विशेष
अर्जुन के चुनावी मैनेजमेंट और चंपाई की राजनीतिक चाल पर पार्टी को भरोसा
मधु कोड़ा और रघुवर दास के सामने भी अपना प्रभाव साबित करने की चुनौती
आसन्न चुनावी प्रदर्शन तय करेगा कि किसकी गोटी होगी लाल
नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
कोल्हान, जिसे झारखंड की राजनीति का इंजन कहा जाता है, इस बार कांटे के मुकाबले का गवाह बननेवाला है। इस राज्य को चार मुख्यमंत्री देनेवाला कोल्हान प्रमंडल 2019 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के लिए किसी बुरे सपने जैसा था, क्योंकि यहां की 14 सीटों में से उसे किसी भी सीट पर कामयाबी नहीं मिली थी। लेकिन इस बार स्थिति भी बदली है और रणनीति भी। एक तरफ झामुमो-कांग्रेस 2019 के प्रदर्शन को दोहराने के लिए पूरा जोर लगाया हुआ है, तो दूसरी तरफ भाजपा 2019 के परिणाम को पलटने के लिए हर दांव आजमा रही है। भाजपा ने इस बार इस इलाके में जहां अपने उम्मीदवार बदले हैं, वहीं राज्य के चार पूर्व मुख्यमंत्रियों के परिजनों को टिकट देकर झामुमो-कांग्रेस की मजबूत घेरेबंदी की है। इसके अलावा भाजपा ने झामुमो के कद्दावर नेता चंपाई सोरेन को अपने पाले में लाकर कोल्हान में अपनी स्थिति मजबूत की है। इस चुनाव में भाजपा के इन दिग्गजों का असली टेस्ट होगा, क्योंकि पार्टी ने इन पर पूरा भरोसा जताया है। क्या है कोल्हान की चुनावी संभावनाएं, बता रहे हैं आजाद सिपाही के संवाददाता अरुण सिंह।
वैसे तो प्रत्येक पांच साल के बाद हिंदुस्तान में लोकसभा एवं प्रदेशों में विधानसभा का चुनाव आम है, लेकिन झारखंड के विधानसभा चुनाव को खासकर भारतीय जनता पार्टी के केंद्रीय एवं प्रादेशिक नेता विशेष चुनाव करार दे रहे हैं। झारखंड के मतदाताओं को भाजपा नेताओं ने अलग-अलग तर्क देकर समझाने/विश्वास दिलाने में दिन-रात एक कर दिया है कि परिवर्तन बहुत जरूरी है। इनका तर्क है कि भाजपा के शीर्षस्थ नेता एवं तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने जिस सोच अलग झारखंड प्रदेश बनाया, अब तक वह पूरी नहीं हो सकी है। अकूत खनिज संपदा वाले प्रदेश के आदिवासी- मूलवासी अब भी पिछड़े हैं। इसका मूल कारण भ्रष्टाचार एवं घुसपैठ है। दूसरी ओर सत्ताधारी झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेताओं और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का तर्क है कि राज्य सरकार के पांच में से लगभग दो साल कोविड महामारी में गुजर गया। उसके बाद जब काम करने का समय आया, तो केंद्र सरकार ने झारखंड में सरकार को अस्थिर करने की साजिश शुरू कर दी।
इन तर्कों के साथ सबसे अहम बात यह भी है कि झारखंड में कुछ पूर्व मुख्यमंत्रियों, जो भाजपा के हैं, की प्रतिष्ठा इस चुनाव में दांव पर लग चुकी है। पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा, मधु कोड़ा, रघुवर दास एवं चंपाई सोरेन के लिए यह चुनाव लिटमस टेस्ट के समान है।
बहू पूर्णिमा पर निर्भर रघुवर का राजनीतिक ‘राज’
विगत विधानसभा चुनाव यानी 2019 तक मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने वाले रघुवर दास (वर्तमान में ओड़िशा के राज्यपाल) की पुत्रवधू पूर्णिमा साहू दास को भाजपा ने जमशेदपुर पूर्वी सीट से अपना प्रत्याशी बनाया है। जमशेदपुर पूर्वी सीट भाजपा के लिए सबसे सुरक्षित मानी जाती है।
यह बात अलग है कि पिछले विधानसभा चुनाव में पांच बार के विधायक और तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास को यहां से सरयू राय के हाथों पराजित होना पड़ा था। इस बार उनकी पुत्रवधू को पार्टी टिकट तो मिल गया, लेकिन शुरूआती दौर में विरोध के स्वर भी तेज सुनाई पड़े। धीरे-धीरे अधिकतर भाजपाइयों को साध लिया गया, किंतु राजकुमार सिंह एवं शिव शंकर सिंह सरीखे पार्टी के पुराने सिपाही सामने खड़े हो गये हैं। कहने को तो कांग्रेस के उम्मीदवार डॉ अजय कुमार से मुख्य मुकाबला है, लेकिन राजकुमार सिंह एवं शिव शंकर सिंह ने भी पूरा जोर लगा दिया है। दूसरी ओर कांग्रेस प्रत्याशी डॉ अजय कुमार को जिताने के लिए राहुल गांधी एवं सचिन पायलट जमशेदपुर आये थे। वैसे तो पूर्णिमा साहू दास भाजपा के चुनाव चिह्न पर मैदान में हैं, किंतु इस चुनाव के परिणाम का अधिक असर रघुवर दास के राजनीतिक भविष्य पर पड़ेगा।
