विशेष
-देश के सबसे बड़े राज्य में माफिया राज मृत्युशैया पर लेटा पड़ा है
-इधर अतीक अहमद का अंत उधर मुख्तार असांरी के खेमे में भूकंप
उत्तर प्रदेश में मफिया राज अब खत्म होने की कगार पर है। वह आखिरी सांसें गिन रहा है। मृत्युशैया पर लेटा पड़ा है। हाल ही में माफिया अतीक के साथ-साथ उसके साम्राज्य का भी अंत हो गया। उसका गिरोह तितर-बितर हुआ पड़ा है। उसके कई शूटर फरार हैं, लेकिन पुलिसिया रडार पर हैं। जैसे ही अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ अहमद की सरेआम हत्या हुई, ठीक उसी समय जेल में बंद मुख्तार अंसारी की सांसें थम सी गयी होंगी। उसके अंदर इतना भय कायम हो गया होगा कि उसे लगने लगा होगा कि कहीं अगला नंबर उसका तो नहीं। वैसे योगी सरकार ने माफियाओं की एक सूची भी जारी कर रखी है। उसमें मुख्तार का नाम पहले स्थान पर है। एक वक्त था जब पूर्वी उत्तर प्रदेश में माफिया मुख्तार अंसारी और उसके भाई अफजाल की तूती बोलती थी, क्योंकि उस दौर में सरकार के लोग ही इनके संरक्षक थे। डीएम-एसपी तो इनकी सुबह-शाम सलामी बजाने का काम करते थे। इनके कहर का आलम यह था कि खुल्लमखुल्ला खुली जीप पर बैठ लाउडस्पीकर लगवाकर मुख्तार अंसारी दंगा करवाता था। ये लोग गैंगवार करते थे। लोगों की जिंदगियों से खेलना इनका शौक हुआ करता था। मोहम्मदाबाद सीट से तत्कालीन भाजपा विधायक कृष्णानंद राय की हत्या को कौन भूल सकता है। उसी मामले में मुख्तार अंसारी और उसके भाई अफजाल अंसारी को सजा हो गयी है। अफजाल अंसारी गाजीपुर से सांसद है। उसकी सांसदी भी जानी तय है। 60 वर्ष के माफिया मुख्तार अंसारी के खिलाफ गाजीपुर, वाराणसी, मऊ और आजमगढ़ के अलग-अलग थानों में 61 मुकदमे दर्ज हैं। इनमें से आठ मुकदमे ऐसे हैं, जो जेल में रहने के दौरान दर्ज हुए। समझने वाली बात यह है कि दो दशकों तक मुख्तार के खिलाफ किसी भी सरकार ने कोई एक्शन नहीं लिया था। लेकिन समय का चक्र घूमा और योगी बन गये उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री। उसके बाद मुख्तार के गुनाहों की कब्र खुदनी शुरू हो गयी। आज योगी राज में उत्तर प्रदेश की जनता खुश है। वह बेखौफ है। लोगों को पता है कि कोई भी अपराधी अगर गड़बड़ी करेगा, उसके लिए बाबा हैं। तो जो लोग पूछ रहे थे कि यूपी में का बा, तो वे लोग जान लें कि यूपी में बाबा बा। बुलडोजर वाले बाबा। आज यूपी का बच्चा-बच्चा बुलडोजर बाबा की जय कहते थकता नहीं। वह गर्व महसूस करता है। वह भी उसी पूर्वांचल में, जहां एक वक्त मुख्तार का नाम भी लोग दबी जुबान से लेते थे। कैसे अतीक के बाद मुख्तार का नाम फिर से चर्चा का केंद्र बना हुआ है, क्या है मुख्तार की क्राइम कुंडली, खंगाल रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
