- अगर पुलिस इस बेमेल रिश्ते की जांच कर लेती, तो रेबिका और दिलदार के शादीशुदा होने की सच्चाई सामने आ जाती
- जब अगुआ बन कर शादी करवायी, तो अब हत्या की जिम्मेदारी भी लेनी चाहिए
नारी शक्ति है, संतोषी है, त्याग है, बलिदान है, जन्मदात्री है, फलदायिनी है, सम्मान है, साहस है, अभिमान है, गौरव है, जगत-जननी है और सबसे अहम ममता की मूरत है। भारत जैसे देश में जहां नारी शक्ति की उपासना की जाती है, जहां नारियों की रक्षा के लिए नारी चंडी का रूप धारण कर लेती है, वहीं मरियम निशा के रूप में कुछ नारी ऐसी भी हैं, जो नारी के ही खिलाफ हैवानियत की सारी हदें पार कर जाती हैं। आखिर अपना झारखंड पहले ऐसा तो नहीं था। पता नहीं झारखंड को बदनाम करने के लिए मरियम निशा जैसी महिला कहां से आकर यहां बस गयी। जिसने हत्या की ऐसी घिनौनी साजिश रची, जिसने झारखंड ही नहीं, पूरे देश को दहला दिया है। ऐसी मानसिकता के लोग झारखंड के तो नहीं हो सकते, न ही भारत के।
मुस्लिम महिला के नाम पर कलंक है मरियम निशा
मरियम निशा मुस्लिम महिला के नाम पर झारखंड के लिए वह कलंक है, जिसने विलुप्त हो रही पहाड़िया जनजाति से आनेवाली रेबिका पहाड़िया को मरवाने के लिए अपने ही भाई को 20 हजार रुपये की सुपारी दे दी। उसके जल्लाद रूपी भाई का नाम है मोइनुल अंसारी। उसके बाद उस जल्लाद ने क्रूरता की ऐसी तसवीर पेश की, जो झारखंड के माथे पर कलंक का टीका लगा गया। पहले तो मरियम निशा का बेटा दिलदार अंसारी और उसके नाते-रिश्तेदारों ने मिल कर रेबिका की गला दबा कर हत्या की। उसके बाद रेबिका के शरीर से उस तरह चमड़ी उधेड़ी, जैसे बकरे की उधेड़ी जाती हो। यह भी संभव है कि हत्या के पहले ही कू्रर यातना देने के लिए उसके मुंह में कपड़ा ठूंस कर उसकी चमड़ी उधेड़ी गयी हो। फिर इलेक्ट्रिक कटर मशीन और चापर से शव के पचास से भी अधिक टुकड़े किये गये।
पहले रेबिका की हत्या की, फिर चमड़ी छील कर किये 50 टुकड़े
रेबिका के शव का पोस्टमार्टम करनेवाले फूलो-झानो मेडिकल कॉलेज और अस्पताल दुमका के एक डॉक्टर ने कहा है कि रेबिका के साथ जिस तरह की क्रूरता हुई, उसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है। हत्यारों ने रेबिका के शरीर से चमड़ी तक छील डाली। शव के जितने छोटे-छोटे टुकड़े किये गये हैं, उसे देख कर लगता है कि काटने में सात से आठ घंटे लगे होंगे। पुलिस पूछताछ में यह भी सामने आया है कि रेबिका की हत्या के बाद दिलदार के मामा मोइनुल अंसारी इत्मीनान से बाजार भी गया। बाजार से वह टहल कर घर आया। हत्या के दूसरे दिन तक मोइनुल अपने घर पर था। जब बाजार में यह खबर फैली कि कुत्ते किसी इंसान का मांस खा रहे हैं, तब मोइनुल अपने घर से फरार हो गया। फरार होते समय पुलिस को अंधकार में रखने के लिए उसने अपना मोबाइल घर पर ही छोड़ गया, ताकि वह ट्रेस न हो सके। इससे पता चलता है कि हत्यारों ने हत्या के पहले कितने ठंडे दिमाग से साजिश रची होगी, तभी तो उनके दिमाग में चमड़ी छीलने, सिर के टुकड़े करने का आइडिया आया होगा। हत्या से पहले ही तय कर लिया होगा कि हत्या के बाद रेबिका के शव को किस तरह ठिकाने लगाना है। उसे कहां-कहां फेंकना है। रेबिका के शव के इतने टुकड़े शायद इसलिए किये गये कि उन्हें अलग-अलग जगहों में फेंक दिया जाये, ताकि कुत्ते आसानी से शव के उन टुकड़ों को खा जायें। यह सब साक्ष्य छिपाने के इरादे से ही किया गया होगा। लेकिन कहते हैं न, अपराध कोई न कोई एक साक्ष्य जरूर छोड़ जाता है। और रेबिका के हत्यारों के साथ भी यही हुआ। जब लोगों ने देखा कि कुत्ते इंसानी मांस खा रहे हैं, तो हड़कंप मच गया। पुलिस तक सूचना गयी। पुलिस सक्रिय हुई। वह खोजबीन में जुट गयी। लाश खोजने के क्रम में पुलिस ने देखा कि कुत्ते पैर का हिस्सा खा रहे हैं। पुलिस ने उसे जब्त किया। पैर का अंगूठा मिलने के बाद रेबिका की नेल पालिश से शव की पहचान की गयी।
