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    Home»Top Story»अपनी शर्तों पर सरकार चलायें हेमंत: सरयू
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    अपनी शर्तों पर सरकार चलायें हेमंत: सरयू

    azad sipahi deskBy azad sipahi deskDecember 26, 2019No Comments8 Mins Read
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    रांची। मशहूर शायर वसीम बरेलवी का एक शेर है-अगर उसूलों पे आंच आये तो टकराना जरूरी है और अगर जिंदा हों तो जिंदा नजर आना जरूरी है। झारखंड की राजनीति में यह शेर मुख्यमंत्री रघुवर दास को हराकर नेशनल मीडिया की सुर्खियां बटोरनेवाले सरयू राय पर एकदम फिट बैठता है। जब जमशेदपुर पश्चिमी सीट से उनका टिकट भाजपा ने काट दिया तो सरयू राय मुख्यमंत्री के खिलाफ जमशेदपुर पूर्वी सीट से लड़े और उन्हें करारी मात दी। सरयू राय ने झारखंड में बननेवाली महागठबंधन की सरकार के मुखिया हेमंत सोरेन को एक इंटरव्यू के दौरान जरूरी सलाह दी। उनके डोरंडा स्थित आवास पर यह इंटरव्यू दयानंद राय ने किया।

    सवाल : राज्य में बनने जा रही महागठबंधन की सरकार के मुखिया हेमंत सोरेन को आप क्या सुझाव देना चाहेंगे?
    जवाब : हेमंत सरकार को मेरा नैतिक समर्थन है। उनको यह तय करना चाहिए कि वे अपनी शर्तों पर सरकार चलायें। पूर्ण बहुमत है फिर भी गठबंधन है। सहयोगियों को विश्वास में लेकर चलें। पर उनकी भी एक सीमा रेखा खींचे। यह करेंगे तो सरकार अच्छी तरह से चला सकेंगे। हेमंत सोरेन के जो पार्टनर हैं, उनका मुख्यालय दिल्ली में है। उनके सहयोगी हर समय दिल्ली से दिशा निर्देश लेंगे। यह तो मैं नहीं कहूंगा कि हेमंत सोरेन दिल्ली नहीं जायें। वह जरूर जायें, लेकिन सरकार के कार्यक्रमों को झारखंड की धरती पर ही यथासंभव रहकर क्रियान्वित करें। लोगों की समस्याओं का समाधान करने का प्रयास करें। हिम्मत के साथ काम करें और अपनी शर्तों पर काम करें। पहले के मुख्यमंत्री तो महीने में तीन-चार दफा दिल्ली चले ही जाते थे। मैं यह तो नहीं कहूंगा कि वे दिल्ली न जायें, पर इसकी फ्रीक्वेंसी इतनी हो कि उससे जनता को कोई परेशानी न हो। फ्रीक्वेंसी इतनी रखें, जिससे जनता को महसूस न हो कि यह आदमी बार-बार दिल्ली जा रहा है। बेहतर होगा कि वे अपनी शर्तों पर काम करें। बातचीत में श्री राय ने एक बार फिर दोहराया कि हेमंत सोरेन युवा हैं। वे सुलझे हुए नेता हैं। वे सबका साथ लेकर जनहित में निर्णय करें। राज्य में पारा शिक्षकों, आंगनबाड़ी सेविका-सहायिका और अन्य न्यूनतम वेतनभोगी कर्मचारियों की समस्याओं का समाधान करने की भी सलाह दी। उन्होंने कहा, हेमंत सरकार को उनका नैतिक समर्थन है।
    सवाल : जब आपका टिकट कटा और आपने जमशेदपुर पूर्वी सीट से चुनाव लड़ना तय किया तो आपके सामने क्या चुनौतियां थीं?
    जवाब : मेरा टिकट कटेगा इसका एहसास मुझे दो महीने पहले से था। इसलिए मैं दिल्ली अपने प्रभारी के पास गया तो कहा कि अगर आपको टिकट नहीं देना है तो मुझे पहले ही बता दीजिए। मैं खुद ही कह दूंगा कि मैं चुनाव नहीं लड़ूंगा। उन्होंने कहा कि नहीं ऐसा नहीं होगा। फिर जब पहली सूची जारी हुई तो मेरा नाम उम्मीदवारों की सूची में नहीं था। मेरा सीट होल्ड पर था। फिर मैंने पूछा तो उन्होंने कहा कि नहीं-नहीं हो जायेगा। जब चौथी सूची होल्ड पर आयी और नामांकन दाखिल करने के लिए एक दिन का वक्त रह गया तो मुझे लगा कि मेरे साथ एक रणनीति के तहत षडयंत्र हो रहा है। तब मैंने प्रेस को बुलाकर कहा कि मैं जमशेदपुर पूर्वी सीट से चुनाव लडूंगा। रघुवर दास ही ऐसे व्यक्ति हैं जिन्होंने ऐसा वातावरण बनाया है कि पार्टी मेरे साथ ऐसा सलूक कर रही है तो मैं उनके खिलाफ ही चुनाव लडूंगा। वैसे भी जब आदमी युद्ध में चलता है निकलता है तो कोई कैलकुलेटर लेकर तो चलता नहीं है। मेरा चुनाव पूरी तरह जनता ने लड़ा है। सुबह छह बजे से रात के बारह- एक बजे तक क्षेत्र में घूमता था। पदयात्रा करता था। जनता ने कहा कि ये हमारे मुद्दे हैं आप इनपर लड़िये। मैंने उनकी बात मानी और उनके मुद्दों पर लड़ा। वे लोग आगे रहे और मैं पीछे रहा और अंत में नतीजा आया।

