‘शहीद अमर रहें’ के नारों से गूंजा कोयलांचल
-375 शहीद परिवारों के वंशजों को शॉल ओढ़ाकर किया गया सम्मानित
-शहीद परिवारों के परिजनों की आंखों से छलके आंसू
चासनाला। भारतीय कोयला खनन इतिहास का सबसे काला और हृदयविदारक दिन, ‘चासनाला खान दुर्घटना’ को आज 50 वर्ष पूरा हो गया। संयोग है कि 27 दिसंबर 1975 को भी ‘शनिवार’ था और आज 50 साल बाद भी ‘शनिवार’ ही है। इस संयोग ने उन बुजुर्गों के जख्मों को फिर से हरा कर दिया, जिन्होंने अपनी आंखों से तबाही और अपनों की जलसमाधि देखी थी।
विशिष्ट अतिथियों ने नमन किया
शहीद स्मारक स्थल पर आयोजित इस कार्यक्रम में मुख्य रूप से झरिया विधायिका रागिनी सिंह, पूर्व विधायक संजीव सिंह, धनबाद विधायक राज सिन्हा, सिंदरी विधायक चंद्र देव महतो, बीसीसीएल के डायरेक्टर पर्सनल एमके रमैया, बीसीसीएल के सीएमडी मनोज अग्रवाल, बीआइटी सिंदरी के निदेशक पंकज राय और चासनाला के इडी विनीत रावत, सीजीएम संजय तिवारी एवं सीजीएम टीएस रंजन आदि उपस्थित रहे। इन सभी गणमान्य लोगों ने शहीदों को पुष्पचक्र अर्पित कर नमन किया।
बर्नपुर से आया साइकिल जत्था
श्रद्धांजलि सभा में समर्पण का अनूठा उदाहरण तब दिखा जब बर्नपुर से खनिकों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का एक जत्था साइकिल चलाकर चासनाला पहुंचा। इस जत्थे के जोश को देख उपस्थित भीड़ ने तालियों से उनका स्वागत किया। प्रबंधन ने इस जत्थे को विशेष रूप से सम्मानित किया। समारोह के दौरान 375 शहीद परिवारों के वंशजों को शॉल ओढ़ाकर और आम का पौधा भेंट किया गया। अतिथियों ने कहा, आम का पौधा जीवन की निरंतरता और मीठी स्मृतियों का प्रतीक है। जैसे-जैसे ये पौधे फलदार होंगे, शहीदों की यादें अगली पीढ़ी के साथ जीवंत रहेंगी।
इतिहास का वो भयावह मंजर : 375 जिंदगियों की जलसमाधि
आज से ठीक 50 साल पहले, 27 दिसंबर 1975 की दोपहर करीब 1:30 बजे खदान संख्या 1 और 2 में काम चल रहा था। तभी अचानक ऊपरी सतह पर स्थित जलभंडार (ओल्ड वर्किंग) की दीवार ढह गयी। 7 लाख गैलन प्रति मिनट की रफ्तार से करोड़ों लीटर पानी खदान में समा गया। इस त्रासदी में 375 खनिकों की मौत हो गयी। वह शनिवार चासनाला की मिट्टी में ऐसी चीखें दफन कर गया, जो आज भी हवाओं में गूंजती हैं।
स्मारक स्थल पर शनिवार सुबह से ही जनसैलाब उमड़ पड़ा। चासनाला के साथ-साथ झरिया, सिंदरी, बोकारो और धनबाद से हजारों लोग पहुंचे। भीड़ इतनी थी कि प्रबंधन को संभालना मुश्किल हो रहा था। ‘जब तक सूरज चांद रहेगा, शहीदों का नाम रहेगा’ के नारों से पूरा वातावरण भावुक हो गया।
यादें जो कभी धुंधली नहीं होंगी
50 साल का समय घाव भरने के लिए लंबा हो सकता है, लेकिन चासनाला के उन 375 शहीदों का बलिदान आज भी गौरव और गम का मिलाजुला अहसास कराता है। बर्नपुर से आये साइकिल जत्थे ने यह साबित कर दिया कि मजदूर एकता और शहीदों के प्रति सम्मान की भावना आज भी अडिग है।
5 दशकों में कितना बदला प्रबंधन?
