Close Menu
Azad SipahiAzad Sipahi
    Facebook X (Twitter) YouTube WhatsApp
    Sunday, June 8
    • Jharkhand Top News
    • Azad Sipahi Digital
    • रांची
    • हाई-टेक्नो
      • विज्ञान
      • गैजेट्स
      • मोबाइल
      • ऑटोमुविट
    • राज्य
      • झारखंड
      • बिहार
      • उत्तर प्रदेश
    • रोचक पोस्ट
    • स्पेशल रिपोर्ट
    • e-Paper
    • Top Story
    • DMCA
    Facebook X (Twitter) Instagram
    Azad SipahiAzad Sipahi
    • होम
    • झारखंड
      • कोडरमा
      • खलारी
      • खूंटी
      • गढ़वा
      • गिरिडीह
      • गुमला
      • गोड्डा
      • चतरा
      • चाईबासा
      • जमशेदपुर
      • जामताड़ा
      • दुमका
      • देवघर
      • धनबाद
      • पलामू
      • पाकुर
      • बोकारो
      • रांची
      • रामगढ़
      • लातेहार
      • लोहरदगा
      • सरायकेला-खरसावाँ
      • साहिबगंज
      • सिमडेगा
      • हजारीबाग
    • विशेष
    • बिहार
    • उत्तर प्रदेश
    • देश
    • दुनिया
    • राजनीति
    • राज्य
      • मध्य प्रदेश
    • स्पोर्ट्स
      • हॉकी
      • क्रिकेट
      • टेनिस
      • फुटबॉल
      • अन्य खेल
    • YouTube
    • ई-पेपर
    Azad SipahiAzad Sipahi
    Home»विशेष»शिवसेना शिंदे की या ठाकरे की?
    विशेष

    शिवसेना शिंदे की या ठाकरे की?

    azad sipahiBy azad sipahiJuly 14, 2022No Comments9 Mins Read
    Facebook Twitter WhatsApp Telegram Pinterest LinkedIn Tumblr Email
    Share
    Facebook Twitter WhatsApp Telegram LinkedIn Pinterest Email
    • शिवसेना के संविधान में ही छिपा है जवाब
    • प्रतिनिधि सभा और राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य चाहें तो हो सकता है बड़ा खेल
    • 30 साल बाद शिवसेना उसी दोराहे पर, जब बाला साहेब ने कहा कि मैं पार्टी छोड़ दूंगा
    • क्या बाला साहेब ठाकरे की तरह उद्धव ठाकरे में वह हिम्मत और हौसला है

    अगर कोई भी शिवसैनिक मेरे सामने आकर कहता है कि उसने ठाकरे परिवार की वजह से पार्टी छोड़ी है, तो उसी वक्त मैं अध्यक्ष पद छोड़ दूंगा। साथ ही मेरा पूरा परिवार शिवसेना से हमेशा के लिए अलग हो जायेगा।….. ये बोल थे शिवसेना प्रमुख बाला साहेब ठाकरे के। इसके बाद शिवसेना ही नहीं, बल्कि पूरा महाराष्ट्र हिल गया था।

    आज से ठीक 30 साल पहले शिवसेना और बाला साहेब ठाकरे पर सवाल खड़ा किया गया था। 1992 में माधव देशपांडे ने बाला साहेब ठाकरे की कार्यशैली पर सवाल उठाए थे। कहा था कि उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे पार्टी में ज्यादा दखलंदाजी करते हैं और आम शिवसैनिक, जिन्होंने अपने खून-पसीने से शिवसेना को सींचा है, उन्हें नजरअंदाज किया जाता है। यह सुनते ही बाला साहेब ने शिवसेना के मुखपत्र सामना में एक ऐसा लेख लिखा था, जिसने पूरे महाराष्ट्र को हैरत में डाल दिया था।

