विशेष
सत्ताधारी इंडी अलायंस और विपक्षी एनडीए के बीच शुरू हुआ घात-प्रतिघात
प्रचार अभियान में दोनों गठबंधनों की तरफ से खूब उठाये जा रहे हैं चुनावी मुद्दे

नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
झारखंड विधानसभा चुनाव का मैदान सज चुका है। नामांकन दाखिल करने, उनकी जांच और नाम वापस लेने की प्रक्रिया पूरी होने के साथ ही चुनाव प्रचार अभियान भी जोर पकड़ने लगा है। नामांकन दाखिल करने के दौरान आयोजित सभाओं में जिस तरह के मुद्दे उठाये गये और जो बातें कही गयीं, उससे यह तो साफ हो गया है कि यह चुनाव बेहद रोमांचक होने के साथ कई नये समीकरणों को आकार देगा। इन सभाओं के बाद अब दोनों तरफ से चुनावी रैलियों और सभाओं का आयोजन होगा। दिवाली संपन्न होने के बाद अब चुनावी रौनक देखने को मिलेगी। पीएम मोदी, अमित शाह, राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे जैसे दिग्गज नेता चुनावी दौरे पर आयेंगे। झारखंड में पहले चरण के लिए 13 नवंबर को वोटिंग होगी। दूसरे चरण के लिए 20 नवंबर को वोट डाले जायेंगे। समय कम है, इसलिए सभी पार्टियां अपनी पूरी ताकत झोंकने को तैयार हैं। झारखंड में इस बार का चुनाव प्रचार अभियान कितना गहन होगा, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि विपक्षी एनडीए के सबसे बड़े घटक दल भाजपा की तरफ से पीएम मोदी और अमित शाह के अलावा दूसरे केंद्रीय नेता और विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्री यहां आयेंगे, जबकि सत्ताधारी इंडी अलायंस की तरफ से नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और दूसरे केंद्रीय नेता के साथ कई राज्यों के मुख्यमंत्री आयेंगे। स्थानीय नेताओं में हेमंत सोरेन और केशव महतो कमलेश के अलावा भाजपा-आजसू की तरफ से बाबूलाल मरांडी और सुदेश महतो तो हैं ही। इन नेताओं के चुनावी दौरों के कार्यक्रम तय किये जा रहे हैं और चुनावी मुद्दों की सूची को भी अंतिम रूप दिया जा रहा है। क्या है झारखंड के चुनाव प्रचार का मुद्दा और क्या हो सकता है इसका असर, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

दिवाली खत्म हो गयी है और इसके साथ ही झारखंड अब विधानसभा चुनाव के बुखार में तपने लगा है। नामांकन दाखिल करने, उसकी जांच और नाम वापस लेने की प्रक्रिया पूरी होने के बाद राज्य में चुनावी मुकाबले की तस्वीर साफ हो गयी है। इसके साथ ही चुनाव प्रचार अभियान भी जोर पकड़ने लगा है। राज्य में अब दिग्गज नेताओं का जमावड़ा देखने को मिलेगा। सभी पार्टियां अपनी पूरी ताकत से चुनाव प्रचार में जुटने लगी हैं। राज्य में पहले चरण का मतदान 13 नवंबर को 43 सीटों पर होगा, तो 20 नवंबर को दूसरे चरण में 38 सीटों पर वोटिंग है।

प्रचार युद्ध में दोनों पक्षों ने झोंकी ताकत
झारखंड विधानसभा चुनाव के लिए प्रचार चरम की ओर बढ़ता जा रहा है। सत्ताधारी गठबंधन लगातार दूसरी बार सत्ता में आकर इतिहास रचना चाह रहा है, तो विरोधी एनडीए किसी कीमत पर ऐसा नहीं होने देने के लिए संघर्षरत है। दोनों पक्ष के पास उत्साह और उम्मीद के अपने-अपने कारण हैं, लेकिन ऐसी कई बातें हैं, जो वोट पर चोट कर सकती हैं।

