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    Home»Jharkhand Top News»एक साल में ही अपनी नयी राह बनाते दिख रहे हेमंत
    Jharkhand Top News

    एक साल में ही अपनी नयी राह बनाते दिख रहे हेमंत

    azad sipahi deskBy azad sipahi deskDecember 29, 2020No Comments10 Mins Read
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    मुख्यमंत्री सोरेन के समक्ष चुनौतियों का विशाल पहाड़ खड़ा है और सही मायनों में सोरेन को मुख्यमंत्री पद के रूप में कांटों भरा ऐसा ताज मिला है। लेकिन सुकून की बात यह है कि वह उस पहाड़ पर खड़ा होकर भी झारखंड को नयी दिशा में हर पल सक्रिय हैं। हेमंत सोरेन झारखंड के 11वें मुख्यमंत्री हैं। वह दूसरी बार राज्य के मुख्यमंत्री बने हैं। हालांकि दावे किये जा रहे थे कि तीन बड़े दलों के गठबंधन की सरकार को चला पाना उनके लिए इतना आसान नहीं होगा, परंतु एक साल की सरकार के इस सफर में हेमंत कभी भी विचलित या किनारे पड़ते नहीं दिखे। देखा जाये, तो मुख्य सहयोगी दल कांग्रेस के दिग्गज नेताओं ने लाइन आॅफ कंट्रोल पार करने की कभी कोशिश नहीं की। हेमंत सरकार के एक साल पूरे होने पर आजाद सिपाही की पड़ताल।

    सहयोगियों को साथ लेकर चलना
    हेमंत सोरेन ने पहली बार जुलाई 2013 में झारखंड के मुख्यमंत्री की शपथ ली थी और झामुमो-राजद-कांग्रेस के साथ मिलकर एक साल पांच महीने पंद्रह दिन तक सरकार चलायी थी। बहरहाल, इस बार सत्ता संभालते ही जिस तरह हेमंत सोरेन ने पहली कैबिनेट बैठक में ही सीएनटी-एसपीटी एक्ट में संशोधन करने, पत्थलगढ़ी को लेकर दर्ज मुकदमे वापस लेने और फिर खरसावां गोलीकांड के शहीदों के परिजनों को सरकारी नौकरी देने का एलान करने सहित कई बड़े निर्णय लिये, इससे उन्होंने अपनी प्राथमिकताओं का अहसास करा दिया था। बता दें कि झामुमो आदिवासियों के मुकदमे वापस करने की समर्थक रही है और पत्थलगड़ी आंदोलन में केस वापसी को सोरेन के लिए बड़ी चुनौती माना जा रहा था। 2017 में इस आंदोलन के कारण राज्य में करीब दस हजार आदिवासियों पर राजद्रोह का मुकदमा दर्ज किया गया था। हेमंत के समक्ष इस मामले के अलावा भी अनेक चुनौतियां मुंह बाये खड़ी हैं। सबसे बड़ी चुनौती तो उनके लिए सहयोगी दलों कांग्रेस और राजद को लगातार साथ लेकर चलते रहने की हैं, जिसमें मुख्यमंत्री अब तक पूरी तरह खरा उतरे हैं। क्योंकि इन दलों के साथ चलते हुए हेमंत अपने मनमुताबिक फैसले लेकर अपनी सरकार को इतनी सहजता से नहीं चला पायेंगे, ऐसा कयास लोग लगा रहे थे। चूंकि उनकी सरकार मुख्यत: कांग्रेस की बैसाखियों पर टिकी है, इसलिए हर कदम पर कांग्रेस को खुश रखते हुए साथ लेकर चलना उनके लिए इतना सहज नहीं लग रहा था। जिस प्रकार महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे कांग्रेस के समर्थन से सरकार चला रहे हैं और महाअघाड़ी सरकार में गठबंधन में शामिल होने के बावजूद कांग्रेस उनके लिए मुश्किलें खड़ी कर रही है, उसे देख कर लगता था कि झारखंड में भी कांग्रेस हेमंत सोरेन के निर्णय में बार-बार अड़चनें खड़ी करेगी, लेकिन हेमंत के कुशल नेतृत्व के कारण झारखंड में ऐसा देखने को नहीं मिला। हेमंत सोरेन ने गठबंधन को बड़े ही बेहतर ढंग से संभाला। जहां भी जरूरत महसूस हुई, सबके साथ मंत्रणा की। चाहे वह कोरोना का संकट काल हो या सरना कोड का मामला हो। कभी भी किसी सहयोगी दल ने हेमंत सोरेन के निर्णय पर उंगली नहीं उठायी।
