होता है कि हिंदी पट्टी का सामाजिक बिखराव भी अब शुरू हो चुका है, जिस पर गंभीरता से सोचने की जरूरत है। समाज के तौर पर और एक राजनीतिक इकाई के रूप में बिहार और विशेष कर हिंदी पट्टी के राज्यों के सामने नवादा जैसी घटना गंभीर चुनौैती है।