साल था 2005। उत्तरप्रदेश का मऊ दंगे की आग में झुलस रहा था। सड़कों पर कहीं सन्नाटा पसरा था, तो कहीं उपद्रवियों की भीड़। पुलिस की गाड़ियों का सायरन मऊ की सन्नाटों को चिर रहा था। लेकिन ये सायरन लोगों में दहशत भी पैदा कर रहे थे। इसी बीच मऊ की सड़कों पर खुली जीप में बैठ हथियार लहराते और मूछों पर ताव देते एक शख्स को देखा गया। उसमें न प्रशासन का खौफ था, न कानून की चिंता थी। ऐसा लग रहा था कि वह खुद ही सरकार है। वह शख्स कोई और नहीं मुख्तार अंसारी था। उसकी तस्वीर आज भी वायरल है। उस तस्वीर मात्र से समझा जा सकता है कि उस वक्त की सरकार में मुख्तार का क्या रसूख था। नहीं तो अगर आज यह योगी राज में होता, अव्वल तो होता नहीं, अगर होता, तो वहीं जीप पलटी हुई जरूर मिलती। खैर बात तस्वीर की हो रही थी। प्रदेश में खौफ का पर्याय बनी यह तस्वीर खिंचवाने के कुछ महीनों बाद मुख्तार अंसारी जेल चल गया। लेकिन यहां सवाल यह उठ रहा था कि क्या जिले की दीवारों ने मुख्तार के अपराध की रफ्तार रोक ली? इसका जवाब पिछले महीने इलाहाबाद हाइकोर्ट की एक टिप्पणी देती है। हाइकोर्ट ने कहा, मुख्तार अंसारी गिरोह देश का सबसे खूंखार आपराधिक गिरोह है। पिछले 18 साल से सलाखों के पीछे बंद मुख्तार की सत्ता की सरपरस्ती में अपराध की मुख्तारी इतनी मजबूत हुई कि आठ राज्यों में उसने अपने अपराध के साम्राज्य का विस्तार कर डाला।
2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा उत्तर प्रदेश की सत्ता में काबिज होने के लक्ष्य से और सपा को सत्ता से उखाड़ फेंकने के लक्ष्य से खूब पसीना बहा रही थी। जिस मऊ में मुख्तार के आतंक और सियासी रसूख का जलवा था, वहीं पीएम नरेंद्र मोदी की चुनावी रैली हुई। मोदी ने मंच से कहा, यूपी में कोई बाहुबली जेल जाता है, तो मुस्कुराता हुआ जाता है, ऐसा क्यों है भाई? ऐसा इसलिए, क्योंकि यहां की जेलें अपराधियों के लिए महल में बदल दी गयी हैं। सारे सुख वैभव उन्हें वहीं मिलते हैं। देखते हैं, 11 मार्च के बाद जेलों में कैसे रंगीनियत रहती है। जेल को जेल ही बनाकर रख देंगे। जाहिर है निशाने पर मुख्तार का ही रसूख था। 11 मार्च के बाद यूपी में सरकार बदल गयी और मुख्तार की उलटी गिनती शुरू हो गयी।
मुख्तार की आपराधिक कुंडली
गाजीपुर के मोहम्मदाबाद में एक राजनीतिक परिवार में जन्मे मुख्तार अंसारी पर हत्या का पहला मुकदमा 1988 में मंडी परिषद में ठेकेदारी को लेकर दर्ज हुआ। इसके बाद मुख्तार अंसारी के अपराधों की फेहरिस्त और लंबी होती गयी। 90 के दशक में मुख्तार को जेल जाना पड़ा था और उसका नया ठिकाना बनी थी गाजीपुर जेल की सलाखें। उन दिनों जेल में माफियाओं का जलवा हुआ करता था। जेल की सलाखों के पीछे जो रसूख मुख्तार का रहा, उसके आगे अतीक अहमद तो क्या, किसी भी माफिया का जलवा फीका ही रहा है। गाजीपुर जेल में 90 के दौर में तैनात रहे एक अधिकारी बताते हैं कि उस समय मोबाइल फोन का चलन शुरू नहीं हुआ था। बात करने का जरिया लैंडलाइन फोन हुआ करता था। मुख्तार के गाजीपुर जेल पहुंचने के बाद वहां के फोन के बिल का ग्राफ भी मुख्तार के अपराध की तरह बढ़ने लगा। बाद में पता चला कि यह बिल जेल अधिकारियों के चलते नहीं बढ़ा था, बल्कि जेल का यह फोन बिल मुख्तार के चलते बढ़ा था। इस टेलीफोन के जरिये जेल में रहते हुए वह अपना अपराध का साम्राज्य चला रहा था और उसे रोकने का दम किसी में नहीं था।