    चुनावी वायदों पर खरा उतरना
    सही मायनों में हेमंत चुनौतियों के ऐसे पहाड़ पर खड़े हैं, जहां से चुनाव के दौरान किये गये अपने सारे वायदों को पूरा करना और झारखंड को विकास के मार्ग पर अग्रसर करना उनके लिए बड़ी चुनौती होगी। सही मायनों में हेमंत सोरेन को मुख्यमंत्री पद के रूप में कांटों भरा ऐसा ताज मिला है, जिसके कांटे थोड़ी सी भी चूक होने पर मुश्किल खड़ी कर सकते हैं। जनता की आशाओं और अपेक्षाओं की लंबी फेहरिश्त है। उनके समक्ष सबसे पहली और बड़ी चुनौती है अपनी पार्टी को भितरघात से बचाते हुए अपनी सबसे बड़ी सहयोगी कांग्रेस की महत्वाकांक्षा पर काबू रख राज्य में राजनीतिक स्थिरता बनाये रखना। दरअसल झारखंड राजनीतिक अस्थिरता वाला ऐसा राज्य है, जहां इस राज्य के गठन से लेकर अब तक केवल पिछली भाजपा सरकार ने ही अपना पांच वर्षीय कार्यकाल पूरा किया है। 15 नवंबर 2000 को अस्तित्व में आये झारखंड में इन 20 वर्षों में अब तक कुल 10 बार मुख्यमंत्री बदल चुके हैं, जिनमें से तीन-तीन बार झामुमो के शिबू सोरेन तथा भाजपा के अर्जुन मुंडा मुख्यमंत्री रहे हैं। एक बार बाबूलाल मरांडी और निर्दलीय मधु कोड़ा ने राज्य की कमान संभाली, जबकि तीन बार राष्ट्रपति शासन भी लग चुका है। भाजपा के रघुवर दास को छोड़कर कोई भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सका। हेमंत सोरेन की पार्टी ने प्रदेश में महिलाओं को सरकारी नौकरी में 50 फीसदी आरक्षण देने और गरीबी रेखा से नीचे रहने वाली महिलाओं को प्रतिमाह दो हजार रुपये देने का वादा किया था, उनके इस वादे पर भी सभी की नजरें टिकी हैं। हेमंत सोरेन को भी अपने वायदे याद हैं। तभी तो महिलाओं को स्वावलंबी बनाने की उन्होंने पहल शुरू कर दी है। झामुमो और कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्रों में किसानों की कर्जमाफी का एलान किया था। इस वायदे को पूरा करने के लिए हेमंत सरकार संकल्पित नजर आती है। सरकार की मानें, तो अगले साल इसकी शुरुआत हो जायेगी। झामुमो ने भूमि अधिकार कानून बनाने का वादा किया था, इस दिशा में सरकार काम करती नजर आ रही है।
    कर्ज में डूबे राज्य की अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करना
    हेमंत सोरेन के समक्ष दूसरी बड़ी चुनौती है 85 हजार करोड़ के कर्ज में डूबे इस आदिवासी राज्य की अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करना। साथ ही राज्य के खाली खजाने को भरना और राजस्व बढ़ाते हुए अर्थव्यवस्था को मजबूत करना। बताया जाता है कि 2014 में राज्य पर 37593 करोड़ का कर्ज था, जो पिछले पांच वर्षों में बढ़कर 85234 करोड़ हो गया। प्रदेश के किसानों पर भी 6 हजार करोड़ से ज्यादा का कर्ज है। ऐसे में