    सवाल : आपने किन मुद्दों को लेकर जमशेदपुर पूर्वी क्षेत्र की जनता के पास गये ? क्या आपने कोई घोषणापत्र बनाया था?
    जवाब : हमने घोषणापत्र बनाया था। जमशेदपुर पूर्वी के लोगों के मुद्दे इनमेें शामिल है। जो भी सरकार है उसके पास ऐसे मुद्दों के लिए समय है। इनमें से एक 86 बस्तियों का मुद्दा था। जिसपर रघुवर दास बाद में यू टर्न पर आ गये। वे मालिकाना हक देने की जगह लोगों को लीज पर देना चाहते थे पर इसमें लेनेवालों की कोई रुचि नहीं थी। लीज की ओर बहुत लोगों ने ध्यान नहीं दिया। जनता से वादाखिलाफी अच्छी बात नहीं है और मैं मानता हूं कि वादाखिलाफी और बलात्कार दोनों एक ही श्रेणी का अपराध हैं। वादाखिलाफी करते हैं तो आपराधिक काम ही करते हैं। जमशेदपुर सीट पर टायो इंडस्ट्रीज थी वो चली गयी और अब हिटैची आयी है। तो जो यहां के लोग हैं काम करनेवाले। उससे यहां के लोग मजबूत नहीं हो पाते हैं।

    सवाल : आप कहते हैं कि अर्जुन मुंडा, हेमंत सोरेन और सुदेश महतो भविष्य के नेता हैं तो ऐसा कहने के पीछे की वजह क्या है?
    जवाब: ये तीनों युवा हैं। तीनों में अपार क्षमता है और तीनों समझदार हैं। इसलिए मैं कहता हूं कि ये तीनों आपस मेें मिलकर या अलग-अलग अपनी भूमिका निभायें तो यह झारखंड के लिए बेहतर होगा।

    सवाल : जमशेदपुर पूर्वी सीट से जीत हासिल करने के बाद आपका अगला कदम क्या होगा?
    जवाब : एक स्वतंत्र विधायक के रुप में विधानसभा में रहूंगा। किसी दल से नहीं जुडूंगा। भाजपा में भी वापस नहीं जाऊंगा। सरकार जो बन रही है उसे मेरा नैतिक समर्थन है। सरकार अच्छा काम करे। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन नौजवान हैं। एक नौजवान मुख्यमंत्री के नाते वे अनुभवी साथियों से सलाह लेकर कोई ऐसा रास्ता बनायें जिससे झारखंड के लोगों को महसूस हो कि सरकार में हमारी हिस्सेदारी है। आज तो झारखंड का बड़ा तबका यह महसूस ही नहीं करता है। हम लकीरें खींचते जाते हैं। मकर रेखा खीचेंगे, कर्क रेखा खीचेंगे। पर लोगों को इससे फायदा मिले ऐसा होना चाहिए।