पीएम मोदी समेत केंद्रीय नेताओं का दौरा
झारखंड में भाजपा की तरफ से पीएम मोदी और अमित शाह चुनाव प्रचार की कमान संभालेंगे। अमित शाह दो तारीख को रांची पहुंचेंगे और तीन को घाटशिला, सिमरिया और बरकट्ठा में चुनावी सभाओं को संबोधित करेंगे। पीएम मोदी चार नवंबर को झारखंड आयेंगे। वे चाइबासा और गढ़वा में जनसभाओं को संबोधित करेंगे। बोकारो और रांची में भी पीएम मोदी की सभा प्रस्तावित है, लेकिन अभी तारीख तय नहीं हुई है। उधर कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव केसी वेणुगोपाल भी रांची पहुंच सकते हैं। वे पार्टी नेताओं के साथ चुनाव की तैयारियों की समीक्षा करेंगे। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी के कार्यक्रम भी जल्द ही तय किये जायेंगे। एनडीए के घटक जदयू के नेता ललन सिंह और संजय झा दो नवंबर को तमाड़ और जमशेदपुर पश्चिमी में चुनावी सभाओं को संबोधित करेंगे। फिर नौ और 10 नवंबर को केंद्रीय राज्यमंत्री रामनाथ ठाकुर भी खीरू महतो के साथ दो विधानसभा क्षेत्रों में जनसभाओं को संबोधित करेंगे। स्थानीय नेताओं में झामुमो की तरफ से हेमंत सोरेन, उनकी पत्नी कल्पना सोरेन, कांग्रेस की तरफ से केशव महतो कमलेश और राजेश ठाकुर के अलावा राज्य सरकार के मंत्रियों का चुनावी दौरा भी शुरू हो गया है, जबकि भाजपा और आजसू की तरफ से चुनाव प्रभारी शिवराज सिंह चौहान, सह प्रभारी हिमंता बिस्वा सरमा, प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी, आजसू प्रमुख सुदेश महतो और अन्य नेताओं ने राज्य भर का दौरा शुरू कर दिया है।

आंकड़ों से बढ़ी हैं एनडीए की उम्मीदें
एनडीए की सबसे बड़ी उम्मीद लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजे हैं। लोकसभा चुनाव में भाजपा को 44.60 फीसदी और आजसू को 2.62 प्रतिशत वोट मिले थे, यानी दोनों को मिला कर 47 फीसदी से ज्यादा वोट मिल गये थे। लोकसभा चुनाव में सत्ताधारी गठबंधन में शामिल पार्टियों को करीब 37 फीसदी वोट मिले थे। इनमें झामुमो को 14.60 प्रतिशत, कांग्रेस को 19.19 प्रतिशत और राजद को 2.77 प्रतिशत वोट मिले थे। सीटों की बात करें, तो लोकसभा चुनाव में भाजपा ने आठ, झामुमो ने तीन, कांग्रेस ने दो और आजसू ने एक सीट जीती थी। झारखंड में 81 विधानसभा क्षेत्र हैं। लोकसभा चुनाव 2024 में इनमें से 51 क्षेत्रों में भाजपा-आजसू को बढ़त मिली थी। 2019 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 79 सीटों पर चुनाव लड़ कर 25 सीटें जीती थीं। आजसू तब भाजपा के साथ नहीं थी और 53 सीटों पर लड़ कर उसे दो पर जीत मिली थी। तीन सीट बाबूलाल मरांडी की झारखंड विकास मोर्चा भी ले आयी थी, जिसका अब भाजपा में विलय हो गया है। उधर, झामुमो 43 सीटों पर लड़ कर 30 सीटें जीता था, जबकि कांग्रेस 31 सीटों पर लड़ी और 16 पर जीती थी। राजद ने सात सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन एक ही जीत पाया। एक सीट माले को भी मिली थी। 2019 के झारखंड विधानसभा चुनाव में करीब 1.48 करोड़ वोट पड़े थे। इनमें से भाजपा को 33.37 प्रतिशत, आजसू को 8.1 और जेवीएम को 5.45 प्रतिशत वोट मिले थे। उधर, झामुमो को 18.72 प्रतिशत, कांग्रेस को 13.88 और राजद को 2.75 प्रतिशत वोट प्राप्त हुए थे। यानी झामुमो और कांग्रेस को जितने वोट मिले, उससे ज्यादा अकेले भाजपा को मिले थे।

