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    Home»Jharkhand Top News»विरोधियों को नहीं पच रही धर्मगुरु की मांग
    Jharkhand Top News

    विरोधियों को नहीं पच रही धर्मगुरु की मांग

    azad sipahi deskBy azad sipahi deskDecember 24, 2020No Comments7 Mins Read
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    लोकतंत्र में अपनी बात और मांग रखने का अधिकार सबको है। पर जब इस तरह की मांग कोई धर्म गुरु करता है, तो पता नहीं कुछ लोगों को यह बात पचती क्यों नहीं! चर्चाएं होने लगती हैं। झारखंड में तो ऐसे मसलों पर कुछ ज्यादा ही राजनीति गरमा जाती है। अभी-अभी राजधानी रांची में आर्च बिशप फेलिक्स टोप्पो ने यह मांग की कि इस सरकार में एक इसाई मंत्री होना चाहिए। इस मांग के बाद विरोधियों ने तो फन ही फैला लिया है। संभवत: झारखंड की राजनीति में पहली बार किसी धर्म गुरु ने इस तरह की मांग की है। इसके बाद से भाजपा ने तेवर दिखाने शुरू कर दिये हैं। इस मांग का विरोध करते हुए भाजपा ने पूरे समुदाय को ही लपेट दिया है। यहां यह भी सवाल उठ रहे हैं कि क्या लोकतंत्र में कोई अपनी बात नहीं रख सकता, अपनी किसी इच्छा को पटल पर रखना कोई गुनाह है! परंतु इन दिनों राजनीति का नवीकरण हो गया है, जिसमें हर बात के विरोध को ही रणनीति मान लिया गया है। सिर्फ विरोध के लिए विरोध की परंपरा शुरू हो गयी है, और उसी परंपरा के तहत भारतीय जनता पार्टी ने किया है। हालांकि भाजपा का यह विरोध महज सियासत को गरमाने की एक कोशिश ही मानी जा सकती है। आर्च बिशप के बयान के बाद राज्य में गरमा रही सियासत पर आजाद सिपाही के सिटी एडिटर राजीव की ये रिपोर्ट।