    इस लेख में बाला साहेब ने कहा था कि अगर कोई भी शिवसैनिक उनके सामने आकर कहता है कि उसने ठाकरे परिवार की वजह से पार्टी छोड़ी है, तो वह उसी वक्त अध्यक्ष पद छोड़ देंगे। इसके साथ ही उनका पूरा परिवार शिवसेना से हमेशा के लिए अलग हो जायेगा। बाला साहेब ठाकरे के इस एलान के बाद पूरी पार्टी में खलबली मच गयी थी। सभी विरोध-शिकायतों को दरकिनार कर पार्टी में बाला साहेब को मनाने की मुहिम शुरू हो गयी थी। हालात ऐसे हो गये थे कि पार्टी छोड़ने की बात पर कुछ शिव सैनिकों ने आत्मदाह तक की चेतावनी दे दी थी। इस एक घटना के बाद जब तक बाला साहेब रहे, उनके खिलाफ पार्टी में किसी ने आवाज नहीं उठायी, उनके खिलाफ किसी ने बगावती तेवर नहीं दिखाये। हां, बाला साहेब ठाकरे ने भी इस दरम्यान सत्ता की कुर्सी की खातिर अपने सिद्धांतों-वसूलों से कोई समझौता नहीं किया। वह कुर्सी के आसपास भी नहीं फटके।

    लेकिन आज फिर 30 साल बाद शिवसेना उसी दोराहे पर खड़ी है। इस बार सवाल बाला साहेब ठाकरे पर नहीं, बल्कि उनके बेटे उद्धव ठाकरे और पोते आदित्य ठाकरे की कार्यशैली पर उठाये गये हैं। लेकिन क्या बाला साहेब ठाकरे की तरह उद्धव ठाकरे में वह हिम्मत और हौसला है। अगर नहीं, तो क्या शिवसेना से अलग हो जायेंगे उद्धव ठाकरे, क्या शिंदे होंगे नये पार्टी प्रमुख? ऐसे कई सवालों के जवाब तलाशती आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राहुल सिंह की खास रिपोर्ट।

    एकनाथ शिंदे के महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बनने के बाद से शिवसेना के अंदर उद्धव ठाकरे गुट दिन-प्रतिदिन कमजोर होता जा रहा है। सियासी गलियारे में चर्चा उठने लगी है कि जल्द ही उद्धव ठाकरे को शिवसेना से बाहर का रास्ता दिखा दिया जायेगा और एकनाथ शिंदे का सरकार के साथ-साथ शिवसेना पर भी कब्जा हो जायेगा। वह पार्टी प्रमुख बन जायेंगे। ये चर्चा यूं ही नहीं हो रही है, बल्कि मजबूत आंकड़े इसी ओर इशारा कर रहे हैं और शिवसेना का संविधान शिंदे के दावे को और मजबूत करता है।

    पहले जानिए शिवसेना में अब तक क्या-क्या हुआ?
    2019 में महाराष्ट्र विधानसभा का चुनाव हुआ था। 288 विधानसभा सीटों वाले महाराष्ट्र में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी थी। देवेंद्र फडणवीस की अगुआई में पार्टी ने 105 सीटों पर जीत हासिल की। उद्धव ठाकरे की अगुआई वाली शिवसेना को 56, एनसीपी को 54 और कांग्रेस को 42 सीटें मिली थीं। बाकी अन्य पर छोटे दलों और निर्दलीय प्रत्याशियों ने जीत हासिल की।

