मधुबनी। जिला मुख्यालय सहित सुदूर ग्रामीण परिवेश में देवोत्थान प्रबोधिनी एकादशी व्रत पर्व की निष्ठापूर्वक निर्वहन गुरुवार को आयोजित हुई।

शास्त्रीय पौराणिक धार्मिक आख्यान में कार्तिक शुक्ल एकादशी तिथि की विशिष्ट महत्व उल्लेखित बताया।एकादशी शुक्ल तिथि को भगवान विष्णु शयनावस्था से जागृष्वु होकर निद्रा त्यागते है।देवोत्थान एकादशी व्रत पालन से अहिलौकिक व परलौकिक कल्याण की शास्त्रीय मान्यता है।

ज्योतिषाचार्य डा सुनील श्रीवास्तव ने बताया कि शास्त्रीय कथानक अनुसार हरिशयन एकादशी तिथि को भगवान विष्णु शयनकक्ष में चले जाते हैं।चतुर्मास में शयनकक्ष में रहने के पश्चात कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष एकादशी तिथि को मंत्रोच्चार के साथ भगवान को जागृत किया जाता।

व्रत पालन कर आमजन संध्याकाल भगवान का वृहत पूजा अनुष्ठान अर्चना किया जाता।व्रती लोग देवोत्थान एकादशी तिथि को फल मूल कण्ड खाकर पारणा करते हैं।परम्परानुसार देवोत्थान एकादशी तिथि को शकरकंद ईख जलफल सिंघार केला मखाना विहित फलाहार होता है।

मुख्यालय स्थित हनुमान प्रेम मंदिर ,राम जानकी मंदिर, काली मंदिर गोकुलवली आश्रम में ” ब्रह्मेन रूद्रेन ,,,,, उतिष्ठ उतिष्ठ हे गोविन्द ” साविधि मंत्रोच्चार के साथ भगवान को धूप-दीप नैवेद्य भोग- राग के साथ पूजा- अर्चना हो रहा।उत्साहपूर्ण वातावरण में एकाग्र भक्तों की चहुंओर भीड़ भजन-कीर्तन में तल्लीन दिखा।इधर मिथिलांचल परिक्षेत्र में देवोत्थान एकादशी तिथि को वृहत शास्त्रीय पौराणिक अरिपन की परम्परागत सांस्कृतिक धरोहर सबतरि दृष्टव्य है।

देवोत्थान एकादशी व्रत की महत्वपूर्ण परम्परानुसार व्यवहार के सन्दर्भ में पंडित विद्वानो ने मंतव्य दिया।पं फूल कान्त ने बताया कि देवोत्थान प्रबोधिनी एकादशी की महत्व शास्त्रीय पौराणिक धार्मिक आख्यान में उल्लेखित है।

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