प्रश्न- किसान संघ ने इतने बड़े आंदोलन से दूरी क्यों बना रखी है?
-किसान संघ गैर राजनीतिक संगठन है। हमारा किसानों से जीवंत संवाद है। किसान संघ हिंसा, राष्ट्रीय संपत्ति को नुकसान और जनता को परेशान कर अराजकता के आधार पर दबाव नहीं बनाता बल्कि मर्यादा में रहकर अपनी बात रखता है। कथित किसान आंदोलन उसी रणनीति का हिस्सा है, जो देश तोड़ने की बात करते हैं।
प्रश्न- कृषि कानून की विसंगतियां दूर करवाने के लिए किसान संघ की क्या रणनीति है?
-किसान संघ ने 15 हजार ग्राम समितियों के माध्यम से प्रधानमंत्री और कृषि मंत्री को ज्ञापन भेजे हैं लेकिन सरकार की ओर से कोई जवाब नहीं आया है। न ही सरकार ने कोई बातचीत की है। भविष्य में किसान संघ भी आंदोलन करेगा लेकिन हमारे आंदोलन का स्वरूप मर्यादित होगा।
प्रश्न- केंद्र सरकार ने किसान संगठनों के प्रतिनिधियों से वार्ता की है, आगे भी वार्ता होगी लेकिन इसमें किसान संघ के प्रतिनिधि भी शामिल क्यों नहीं?
-हम किसानों के साथ खड़े हैं। किसानों के हक की लड़ाई हमेशा लड़ते आए हैं। दिल्ली में चल रहे आंदोलन का हम हिस्सा नहीं हैं। किसान संघ को सरकार ने वार्ता में क्यों नहीं बुलाया है, यह सरकार बता सकती है।
-प्रमुख रूप से हमारी तीन मांगे हैं- न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम पर खरीद न हो, व्यापारी का रजिस्ट्रेशन हो और विवादों के निपटारे की ठोस प्रक्रिया तय हो। सरकार गारंटी दे कि मंडी के बाहर भी एमएसपी से कम पर खरीद नहीं होगी। देश में 86 प्रतिशत छोटे किसान हैं। इनके स्वयं के साधन नहीं हैं, न इतना समय है कि अपना माल एक राज्य से दूसरे राज्य में जाकर बेच सकें। बल्कि पंचायत स्तर पर मंडी खुलती है तो ज्यादा फायदा होगा। इस कानून का फायदा बिचौलियों, उद्योगपतियों, सम्पन्न किसानों और व्यापारियों को ही होगा। केन्द्र सरकार ने लगातार दो बजट में पंचायत स्तर पर 22 हजार छोटी मंडियां खोलने की घोषणा की थी। इसका बहुत स्वागत हुआ था लेकिन अब इसपर कोई चर्चा नहीं है।
प्रश्न- क्या एमएसपी की निर्धारण की प्रक्रिया सही है?
-न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारण के लिए सरकार के पास आज भी पूरा डेटा नहीं है। जबकि कृषि क्षेत्र में सरकार का बड़ा तंत्र काम करता है। इनमें कृषि विज्ञान केन्द्र, कृषि विश्वविद्यालय और कृषि विभाग है। इनके पास वास्तविक उत्पादन लागत के आंकड़े नहीं हैं। मूल्य निर्धारण के लिए राज्य सरकारें कृषि एवं लागत मूल्य आयोग (सीएसीपी) को आंकड़े भेजती हैं। वहां कटौती करके मूल्य निर्धारण किया जाता है। इसके बावजूद 50 प्रतिशत खरीद भी समर्थन मूल्य पर नहीं होती है।
-पंजाब में एमएसपी समाप्त करने का भ्रम फैलाकर आंदोलन खड़ा किया गया है क्योंकि पंजाब और हरियाणा में 75 प्रतिशत से अधिक धान और गेहूं की खरीद एमएसपी पर केन्द्र सरकार करती है। जबकि अन्य राज्यों में एमएसपी पर खरीद बहुत कम होती है। पंजाब की कांग्रेस सरकार ने कानून बनाकर धान और गेहूं की एमएसपी से नीचे खरीद को अपराध माना है। यदि सरकार किसान हितैषी होती तो एमएसपी की सूची में आनेवाली सभी फसलों को इस कानून में शामिल करती। वहीं राजस्थान की कांग्रेस सरकार ने तो अपने कानून में एमएसपी का उल्लेख तक नहीं किया है। ऐसे में लगता है कांग्रेस सरकारों का कानून केवल केन्द्र सरकार के विरोध के लिए विरोध है।