मंईयां सम्मान योजना कोई प्रसाद नहीं उनका हक
हेमंत सरकार ने ग्रामीणों की आर्थिक संपन्नता की परिकल्पना की
शिक्षा, कृषि, स्वास्थ और रूरल इकॉनमी को मजबूत करने की जरूरत

आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह ने झारखंड सरकार में वित् मंत्री राधा कृष्णा किशोर से खास बातचीत की। राधा कृष्णा किशोर
झारखंड के अनुभवी नेताओं में से एक हैं। वह झारखंड को बहुत अच्छी तरह से समझते हैं। राधा कृष्णा किशोर, छह बार के विधायक, फिलहाल झारखंड सरकार में वित् मंत्री ने झारखंड के विकास मॉडल पर बेबाकी से अपनी राय रखी। उन्होंने बातचीत से दौरान मंईयां सम्मान योजना से लेकर, ग्रामीणों के आर्थिक विकास, कृषि, शिक्षा, स्वास्थ व्यवस्था से लेकर राज्य के रूरल और अर्बन सेक्टर का विकास कैसे हो, उसपर अपना पक्ष रखा। उन्होंने बताया कि कैसे हेमंत सरकार मजबूती से झारखंड के विकास मॉडल को विकसित करने में लगी है। कैसे मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन एक स्पष्ट विजन के साथ सभी को टास्क दिया है। प्रस्तुत है बातचीत के अंश

सवाल: हेमंत सोरेन सरकार के कार्यकाल में फिलहाल झारखंड की जो मौजूदा स्थिति है, जो विकास की गती है, आपकी नजर में फिलहाल झारखंड अभी कहां स्टैंड करती है ?
जवाब: झारखंड जिन उद्देश्यों को लेकर बनाया गया था, मेरी व्यक्तिगत सोच है कि अभी उस पर बहुत काम करना बाकी है। वह उद्देश्य अभी तक पूरा नहीं हो पाया है। लेकिन यह हेमंत सोरन की सरकार ही है जिन्होंने, ग्रामीण अर्थव्यवस्था और ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाले लोगों की आर्थिक संपन्नता की परिकल्पना की है। यह स्टेट रेन शैडो एरिया में पड़ता है, हर एक साल के बाद इस राज्य को सुखाड़ का सामना करना पड़ता है और हमारी जो रूरल इकोनॉमी है, वह एग्रीकल्चर पर डिपेंडेंट है। सिंचाई की समुचित व्यवस्था नहीं होने के कारण, जब यह राज्य और यहां के किसान सुखाड़ का सामना कर रहे होते हैं , तो ग्रामीण क्षेत्र की जो आर्थिक स्थिति है, वह अत्यंत ही कमजोर हो जाती है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का पहला फोकस है कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत किया जाये और ग्रामीण अर्थव्यवस्था की मजबूती के लिए एलाइड एग्रो सेक्टर के माध्यम से मत्स्य पालन, दुध उत्पादन, पशुपालन, तालाब में अगर पानी उपलब्ध कराया जाए तो मछली पालन बहुत ही सुलभता के साथ किया जा सकता है। इसके माध्यम से हम रोजगार भी दे सखेंगे नौजवानों को और रूरल इकॉनमी को मजबूत भी कर सकते हैं। वाटर कंजर्वेशन झारखंड में बड़ी समस्या रही है, दुर्भाग्यवश पूर्ववर्ती जो सरकार रही, हेमंत सोरेन के पहले, वाटर कंजर्वेशन पर उन्होंने कोई ध्यान नहीं दिया। आप देखेंगे कि हमारे यहां जो नॉर्मल आवश्यकता है, सामान्य वषार्पात का वह 1200 से 1300 मिलीमीटर प्रति वर्ष है। लेकिन जब कभी सुखार का सामना यह राज्य किया है, तो 600-700 मिमी बारिश हुई है। दुर्भाग्यपूर्ण यह रहा कि 600-700 मिमी बारिश में 20 प्रतिशत ही वर्षा जल को हम बचा पाते हैं, शेष 80 प्रतिशत वर्षा जल नदी नालों के माध्यम से समुद्र में चला जाता है। आवश्यकता इस बात की है कि यह जो वर्षा जल है, इस जल को कैसे संचय करें, संगृहीत करें, इसकी आवश्यकता है। हेमंत सोरेन का पूरा फोकस है कि हम वाटर कंजर्वेशन को भी स्ट्रांग करें। उससे एक फायदा ये होगा कि सतही जल भी हमारा मेंटेन रहेगा और ग्राउंड वाटर भी रिचार्ज होगा।

