आजाद सिपाही संवाददाता
नयी दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयुक्त के रूप में अरुण गोयल की नियुक्ति पर दखल दिया है। अदालत ने बुधवार को सुनवाई के दौरान चुनाव आयुक्त के तौर पर अरूण गोयल की नियुक्ति संबंधी फाइल मांगी है। शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार से सवाल किया कि अरुण गोयल की चुनाव आयुक्त पद पर कैसे नियुक्ति की गयी है। अदालत ने इसका रिकॉर्ड भी मांगा है। अदालत ने कहा कि सुनवाई शुरू होने के तीन दिन के भीतर नियुक्ति हो गयी। हम यह जाननता चाहते हैं कि नियुक्ति के संदर्भ में क्या प्रक्रिया अपनायी गयी है। अगर यह नियमानुसार किया गया है, तो इसमें परेशान होने वाली कोई बात नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि 1990 से 1996 के बीच मुख्य चुनाव आयुक्त (सीइसी) टीएन शेषन की नियुक्ति के बाद किसी भी मुख्य चुनाव आयुक्त को अपने पूरे कार्यकाल का मौका नहीं मिला। क्या ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि सरकार को सीइसी बनाये जाने वाले व्यक्ति के जन्म की तारीख पता होती है?
गौरतलब है कि याचिकाकर्ता प्रशांत भूषण ने संविधान पीठ को बताया था कि गुरुवार को उन्होंने ये मुद्दा उठाया था। इसके बाद एक सरकारी अफसर को वीआरएस देकर चुनाव आयुक्त नियुक्त कर दिया गया। बावजूद इसके कि पहले ही उन्होंने इसे लेकर अर्जी दाखिल की थी। भारतीय प्रशासनिक सेवा के पूर्व अधिकारी अरुण गोयल ने सोमवार को चुनाव आयुक्त का पदभार संभाला है। इससे पहले उन्हें शनिवार को चुनाव आयुक्त नियुक्त किया गया था। उन्होंने शुक्रवार को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ली थी। गोयल को 31 दिसंबर 2022 को 60 साल की आयु में सेवानिवृत्त होना था।
परामर्श प्रक्रिया में सीजेआइ को शामिल किया जाये
सुप्रीम कोर्ट ने मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के लिए परामर्श प्रक्रिया में सीजेआइ को शामिल करने की बात कही है। इसी और सीइसी की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम जैसी प्रणाली की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसा करने से चुनाव आयोग की स्वतंत्रता सुनिश्चित होगी। सुनवाई के दौरान अदालत ने यह भी कहा कि वर्तमान में जो व्यवस्था है, उसके तहत अगर केंद्र में कोई भी सत्ताधारी दल खुद को सत्ता में बनाये रखना चाहता है, तो वह इस पद पर ‘यस मैन’ नियुक्त कर सकता है।