किसानों को इस कर्ज से उबारने के साथ-साथ राज्य के भारी-भरकम कर्ज को कम करते हुए झारखंड को विकास के मार्ग पर ले जाना हेमंत के लिए इतना आसान कार्य नहीं है। प्रदेश की करीब 37 फीसदी आबादी गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन करती है। हेमंत इस गंभीर समस्या से निपटने की भरपूर कोशिश कर रहे हैं। कई मौकों पर उन्होंने इसे साबित भी किया है। इस कोरोना संकट और लॉकडाउन के बीच राजस्व बढ़ाने की कुशलता उन्होंने राज्यवासियों को दिखा दी है। इससे राज्य में एक नयी उम्मीद भी जगी है। दरअसल सरकार संभालते ही हेमंत सोरेन के समक्ष कोरोना रूपी संकट सामने आ खड़ा हुआ। लॉकडाउन ने तो राज्य की अर्थव्यवस्था की कमर ही तोड़ दी। ऐसे में खाली खजाने के साथ लोगों को राहत प्रदान करना शायद सबसे बड़ी चुनौती थी। परंतु हेमंत सोरेन ने अपने रणनीतिक कौशल से न सिर्फ लोगों को राहत पहुंचायी, बल्कि राज्य की अर्थव्यस्था पर भी फोकस किये रहे। नतीजा आज सबके सामने है। खाली खजाना भरने लगा है, राजस्व आने लगा है और वित्त मंत्री रामेश्वर उरांव खुद कह रहे हैं कि हम अब बेहतर स्थिति में हैं।
    रोजगार उपलब्ध कराना और खाद्यान्न की कमी दूर करना
    झारखंड में बेरोजगारी और पलायन एक बड़ी समस्या रही है। आश्चर्य की बात यह है कि प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर होने और औद्योगिकीकरण के बावजूद यहां बेरोजगारी की दर बहुत ज्यादा है। यह देश में सर्वाधिक बेरोजगारी वाला पांचवां राज्य है। नेशनल सैंपल सर्वे आॅफिस की रिपोर्ट के मुताबिक झारखंड में 2011-12 में 2.5 प्रतिशत बेरोजगारी की दर थी, जो 2017-18 में बढ़कर 7.7 प्रतिशत हो गयी। खुद हेमंत ने माना है कि वर्तमान में देश में बेरोजगारी दर जहां 7.2 प्रतिशत है, वहीं उनके राज्य में यह 9.4 फीसदी है। ऐसे में उनके समक्ष राज्य के युवाओं को रोजगार देना प्रमुख चुनौती होगी। झामुमो ने अपने घोषणा पत्र में सरकार बनने के दो साल के भीतर पांच लाख युवकों को नौकरी देने और नौकरी न मिलने तक बेरोजगारी भत्ता देने का वादा किया था। खाद्यान्न की कमी और भुखमरी से मौतों को लेकर झारखंड कई बार सुर्खियों में रहा है। यहां प्रतिवर्ष ज्यादा से ज्यादा 40 लाख मीट्रिक टन खाद्यान्न का ही उत्पादन हो पाता है, जबकि जरूरत है 50 लाख मीट्रिक टन खाद्यान्न की। खाद्यान्न में कमी के इस बड़े अंतर को पाटना हेमंत सरकार के लिए बहुत बड़ी चुनौती है।
    राज्य गठन के बाद से ही राज्य को लगता रहा है बिजली करंट
    झामुमो ने अपने घोषणा पत्र में सौ यूनिट तक बिजली मुफ्त देने का वादा किया था, इस लोकलुभावन वादे को वे कैसे पूरा करेंगे, यह बड़ी चुनौती है। दरअसल 2014 से लेकर 2019 तक घर-घर तक बिजली पहुंचाने की घोषणाएं तो बहुत बार हुई, कनेक्शन भी पहुंचाया गया, लेकिन बिजली उत्पादन बढ़ाने की दिशा में कोई ठोस काम नहीं हुआ। इतना ही नहीं 24 घंटे निर्बाध बिजली की बातें, तो राज्य गठन के बाद से ही होती रही हैं, परंतु ऐसा होता कभी दिखा नहीं। ऊर्जा मंत्रालय भी सीएम हेमंत सोरेन के पास ही है। अभी पिछले