शव के टुकड़े देख डॉक्टरों की आत्मा भी कांप उठी
जब रेबिका का शव पोस्टमॉर्टम के लिए गया, तब डॉक्टरों के होश उड़ गये। उनकी आत्मा कांप गयी। पोस्टमॉर्टम के लिए डॉक्टरों को रेबिका के 28 टुकड़े उपलब्ध कराये गये। इनमें कटा सिर का टुकड़ा, फेफड़ा, सात अंगुलियां, बायें हिस्से की पसली, दोनों किडनियां जो आधी कटी हुई पायी गयी,ं बच्चेदानी, पेट का कटा हिस्सा आदि थे। डॉक्टरों का कहना था कि उन्होंने जीवन में पहली बार ऐसा पोस्टमॉर्टम किया है। दरअसल, रेबिका और दिलदार अंसारी ने घर से भाग कर प्रेम विवाह किया था। जब घरवाले शादी का विरोध करने लगे, तो दिलदार अंसारी रेबिका पहाड़िया को लेकर बोरियो थाने चला गया। बोरियो पुलिस ने आनन-फानन में वाहवाही लूटने के लिए थाने में शादी करवा दी। उसने जरा भी नहीं सोचा कि आखिर घरवाले शादी का विरोध क्यों कर रहे हैं। अगर बोरियो पुलिस रेबिका पहाड़िया के घरवालों से बातचीत कर लेती, तो यह सच सामने आ जाता कि दिलदार अंसारी ने अपनी पहली पत्नी को अभी तक तलाक नहीं दिया है और वह उसी के साथ घर में रह रही है। वह शादी का विरोध कर रही थी। पुलिस की इसी लापरवाही ने रेबिका को असमय काल के गाल में धकेल दिया। निश्चित रूप से जांच का एक कोण यह भी होना चाहिए कि आखिर बोरियो पुलिस ने इतनी जल्दबाजी में दोनों की शादी क्यों करवा दी। थाने में दोनों के घरवालों को क्यों नहीं बुलाया। दोनों की काउंसिलिंग क्यों नहीं की। रेबिका की पहली शादी पांच साल पहले ही हो चुकी थी और उसकी रिया नाम की एक पांच साल की बच्ची भी है। ऐसे में पुलिस को क्यों नहीं लगा कि कुछ गलत हो रहा है।
सवाल: पुलिस ने शादी क्यों करवायी
आखिर जब रेबिका के परिवार वाले नहीं चाहते थे कि दिलदार अंसारी से उसकी शादी हो, तो पुलिस ने शादी क्यों करवायी? पुलिस का यह तर्क हो सकता है कि रेबिका और दिलदार अंसारी बालिग थे, इसलिए उसने ऐसा करवाया। पुलिस यह भी तर्क दे सकती है कि रेबिका दिलदार अंसारी को प्यार करती थी। रेबिका बालिग भी थी, सो पुलिस वाले दो प्यार करनेवालों के बीच में कैसे रोड़ा बन सकते थे, सो शादी करवा दी। अंतरजातीय और प्रेम विवाह करवाने की वाहवाही भी लूट ली, भले लड़का-लड़की दूसरे धर्म से क्यों नहीं हों। भले ही लड़की के माता-पिता विरोध ही क्यों न कर रहे हों। लड़का पहले से शादी-शुदा क्यों न हो। लड़की के घरवाले क्या चाहते थे, क्या पुलिस को यह जानने की कोशिश नहीं करनी चाहिए थी? दिलदार अंसारी के परिवार वालों की क्या राय थी, क्या यह भी जानने की कोशिश नहीं करनी चाहिए थी? पुलिस के मन में शादी करवाने से पहले यह सवाल क्यों नहीं उत्पन्न हुआ कि गैर जातीय विवाह का क्या परिणाम हो सकता है। दिलदार अंसारी शादी शुदा होते हुए पहाड़िया जनजाति की लड़की रेबिका से क्यों शादी कर रहा है? पहाड़िया झारखंड की उन विशेष जनजाति में शामिल है, जिनका सरकार विशेष ध्यान रखती है। इनकी भाषा, बोली और रहन-सहन सभी अलग होते हैं। ये बाहरी लोगों से ज्यादा खुलते भी नहीं हैं। प्रशासन की यह जिम्मेदारी है कि इन पर ध्यान देती रहे। क्योंकि ये एक ऐसी जनजाति है, जो कहीं-कहीं ही वास करती है। जो विलुप्त होती जा रही है।
संथाल में चल रहा आदिवासी लड़कियों के खिलाफ षडयंत्र
