• हिमाचल प्रदेश की जीत ने कांग्रेस को दी संजीवनी : आप को मिला 35 लाख वोट, अब इग्नोर करना मुश्किल

गुजराती चेतना पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्थायी प्रभाव ने भाजपा को राज्य विधानसभा चुनावों में किसी भी पार्टी के लिए संभवत: सबसे बड़ी जीत हासिल करने की राह पर ला खड़ा कर दिया है। इसके साथ ही उन्होंने महंगाई और स्थानीय नेतृत्व जैसे मुद्दों पर लोगों के कथित असंतोष को भी कम करने में सफलता हासिल की है। गुजरात में मोदी की सुनामी ऐसी आयी कि कांग्रेस वहां से लगभग साफ हो गयी। रही-सही कसर आम आदमी पार्टी ने पूरी कर दी। आप ने कांग्रेस की डूबती नैया में और छेद कर दिया। इसका नतीजा यह हुआ कि कांग्रेस 17 सीटों पर ही सिमट गयी। राज्य भर में अपने प्रचार अभियान के दौरान मोदी ने 31 जनसभाओं को संबोधित किया और तीन रोड शो का नेतृत्व किया। अपने गृह राज्य के विभिन्न क्षेत्रों का उन्होंने दौरा किया तथा मतदाताओं से आग्रह किया कि वे भूपेंद्र तोड़ो नरेंद्र के रिकॉर्ड में अपना योगदान दें। उनके यह कहने का आशय जनता को इस बात के लिए प्रोत्साहित करना था कि वे मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल के नेतृत्व वाली सरकार को, उनके नेतृत्व वाली 13 वर्षों तक की सरकार के दौरान मिली सीटों की तुलना में अधिक सीटों से जितायें। गुजरात के चुनाव परिणामों से स्पष्ट है कि मतदाताओं ने उनकी बात सुनी है। भाजपा ने 2002 में सर्वाधिक 127 सीटों पर जीत हासिल की थी। उस वक्त मोदी राज्य के मुख्यमंत्री थे। इसके बाद भाजपा कभी उस आंकड़े तक नहीं पहुंच सकी थी। इससे पहले 1985 में कांग्रेस ने राज्य में 149 सीटें जीत कर रिकॉर्ड बनाया था, जब माधव सिंह सोलंकी मुख्यमंत्री बने थे। लेकिन इस बार भाजपा ने सभी रिकॉर्ड को तोड़ दिया है। गुजरात की 182 विधानसभा सीटों में से भाजपा ने 156 सीटें जीती हैं। उसे 2017 के मुकाबले 58 सीटों का फायदा हुआ है। वहीं, कांग्रेस को सबसे ज्यादा 60 सीटों का नुकसान हुआ है। पार्टी ने पिछली बार 77 सीटें जीती थीं। इस बार उसे 17 सीटें ही मिली हैं। आम आदमी पार्टी ने भी कांग्रेस के वोट बैंक में सेंध लगाते हुए पांच सीटों पर झंडा गाड़ दिया है। उसने गुजरात में लगभग 35 लाख वोट लाकर राजनीतिक पंडितों को चौंकाया है। गुजरात का चुनाव परिणाम साबित करता है कि भारत के राजनीतिक इतिहास में ब्रांड मोदी ने सबसे लंबे समय तक सबसे लोकप्रिय रहने का रिकॉर्ड भी कायम किया है। साबित तो यह भी हुआ कि कांग्रेस के नेताओं ने मोदी को जब-जब गाली दी है, मोदी उतनी ही मजबूती से आगे आये हैं। इसके अलावा गुजरात के जनादेश ने 2024 के संभावित परिणाम का परिदृश्य कुछ हद तक साफ कर दिया है। गुजरात में 1998 से सत्ता में रही भाजपा के साथ उसके स्थानीय नेतृत्व और इसके प्रशासन से जुड़े पहलुओं के बारे में कुछ मुद्दे हो सकते हैं, लेकिन अधिकांश के लिए यह मायने नहीं रखता था, क्योंकि उनके लिए पार्टी के बड़े शासन ढांचे, वैचारिक जोर और उनसे भी अधिक मोदी के प्रति उनका विश्वास मायने रखता है। गुजरात के चुनाव परिणाम का विश्लेषण कर रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