सवाल: झारखंड में और कौन से सेक्टर हो सकते हैं, जहां पर फोकस किया जाये तो झारखंड का विकास और प्रबल होगा ?
जवाब: मैं अपनी व्यक्तिगत राय बताना चाहता हूं। लोग बड़ी-बड़ी बातें करते हैं, बातें होती भी हैं कि उद्योग की स्थापना हो। लेकिन मेरा जो अपना अध्ययन है, वह यह कहता है कि रॉ मटेरियल हमारे पास है, यदि हम उस पर आधारित उद्योग कोई भी निवेशक अगर करना चाहता है, तो वह करे लेकिन, यह भी देखा जाता है कि मार्केटिंग कहां हो पायेगा। अगर यहां कच्चे माल पर आधारित उद्योग की स्थापना हो रही है, या की जा रही है तो फिर उसका मार्केटिंग अगर दूसरे राज्य में और दूर दराज के राज्य में हो रहा है, तो उसका कॉस्ट बढ़ेगा अब यह देखने वाली बात होगी कि यह फीजिबल होगा या नहीं होगा। तो मेरे दृष्टिकोण से जो भी हमारे पास माइनस मिनरल्स हैं, तो उससे मिलने वाली जो रॉयल्टी है, जो पैसा है, वो राज्य सरकार को मिले, तो हम रेवेन्यू में इजाफा कर सकते हैं, उसको बढ़ा सकते हैं।

सवाल: झारखंड का बजट जो 2024-25 का रहा, एक लाख 28 हजार 900 करोड़ का, लेकिन अभी झारखंड सरकार की बहुत सारी योजनायें चल रही हैं। जैसे मंईयां सम्मान योजना है और भी कई प्रकार की योजनायें हैं, सर्वजन पेंशन, फ्री बिजली भी है, गैस सिलिंडर भी देना होगा, अबुआ आवास भी देना है, तो जो अमाउंट है वह तो निर्धारित अमाउंट है, योजना में आप देंगे ही, विकास कार्य में पैसा लगाना भी है, तो इसको किस तरीके से मैनेज करेंगे ?

जवाब: एक, जो कुछ लोगों के मन में बातें आती हैं, सार्वजनिक रूप से कि मंईयां सम्मान योजना एक प्रसाद के रूप में दिया जा रहा है और वोट की राजनीति के तहत किया जा रहा है, यह गलतफमी है, मैं इसे दूर करना चाहता हूं। देखिये आप भी झारखंड से हैं, हम लोग भी झारखंड से हैं। हमने देखा है कि गांव की स्थिति क्या है, वहां की आर्थिक स्थिति क्या है। जो गांव की महिलायें हैं, हमारी बेटियां हैं, उनकी क्या स्थिति है। आप चले जाइए किसी भी पहाड़ी क्षेत्र के नीचे जितने सारे गांव है, उन्हें दो वक्त की रोटी भी उपलब्ध नहीं हो पाती है। ऐसे में उनके पास नगद राशि भी नहीं है कि छोटी मोटी बीमारियों के इलाज के लिए वो दवा खरीद सकें। मंईयां समान योजना 1000 रुपये जो बढ़कर 2500 रुपये होने जा रहा है, ये पैसा जब उनके हाथ में जायेगा, तो वे अपनी जरूरत की चीजों को खुद ले सखेंगी। खरीद सखेंगी।

