पटना। बिहार विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) को उम्मीद से कहीं अधिक निराशा हाथ लगी है। तेजस्वी यादव अपनी राघोपुर सीट जरूर बचाने में सफल रहे, लेकिन पार्टी के दिग्गज नेता एक-एक कर धराशायी हो गए। यह परिणाम राजद के इतिहास का दूसरा सबसे खराब प्रदर्शन है। इससे पहले 2010 में पार्टी 22 सीटों पर सिमटी थी, जब नीतीश कुमार की प्रचंड लहर चली थी।

क्या तेजस्वी यादव बन पाएंगे नेता प्रतिपक्ष?
अब बड़ा सवाल यह है कि मुख्यमंत्री बनने का सपना देखने वाले तेजस्वी क्या नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी पर बैठ सकेंगे? नियमों के अनुसार, विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष वही बन सकता है जिसकी पार्टी के पास सदन की कुल संख्या का कम से कम 10% सदस्य हों।
243 सदस्यों वाले बिहार विधानसभा में यह आंकड़ा 24 का होता है। वर्तमान में राजद के पास 25 विधायक हैं, यानी तेजस्वी यादव को नेता प्रतिपक्ष बनने से कोई नियम नहीं रोकता।

2025 में राजद की दूसरी सबसे बड़ी हार
एक्ज़िट पोल ने एनडीए को बढ़त का अनुमान जरूर दिया था, लेकिन परिणाम उससे कहीं आगे निकल गए। 2020 में 75 सीटें जीतने वाला राजद इस बार मोदी-नीतीश फैक्टर के सामने मात्र 25 सीटों पर सिमट गया। महागठबंधन के अन्य दल भी महज 10 सीटें ही जुटा सके—जिसमें कांग्रेस की छह और वाम दलों/अन्यों की कुल चार सीटें शामिल हैं।

महागठबंधन के स्टार प्रचारक भी न बचा सके डूबती नैया
कांग्रेस की ओर से राहुल गांधी, प्रियंका गांधी और कई वरिष्ठ नेताओं ने प्रचार में पूरा जोर लगाया। राहुल की मछली पकड़ते हुए वायरल तस्वीर ने चर्चा जरूर बटोरी, लेकिन असर वोटों में नजर नहीं आया।

बदले रूप में दिखेगी विधानसभा
इस बार सदन की तस्वीर बिल्कुल अलग होगी। पिछले कार्यकाल में सत्ता पक्ष को विपक्ष से कड़ी चुनौती मिल रही थी, लेकिन इस चुनाव के बाद विपक्ष की संख्या इतनी कम है कि किसी भी मुद्दे पर सरकार को पहले जैसी मजबूत टक्कर मिलना मुश्किल होगा।

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