गुजरात की जनता ने भाजपा को लगातार सातवीं बार राज्य की बागडोर सौंप दी है। भाजपा एक नये रिकॉर्ड के साथ गुजरात विधानसभा में बहुमत हासिल कर चुकी है। भाजपा की इस जीत के पीछे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की करिश्माई छवि ने बड़ी भूमिका निभायी है। ऐसे में यह जानना दिलचस्प है कि आखिर गुजरात में भाजपा ने क्या किया है, जिससे वह और खास कर ब्रांड मोदी अपराजेय स्थिति में पहुंच गया है।

जहां तक भाजपा की बात है, तो उसने गुजरात को अपना सबसे मजबूत गढ़ बना लिया है। इसका श्रेय भी नरेंद्र मोदी को ही जाता है, जिन्होंने अपने मुख्यमंत्रित्व काल में जो कुछ किया, उसने वहां के लोगों को भाजपा से जोड़ दिया। इतना ही नहीं, गुजरात के कच्छ क्षेत्र में 2001 के विनाशकारी भूकंप के बाद मुख्यमंत्री रहते हुए नरेंद्र मोदी ने अपने बहुआयामी दृष्टिकोण के साथ अगले दशक के भीतर कच्छ को प्रगति के पथ पर लाने के लिए अथक प्रयास किया। उन्होंने गुजरात में वित्तीय और तकनीकी पार्कों की स्थापना की और निवेश आमंत्रित करने के लिए वाइब्रेंट गुजरात शिखर सम्मेलन शुरू किया। भाजपा की कामयाबी का दूसरा बड़ा कारण लोगों से इसका जुड़ाव है। आज गुजरात के हर मतदाता का भाजपा से सीधा संपर्क है। वहां भाजपा ने एक करोड़ कार्यकर्ता बनाये हैं और चुनाव में यह बहुत काम आता है। लेकिन असल कारण तो यही है कि गुजरात के लोगों के साथ भाजपा का जुड़ाव हर दिन गुजरने के साथ मजबूत होता जा रहा है। प्रधानमंत्री बनने से पहले मोदी लगातार तीन बार प्रदेश की कमान संभाल चुके थे। आज भी कहा जाता है कि गुजरात के लोग पीएम मोदी से सीधे बात कर सकते हैं। आर्थिक मोर्चे पर भी मोदी ने बहुत काम किये। साथ ही मजबूत संगठन मोदी की लोकप्रियता को वोट में तब्दील कर देता है। दो दशकों से ज्यादा समय तक पार्टी ने अपना वोट शेयर बरकरार रखा है। वहीं मौजूदा चुनाव में भी पीएम मोदी से लेकर देश के कई दिग्गज नेता मौजूदगी दर्ज करा चुके हैं। इतना ही नहीं, गुजरात में भाजपा का संगठन लगभग उसी अंदाज में काम करता है, जिस अंदाज में कभी पश्चिम बंगाल में वामपंथी दलों का और तमिलनाडु में अन्नाद्रमुक के कार्यकर्ता काम करते थे। राज्य के हर घर में पार्टी का कम से कम एक सदस्य मौजूद है, जो हरदम पार्टी के लिए कुछ भी करने को तत्पर रहता है। राज्य का कोई भी व्यक्ति बिना झिझक पार्टी के किसी भी कार्यालय में जाकर अपनी शिकायत दर्ज करा सकता है और उस पर कार्रवाई भी होती है। यहां तक कि जिस इलाके में विपक्षी प्रत्याशी जीतते हैं, वहां भी भाजपा के खिलाफ नकारात्मक माहौल नहीं बन पाता है। ये लोगों से भाजपा के गहरे जुड़ाव के प्रत्यक्ष उदाहरण हैं।