दिनों मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने बैठक कर सभी एरिया बोर्ड में नया ट्रांसफार्मर लगाने और पुराने तथा खराब ट्रांसफार्मरों को बदलने का निर्देश अधिकारियों को दिया है। इसके बाद से ही अधिकारी रेस हैं। इतना ही नहीं, बकाया बिजली बिल की वसूली के लिए अभियान चलाया जा रहा है, ताकि राजस्व बढ़े, तो संसाधन को मजबूत किया जा सके। अंडरग्राउंड केबलिंग का काम भी तेजी पर है। उम्मीद की जा रही है कि नये साल में मार्च माह तक रांची और जमशेदपुर में यह काम पूरा हो जायेगा।
    नक्सलियों पर काबू पाने की कवायद
    खूंटी, लातेहार, रांची, गुमला, गिरिडीह, पलामू, गढ़वा, सिमडेगा, दुमका, लोहरदगा, बोकारो, चतरा इत्यादि झारखंड के करीब 13 जिले अभी भी नक्सल प्रभावित हैं, जिन्हें नक्सल मुक्त बनाना हेमंत की गठबंधन सरकार के लिए बड़ी चुनौती है। यह कार्य केंद्र सरकार की सहायता के बिना संभव नहीं होगा, यह भी सीएम हेमंत जानते हैं। उन्होंने इस दिशा में कई ठोस कदम उठाये हैं। भरोसेमंद और अनुभवी एमवी राव को डीजीपी के पद पर बिठाया है। राव भी सीएम के भरोसे पर खरा उतरे हैं। इस गंठजोड़ का ही नतीजा है कि नक्सली घटनाओं के बीच दुर्दांत नक्सलियों के खिलाफ पुलिस को सफलता मिली है। इनमें सबसे ताजा नाम जीदन गुड़िया और पुनई उरांव का लिया जा सकता है, जो दक्षिणी झारखंड में आतंक बने हुए थे। झारखंड पुलिस ने इन्हें मार गिराया है। इससे उम्मीद जगी है कि राज्य में अब उग्रवाद को पनपने का मौका नहीं मिलेगा।
    भ्रष्टाचार पर नकेल कसना
    भ्रष्टाचार इस आदिवासी बहुल राज्य की जड़ें खोखली करता रहा है। राज्य की छवि सुधारने के लिए इस दिशा में हेमंत सरकार को सख्त कदम उठाने की चुनौती थी, परंतु लगातार आरोपी अधिकारियों पर हो रही कार्रवाई ने इस दिशा में बड़ी उम्मीद जगायी है। एक साल के कार्यकाल में कई ऐसे दोषी और ऐसे मामलों में बड़े निर्णय लिये गये, जिन्हें अब तक टाला जाता रहा था। आरोपी अधिकारियों के विरुद्ध कार्रवाई करने की दिशा में सीएम हेमंत ने कभी देर नहीं की। अभी कुछ दिन पहले ही दुमका में पत्रकारों से बात करते हुए उन्होंने साफ-साफ कहा कि कोई भी अधिकारी जो गलत करता है, वह बचेगा नहीं। इतना नहीं, उन्होंने यह भी स्पष्ट कर दिया किसी भी पार्टी का नेता हो, झामुमो, भाजपा, कांग्रेस या राजद-कानून सबके लिए बराबर है।
    हर मोर्चे पर बेहतर दिख रहे हेमंत
    बहरहाल, हेमंत सोरेन भले ही कांग्रेस तथा राजद के कंधों पर सवार हैं, लेकिन उनके समक्ष विभिन्न मोर्चों पर जनता की आशाओं और आकांक्षाओं पर खरा उतरने की बड़ी चुनौती है। झारखंड राजनीतिक तौर पर बेहद अस्थिर और मुश्किल आर्थिक-सामाजिक चुनौतियों वाला राज्य माना जाता रहा है, जो आर्थिक और सामाजिक विकास की दृष्टि से देश के सर्वाधिक पिछड़े राज्यों में शामिल है, ऐसे में गठबंधन के साथियों को खुश रखते हुए हेमंत सोरेन अभी तक तमाम चुनौतियों से निपटते नजर आ रहे हैं।

    Hemant is seen making his new way in a year
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