• लगातार 27 साल भाजपा की जीत के क्या हैं कारण
  • कुछ तो है, जिसने लोगों को भगवा पार्टी से जोड़ रखा है

गुजरात में विधानसभा चुनाव का संग्राम शुरू हो गया है। यहां 1 और 5 दिसंबर को दो चरणों में चुनाव होंगे। मतों की गिनती 8 दिसंबर को होगी। यहां अगर भाजपा एक बार फिर जीतती है, तो 32 साल सत्ता में रह कर यह एक तरह से इतिहास रच देने जैसा होगा। गुजरात में चुनाव से पहले लोगों के मन में एक सवाल उठ रहा है कि यहां वर्ष 1995 के बाद से लगातार भाजपा को ही कैसे जीत मिल रही है। आखिर वह कौन सा जादू है, जो भाजपा ने गुजरात के लोगों पर फेर दिया है। राजनीति विज्ञान के विद्यार्थियों के लिए यह गहन शोध का विषय हो सकता है। पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 182 सदस्यीय विधानसभा में 99 सीटों पर जीत हासिल की थी। वहीं उस चुनाव में कांग्रेस को 1985 के बाद से राज्य में सबसे अधिक 77 सीटें मिलीं। राजनीतिक पंडितों के सामने यह गंभीर सवाल है कि आखिर भाजपा गुजरात में अपराजेय क्यों है। निश्चित तौर पर यह हिंदुत्व या ऐसा कोई भावनात्मक मुद्दा नहीं होगा, जो इतने दिनों तक कायम रहे। तब क्या गुजरात में शासन का वह बहुचर्चित मॉडल है, जिसका डंका आज पूरी दुनिया में बज रहा है। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात में अपने मुख्यमंत्रित्व काल में जो कुछ किया, उसने वहां के लोगों को भाजपा से जोड़ दिया। इतना ही नहीं, गुजरात के कच्छ क्षेत्र में 2001 के विनाशकारी भूकंप के बाद, मुख्यमंत्री रहते हुए नरेंद्र मोदी ने अपने बहुआयामी दृष्टिकोण के साथ अगले दशक के भीतर कच्छ को प्रगति के पथ पर लाने के लिए अथक प्रयास किया। उन्होंने गुजरात में वित्तीय और तकनीकी पार्कों की स्थापना की और निवेश आमंत्रित करने के लिए ‘वाइब्रेंट गुजरात’ शिखर सम्मेलन शुरू किया। भाजपा की कामयाबी का दूसरा बड़ा कारण लोगों से इसका जुड़ाव है। आज गुजरात के हर मतदाता का भाजपा से सीधा संपर्क है और चुनाव में यह बहुत काम आता है। गुजरात में भाजपा की इस कामयाबी के कारणों का विश्लेषण कर रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

गुजरात में बदलेगी सरकार या भारतीय जनता पार्टी का दबदबा रहेगा बरकरार, इस सवाल का जवाब 8 दिसंबर को मिल जायेगा, जब 1 और 5 दिसंबर को राज्य की 182 सीटों पर डाले गये वोटों की गिनती के बाद परिणाम घोषित होंगे। फिलहाल राज्य में भाजपा की सरकार है और यह सिलसिला साल 1995 से टूटा नहीं है। 2022 में अगर भाजपा का विजय रथ जारी रहा, तो यह पार्टी की इस पश्चिमी राज्य में लगातार सातवीं जीत होगी। अब सवाल है कि कई अन्य दलों की मौजूदगी में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गृह राज्य में भाजपा की पकड़ कैसे 27 साल बाद भी मजबूत बनी हुई है। निश्चित तौर पर यह शोध का विषय हो सकता है। जिस तरह देश की सत्ता पर करीब 30 साल तक कांग्रेस ने बिना किसी चुनौती के राज किया, उसी तरह 1995 के बाद से गुजरात में भाजपा को पराजित करने की ताकत कोई दल नहीं जुटा सका है। भाजपा की इस कामयाबी के कई कारण हो सकते हैं, लेकिन असल कारण तो यही है कि गुजरात के लोगों के साथ भाजपा का जुड़ाव हर दिन गुजरने के साथ मजबूत होता जा रहा है। यह जानना दिलचस्प हो सकता है कि आखिर भाजपा की इस कामयाबी का क्या कारण है।