संथाल परगना में पहाड़िया या आदिवासी लड़की को प्रेम जाल में फांस कर मुसलिम युवक द्वारा शादी करने का यह पहला मामला भी नहीं था। क्या पुलिस को यह नहीं पता कि वहां ऐसा क्यों किया जा रहा है। क्या धर्मांतरण और लव-जिहाद के एंगल को पुलिस को नहीं देखना चाहिए था। क्या पुलिस प्रशासन को इसकी सूचना नहीं है कि पहाड़िया जनजातियों की जमीनों को हड़पने के लिए वहां क्या कुछ हो रहा है। वे कौन लोग हैं, जो इन्हें टारगेट कर रहे हैं। फिर भी बिना जांच पड़ताल के रेबिका और दिलदार की कैसे शादी करवा दी गयी? यह बहुत बड़ा सवाल है। रेबिका और दिलदार अंसारी अंतरजातीय विवाह कर रहे थे, घर की मर्जी के बिना शादी कर रहे थे, यह हकीकत थी। कोई फिल्म की कहानी नहीं थी। बच्चे-बच्चियों के मामले में जन्म देनेवाले माता-पिता कोई मायने रखते हैं या नहीं रखते। अब जब बोरियो पुलिस ने शादी करवा दी, तो उस शादी के हश्र की भी जिम्मेदारी पुलिस को लेनी ही होगी। जैसे अरेंज मैरिज में माता-पिता जिम्मेदारी लेते हैं न। कुछ भी होता है तो माता-पिता को बच्चे दोष देते हैं। चूंकि पुलिस ने रेबिका और दिलदार अंसारी की बेमेल शादी करवायी है, तो अब रेबिका की मौत की जिम्मेदारी कौन लेगा। यह सवाल पूछना जरूरी है। नहीं तो कई ऐसी रेबिका और होंगी, जिन्हें कटने के लिए तैयार रहना होगा और जिनकी शादी पुलिस थाने में हुई होगी।
कई घटनाएं लव जिहाद की ओर इशारा करती हैं
झारखंड के संथाल में ऐसी कई घटनाएं हुई हैं, जो लव जिहाद की ओर इशारा करती हैं। आदिवासी महिलाओं से विवाह कर उनकी जमीनों पर कब्जा किया गया है। उनकी संपत्ति को हड़पा गया है। उनका जबरन धर्म परिवर्तन करवाया गया है। धर्म परिवर्तन नहीं करने पर उनकी हत्या तक कर दी गयी है। क्या रेबिका पहाड़िया को धर्म परिवर्तन करने लिए दबाव नहीं बनाया गया? यह सवाल भी पूछना जरूरी है। संथाल परगना के नेताओं ने अक्सर यह सवाल उठाया है कि यहां आदिवासी महिलाओं को इस्तेमाल कर सत्ता में जगह बना रहे हैं घुसपैठिये। आज संथाल परगना में बांग्लादेशी घुसपैठिये इस कदर हावी हो गये हैं कि इनका वहशीपन अब बाहर आने लगा है। वे खुलेआम हिंसा कर रहे हैं। आधार कार्ड, वोटर कार्ड ओर ड्राइविंग लाइसेंस बनवा कर यहां के निवासी हो गये हैं। क्या वे बांग्लादेशी झारखंडियों का हक और अधिकार नहीं लूट रहे हैं। क्या अब समय नहीं आ गया है कि सरकार को यहां एनआरसी लागू कर देनी चाहिए। क्या संथाल परगना की जनता को आवाज नहीं उठानी चाहिए। सवाल बोरियो के विधायक लोबिन हेंब्रम से भी है। आखिर उन्होंने ऐसे अत्याचार पर भी चुप्पी क्यों साध रखी है। सिर्फ यह कहने से काम नहीं चलेगा कि आखिर मुसलिम आदिवासी और पहाड़िया को ही क्यों टारगेट कर रहे हैं। क्या उनके कौम में लड़कियां नहीं हैं।
जांच हो बांग्लादेशी घुसपैठियों की
जिस तरह से संथाल परगना की डेमोग्राफी बदली है, ऐसे में क्या यह जांच नहीं होनी चाहिए कि कितने बांग्लादेशी घुसपैठियों ने यहां अपना ठिकाना बना लिया है। पूर्व की सरकार ने तो एक रिपोर्ट गृह मंत्रालय को भेजी है कि झारखंड में करीब 15 लाख बांग्लादेशी घुसपैठिये हैं। साहिबगंज, पाकुड़, गोड्डा और जामताड़ा इलाके में सबसे अधिक बांग्लादेशी घुसपैठियों के प्रमाण भी मिल रहे हैं। इसमें राजमहल और बरहरवा का इलाका तो विशेष रूप से शामिल है। हाल के दिनों में बांग्लादेशी घुसपैठियों के कारण साहिबगंज का इलाका बेहद संवेदनशील बन गया है। सूत्रों की मानें तो इस इलाके की करीब 10 हजार एकड़ जमीन पिछले सात सालों में खरीदी-बेची गयी है। हैरत की बात यह है कि इनमें से 95 प्रतिशत सौदे स्थानीय महिलाओं के नाम पर हुए हैं, जिनके पति या पिता के रूप में किसी मुस्लिम का नाम है। यह महज इत्तेफाक तो नहीं ही हो सकता है। क्या इसकी जांच नहीं होनी चाहिए?