1996 में मऊ सदर सीट से पहली बार विधायक बना मुख्तार अंसारी
1996 में मऊ सदर सीट से पहली बार विधायक बना मुख्तार अंसारी जेल आता-जाता रहा। 25 अक्टूबर 2005 को वह अपनी जमानत रद्द कराकर जेल चला गया। इसके बाद गाजीपुर से भाजपा विधायक और उसके प्रतिद्वंद्वी कृष्णानंद राय को गोलियों से भून दिया गया। इस हत्याकांड में सौ राउंड से अधिक गोलियां चलीं थीं। घटना के कुछ दिनों बाद मुख्तार अंसारी का एक आॅडियो वायरल हुआ। इसमें वह कृष्णानंद राय की हत्या और उनकी चुटिया काटे जाने के बारे में बता रहा था। मामले की जांच सीबीआइ को दी गयी, लेकिन वह मुख्तार और बाकी आरोपितों को कोर्ट में दोषी नहीं साबित कर पायी।
मुख्तार ने अपनी पसंदीदा मछली खाने के लिए जेल के अंदर ही तालाब खुदवा दिया
2005 से ही जेल मुख्तार का असली ठिकाना हो गया। समझ लीजिये उसका घर। इसलिए उसने अपने लिए वहां भरपूर इंतजाम करवाया। गाजीपुर जेल में मुख्तार ने अपनी पसंदीदा मछली खाने के लिए जेल के अंदर ही तालाब खुदवा दिया। उसके बैडमिंटन खेलने के लिए बाकायदा कोर्ट बनवाया गया, जहां वह अफसरों के साथ बैडमिंटन खेलता था। मुख्तार की जिससे मर्जी होती थी, वही उससे जेल में मिलता था। हर सुख-सुविधा का साधन मुहैया होता था। उससे मुलाकात के लिए आने वाले लोगों की जेल में कहीं चेकिंग तक नहीं होती थी। इसकी सबसे बड़ी वजह यह थी कि जेल में मुख्तार की मर्जी के खिलाफ जो भी चला, या तो उसे जान से हाथ धोना पड़ा या फिर घुटनों के बल आना पड़ा। लखनऊ जेल में तैनात रहे जेल अधीक्षक को राजभवन के सामने गोलियों से भून दिया गया था। इस हत्याकांड में मुख्तार और उसके गुर्गों का नाम सामने आया था। आरोप है कि उनकी सख्ती से मुख्तार नाराज था। हालांकि इस मामले में भी पुलिस कुछ खास साबित नहीं कर पायी। जेल अधीक्षक और जेल अधिकारियों को धमकाने के कई मुकदमे दर्ज हुए।
आठ राज्यों में फैलाया नेटवर्क
पुलिसिया जांच के अनुसार मुख्तार अंसारी का गैंग आठ राज्यों में फैला है। फिर चाहे वह मुंबई हो या गुजरात या फिर पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, बिहार, दिल्ली और मध्य प्रदेश। गुजरात में मुख्तार ने कुख्यात एजाज लकड़वाला और फरजू रहमान के जरिये सिंडिकेट तैयार किया। यहां दहशत के बल पर उसने अपने करीबियों के जरिये कोयला सप्लाई पर अपना कब्जा जमा लिया। महाराष्ट्र में खासतौर से मुंबई में तेल के प्राइवेट रिजर्वायर में अपने करीबी शूटर मुन्ना बजरंगी के बल पर अपना एकाधिकार बनाया। उस दौरान मुन्ना बजरंगी मुंबई में मनोज जायसवाल के नाम से धंधा संभालता था।