    परिणाम के बाद मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर शिवसेना और भाजपा में मुख्यमंत्री पद को लेकर ठन गयी। उद्धव ठाकरे ढाई-ढाई साल की बात कर रहे थे, जबकि भाजपा सीएम की कुर्सी से कोई समझौता नहीं चाहती थी। बात इतनी बढ़ी कि शिवसेना ने कांग्रेस, एनसीपी के साथ मिल कर सरकार का गठन कर लिया। नाम दिया गया महा विकास अघाड़ी। उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बन गये। ज्यादा सीटें जीतने के बावजूद भाजपा को विपक्ष में रहना पड़ा। यह बात उसे सालती रही। वह अंदर ही अंदर कुछ विशेष रणनीति बनाने में जुटी थी। उसका मकसद था येन केन प्रकारेण अपनी देखभाल और अपने नियंत्रणवाली सरकार बनाना। दूसरी तरफ शिवसेना विधायक एकनाथ शिंदे की नजर भी सीएम की कुर्सी पर थी। वह अंदर ही अंदर शिवसेना के विधायकों को हिंदुत्व के मुद्दे पर अपनी ओर आकर्षित कर रहे थे। ढाई साल बाद जून 2022 में एकनाथ शिंदे के साथ मिल कर 40 शिवसैनिक विधायकों ने बगावत कर दी। दरअसल चुनाव बाद ही शिंदे भाजपा के साथ मिल कर सरकार बनाना चाहते थे, लेकिन उद्धव नहीं माने। अंत में शिंदे ने बागी 40 विधायकों और भाजपा के समर्थन से खुद सरकार बना ली। शिंदे अब मुख्यमंत्री हैं। उद्धव ठाकरे को इस्तीफा देना पड़ा।

    अब तक शिंदे को पार्टी में कितना समर्थन मिला?
    एकनाथ शिंदे के पास अभी 41 शिवसेना विधायकों का समर्थन है। इनमें एक उद्धव गुट के विधायक भी शामिल हैं। इसके अलावा 9-12 सांसद भी शिंदे के पक्ष में बताये जा रहे हैं। सांसदों की बगावत की बात अभी खुल कर सामने नहीं आयी है। हालांकि, सोमवार को उद्धव ठाकरे ने राष्ट्रपति चुनाव को लेकर सांसदों की बैठक बुलायी थी। इसमें 18 में से केवल 10 सांसद ही पहुंचे। आठ सांसद गैरहाजिर रहे। बताया जाता है कि ये आठ सांसद शिंदे गुट का समर्थन कर रहे हैं। उद्धव की बैठक में पहुंचने वाले कुछ सांसद भी शिंदे के संपर्क में बताये जा रहे हैं।

    शिंदे गुट में आने वाले शिवसेना सांसदों में सबसे पहला नाम उनके पुत्र कल्याण से सांसद श्रीकांत शिंदे का है। इसके अलावा रामटेक से सांसद रामकृपाल तुमाने, हिंगोली से हेमंत पाटिल, शिर्डी से सदाशिव लोखंडे, यवतमाल से भावना गवली, दक्षिण-मध्य मुंबई से राहुल शेवाले, बुलढाणा से प्रतापराव जाधव, पालघर से राजेंद्र गावित, नासिक से हेमंत गोडसे, मावल से श्रीरंग बारणे और ठाणे से राजन विचारे के नाम की चर्चा है।

    ये तो सांसद और विधायकों की बात हुई। अब नगर निकाय के सदस्यों की बात कर लेते हैं। हाल ही में ठाणे नगर निगम के 67 शिवसैनिक पार्षदों में से 66 ने शिंदे गुट का दामन थाम लिया है। इसी तरह कल्याण-डोंबिवली के 55 से ज्यादा शिवसैनिक पार्षद ने शिंदे गुट को समर्थन दिया है। कल्याण डोंबिवली महानगर पालिका के अध्यक्ष राजेश मोरे भी शिंदे गुट में शामिल हो गये हैं। नवी मुंबई के 32 पूर्व कॉरपोरेटर भी अब शिंदे के साथ आ चुके हैं।

    धीरे-धीरे पूरी पार्टी पर शिंदे का कब्जा!
    पहले विधायक, फिर पार्षद और अब सांसद, एक-एक करके शिवसेना के चुने हुए ज्यादातर जन प्रतिनिधियों को एकनाथ शिंदे अपने खेमे में कर रहे हैं। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि क्या शिवसेना पर पूरी तरह से शिंदे का कब्जा हो जायेगा?