पोटका में अर्जुन मुंडा के रणनीतिक कौशल की परीक्षा
जमशेदपुर संसदीय क्षेत्र अंतर्गत पोटका विधानसभा क्षेत्र से मीरा मुंडा को भाजपा ने उम्मीदवार बनाया है। वह तीन बार के मुख्यमंत्री एवं केंद्रीय मंत्री रह चुके अर्जुन मुंडा की पत्नी हैं। जाहिर है कि पार्टी प्रत्याशी भले ही मीरा मुंडा हैं, लेकिन पोटका में चुनाव का पूरा दारोमदार अर्जुन मुंडा पर है। भाजपा के नेता- कार्यकर्ता एवं प्रत्याशी को मुंडा के मैनेजमेंट पर पूरा भरोसा है। पोटका विधानसभा क्षेत्र ग्रामीण एवं शहरी दोनों में पड़ता है। यहां सबसे अधिक संथाल एवं भूमिज/ सरदार वोटर हैं। ओबीसी एवं सामान्य जाति के वोटर भी जीत-हार में काफी प्रभावी भूमिका निभाते रहे हैं। पत्नी को जिताने और खुद का राजनीतिक भविष्य सुरक्षित रखने के लिहाज से अर्जुन मुंडा अपने तरकश के सभी तीर आजमा रहे हैं।
मीरा को टिकट दिये जाने के बाद स्थानीय नेताओं में थोड़ा-बहुत क्षोभ सुनाई पड़ा, लेकिन अर्जुन मुंडा उन्हें अपने पक्ष में करने में कामयाब हो गये हैं। विधानसभा सीट के तीनों प्रमुख इलाके, यथा पोटका, डुमरिया एवं बागबेड़ा में भाजपाइयों के अलावा अपने तमाम नेटवर्क को वह सक्रिय कर चुके हैं। यहां के चुनावी परिणाम पर अर्जुन का भाजपा में भविष्य टिका हुआ है।
सरायकेला तय करेगा चंपाई का राजनीतिक रसूख
इसी तरह सरायकेला सीट पर भी भाजपा की नजर बनी हुई है। यहां से पूर्व मुख्यमंत्री एवं कोल्हान टाइगर के नाम से प्रसिद्ध चंपाई सोरेन भाजपा के प्रत्याशी हैं। चंपाई की गिनती झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन के सबसे भरोसेमंद नेताओं में की जाती थी। दो महीने पहले ही झामुमो का अपना राजनीतिक सफर छोड़कर वह भाजपा में आये हैं। भाजपा नेतृत्व को भरोसा है कि इनके जरिये आदिवासी, खासकर संथाल मतदाताओं के बीच पार्टी की पैठ बनेगी। इसलिए भाजपा इनका भरपूर उपयोग करती दिख रही है। लेकिन सरायकेला सीट पर लगातार कई चुनावों में जीत हासिल करने वाले चंपाई के सामने मुख्य प्रतिद्वंद्वी गणेश महली हैं, जो इस बार झामुमो प्रत्याशी हैं। हालांकि गणेश को चंपाई दो बार हरा चुके हैं, लेकिन इस बार चंपाई को हराने के लिए मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन एवं झामुमो की नयी स्टार कल्पना सोरेन हरसंभव कोशिश कर रही हैं। इस तरह एक ओर भाजपा चंपाई के सहारे कोल्हान और संथाल परगना में अपनी जगह बनाने के फिराक में है, तो दूसरी ओर खुद चंपाई को अपनी सीट से शानदार जीत की सख्त जरूरत है। सरायकेला सहित झारखंड में भाजपा के चुनावी प्रदर्शन से चंपाई का राजनीतिक भविष्य तय होगा।
जगन्नाथपुर में गीता के भरोसे मधु कोड़ा का राजनीतिक भविष्य
पश्चिमी सिंहभूम जिला के जगन्नाथपुर विधानसभा सीट से भाजपा के सिंबल पर चुनाव लड़ रही हैं गीता कोड़ा। वह पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा की पत्नी हैं और पहले सांसद एवं विधायक रह चुकी हैं। कांग्रेस छोड़कर वह लोकसभा चुनाव के ऐन पहले भाजपा में आयी हैं। पार्टी ज्वाइन करने के बाद भाजपा ने उन्हें लोकसभा चुनाव में उम्मीदवार बनाया, लेकिन गीता कोड़ा चुनाव हार गयीं। सिंहभूम सीट अंतर्गत सभी सातों विधानसभा क्षेत्र में वह पिछड़ गयी थीं। विधानसभा चुनाव से पहले उनके पति और पूर्व सीएम मधु कोड़ा भी भाजपा में शामिल हो गये। गीता कोड़ा के सामने कांग्रेस उम्मीदवार सोनाराम सिंकू एवं निर्दलीय प्रत्याशी मंगल सिंह बोबोंगा हैं। मंगल सिंह बोबोंगा झामुमो में थे और पूर्व में विधायक रह चुके हैं। दो दमदार प्रत्याशियों के बीच गीता कोड़ा की चुनावी राह कैसी होगी, यह तो 23 नवंबर को ही स्पष्ट होगा, किंतु उनके चुनावी प्रदर्शन पर ही उनका और उनके पति का भविष्य निर्भर है।
कुल मिलाकर, झारखंड के आसन्न विधानसभा चुनाव का लब्बो-लुआब यह है कि चुनावी बिसात से पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा, रघुवर दास, चंपाई सोरेन और मधु कोड़ा सीधे जुड़े हुए हैं। इन सबों का राजनीतिक रसूख फिलहाल दांव पर लगा हुआ है। राजनीति के आसमान पर इनकी रोशनी अब से कुछ देर बाद शुरू होनेवाले मतदान में तय हो जायेगी।