काटते हुए सवाल: लेकिन सरकार पर इसका अतरिक्त भार भी तो पड़ेगा ?
जवाब: मैं बता रहा हूं, उस पर आ रहा हूं। देखिये वो पैसा जब खर्च होगा, तो वह गांव के बाजार में खर्च होगा, रिमोट एरिया के मार्केट में खर्च होगा। वह पैसा जो वहां खर्च होगा, आप सिर्फ एक गांव को नहीं देखें, आप उन सभी लाभांवित को देखें तो उनके द्वारा खर्च किया गया पैसा, घूम फिर कर के जीएसटी के माध्यम से और दूसरे टैक्सेस के माध्यम से वापस राज्य सरकार के खजाने में आयेगा। मुफ्त चूल्हा की स्थिति नहीं होगी कि एक बार दे दिया और फिर वह पड़ा का पड़ा रह गया। यह जो हम दे रहे हैं वापस यह पैसा किसी ना किसी रूप से राज्य के खजाने में आयेगा और उसका एक निश्चित भाग हमें प्राप्त होगा। जहां तक आपने अतिरिक्त भार का सवाल किया है तो यह इस फाइनेंसियल ईयर में तो नहीं है कि अतिरिक्त भार पड़ने वाला है। देखिए हर पांचवा वर्ष झारखंड के लिए चुनावी वर्ष होता है। झारखंड राज को दो चुनाव का सामना करना पड़ता है, एक लोकसभा, दूसरा विधानसभा। तो चार पाच महीने तो आदर्श आचार संहिता में लग जाते हैं, चाह कर भी सरकार योजनाओं पर खर्च नहीं कर पाती। तो खर्च की स्थिति कमजोर दिखाई पड़ती है। हम लोग इस बात का आकलन करेंगे कि कौन ऐसा विभाग है जो चार महीने, छ महीने के बीच में कितना उसको खर्च कर लेना चाहिए था, जो आदर्श आचार संहिता लगने के कारण खर्च नहीं कर पाया, हम उसमें एक निश्चित परसेंटेज में अमाउंट का कटेल करके, मंईयां सम्मान योजना को देंगे ताकि वह प्रभावकारी हो सके। ऐसे भी वह पैसा अगर उनके पास रह जाये, तो उस स्थिति में ऐसे कुछ एक विभाग ऐसे होंगे जो समुचित राशि का उपयोग नहीं कर पायेंगे।

सवाल: मंईयां सम्मान योजना की ही बात की जाये, तो एक साल में अगर 50 लाख महिलाओं को भी अगर यह राशि दी जाती है, तो 15 हजार करोड़ इस पर खर्च होंगे। इसके इतर सरकार की अन्य योजनायें भी चल रही हैं। जैसे अबुआ आवास, सर्वजन पेंशन योजना, किसान कर्ज माफी, 200 यूनिट फ्री बिजली बिल। और भी कई तरह की योजनायें हेमंत सरकार चला रही है। इसके साथ-साथ इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट भी करना है, तो इसको मैनेज करने का क्या प्लान है आप लोगों के पास ?

रेवेन्यू जनरेशन को मजबूत करने की जरूरत
जवाब: उसी पर मैं काम कर रहा हूं। हमारी सरकार काम कर रही है कि हमारा जो रेवेन्यू है, हमारे पास जो स्टेट का ओन टैक्स डिपार्टमेंट है, हम उसके रेवेन्यू जनरेशन को मजबूत करें। मैंने एक चीज देखा है, प्रारंभिक स्तर पर जो अध्ययन मैं कर पाया हूं कि खनिज संपदा पूरे देश में 40 प्रतिशत भंडारण हमारे यहां है और उड़ीसा की बात अगर करें तो उड़ीसा से हम बहुत आगे हैं। लेकिन माइंस के माध्यम से संभवत: 11 हजार करोड़ रुपये, प्रतिवर्ष झारखंड को मिलता है, जबकि उड़ीसा उसी माइंस के कारण 40 से 50 हजार करोड़ रुपया वह प्रति वर्ष अर्न करता है। हम अपने सचिव से, विस सचिव से बात करके, हम एक टीम भी भेजना चाहेंगे उड़ीसा, जो उड़ीसा मॉडल का अध्ययन करें, ताकि हम उसको अपने राज्य में इंप्लीमेंट कर सके।