हाल ही में हुए एक सर्वे में भाजपा को वोट देने वाले 41 फीसदी मतदाताओं ने माना था कि वे भाजपा को इसलिए वोट देते हैं, क्योंकि वह विकास का कार्य करती है। यह थोड़े आश्चर्य की बात हो सकती है कि इसी सर्वे में भाजपा को वोट देने के लिए केवल 11 फीसदी लोगों ने एक नेता के तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कारण बताया था। चूंकि 2002 से गुजरात में भाजपा का पर्याय प्रधानमंत्री मोदी ही बन गये हैं। माना जाता है कि विकास के इस पैमाने में उनके द्वारा राज्य के लिए किये गये कार्य ही सर्वप्रमुख हैं। यानी यदि नरेंद्र मोदी गुजरात के लोगों की पहली पसंद बने हैं, तो इसके पीछे चुनावी तिकड़म नहीं, बल्कि उनके द्वारा किये गये विकास कार्यों को श्रेय दिया जा सकता है। वहां के लोग नरेंद्र मोदी से भावनात्मक रूप से जुड़ चुके हैं।
इन सबके अलावा भाजपा के गुजरात में बड़ी ताकत बनने के पीछे विपक्ष की कमजोरी को भी अहम कारण माना जाता है। गुजरात में राजनीति हमेशा दो राजनीतिक दलों के बीच आमने-सामने की लड़ाई बनी रही। पिछले तीन दशकों से भाजपा और कांग्रेस के बीच गुजरात में सीधी टक्कर देखने को मिली है। कांग्रेस ने लंबे समय तक गुजरात के मतदाताओं को अपने से जोड़ कर रखा, लेकिन पिछले दो दशकों से वह लगातार कमजोर होती गयी है। अब उसके पास अहमद पटेल जैसे लोगों से जुड़े नेता भी नहीं रह गये हैं। कुछ नेता हैं भी, तो उन्हें हाशिये पर धकेल दिया गया। कांग्रेस की इस कमजोरी का लाभ भाजपा को हुआ और वह राज्य में अपराजेय ताकत बन गयी है। गुजरात में भाजपा की जीत ने यह भी साबित कर दिया है कि जब-जब कांग्रेस के नेताओं ने मोदी को आपत्तिजनक शब्द कहे, उसका जवाब जनता ने खुद ही दे दिया। मोदी को और मजबूत बना कर। यह मोदी के काम करने की शैली ही है, जिसने कभी विरोधी रहे पाटीदारों को भाजपा के साथ जोड़ दिया। यहां तक कि पसमांदा मुसलमानों ने भी मोदी पर विश्वास जताया। एक बड़ा कारण वहां के आदिवासी भी रहे। पिछले चुनाव में वे बिखरे हुए थे। इस बार उन्होंने खुल कर मोदी का साथ दिया। इसका कारण केंद्र की योजनाएं तो उनके हित में थी हीं, राष्टÑपति द्रौपदी मुर्मू भी एक बड़ा कारण बनीं।

2024 की ओर इशारा
गुजरात के चुनाव परिणाम ने 2024 के राजनीतिक परिदृश्य पर भी रोशनी डाली है। गुजरात का संदेश यही है कि भारत के राजनीतिक इतिहास में ब्रांड मोदी हर दिन अपनी चमक बिखेर रहा है। मोदी के कद का कोई नेता दूसरे दलों के पास नहीं है। उनके काम करने के तरीके और हर गतिविधि पर उनकी पैनी नजर ने ही सबको पीछे छोड़ दिया है। यही कारण है कि जब पहले चरण में गुजरात के मतदाता कम संख्या में वोट डालने निकले, तो मोदी खुद सड़क पर उतर गये और देखते ही देखते दस लाख लोगों का हुजूम उनकी यात्रा से जुड़ गया। उसके बाद तो वोटों की सुनामी ही आ गयी।