    चीफ ह्विप और विधायक दल का नेता शिंदे के साथ
    मुख्यमंत्री बनने के तुरंत बाद एकनाथ शिंदे ने ठाकरे गुट में शामिल रहे पार्टी के चीफ ह्विप सुनील प्रभु और विधायक दल के नेता अजय चौधरी को हटा दिया। खुद विधायक दल के नेता बन गये, जबकि भरत गोगावले को पार्टी का नया ह्विप नियुक्त कर दिया। किसी भी पार्टी में ये दोनों पद बहुत महत्वपूर्ण होते हैं।

    विधानसभा अध्यक्ष का साथ
    नये विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर भाजपा के विधायक हैं। ऐसे में अध्यक्ष की कुर्सी से भी शिंदे को साथ मिलेगा। शिंदे पहले ही आदित्य ठाकरे समेत ठाकरे गुट के अन्य 15 विधायकों को अयोग्यता की कार्रवाई का नोटिस भिजवा चुके हैं।

    सांसद, पार्षद और अन्य नेताओं का भी मिला साथ
    शिंदे गुट को अब तक 200 से ज्यादा पार्षद, करीब 12 सांसद और पार्टी के कई नेताओं का साथ मिल चुका है। ये सब अब वही करेंगे जो इनके नये नेता यानी एकनाथ शिंदे कहेंगे।

    क्या उद्धव को पार्टी से बाहर किया जा सकता है?
    शिवसेना से बगावत करने वाले नेता एकनाथ शिंदे दावा कर रहे हैं कि वही असली शिवसेना हैं। इसके बाद सवाल यह उठता है कि क्या शिवसेना शिंदे की होगी। यह सवाल मौजूदा दौर में बहुत महत्वपूर्ण है और इसका जवाब छिपा है शिवसेना के संविधान में। यह संविधान शिवसेना ने चुनाव आयोग में जमा कराया है। कई लोगों का मानना है कि शिवसेना कभी भी एकनाथ शिंदे की नही हो सकती। बता दें कि शिवसेना के संविधान के अनुसार शिवसेना प्रमुख पद पर बैठा व्यक्ति का फैसला ही अंतिम है और सभी को उसे मानना बाध्यकारी है। शिवसेना प्रमुख का पद सर्वोच्च है और उसे किसी को भी पार्टी से निकालने का अधिकार है।

    पार्टी का संविधान कहता है कि शिवसेना प्रमुख का चुनाव पार्टी की ‘प्रतिनिधि सभा’ करती है। प्रतिनिधि सभा में सिर्फ विधायक और सांसद ही नहीं, बल्कि जिला प्रमुख, जिला संपर्क प्रमुख और मुंबई के विभाग प्रमुख भी शामिल होते हैं। 2018 में जब उद्धव ठाकरे को शिवसेना प्रमुख चुना गया, उस वक़्त पार्टी की प्रतिनिधि सभा में 282 प्रतिनिधि थे। शिवसेना की नीति नियामक इकाई, जिसे ‘राष्ट्रीय कार्यकारिणी’ कहते हैं, उसका चुनाव भी प्रतिनिधि सभा ही करती है। राष्ट्रीय कार्यकारिणी में 14 सदस्य होते हैं। इनमें से शिवसेना प्रमुख पद पर बैठा व्यक्ति अधिकतम पांच सदस्यों की नियुक्ति कर सकता है। राष्ट्रीय कार्यकारिणी की अवधि पांच वर्ष की होती है। इस समय जो राष्ट्रीय कार्यकारिणी कार्य कर रही है, उसकी अवधि 23 जनवरी 2023 तक बरकरार है।