    झारखंड की राजनीति में संभवत: पहली बार है, जब आर्च बिशप की ओर से इसाई समुदाय के एक विधायक को मंत्री बनाने की वकालत की गयी है। हालांकि देखा जाये तो यह आर्च बिशप की एक पीड़ा मात्र है, जिसमें कहा गया कि उनके समुदाय का प्रतिनिधित्व करनेवाला ही उनकी समस्याओं को बेहतर ढंग से समझ सकता है। देखा जाये, तो इस बात या मांग में कुछ भी गलत नहीं। सभी समुदाय अपने हित के लिए इस तरह की मांग या अपने समाज के व्यक्ति को मंत्री पद दिलाने की मांग करते रहे हैं, परंतु यहां तो मामला एक धर्म गुरु का था। इसलिए इसे लपकने की कोशिश की गयी, जिसे स्वस्थ लोकतंत्र की परंपरा के लिए कभी अच्छा नहीं माना जा सकता। आर्च बिशप की यह मांग राज्य में समुदाय के लाखों धर्मावलंबियों से जुड़ी थी। ऐसे में यह सवाल तो उठना लाजिमी है कि आखिर यह विरोध क्यों। विरोध करनेवालों ने भी नहीं सोचा किसी भी समुदाय के लोग ही अपनों का दर्द भली भांति समझ सकते हैं। अगर जानकारी नहीं होगी, तो समस्या का समाधान कैसे संभव हो सकता है। संभवत: इसी सोच को लेकर आर्च बिशप ने कैबिनेट में एक मंत्री पद इसाई समुदाय को देने की वकालत की है। एक नजर सत्तापक्ष के विधायकों पर डालें, तो 12 विधायक इसाई समुदाय से आते हैं। ऐसे में भी उनका हक मंत्री पद के लिए तो बनता ही है। आखिर भाजपा को हेमंत सोरेन की सरकार में क्रिश्चियन समुदाय से इतनी एलर्जी क्यों है। अगर इतनी ही एलर्जी थी, तो भाजपा को यह भी बताना चाहिए कि आखिर लुइस मरांडी को उसने क्यों मंत्री पद दिया था। दोबारा भी दुमका में उपचुनाव हुआ, तो भाजपा ने लुइस मरांडी पर ही भरोसा जताया। जब अपनी बारी आती है, तो भाजपा को सब कुछ ठीक लगने लगता है, लेकिन जब दूसरों की बारी आती है, तो वह राजनीति के चश्मे से देखने लगती है। सवाल तो यह भी उठता है कि अगर इसाई समुदाय को अपनी डिमांड नहीं करनी चाहिए, तो फिर हिंदू, मुसलिम, सिख को भी अपनी बात नहीं रखनी चाहिए। जब किसी अन्य समुदाय के लोग कैबिनेट में स्थान देने की बात करते हैं, तो सवाल नहीं उठते, लेकिन जब इसाई कम्युनिटी की तरफ से डिमांड आयी है, तो विवाद पैदा किया जा रहा है। साधु-संत, तो हमेशा ही भाजपा का पक्ष लेते रहे हैं, तो क्या यह गलत है।
    बाबूलाल मरांडी, अर्जुन मुंडा और यहां तक कि रघुवर दास भी आर्च बिशप और कार्डिनल से मिलने पहुंचते रहे हैं। तब तो भाजपा चुप रहती है। बिना विचार किये किसी भी मुद्दे का विरोध या बयानबाजी उचित नहीं कही जा सकती। अन्यथा झारखंड में एक और गलत परंपरा की शुरुआत हो जायेगी।
    जनकल्याण के क्षेत्र में अनुकरणीय कार्य किया है मसीही समुदाय ने
    यह भी गौर करनेवाली बात है कि इसाई समुदाय जन कल्याण के क्षेत्र में जितना काम कर रहा है, वह अनुकरणीय है। क्या इनके द्वारा संचालित स्कूल और कॉलेज में सिर्फ इसाई समुदाय के बच्चे ही पढ़ते हैं। ऐसा नहीं है। इसका फायदा हर कम्युनिटी के लोगों को मिल रहा है। शिक्षा के मंदिर तो हिंदू संगठनों ने भी खोले, लेकिन इसाई मिशनरियों द्वारा संचालित और हिंदू संगठनों द्वारा संचालित स्कूलों की फीस स्ट्रक्चर देख लीजिए, पता चल जायेगा कि किस ग्रु्रप में शिक्षा को लाभ कमाने का कारखाना बना दिया गया है। ऐसे में अगर इसाई समुदाय को किसी बात को लेकर समस्या है और अपनी बात सरकार तक तुरंत पहुंचाना चाहते हैं, तो फिर किसी को भी आपत्ति नहीं होनी चाहिए। भाजपा के बयान के बाद राजनीतिक गलियारे में चर्चा होने लगी है कि विरोध के लिए महज विरोध झारखंड की राजनीति के लिए ठीक नहीं है। अगर ऐसा है, तो भाजपा को भी एमजे अकबर, मुख्तार अब्बास नकवी, शहनवाज हुसैनजैसे नेताओं को मंत्री पद नहीं देना चाहिए था। इस पार्टी पर हिंदुओं की पार्टी का ठप्पा लगा है, परंतु यह सबका साथ, सबका विकास की बात करती है। यदि सबको साथ लेकर चलना है तो किसी एक समुदाय की ओर से उठी मांग का विरोध कैसे कर सकते हैं। भाजपा की पिछली सरकार के कार्यकाल में ही हज हाउस का निर्माण कराया गया, तो क्या यह गलत था। मुख्यमंत्री पूरे राज्य का होता है और वह राज्य के हर व्यक्ति, समुदाय का भला सोचता है। यह लोकतांत्रिक व्यवस्था है। कुछ चीजें दायित्व बोध से भी चलती हैं। इसे राजनीति के चश्मे से नहीं देखा जाना चाहिए।
    1500 अनुदानित स्कूल चला रहा मसीही समुदाय
    यह भी सही है कि पिछली सरकार में अल्पसंख्यक स्कूलों में शिक्षकों की कोई नियुक्ति नहीं हो पायी है। स्कूलों में शिक्षकों के नहीं होने से उनके संचालन में मुश्किल हो रही है और इसका सीधा प्रभाव बच्चों की पढ़ाई पर पड़ रहा है। मसीही समुदाय के 1500 स्कूल झारखंड में संचालित हैं, जो सरकारी सहायता प्राप्त हैं। इसके साथ-साथ कई निजी स्कूल हैं, जिनका संचालन पूरी तरह से इसाई समुदाय खुद करता है। ऐसे में अपनी मांग को लेकर कैबिनेट में एक मंत्री की डिमांड करना गलत नहीं कहा जा सकता।
    आर्च बिशप की बातों में दिखी समाज की चिंता
    आर्च बिशप फेलिक्स टोप्पो की बातों में समाज की चिंता दिखी। उन्होंने कहा है कि मंत्रिमंडल में इसाई समाज का प्रतिनिधित्व नहीं है। मुख्यमंत्री अविलंब इस पर ध्यान दें और मंत्रिमंडल में इसाई समाज की भागीदारी सुनिश्चित करें। साथ ही उन्होंने अल्पसंख्यक स्कूलों की परेशानियां बतायीं। इन स्कूलों में नियुक्ति नहीं होने पर सवाल उठाया। कहा कि करीब पांच सालों से अल्पसंख्यक स्कूलों में नियुक्ति नहीं हो रही है। इससे पढ़ाई-लिखाई बाधित हो रही है। इतना ही नहीं, ग्रामीण बच्चों के लिए उन्होंने चर्च के द्वारा राज्य सरकार के साथ मिलकर गांव स्तर पर कोचिंग संस्थान चलाने की भी बात कही।
    आर्च बिशप की बातों में भाजपा को नजर आ रहा एजेंडा
    हर बार की तरह इस बार भी भाजपा ने सीधे ही विरोध शुरू कर दिया। भाजपा नेता को इसमें छिपा एजेंडा नजर आने लगा। कहा कि क्रिसमस के पूर्व आर्च बिशप फेलिक्स टोप्पो की हेमंत सरकार से एक इसाई विधायक को मंत्री बनाने की मांग पूरी तरीके से चर्च के छिपे एजेंडे को उजागर करती है। भाजपा ने यह भी आरोप लगाया कि उनकी पार्टी यह शुरू से ही कहती रही है कि झारखंड में चर्च के कुछ पदाधिकारी राजनीतिक हस्तक्षेप करते हैं, जबकि उनकी जिम्मेवारी सिर्फ संविधान के दायरे के भीतर अपने धर्म का प्रचार-प्रसार करना और सामाजिक कार्य करना है। लेकिन हेमंत सरकार के गठन को आर्च बिशप कभी क्रिसमस गिफ्ट बताते हैं, तो एक वर्ष के बाद अब इसाई समुदाय के विधायक को मंत्री बनाने की मांग करते हैं।
    भाजपा जो भी कहे, लेकिन लोकतांत्रिक व्यवस्था में किसी व्यक्ति, समूह या धार्मिक संस्थान की मांग को गलत नहीं ठहराया जा सकता।

    Opponents are not digesting the demand for a religious teacher
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