    सवाल : झारखंड में जो गैर बराबरी बढ़ रही है उसके समाधान की दिशा में क्या काम किया जाना चाहिए?
    जवाब : झारखंड में आर्थिक गैर बराबरी बढ़ी है और यह बढ़ती जा रही है। जो सामान्य वर्ग है उसको यह लगे कि उसकी स्थिति कल से थोड़ी बेहतर हो गयी है तो वह संतुष्ट रहेगा। झारखंड सरकार की वित्तीय स्थिति जर्जर है। कर्मचारियों के वेतन-भत्ते की राशि जो एक नवंबर को मिल जाती थी वह सोलह नवंबर को आयी है और दो तीन लगे हैं उसकी ट्रेजरी से निकासी में। यह स्थिति जब है तो हम जबतक गैर बराबरी को कम नहीं करेंगे। या हमारा अपना जो मोटिव है उसकी सीमा मर्यादा तय नहीं करेंगे। तो व्यक्तिगत रुप से हम तो समृद्ध हो जायेंगे पर हमारा समाज आगे नहीं बढ़ पायेगा। सरकार कोई भी बना ले इन चीजों पर ध्यान नहीं देंगे तो आगे चलकर कठिनाई होगी।

    सवाल : झारखंड जब बना था तो यहां सरप्लस बजट की स्थिति थी। पर अब बजटीय असंतुलन की स्थिति है। यह स्थिति कैसे पैदा हो गयी?
    जवाब : बजट कर सरप्लस होना या घाटे का बजट होना यह बहुत मायने नहीं रखता है। पर खजाने में जो पैसा जनता की गाढ़ी कमाई से आने वाले टैक्स से आता है या फिर केंद्र सरकार के अनुदान से आता है उसे हम ठीक से खर्च नहीं करेंगे तो वित्तीय असंतुलन की स्थिति आयेगी। पूर्व की सरकार ने प्रचार पर बेतहाशा पैसा खर्च किया। इसके परिणाम अच्छे नहीं आये हैं। अब जो स्थिति है उसमें यह साफ है कि झारखंड सरकार की वित्तीय स्थिति जर्जर है। दिवालियेपन की स्थिति है। सरकार इसे घोषित करे या अथवा न करे।

    सवाल : पिछली सरकार मेें पारा शिक्षकों, आंगनबाड़ी सेविकाओं और सहियाओं की मांगें अनसुनी रह गयी। इसका चुनाव के नतीजों पर भी असर दिखा। उनकी मांगों के समाधान की दिशा क्या होगी?
    जवाब : पारा टीचर और आंगनबाड़ी सेविका या सहायिका को मैं अल्प वेतनभोगी कर्मचारी कहता हूं। इनकी मांग भी बहुत गैर वाजिब नहीं रहती। जब उनका आंदोलन चल रहा है कुछ मांगों को लेकर तो उनकी मांगों के साथ संवेदनशीलता दिखानी। अल्प वेतनभोगियों को समुचित सम्मान और समुचित वेतन मिलना चाहिए। इनका दोहरा शोषण हो रहा है। एक तो सरकार इन्हें खुद बहाल न करके आउटसोर्सिंग करती है। यदि हमें जरुरत है तो इन्हें रखें या फिर नहीं रखें। यदि हम बेसिक सुविधाएं अच्छी देंगे तो इससे जमीनी स्तर पर पूंजी का निर्माण होगा। इसका नतीजा भी अच्छा आयेगा।

    सवाल : हेमंत सोरेन ने नयी सरकार के गठन से पहले एक अच्छी परंपरा की शुरुआत की। वे बाबूलाल मरांडी के यहां गये और इसके बाद चंपई सोरेन के चरण स्पर्श किये। उनके इस कदम का क्या असर होगा?
    जवाब : हेमंत सोरेन का दिल बड़ा है। उनका मन भी बड़ा है। ऐसा समझा जाता रहा है कि बाबूलाल मरांडी और हेमंत सोरेन एक-दूसरे के विरोधी हैं। पर उनके आवास पर जाकर हेमंत सोरेन ने न सिर्फ उनसे मुलाकात की बल्कि उनका समर्थन भी लिया। इसके अच्छे परिणाम सामने आयेंगे। चंपई सोरेन झारखंड के पुराने नेताओं में से एक हैं। उनका चरण स्पर्श करके भी उन्होंने अच्छा किया। इसका उल्टा तो पूर्व की सरकार में हुआ था जब पिताजी के उम्र के लोगों से तुम-ताम के स्तर पर बात की की जा रही थी। हेमंत सोरेन से स्वस्थ और भारतीय मूल्यों के अनुरुप काम किया है और इसका बेहतर संदेश समाज में गया है।

    Hemant to play government on his terms: Saryu
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