नरेंद्र मोदी कनेक्शन
गुजरात को भाजपा का अभेद्य गढ़ बनाने में सबसे प्रमुख भूमिका नरेंद्र मोदी ने निभायी। साल 2001 में कच्छ क्षेत्र में आये भूकंप के बाद से ही तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने क्षेत्र में जमकर काम किया। उन्होंने गुजरात में आर्थिक और तकनीकी रफ्तार बढ़ायी और निवेश के लिए ‘वाइब्रेंट गुजरात समिट’ की शुरूआत की। जानकारों के अनुसार मोदी को गुजरात की छवि बदलने का श्रेय दिया जाता है। प्रधानमंत्री बनने से पहले वह लगातार तीन बार प्रदेश की कमान संभाल चुके थे। आज भी कहा जाता है कि गुजरात के लोग पीएम मोदी से सीधे बात कर सकते हैं।

गुजरात मॉडल ने भी अदा की भूमिका
मोदी के सीएम रहते हुए गुजरात की जीडीपी वृद्धि दर काफी ऊंचाई पर थी और अन्य राज्यों की तुलना में गुजरात ‘इज आॅफ डूइंग बिजनेस’ तालिकाओं में भी शीर्ष पर बना हुआ था। साल 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान भी भाजपा ने गुजरात मॉडल का सहारा लिया। मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद भी गुजरात में पार्टी ने 2017 में जीत दर्ज की। अब भाजपा केंद्र में सरकार के साथ ‘डबल इंजन सरकार’ की बात कर रही है।

भाजपा की चुनावी तैयारियां
कहा जाता है कि गुजरात में मतदाताओं से भाजपा का जुड़ाव है। साथ ही मजबूत संगठन मोदी की लोकप्रियता को वोट में तब्दील कर देता है। दो दशकों से ज्यादा समय पार्टी ने अपना वोट शेयर बरकरार रखा है। वहीं मौजूदा चुनाव में भी पीएम मोदी से लेकर देश के कई दिग्गज नेता मौजूदगी दर्ज करा चुके हैं।

संगठन की सक्रियता
गुजरात में भाजपा का संगठन लगभग उसी अंदाज में काम करता है, जिस अंदाज में कभी पश्चिम बंगाल में वामपंथी दलों का और तमिलनाडु में अन्नाद्रमुक का चलता था। राज्य के हर घर में पार्टी का कम से कम एक सदस्य मौजूद है, जो हरदम पार्टी के लिए कुछ भी करने को तत्पर रहता है। राज्य का कोई भी व्यक्ति बिना झिझक पार्टी के किसी भी कार्यालय में जाकर अपनी शिकायत दर्ज करा सकता है और उस पर कार्रवाई भी होती है। यहां तक कि जिस इलाके में विपक्षी प्रत्याशी जीतते हैं, वहां भी भाजपा के खिलाफ नकारात्मक माहौल नहीं बन पाता है। यह लोगों से भाजपा के गहरे जुड़ाव के प्रत्यक्ष उदाहरण हैं।

‘गुजरात अस्मिता’
पार्टी का नया नारा है ‘आ गुजरात, मैं बनायु छे’ और इसके साथ ही भाजपा ने प्रचार के दौरान ‘गुजराती अस्मिता’ का जिक्र छेड़ दिया है। साल 2017 में भी पीएम मोदी ने कांग्रेस की तरफ से उठाये गये जीएसटी और नोटबंदी के वार का सामना गुजरात अस्मिता और विकास के जरिये किया था। इधर बीते चुनाव में पीएम मोदी की लगातार रैलियों के चलते भाजपा अन्य दलों के मुकाबले आगे रही। वहीं रैलियों में मोदी और अमित शाह के गुजराती भाषण भी जनता से जुड़ाव में बड़ी भूमिका निभा गये। इस बार यदि एक बार फिर भाजपा की सत्ता में वापसी होती है, तो यह स्वतंत्र भारत के राजनीतिक इतिहास की एक अनोखी घटना होगी। वैसे तमाम सर्वेक्षण और गुजरात का माहौल अभी से ही इस घटना की पटकथा लिखने का संकेत दे रहे हैं। लेकिन 8 दिसंबर का इंतजार तो करना ही होगा।

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