सवाल: आपको, आपके अनुभव से क्या लगता कि झारखंड में वह एक चीज, एक क्षेत्र, या सेक्टर क्या हो सकता है जहां राज्य सरकार फोकस करें, तो पूरा झारखंड का आर्थिक मॉडल रिवाइव हो सकता है। वो कौन सा फोकस पॉइंट हो सकता है जिससे झारखंड का विकास तेजी से हो सके ?
सिर्फ टैबलेट से आप किसी कुपोषित बच्चे की समस्या का हल नहीं ढूंढ सकते
जवाब: झारखंड में दो-तीन चीजें ऐसी हैं, जिस पर हम फोकस करना चाहेंगे और सरकार का ध्यान भी केन्द्रित करना चाहेंगे। एक तो हेल्थ सेक्टर को मजबूत करने की जरूरत है। जिसकी स्थिति बहुत खराब है ग्रामीण क्षेत्रों में या शहरी क्षत्रों में भी। दूसरा यह कि ग्रामीण क्षेत्रों में एनआरएचएम पांच की रिपोर्ट है कि लगभग 65 से 70 प्रतिशत महिलायें एनेमिक हैं। खून की कमी से ग्रसित है और जीरो टू पांच वर्ष के जो बच्चे हैं, वे लगभग 45 से 55 प्रतिशत ऐसे बच्चे हैं, जो कुपोषित हैं। तो इसमें एक दो विभागों का कोआॅर्डिनेशन होना चाहिए। सिर्फ टैबलेट से आप किसी कुपोषित बच्चे की समस्या का हल नहीं ढूंढ सकते हैं। या बीमारी का इलाज नहीं ढूंढ सकते हैं। उसको प्रॉपर डायट भी मिलनी चाहिए। वेलफेयर डिपार्टमेंट हो या फिर फूड एंड सिविल सप्लाई हो, जो हमारी व्यवस्था है, वह इतनी मजबूत हो, आंगनबाड़ी केंद्र के माध्यम से, फिर स्कूल में जो डायट की आपूर्ति की जाती है उसके माध्यम से, वह सशक्त हो। दूसरी बात यह है कि मेडिकल फैसिलिटी गांव में हो ताकी उनका इलाज सुलभता पूर्वक ग्रामीण क्षेत्रों में भी हो जाये, ये हमारा फोकस है।

शिक्षा व्यवस्था मजबूत करना प्राथमिकता
एजुकेशन बहुत ही आवश्यक है। जब रघुवर दास की सरकार थी, तो ग्रामीण क्षत्रों के दूर-दराज के स्कूलों को मर्ज कर दिया गया चार-पाच किलोमीटर की दूरी वाले विद्यालयों में। अब या तो वहां के बच्चों को सुबह आना पड़ता है 5 किलोमीटर, फिर वे घर लौटते। कुल10 किलोमीटर की दूरी तय करना पड़ती है। समझा जा सकता है कि वे कितना पढाई कर पायेंगे। जब शारीरिक रूप से वे थक जायेंगे, तो घर में आकर तो वे रिवीजन कर नहीं सकते। तो मैं तो कहूंगा और एक समय था, जब उग्रवादी,माओवादी लेफ्टिस्ट की पढ़ाई करवाते थे, पहाड़ों में जंगलों में। तो एक तरफ तो उनलोगों ने अपनी ओर से पाठशाला खोल रखी थी और दूसरी तरफ मैंने कहा था विधानसभा में कि इसका कोई औचित्य नहीं है। उस क्षेत्र के सरकार का लॉजिक था कि 10 ही बच्चे हैं, हमने कहा कि 10 ही बच्चे सही लेकिन वे पढ़ेंगे तो शिक्षा तो ग्रहण करेंगे। स्कूल को मर्ज करने की कोई आवश्यकता नहीं है। मैं शिक्षा मंत्री जी से भी बात करूंगा कि वह आईडेंटिफाई करें कि ऐसे विद्यालय, जहां उनका होना नितांत आवश्यक है, बच्चों की संख्या पर मर्ज नहीं किया जाए बल्कि जरूरत के आधार पर वहां शिक्षा प्रणाली को मजबूत करने की आवश्यकता है।

एग्रीकल्चर, एलाइड एग्रो सेक्टर को मजबूत करने की जरूरत
तीसरा रूरल इकोनॉमी को मजबूत करने के लिए हम दोनों सेक्टर पर काम करना चाहेंगे। हेमंत सरकार काम करना चाहेगी। एक तो वाटर कंजर्वेशन, जिसमें आपका एग्रीकल्चर ,जो इरिगेशन फैसिलिटी है, वो भी आता है। दूसरा एलाइड एग्रो सेक्टर को मजबूत करने से यह राज्य रूरल एरिया में भी और शहरी एरिया में भी इकोनॉमी को मजबूती प्रदान कर सकता है।

Share.

Comments are closed.

Exit mobile version