आज वट सावित्री की पूजा है। अखंड सुहाग के लिए सुहागन ज्येष्ठ माह की कृष्ण पक्ष की अमावस्या को इसका व्रत रखती हैं। कहा जाता है कि जिस तरह से सावित्री अपने पति सत्यवान के प्राणों को यमराज के हाथों से छीन कर लाई थी, उसी तरह से पत्न अगर ये व्रत रखती है तो उसके पति पर आने वाली बाधाएं दूर हो जाती हैं।
देश भर में शादी-शुदा महिलाएं ये व्रत रखती हैं और पूजा भी करती हैं। लखनऊ के गोंडा में सुहागन महिलाओं ने वट सावित्री का पूजन कर अखंड सुहाग की कामना की। प्रातकाल की बेला में सुहागिनों ने सोलह श्रृंगार करके सिंदूर, रोली, अक्षत, फूल, चना, फल व मिठाई आदि से पूजन किये और बरगद पेड़ की चारों ओर कच्चे धागे लपेट कर फेरे लगाई। जिससे उनके पति दीर्घायु हो और उन्नति करें।
प्यार, श्रद्धा व समर्पण के इस देश में यह व्रत सच्चे व पवित्र प्रेम का प्रतीक माना जाता है। पंतनगर, हाईडिल कालोनी व गोलागंज मोहल्ले में अर्से पुराने वट सावित्री की बड़ी संख्या में सुहागिनों ने पूजन किये।
तो इसलिए होती हैॅ वट वक्ष की पूजा..
किवदंती है इसी दिन सावित्री ने यमराज से अपने पति सत्यवान के प्राणों की रक्षा की थी। यमराज ने चने के रूप में सत्यवान के प्राण सौंपे थे। चने लेकर सावित्री सत्यवान के शव के पास आयी और मुंह में रखकर सत्यवान के मुंह में फूंक दिया। इसी से सत्यवान जीवित हो गये। तभी से वट सावित्री के पूजन में चना पूजन का नियम है। वट वृक्ष को दूध और जल से सींचना चाहिए।
ये है मान्यता
जेष्ठ मास के कृष्ण पक्ष के श्रावण को विवाहित महिलाओं द्वारा वट सावित्री व्रत रखा जाता है। इसकी पूजा बरगद वृक्ष के नीचे की जाती है इससे इसका नाम वट सावित्री के नाम से जाना जाता है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार पीपल वृक्ष की तरह बरगद वृक्ष में भी लक्ष्मी महेश की उपस्थिति मानी जाती है। इस वट वृक्ष के नीचे कथा व्रत करने से मन वांछित फल की प्राप्ति होती है।
पूजा के लिए सुबह तीन बजे से ही सुहागिनें सोलह श्रृंगार करने लगतीं हैं। फिर वट वृक्ष के नीचे जाकर पांच, ग्यारह, इक्कीस, इक्यावन व 108 बार वृक्ष की परिक्रमा करके वट में धागा लपेट कर पति की लम्बी आयु की मुरादें मागतीं हैं।