संथाल परगना में बढ़ता अपराध
पुलिस के रिकॉर्ड बताते हैं कि संथाल परगना आज संगठित अपराध के मामले में झारखंड का सबसे अशांत इलाका बन गया है। वर्ष 2021 में संथाल परगना प्रमंडल में 723 लोगों की हत्या हुई और बलात्कार के 404 मामले दर्ज किये गये। जब यह इलाका इतना संवेदनशील है तो पुलिस को थाने में शादी करवाने से पहले सतर्क नहीं होना चाहिए? यह सवाल तो अब पूछा जायेगा, क्योंकि झारखंड एक और रेबिका की जघन्य हत्या का कलंक अपने माथे पर नहीं ले सकता। क्योंकि झारखंड की संस्कृति ऐसी है ही नहीं। यहां इस तरह की निर्मम हत्याएं नहीं हुआ करती हैं। ऐसे मार कर शरीर के चमड़े को नहीं छिला जाता है। शरीर के 50 टुकड़े नहीं किये जाते हैं। यह बांग्लादेश और पाकिस्तान के आतंकी मानसिकता वाले लोग ही कर सकते हैं।
अब नहीं तो कब
अब देखना यही है कि क्या रेबिका हत्याकांड महज एक खबर बन कर रह जायेगी। रोज-रोज नये खुलासे की कड़ी बन कर रह जायेगी। क्या इस हत्याकांड से प्रशासन या झारखंड के लोग कोई सबक लेते हैं या नहीं। क्या झारखंड की महिला विधायक रेबिका पहाड़िया के लिए आवाज उठायेंगी या नहीं, या महज मीडिया बाइट्स में अपनी संवेदना व्यक्त करेंगी। अंबा प्रसाद, दीपिका पांडेय सिंह, पूर्णिमा नीरज सिंह, शिल्पी नेहा तिर्की, जोबा मांझी, सबिता महतो, अपर्णा सेन गुप्ता, पुष्पा देवी, डॉ नीरा यादव, ममता देवी, सांसद गीता कोड़ा या केंद्रीय राज्यमंत्री अन्नपूर्णा देवी। क्या रेबिका को न्याय दिलाने के लिए ये देवियां नारी शक्ति का प्रतीक बनेंगी? क्या रेबिका के हत्यारों को फांसी की सजा दिलवाने के लिए ये जनप्रतिनिधि अपनी आवाज बुलंद करेंगी? यह बड़ा सवाल है? क्यों नहीं झारखंड की एक-एक महिला जनप्रतिनिधि रेबिका पहाड़िया को न्याय दिलाने के लिए आगे बढ़ रहीं? क्यों नहीं दुमका की बेटी अंकिता कुमारी को, जिसे शाहरुख हुसैन ने पेट्रोल छिड़क जिंदा जला कर मार डाला, उसे न्याय दिलाने के लिए आगे बढ़ रहीं? आखिर अब तक इन महिला विधायक और सांसदों ने रेबिका के परिजनों के पास जाकर उनका आंसू क्यों नहीं पोछा? व्यस्तता का बहाने से बात नहीं बनेगी। अब समय आ गया है, जब देश की आधी आबादी अपने हक, सम्मान और अधिकार के लिए खुद आवाज बुलंद करे। आखिर अब नहीं तो कब?