गैंगस्टर जसविंदर सिंह राकी के जरिये पंजाब, हरियाण और राजस्थान में मजबूत किया गैंग
1994 से वर्ष 2016 तक पंजाब, हरियाणा और राजस्थान में आतंक का पर्याय बने पंजाब के गैंगस्टर जसविंदर सिंह राकी से माफिया मुख्तार अंसारी की नजदीकियां जगजाहिर थीं। रॉकी की मदद से मुख्तार ने पंजाब, हरियाण और राजस्थान के गिरोहों में अपनी पकड़ मजबूत की। वाराणसी के नंद किशोर रुंगटा अपहरण और हत्याकांड में मुख्तार के साथ रॉकी सह अभियुक्त था। पुलिस सूत्रों के मुताबिक जब तक रॉकी जिंदा रहा, तब तक पंजाब के शूटरों का यूपी में और यूपी के शूटरों का पंजाब, हरियाणा और राजस्थान में जमकर इस्तेमाल हुआ। 2016 में जब रॉकी को हिमाचल प्रदेश के परवाणु में गोलियों से भून दिया गया, तो उसकी हत्या कराने में पांच संदिग्धों के नाम सामने आये। ये सभी एक-एक करके अप्राकृतिक मौत के शिकार हुए। किसी की भी मौत में हत्या की बात सामने नहीं आयी, लेकिन किसी की भी मौत प्राकृतिक भी नहीं थी। इन पांचों की मौत के पीछे मुख्तार अंसारी गैंग का जिक्र हुआ। हालांकि ये साबित नहीं हो पाया।
मुख्तार के परिवार से अखिलेश के रिश्ते
मुख्तार अंसारी अपराध के साथ ही सियासत में भी अपने पांव जमाता गया। जेल से उम्मीदवारी कर और चिट्ठियां जारी कर मऊ सीट से वह विधानसभा पहुंचता रहा। मुख्तार की सियासी पहुंच का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि कभी वह बसपा तो कभी सपा में अपने और अपने परिवार का सियासी भविष्य सुरक्षित करते हुए गाजीपुर, मऊ, बनारस जैसे जिलों का राजनीति का रंग तय करता रहा। 2009 में भाजपा के गढ़ माने जाने वाले बनारस से भाजपा के कद्दावर नेता मुरली मनोहर जोशी मुख्तार से हारते-हारते बचे और महज 18 हजार वोटों से जीत दर्ज कर पाये। मुख्तार के परिवार की पार्टी कौमी एकता दल के सपा से गठबंधन को लेकर अखिलेश और शिवपाल के बीच जंग छिड़ गयी थी। अखिलेश ने यह कहकर गठबंधन तोड़ दिया कि उनकी पार्टी में माफियाओं के लिए जगह नहीं है। इसके बाद अखिलेश-शिवपाल के रास्ते अलग हो गये थे और मुख्तार परिवार ने बसपा का दामन थाम लिया। हालांकि 2022 के विधानसभा चुनाव के पहले मुख्तार के भतीजे मन्नू अंसारी को अखिलेश ने खुद पार्टी में शामिल कराया और विधानसभा का टिकट दिया। वहीं मुख्तार के बेटे अब्बास को मऊ सदर सीट से सपा के सहयोगी दल सुभासपा ने अपना उम्मीदवार बनाया था।
डर के कारण पंजाब जेल से नहीं आना चाहता था मुख्तार