    साल 2018 में शिवसेना की प्रतिनिधि सभा ने राष्ट्रीय कार्यकारिणी के लिए नौ सदस्यों को निर्वाचित किया था। इनमें आदित्य ठाकरे, मनोहर जोशी, सुधीर जोशी, लीलाधर डाके, दिवाकर रावते, सुभाष देसाई, रामदास कदम, संजय राउत और गजानन कीर्तिकर चुने गये थे। इनमें से सुधीर जोशी दिवंगत हो चुके हैं। शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने बाद में चार और सदस्यों को नियुक्त किया, जिनमें अनंत गीते, चंद्रकांत खैरे, आनंदराव अडसूल और एकनाथ शिंदे की नियुक्ति राष्ट्रीय कार्यकारिणी में हुई थी। राष्ट्रीय कार्यकारिणी में शामिल लोगों को ही अपने नाम के साथ ‘शिवसेना नेता’ लिखने का अधिकार है।

    पार्टी का संविधान कहता है कि शिवसेना प्रमुख पद पर बैठे व्यक्ति को संगठन में से किसी को भी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की सलाह से निकालने का अधिकार है। उल्लेखनीय है कि एकनाथ शिंदे के साथ शिवसेना के विधायक भले ही टूट कर चले गये हैं, लेकिन राष्ट्रीय कार्यकारिणी का कोई सदस्य नहीं गया है। इसका मतलब हुआ कि राष्ट्रीय कार्यकारिणी पर अब भी उद्धव ठाकरे का ही वर्चस्व है। …लेकिन अगर प्रतिनिधि सभा और राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य चाहें तो उद्धव ठाकरे पार्टी से बाहर हो सकते हैं। इसके लिए पार्टी की आम सभा बुलानी होगी। इसमें ही वह तय कर सकेंगे कि उनका नया नेता कौन होगा?’ कुल मिला कर कहा जा सकता है कि सरकार पर तो एकनाथ शिंदे ने अपना कब्जा कर लिया, लेकिन शिवसेना पर कब्जा के लिए उन्हें कई घाट का पानी पीना पड़ेगा। जरूरी नहीं कि पानी स्वादिष्ट ही हो, पानी खारा भी हो सकता है। इस बीच एकनाथ शिंदे और उद्धव ठाकरे, दोनों राजनीतिक मैदान मारने के लिए नये-नये दांव आजमा रहे हैं।

    Share. Facebook Twitter WhatsApp Telegram Pinterest LinkedIn Tumblr Email
    Previous Articleर्द्रौपदी मुर्मू पर कांग्रेस के बिगड़े बोल, मच गया सियासी बवाल
    Next Article महाराष्ट्र: भारी बारिश का कहर जारी, अबतक 89 लोगों की मौत
    azad sipahi

      Related Posts

      ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद अब ऑपरेशन घुसपैठिया भगाओ

      June 4, 2025

      झारखंड की स्कूली शिक्षा व्यवस्था पर रिजल्ट ने उठाये सवाल

      June 3, 2025

      अमित शाह की नीति ने तोड़ दी है नक्सलवाद की कमर

      June 1, 2025
      Add A Comment

      Comments are closed.

      Recent Posts
      • झारखंड में आदिवासी लड़कियों के साथ छेड़छाड़, बाबूलाल ने उठाए सवाल
      • पूर्व मुख्यमंत्री ने दुमका में राज्य सरकार पर साधा निशाना, झारखंड को नागालैंड-मिजोरम बनने में देर नहीं : रघुवर दास
      • गुरुजी से गुरूर, हेमंत से हिम्मत, बसंत से बहार- झामुमो के पोस्टर में दिखी नयी ऊर्जा
      • अब गरीब कैदियों को केंद्रीय कोष से जमानत या रिहाई पाने में मिलेगी मदद
      • विकसित खेती और समृद्ध किसान ही हमारा संकल्प : शिवराज सिंह
      Read ePaper

      City Edition

      Follow up on twitter
      Tweets by azad_sipahi
      Facebook X (Twitter) Instagram Pinterest
      © 2025 AzadSipahi. Designed by Microvalley Infotech Pvt Ltd.

      Type above and press Enter to search. Press Esc to cancel.

      Go to mobile version