एक सवाल के जवाब में प्रबंधन ने ‘आजाद सिपाही’ को बताया कि इन 50 वर्षों में सुरक्षा के ढांचे को पूरी तरह बदल दिया गया है।
सुरक्षा के तीन मुख्य स्तंभ: डिजिटल मॉनिटरिंग: अब पुराने नक्शों को अत्याधुनिक सॉफ्टवेयर पर डिजिटल किया गया है, ताकि जलभराव वाले क्षेत्रों से सुरक्षित दूरी का सटीक पता रहे।
नियमित सुरक्षा ऑडिट: अब हर तिमाही पर कड़ा सेफ्टी आॅडिट अनिवार्य है। ‘श्रमिक सुरक्षा’ अब उत्पादन से ऊपर है।
शक्तिशाली ड्रेनेज सिस्टम: अब खदानों में ऐसे आधुनिक पंप हैं जो किसी भी आपात स्थिति में भारी जलजमाव को मिनटों में बाहर निकालने में सक्षम हैं।
पीड़ित परिवारों के साथ हमेशा खड़ी हूं : रागिनी सिंह
चासनाला शाहिद स्मारक स्थल में शहीदों को श्रद्धांजलि देने पहुंची झरिया विधायक रागिनी सिंह ने आजाद सिपाही को बताया कि 50 साल पहले हुई एक बड़ी दुर्घटना को याद किया जा रहा है, जिसमें कई परिवारों ने अपने प्रियजन खो दिये। वह कहती हैं कि आज भी इस घटना को याद करके दुख होता है और वे भगवान से प्रार्थना करती हैं कि मृतकों की आत्मा को शांति मिले और परिवारों को शक्ति मिले। हमारी कोशिश यह है कि सभी प्रभावित परिवारों को पूरा सरकारी मुआवजा/नियोजन मिल सके और कोई भी परिवार अकेला महसूस न करे। इस शहीद समारक स्थल को सुंदर और भव्य रूप से विकसित करने का सपना है, ताकि लोग इसे लंबे समय तक याद रखें और समझें कि ड्यूटी के दौरान लोगों ने किस तरह अपना जीवन गंवाया। एक प्रश्न के जवाब में उन्होंने कहा कि इस शाहिद स्मारक स्थल को सुंदर बनाने के लिए काम किया जायेगा।
जानकारी की कमी से दुर्घटना हुई थी : संजीव सिंह
चासनाला शहीद स्मारक स्थल में शहीदों को श्रद्धांजलि देने पहुंचे पूर्व विधायक संजीव सिंह ने जोर देकर कहा कि आज की तरह टेक्नोलॉजी अगर उस वक्त होती तो इतनी मजदूरों की शहादत नहीं होती। वह कहते हैं कि जानकारी की कमी से बहुत बड़ी दुर्घटना हुई। मजदूरों ने देश को रोशन करने के लिए जान जोखिम में डालकर काम किया और अब उनके परिवारों का सम्मान किया जायेगा। वह फिल्म काला पत्थर का जिÞक्र करते हुए बताते हैं कि फिल्म की घटनाएं असल हादसे से मेल खाती हैं। लोग फिल्म से भी दुखी होते हैं लेकिन असली जिÞंदगी की कहानी जानकर और ज्यादा व्यथित हो जाते हैं। अंत में वह चासनाला की इस घटना को बहुत दुखद बताते हुए कहते हैं कि जिन परिवारों ने हिम्मत दिखायी वे सलाम के लायक हैं, समाज उन्हें सहयोग करता है और भगवान से प्रार्थना करते है कि दिवंगत आत्माओं को शांति मिले और बाकी लोग सुरक्षित रहें।
पीड़ित परिवारों का ध्यान रखना हम सबकी जिम्मेदारी : मनोज अग्रवाल
चासनाला शहीद स्मारक स्थल पर शहीदों को श्रद्धांजलि देने पहुंचे बीसीसीएल के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक मनोज अग्रवाल ने एक दुखद घटना मानते हुए कहा कि यह त्रासदी भारतीय खदान के इतिहास में सबसे बड़ी त्रासदी थी। उन्होंने कहा कि ऐसी घटना दोबारा न हो, इसके लिए माइनिंग इंडस्ट्री को हर पल सावधान रहकर काम करना चाहिए और मृतकों के परिवारों को किसी तरह की तकलीफ न हो, इसका ध्यान रखना हम सबकी जिम्मेदारी है। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा है कि यह घटना अपने आप में अलग तरह की आपदा थी। आज तकनीक के विकास से उम्मीद जतायी जाती है कि ऐसी बड़ी घटनाओं और अन्य हादसों में धीरे‑धीरे कमी आयेगी।

