रांची: रांची नगर निगम राजनीति का अखाड़ा बना हुआ है। निगम के जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों की लड़ाई में आम जनता पिस रही है। पार्षदों के विरोध के कारण बोर्ड की बैठक नहीं पा रही है। शनिवार को बुलायी गयी नगर निगम बोर्ड की बैठक भी स्थगित करनी पड़ी। मेयर आशा लकड़ा ने इसके लिए नगर आयुक्त प्रशांत कुमार को जिम्मेवार ठहराते हुए कहा कि बोर्ड की बैठक से संबंधित फाइल उनके आदेश के बिना नगर आयुक्त ने बाहर भेजी है। मेयर ने कहा कि 10 दिसंबर को बोर्ड की बैठक आयोजित करने का आदेश उन्होंने 23 नवंबर को ही नगर आयुक्त को दे दिया था और पार्षदों को भी इसकी सूचना दे दी गयी थी। मेयर ने कहा कि बोर्ड की बैठक नहीं होने से रांची नगर निगम की 15 लाख जनता की समस्याओं पर चर्चा नहीं हो सकी। उन्होंने कहा कि यह सब सोची समझी रणनीति के तहत किया जा रहा है। ब्राइट कंपनी द्वारा किये गये घोटालों को उजागर करने के बाद से विकास कार्यों को बाधा पहुंचाया जा रहा है। ताकि उस तरफ से ध्यान हटाया जा सके। नगर निगम स्थित अपने चैंबर में पत्रकारों को संबोधित करते हुए मेयर ने यह बातें कही।
मेयर ने नगर आयुक्त को महाधिवक्ता से वैधानिक मंतव्य लेने का दिया निर्देश
मेयर ने पत्र लिखकर नगर आयुक्त को निर्देश दिया है कि वे 24 घंटे के अंदर महाधिवक्ता को पत्र लिखकर यह मंतव्य लें कि बोर्ड के अध्यक्ष से बिना अनुमति लिये बोर्ड की बैठक की फाईल बाहर भेजा जाना नियम संगत है या नहीं। 10 नवंबर को बोर्ड की बैठक बुलाने के लिए मेयर ने 20 दिन पहले नगर आयुक्त को पत्र लिखा था। फिर अधिकारियों द्वारा प्रोसिडिंग की फाइल 48 घंटे पहले पार्षदों को भेजा जाना क्या नियम संगत है? नगरपालिका अधिनियम में मेयर के रहते बोर्ड की बैठक की फाइल डिप्टी मेयर को नहीं भेजा जाना है। लेकिन नगर आयुक्त का कहना है कि नगर विकास विभाग के सचिव के पत्र को आधार मांगकर बोर्ड बैठक की फाइल डिप्टी मेयर को भेजी जाती है। तो क्या नगरपालिका अधिनियम का पालन किया जाये या फिर नगर विकास विभाग के सचिव का निर्देश माना जाये?
बोर्ड की बैठक में ब्राइट न्योन को दिया गया था एक्सटेंशन : नगर आयुक्त
नगर आयुक्त प्रशांत कुमार का कहना है कि 10 अक्टूबर को हुई बोर्ड की बैठक में ब्राइट न्योन के साथ किये गये एकरारनामा को एक्सटेंशन देने के प्रस्ताव को स्वीकृति प्रदान की गयी थी। इस बाबत उन्होंने मेयर आशा लकड़ा को पत्र लिखकर यह पूछा है कि ब्राइट के कारण 7 करोड़ रुपये का घाटा होने का कोई प्रमाण है तो वह पेश करें। अगर वो प्रमाण पेश नहीं करती हैं तो यह समझा जायेगा कि ये आंकड़े काल्पनिक तथ्य पर आधारित है।