प्योंगयागं: उत्तर कोरिया के शासकों की तानाशाही शासन या सैन्य क्षेत्र में ही नहीं बल्कि देश के सिनेमा पर भी हावी है। यहां सरकार ही किसी फिल्म में हीरो-हिरोइन का चुनाव करती है। साथ ही फिल्मों के शूटिंग के तरीके से लेकर, उसके लोकेशन, स्क्रिप्ट सब सरकार के अधिकार में ही है।
देश के पूर्व तानाशाह किम जोंग द्वितीय फिल्मों के बहुत बड़े शौकीन थे। उनका मानना था कि फिल्में जनता को शिक्षित करने का एक बड़ा माध्यम हैं। सिनेमा का काम लोगों को असली कम्युनिस्ट बनाना है। इसका जिक्र किम ने `थ्योरी ऑफ सिनेमैटिक आर्ट` में भी किया है। फिल्मों को लेकर तानाशाह शासक के रवैए का अंदाजा उत्तर कोरिया के फिल्म स्टूडियो की सामने आईं तस्वीरों से भी लगाया जा सकता है।
यह तस्वीरें एक फ्रेंच फोटोग्राफर इरिक लैफोरज्यू ने ली हैं। इरिक के मुताबिक किम यह सुनिश्चित करते थे कि फिल्में सरकार के दिशा-निर्देश पर ही फिल्माई जाएं। अभिनेता-अभिनेत्री सरकारी नियमों के अनुसार ही अभिनय करें। प्योंगयांग में कई कोरियन फिल्म स्टूडियो बने हैं। इनके अलावा तानाशाह किम जोंग ने फिल्में देखने के लिए सात थिएटर भी बनवाए थे। फिल्म स्टूडियो में ज्यादातर कम्युनिस्ट फिल्में तैयार की जाती हैं।
आम दर्शकों को फिल्में भी मुफ्त में दिखाई जाती हैं। अभिनेता-अभिनेत्री सरकार के ही कर्मचारी होते हैं। किम के मुताबिक फिल्म का मतलब पूंजीवादी ताकत खत्म करना है। किम के पिता किम जोन्ग इल भी फिल्मों के शौकीन थे। उनकी पर्सनल लाइब्रेरी में हजारों फिल्में थीं।
देश की ताकत दिखाने के लिए ज्यादातक फिल्में बनाई जाती हैं। इसके लिए मौजूदा घटनाओं को भी चुना जाता है। उदाहरण के लिए 2009 में जब बिल क्लिंटन प्योंगयांग पहुंचे थे, तब वहां बंद दो अमेरिकी पत्रकारों की सुरक्षित रिहाई की गई। इस घटना पर भी फिल्म बनाई गई। सभी क्रांतिकारी फिल्में डीपीआरके टीवी पर और सिनेमा हॉल में दिखाई जाती हैं।
पूर्व तानाशाह किम जोन्ग इल ने अपने पिता और देश के संस्थापक किम इल संग पर एक फिल्म भी बनाई है। वो खुद को सिनेमा का बड़ा जानकार बताते थे। उन्होंने 1978 में मशहूर दक्षिण कोरिया के निर्देशक और उसकी पत्नी को अगवा करा लिया था। दोनों को पैसे और जरूरत के सामान मुहैया करवाकर अपने लिए फिल्में भी तैयार करवाईं। बंधक रहने के दौरान निर्देशक ने 20 फिल्में निर्देशित कीं। जिनमें से ज्यादातर सरकारी प्रोपेगेंडा पर आधारित थीं।