पर ये आंकड़े पेश कर रहे चुनौती
ऊपर दिए गए आंकड़ों में सभी प्रमुख पार्टियों को मिले वोट प्रतिशत और जीती गयी सीटों की तुलना करें, तो भाजपा की चुनौती समझी जा सकती है। पिछली बार भाजपा 33 फीसदी से ज्यादा वोट लाकर भी 25 सीटें ही जीत पायी, जबकि झामुमो और कांग्रेस ने 33 फीसदी से थोड़ा कम ही वोट पाकर 46 सीटें जीत ली थी। वोट बनाम सीट का आंकड़ा अपने पक्ष में करना भाजपा के लिए बड़ी चुनौती होगी। यह चुनौती तब और बड़ी हो जाती है, जब विरोधी गठबंधन की तुलना में भाजपा के पास कोई दमदार साथी नहीं है। एनडीए के मौजूदा सहयोगियों में से आजसू के अलावा अन्य पार्टियों की बात करें, तो जदयू और लोजपा ने 2019 का विधानसभा चुनाव अलग-अलग लड़ा था। नीतीश की जदयू ने 45 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन पार्टी को एक प्रतिशत वोट भी नहीं मिला। यही हाल चिराग पासवान की लोजपा का था। लोजपा ने भी 33 उम्मीदवार उतार दिये थे, पर वोट मिले थे महज 0.3 प्रतिशत। सत्ताधारी गठबंधन के लिए भी यह चुनौती होगी कि वह पिछली बार की तरह इस बार भी वोटों को सीटों में बदलने का रिकॉर्ड कायम रखे या उसे और बेहतर बनाये।

अब जनता के मुद्दों की बात
अब बात करते हैं कुछ उन आंकड़ों की, जो जनता का हाल बयां करते हैं। झारखंड को बने 24 साल हो गये, लेकिन, जनता का हाल कई मामलों में अब भी बुरा है। सबसे पहला मुद्दा बेरोगारी है। युवाओं के लिए नौकरी बड़ा मुद्दा है। नेता इसकी चर्चा और वादे भी करते हैं, लेकिन हकीकत कुछ और ही है। राज्य में 20 लाख युवा बेरोजगार हैं और करीब पौने तीन लाख सरकारी पद खाली हैं। इसके बाद आता है स्वास्थ्य। राज्य बनने के बाद भी 3.5 करोड़ की आबादी को सही इलाज मुहैया कराने की व्यवस्था सरकारें नहीं कर पायी हैं। एक डॉक्टर पर 4746 लोगों के इलाज का भार है। कम से कम 35 हजार सरकारी डॉक्टर होने चाहिए, लेकिन राज्य में महज 3691 पद निर्धारित हैं। इनमें से भी 1600 पर ही नियुक्ति हुई है। जल, जंगल, जमीन का नारा देने के बावजूद झारखंड में खेती का हाल भी बुरा है। राज्य की अर्थव्यवस्था में योगदान की बात करें, तो 2022-23 में ग्रॉस स्टेट वैल्यू ऐडेड (जीएसवीए) 88 फीसदी से भी ज्यादा योगदान गैर कृषि क्षेत्र का है। जीएसवीए में कृषि की हिस्सेदारी (11.52 प्रतिशत) के मामले में झारखंड का स्थान नीचे से पांचवां है। झारखंड के सर्विस क्षेत्र का भी यही हाल है। इस क्षेत्र का जीएसवीए में योगदान 43.79 प्रतिशत (राष्ट्रीय औसत 54.43 का है) है। यही वजह है कि उद्योग क्षेत्र का योगदान राष्ट्रीय औसत (30.22) से ज्यादा (44.69 प्रतिशत) होने पर भी राज्य में प्रति व्यक्ति आय कम है और लोग गरीब हैं।

आम लोगों से जुड़े इन आंकड़ों की पृष्ठभूमि में अब यह देखना दिलचस्प होगा कि राजनीतिक दल किन मुद्दों पर अपना ध्यान केंद्रित करते हैं। अब तक जो सामने आया है, उससे साफ हो गया है कि एनडीए की तरफ से राज्य सरकार की वादाखिलाफी, डेमोग्राफी में बदलाव और झारखंड की रोटी-बेटी-माटी की सुरक्षा का मुद्दा जोर-शोर से उठाया जायेगा, जबकि सत्ताधारी इंडी अलायंस की तरफ से आदिवासी अस्मिता और महिलाओं से जुड़े मुद्दों पर फोकस रहेगा।

 

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