मजब यह खबर मेरे कानों में पड़ी तो उसके घर पहुंच गया। दरअसल, मेरी पत्नी उम्र में उससे करीब दस-बारह वर्ष बड़ी हैं। पर वे दोनों सहेलियों की तरह एक दूसरे से व्यवहार करती थीं। इसलिए मुझे यह जान कर कि वह पढ़ाई बीच में छोड़ रही है, बात कुछ हजम नहीं हुई। उसके पिता पर मन ही मन गुस्सा आया। पर बेटी तो उन्हीं की थी, मैं करता तो क्या करता? एक शुभचिंतक के नाते ही सही, मैंने उसके पिता से बात करना जरूरी समझा। उनसे कहा कि आज के दौर में लड़की को पढ़ा-लिखा होना चाहिए। फिर, उनकी लड़की तो पढ़ने में भी अच्छी है। ऐसे में पढ़ाई छुड़ा कर शादी की बात उनके मन में कहां से आई!

वे बोले, ‘आपकी सोच अपनी जगह दुरुस्त है। मैं भी यही सोचता हूं लेकिन वक्त का तकाजा है, उसका विवाह जरूरी है। मैं दिल का मरीज हूं। और आप तो जानते ही हैं कि ऐसे व्यक्ति का क्या भरोसा!’ मैं क्या कहता? वापस लौट आया, यह सोचते हुए कि अपना-अपना भाग्य है। उसकी शादी हो गई। शादी भी एक अच्छे पढ़े लिखे नौजवान वास्तुकार से हुई।
एक बार किसी काम से मुंबई जाना हुआ तो उससे मिलने पहुंच गया। उस वक्त तक उसके एक बच्चा हो चुका था। पूछा कि आजकल क्या कर रही हो? वह ढेर सारी बच्चों की कहानियों की किताबें उठा लाई। साथ में बच्चों के लिए कक्षा एक से कक्षा पांच तक की किताबें भी। हंसते हुए बोली, घर में अकेली रहती हूं। इसलिए सोचा कुछ लिखूं, तो यह लिखा और छपवाया है। बच्चों की अंग्रेजी किताबों का हिंदी अनुवाद कर रही हूं। ‘और कहानियां?’ वह फिर हंसी, ‘कहानियां लिखना तो बचपन का शौक है। और बच्चों के लिए लिखना तो और भी मजेदार काम है। आजकल बच्चों के लिए साहित्य लेखन नहीं के बराबर है। सो कुछ लिख रही हूं।’ मैंने पूछा, ‘छपी हुई किताबों को कैसे ठिकाने लगाती हो?’ वह बोली, ‘स्कूल-स्कूल जाती हूं। टाइम भी पास होता है, लोगों से मुलाकात होती है और प्रचार-प्रसार भी होता है।’

‘और आगे कुछ कर रही हो, तुम्हारी छोड़ी हुई पढ़ाई का क्या हुआ?’ मैं जानने के लिए बेचैन हो रहा था। वह बोली कि इंटीरियर डिजाइनिंग में डिप्लोमा कर रही हूं। इतना कह वह अपना ड्राइंगरूम दिखाते हुए बोली कि इस रूम का इंटीरियर कैसा लगा आपको? मैंने ही डिजाइन किया है। मैंने कहा, ‘अच्छा है। अभी तो शुरुआत है…।’
कभी-कभार उसके पिताजी से उसका हालचाल मिल जाता। एक दिन रास्ते में टकरा गए। उसके बारे में पूछा तो बोले, ‘आजकल अपने पति के साथ इंटीरियर डिजाइनिंग का काम देखने लगी है।’ एमए पहले साल में थी, तब उसकी पढ़ाई छूटी थी। और अब इंटीरियर डिजाइन में अपना करिअर बना रही है। कहते हैं, करने वाले को काम ही काम है और न करने वाले को कोई काम नहीं!

वह मेरी पत्नी के साथ वॉट्स ऐप पर भी जुड़ी है। हफ्ते-दो हफ्ते में वह अपना कोई न कोई वीडियो वगैरह भी पोस्ट करती रहती है। पिछले दिनों एक वीडियो पोस्ट किया था। उसमें उसने लिखा, ‘फिलहाल सऊदी अरब में हूं। इंटीरियर का एक बड़ा कांट्रैक्ट मिला है।…’ सुनकर दिल को राहत महसूस हुई। पत्नी ने वीडियो दिखाया तो मैं सन्न रह गया। सलवार-सूट पहनने वाली वह शर्मीली लड़की ट्रैक सूूट में थी। किसी जिम में शूट किया हुआ वीडियो था, जिसमें एक विशेष मुद्रा में वेट लिफ्टिंग कर रही थी। देखकर चकित था। शर्मीली सी लड़की का कायाकल्प हुआ कैसे? पत्नी ने बताया कि उसके पति की सोच प्रगतिवादी है। उन्हीं ने उसे इंटीरियर में डिप्लोमा करने के लिए प्रोत्साहित किया था।

 हमारा अनुभव यही है कि आज भी समाज में बड़ी संख्या में ऐसी पुरुषवादी मानसिकता वाले लोग हैं, जो पत्नी को पीछे ही रखना चाहते हैं। लेकिन यह भी सच है कि जमाना बदल रहा है। उसका वह वीडियो अब भी मेरे जेहन में है। आश्चर्य होता है। लेकिन आश्चर्य की कोई बात नहीं है। आसपास का वातावरण ही व्यक्ति-विशेष को प्रभावित करता है। अगर उसकी प्रतिभा के अनुकूल वातावरण मिल जाए तो उसे पल्लवित होने में देर नहीं लगती। उसकी प्रतिभा फूल जैसी खिल उठती है। हालांकि मैं अब भी इस पक्ष में नहीं हूं कि किसी की पढ़ाई छुड़ा करके उसकी शादी कर दी जाए, मगर यह विश्वास जरूर कायम हुआ कि किसी में अगर कुछ करने का जज्बा है और उसके भीतर हुनर है तो उसे रोका नहीं जा सकता। हां, यह जरूरी है कि सही बीज के लिए सही खाद-पानी भी मिलना चाहिए। प्रतिभा अपनी जगह बना ही लेती है। न सही एमए, इंटीरियर डिजाइनर ही सही। हुनर भी, कमाई भी। कहा भी कहा गया है, जहां चाह वहां राह।
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