जेल से समानांतर सत्ता चला रहे मुख्तार को सलाखों के पीछे पहली बार डर तब लगा, जब 10 जुलाई 2018 को उसके करीबी माफिया मुन्ना बजरंगी की बागपत जेल में हत्या हो गयी। इससे दहले मुख्तार ने खुद को यूपी से बाहर निकालने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया। उसे कामयाबी तब मिली, जब पंजाब पुलिस वहां एक दर्ज मुकदमे के सिलसिले में यूपी से ले गयी। उसके बाद वह पंजाब की जेल में ही जम गया। यूपी की योगी सरकार और पंजाब की तत्कालीन कांग्रेस सरकार में मुख्तार को रखने और लाने को लेकर ठन गयी। यूपी पुलिस ने 26 बार प्रोडक्शन वारंट लगाया, लेकिन मुख्तार को वापस लाने में सफलता नहीं मिल पा रही थी। आखिरकार यूपी सरकार को सुप्रीम कोर्ट जाना पड़ा। दो साल तीन महीने के बाद यूपी पुलिस मुख्तार की घर वापसी करा पायी। पंजाब के जेल मुख्तार के लिए कैसे ऐशगाह थी, इसका खुलासा कुछ महीने पंजाब के ही जेल मंत्री हरजोत बैस ने वहां की विधानसभा में किया। बैस का कहना है कि मुख्तार को फर्जी मुकदमा दर्ज करके पंजाब जेल में रखा गया। उसने इस दौरान जमानत कराने की भी कोशिश नहीं की। जेल मंत्री ने यह भी दावा किया कि 25 बंदियों वाले बैरक में मुख्तार अकेले या फिर अपनी पत्नी के साथ रहता था।
मुख्तार का जेल में जलवा होने लगा कम
छह अप्रैल 2021 से मुख्तार अंसारी बांदा जेल में बंद है। मुख्तार के बांदा जेल लौटने के एक माह आठ दिन बाद ही चित्रकूट जेल में बंद मुख्तार के एक और करीबी मेराज को जेल के अंदर गोलियों से भून दिया गया। उसे गोली मारने वाले अंशू दीक्षित ने जेल में बंद एक और कैदी मुकीम काला को भी मारा था। बाद में अंशू पुलिस मुठभेड़ में खुद भी मारा गया। फिलहाल मुख्तार का अब जेल में ऐश का तिलिस्म काफी हद तक टूट चुका है। उस पर 24 घंटे सीसीटीवी कैमरों से निगरानी रखी जाती है। मनमाफिक मुलाकातों, मनचाहा खाना और मोबाइल फोन के इस्तेमाल पर रोक सी लग गयी है। जून 2022 में एक डिप्टी जेलर वीरेश्वर प्रताप सिंह ने जेल के अंदर मुख्तार पर नरमी बरतने और उसे विशेष सुविधाएं देने की कोशिश की, लेकिन उसे निलंबित कर दिया गया। हाल में मुख्तार के विधायक बेटे अब्बास अंसारी को चित्रकूट जेल में विशेष सुविधा देने पर आठ जेल अधिकारी और कर्मी निलंबित हुए हैं। उनमें से चार को जेल भी भेजा गया। अब्बास की पत्नी निखत करीब 60 दिनों तक उससे जेल में मिलने आती रही। वह अब्बास के साथ ही जेल अधिकारियों के कमरे में रहती। डीएम-एसपी की छापेमारी में इस खेल का खुलासा हुआ। इस मामले में अब्बास की पत्नी को भी जेल हुई।
माफिया का परिवार है 97 मुकदमों का आरोपी
माफिया मुख्तार अंसारी और अफजाल अंसारी और उसके परिवार के लोगों के खिलाफ 97 मुकदमे दर्ज हैं। अफजाल अंसारी पर सात और सिबगतुल्लाह अंसारी पर तीन, मुख्तार की पत्नी आफ्शां अंसारी पर 11, मुख्तार के बेटे अब्बास अंसारी पर आठ, उमर अंसारी पर छह और अब्बास की पत्नी निखत बानो पर एक आपराधिक मुकदमा दर्ज है। आफ्शां अंसारी और उमर अंसारी मौजूदा समय में फरार घोषित हैं।
मुख्तार गैंग की 573 करोड़ की संपत्ति जब्त