हिमाचल ने दी है कांग्रेस को संजीवनी

गुजरात में करारी पराजय के बाद हिमाचल प्रदेश के चुनाव परिणाम ने कांग्रेस को कुछ हद तक संजीवनी दी है। वहां की जनता ने सत्ता पक्ष की बजाय कांग्रेस पर विश्वास जताया है। वहीं हिमाचल प्रदेश में लगे झटके को भी भाजपा ने गंभीरता से लिया है। हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस ने भाजपा के हाथों से सत्ता छीन ली। यह भाजपा के लिए बड़ा झटका है, लेकिन सवाल यह है कि क्या वहां भाजपा के लिए कोई रास्ता अब भी बचा है। लोगों को समझ में नहीं आ रहा है कि कैसे भाजपा के हाथों से हिमाचल प्रदेश निकल गया। इसके क्या मायने हैं।
राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो हिमाचल प्रदेश में भाजपा की हार के तीन बड़े कारण रहे। पहला कारण यह था कि हिमाचल प्रदेश में प्रत्याशियों के एलान के बाद सबसे ज्यादा बगावत भारतीय जनता पार्टी में दिखी। भाजपा के 21 बागियों ने निर्दलीय के रूप में चुनावी मैदान में ताल ठोक दी थी। कुछ कांग्रेस और आम आदमी पार्टी में भी चले गये। इसके चलते भाजपा के वोटों में बड़ी सेंधमारी हुई। इसका फायदा कांग्रेस को हुआ। हार की दूसरी वजह स्थानीय नेताओं और मंत्रियों को लेकर लोगों के बीच काफी नाराजगी थी। बड़ी संख्या में लोगों का कहना था कि नेता उनकी बातें नहीं सुनते हैं। क्षेत्र में भी नहीं रहते। इसके बावजूद पार्टी ने टिकट दिया। कुछ प्रत्याशियों पर परिवारवाद का भी आरोप लगा। हिमाचल प्रदेश में महंगाई-बेरोजगारी का मुद्दा भी अहम रहा। कोरोना के बाद पूरे देश की आर्थिक स्थिति में काफी बदलाव आया। हिमाचल प्रदेश की आय का स्रोत पर्यटन है। कोरोना काल में यह पूरी तरह ठप पड़ गया था। इसके बावजूद यहां के लोगों को कुछ राहत नहीं मिली। इस बीच, महंगाई और बेरोजगारी भी काफी बढ़ गयी। इसके चलते भी लोगों में सरकार के खिलाफ काफी नाराजगी दिखी। इसके अलावा भारतीय जनता पार्टी के पास हिमाचल प्रदेश में नेतृत्व की कमी दिखी। 2020 में हुए उपचुनाव के दौरान भी यह साफ हो गया था। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर लोगों के बीच ज्यादा लोकप्रिय नहीं हो पाये। केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने काफी हद तक उस नाराजगी को पाटने की कोशिश की, लेकिन अंतत: वह दूर नहीं हुई। वहीं कांग्रेस के चुनावी वादों ने जनता को आकर्षित किया। जैसे पुरानी पेंशन योजना, महिलाओं को 1500 रुपये प्रति माह, किसानो को बागवानी में मदद ओर फायदा दिलाने की बात औ रोजगार से जुड़े एलानों ने लोगों को आकर्षित किया।
गुजरात, हिमाचल प्रदेश और कई राज्यों में उपचुनाव के नतीजों ने 2024 के लोकसभा चुनाव की तसवीर भी कुछ हद तक साफ कर दी है। तसवीर यह कह रही है कि नरेंद्र मोदी देश की पहली पसंद हैं। मोदी बिना थके, बिना हारे हर दिन अपनी राह तय कर रहे हैं। लोगों में यह भावना घर कर गयी है कि मोदी के हाथों देश सुरक्षित है। उन्होंने अंतरराष्टÑीय स्तर पर देश को सम्मान दिलाया है। चीन और अमेरिका भी अब आंखें नहीं तरेरते। सीमा पर भारतीय सैनिक दुश्मन देश के सैनिकों की आंखों में आंख डाल कर देखते हैं। यही नहीं, कोरोना काल में जहां पूरा विश्व मंदी की मार से कराह रहा था, भारत ने अपने संसाधनों का इस्तेमाल कर उसे भी अवसर के रूप में परिवर्तित कर दिया।

उपचुनाव : अखिलेश ने बचायी विरासत, पर आजम का किला ढहा, नीतीश भी रहे फ्लॉप
देश के पांच राज्यों की छह विधानसभा और एक लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव के परिणाम भी आ गये हैं। यूपी की मैनपुरी लोकसभा सीट से सपा की डिंपल यादव ने भारी जीत दर्ज कर अपने ससुर मुलायम सिंह यादव की विरासत को बचा लिया है, लेकिन रामपुर में आजम खान का गढ़ ढह गया है। वहां भाजपा प्रत्याशी आकाश सक्सेना ने आजम के करीबी आसिम रजा को भारी अंतर से हरा दिया है। उधर बिहार की कुढ़नी विधानसभा सीट पर भी भाजपा का कब्जा बरकरार रहा। चुनाव से पहले नीतीश कुमार ताल ठोक रहे थे कि इस बार भाजपा को पता चल जायेगा कि बिहार में उसके पैर कहां हैं। लेकिन चुनाव परिणाम ने यह जता दिया कि नीतीश पर बिहार के लोग अब कितना विश्वास करते हैं। उनके हर दांव कुढ़नी विधानसभा में फ्लॉप रहे।

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