करीब चार दशक तक कानून के शिकंज से दूर मुख्तार की सजा का पहला सबब भी जेल ही बनी। 23 अप्रैल 2003 की सुबह लखनऊ जिला कारागार के जेलर एसके अवस्थी को मुख्तार ने जान से मारने की धमकी दी थी। वर्ष 2020 में एमपी-एमएलए कोर्ट ने इस मामले में मुख्तार को बरी कर दिया था। लेकिन अभियोजन विभाग की पैरवी के बाद इलाहाबाद हाइकोर्ट की लखनऊ पीठ ने निचली अदालत का फैसला पलट दिया और उसे सात साल की सजा सुनायी है। पिछले छह सालों में मुख्तार गैंग की 573 करोड़ रुपये से अधिक की संपत्ति जब्त की गयी है। वहीं दो सौ करोड़ रुपये से अधिक का अवैध कारोबार ध्वस्त किया गया है। खतरे में मुख्तार की सियासत भी है। इस बार उसने मऊ की अपनी सियासी विरासत बेटे अब्बास को सौंपी थी। विधायक बनने के बाद वह भी जेल में है।
फिलहाल गाजीपुर की एमपी-एमएलए कोर्ट ने गैंगस्टर एक्ट में माफिया मुख्तार अंसारी को 10 साल जेल की सजा सुनायी है। साथ ही पांच लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया है। मुख्तार के भाई और सांसद अफजाल अंसारी को चार साल जेल की सजा मिली है। अब उसकी लोकसभा सदस्यता जानी तय है। भाजपा विधायक कृष्णानंद राय की हत्या के मामले में दर्ज केस के आधार पर अफजाल अंसारी के खिलाफ गैंगस्टर का केस दर्ज हुआ था। वहीं मुख्तार अंसारी के खिलाफ भाजपा विधायक कृष्णानंद राय और नंदकिशोर गुप्ता रुंगटा की हत्या के मामले में गैंगस्टर का मुकदमा दर्ज है। अंसारी ब्रदर्स के खिलाफ मुहम्मदाबाद थाने में 2007 में क्राइम नंबर 1051 और 1052 दर्ज हुआ था। ये वही अंसारी ब्रदर्स हैं, जिन्होंने मुसलमानों से वोट तो खूब लिये, लेकिन उनके लिए किया कुछ भी नहीं। हां, कई युवाओं को बंदूके जरूर थमा दी। समझा जा सकता है जिस क्षेत्र से मुख्तार और अफजाल आते हैं, वहां कोई दूसरा मुस्लिम नेता क्यों नहीं उभर पाया, क्योंकि ये लोग चाहते नहीं थे कि कोई उनके सामने खड़ा हो, कोई उस इलाके से उभरे। उत्तर प्रदेश ने अतीक अहमद के आतंक को भी देखा, मुख्तार के आतंक को भी देखा। आज अतीक की हत्या हो चुकी है, उसका एक बेटा पुलिस एनकाउंटर में मारा गया, उसका भाई मारा गया, पत्नी फरार है, दो बेटे जेल में हैं, दो सुधारगृह में हैं, मतलब पूरा परिवार बर्बाद होने की कगार पर है। मरने से पहले उसने वह सब कुछ देखा, जो वह अपने आतंक के जरिये करते आया था। वही हाल मुख्तार अंसारी का है। मुख्तार जेल में है, उसके भाई अफजाल को भी सजा हो गयी है। मुख्तार की पत्नी, उसका छोटा बेटा उमर अंसारी और उसकी पत्नी फरार है। पुलिस ढूंढ रही है। मुख्तार का बड़ा बेटा जेल में है। उसकी पत्नी भी जेल में है। यह उन कर्मों का फल है, जिसका पेड़ इन माफियाओं ने लगाया था। अभी तो यह शुरूआत मात्र है। भला हो योगी सरकार का, जिसके आने से उत्तर प्रदेश की जनता चैन की सांस ले रही है। आज उत्तर प्रदेश दंगा मुक्त है, अपराध मुक्त है। आज उत्तर प्रदेश के लोग कहते हैं कि उत्तर प्रदेश में जब तक बाबा हैं, कोई भी अपराधी उनका बाल भी बांका नहीं कर सकता। यूपी में का बा, त यूपी में बाबा बाड़न, जो सबके टाइट करले बाड़न।